चलिए इस बार हरिद्वार चलते हैं। छुट्टियां हैं, मौसम भी अच्छा है तथा सब से बड़ी बात, यहां जाना बाकि के तीर्थों से सबसे सुगम है। यह सड़क मार्ग से देश के प्राय: सभी नगरों से जुड़ा हुआ तो है ही, रेल मार्ग भी इसे देश के बहुतेरे हिस्सों से जोड़ता है। यहां रहने-खाने की हर तरह की व्यवस्था है। पर्यटन की दृष्टि से सितम्बर मध्य से अप्रैल अंत तक का समय उम्दा रहता है।
हरिद्वार का पौराणिक नाम 'मायापुर है। इसे सप्तपुरियों में स्थान प्राप्त है। हर बारहवें वर्ष, जब सूर्य और चंद्रमा मेष राशि में तथा बृहस्पति कुंभ राशि में आते हैं, तब यहां कुंभ का मेला लगता है। हिमालय की तराई में स्थित हरिद्वार में ही गंगा, पहली बार समतल जमीन पर बहना शुरु करती है। पुराणों के अनुसार गंगा स्नान का सर्वाधिक महत्व गंगोत्री, हरिद्वार, प्रयाग तथा गंगासागर में होता है। यहीं से उत्तराखंड की यात्रा प्रारंभ की जाती है।
हरिद्वार का पर्याय है 'हर की पौडी'। इसी विश्वप्रसिद्ध घाट पर कुंभ का मेला लगता है। यह एक विशाल कुंड सा है, जिसमें सदा कमर तक पानी रहता है। गंगा की मुख्य धारा से अलग हो उसकी एक शाखा इस कुंड से होकर प्रवाहित होती है। इसे ब्रह्मकुंड के नाम से भी जाना जाता है। इसी के निकट गंगा देवी का तथा अन्य कुछ मंदिर भी हैं। सूर्यास्त के समय यहां रोज गंगाजी की आरती की जाती है, उस समय नदी में प्रवाहित किए जाने वाले दीपक एक अलौकिक दृश्य उत्पन्न करते हैं। जिसका अनुभव सुन कर नहीं देख कर ही किया जा सकता है।
हरिद्वार या हरद्वार अपने आप में ही पूर्ण दर्शनीय स्थान है। फिर भी यहां पुराने और नये बहुत से स्थल देखे बिना नहीं लौटना चाहिए। इनमेँ प्रमुख हैं :- मनसा देवी का मंदिर, भीमगोड़ा तालाब , माया देवी का मंदिर, गुरुकुल कांगडी विश्वविद्यालय, चंडी देवी का मंदिर, सप्तऋषि आश्रम, दक्ष प्रजापति का मंदिर, परमार्थ आश्रम, भारत माता मंदिर इत्यादि-इत्यादि-इत्यादि। योग गुरु स्वामी रामदेवजी का विशाल सर्वसुविधायुक्त, आयुर्वेदिक चिकित्सा केन्द्र 'पतंजलि योगपीठ' भी यहीं स्थित है।
जैसे-जैसे आवागमन आसान तथा सुलभ होता गया है वैसे-वैसे शहरीपन भी इस धार्मिक स्थल पर अपनी छाप छोड़ने लगा है। पहले लोग धार्मिक कर्म-कांडों के लिए या तीर्थ का लाभ पाने के लिए यहां जाया करते थे। परन्तु अब लोगों के हनीमून मनाने के स्थानों में भी इसका नाम शुमार हो गया है। बढ़ती आबादी का असर यहां भी अपने पैर पसार रहा है। वही भीड़-भाड़, शोर- शराबा, हल्ला-गुल्ला यहां के रोजमर्रा के अंग बनते जा रहे हैं। फिर भी इसका प्राकृतिक सौंदर्य अपनी जगह है। इसलिए जब कभी भी मौका मिले तो जाने से मत चूकिएगा।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
रविवार, 5 अक्टूबर 2008
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5 टिप्पणियां:
धन्यवाद, हम भी आपके साथ घुम आये
आभार।
जी, बहुत आभार. हरिद्वार जाना मुझे भी अति प्रिय है.
हरिद्वार तो हमारा ननिहाल है जी....आना-जाना लगा रहता है...
आपके साथ घूम कर भी आनंद आया ....
मै गया था लेकिन बिलकुल नही घुमा ना गगां स्नान किया, पिता जी की अस्तियां ले कर ग्या था, मई महीने मे, लेकिन अगली बार घुमने आऊगा
धन्यवाद
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