बुधवार, 1 अक्टूबर 2008

भगवान् का एड्रेस / आबादी के लिए रेल दोषी

एक भिखारी को सबेरे से शाम हो गयी पर उसे एक पैसा भी नहीं मिला। उसने सोचा था कि त्योहार के दिन हैं, तो पहले वह मंदिर में घंटों बैठा रहा, फिर दोपहर में मस्जिद के दरवाजे पर आस लगाये रहा, वहां से निराश हो गुरुद्वारे फिर चर्च। पर कहीं भी उसको एक रुपया ना मिल पाया। अंत में वह थक हार कर एक बार के सामने बैठ गया। उसका बैठना था कि अंदर से एक शराबी झूमते-झामते निकला और भिखारी के बिना मांगे ही एक सौ का नोट उसकी झोली में डाल गया।
भिखारी आश्चर्यचकित हो बोला, "हे भगवान तू रहता कहां है और एड्रेस कहां का दिया हुआ है।"
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नेताजी परिवार नियोजन के सिलसिले में एक सुदूर देहात में पहुंचे तो पाया कि घरों के हिसाब से लोग बहुत ज्यादा हैं। उन्होंने मुखिया से पूछा कि गांव में घर इतने कम हैं पर आबादी इतनी ज्यादा क्यूं है? मुखिया ने जवाब दिया, मालिक यह सब रेलवे वालों का दोष है। नेताजी चकराए कि आबादी और जनसंख्या का क्या मेल। उन्होंने फिर पूछा, भाई ऐसा कैसे? मुखिया बोला, उन्होंने रेल लाईन बिल्कुल गांव के पास से निकाली है। नेताजी की समझ में कुछ नहीं आया, बोले तो?
मुखिया ने समझाया, जनाब, रात में दो बजे एक गाडी सीटी बजाते हुए यहां से निकलती है, जिससे सारे गांव वालों की नींद टूट जाती है।

3 टिप्‍पणियां:

जितेन्द़ भगत ने कहा…

वाकई जनाब, ऐड्रेस गलत ही दि‍या है भगवान ने।
कि‍सी ने लोगों के भीतर झॉंकने की कोशि‍श नहीं की। कभी-कभी चुटकुलों में भी कि‍तने गहन भाव छि‍पे होते हैं-
"हे भगवान तू रहता कहां है और एड्रेस कहां का दिया हुआ है।"

राज भाटिय़ा ने कहा…

शर्मा जी यह सीटी सच मे सही कारण ही हो सकता हे,ओर मे तो मंदिर मे इसी लिये ना जाता हु, ओर ना ही दान देता हू, क्योकि भगवान वहा हे ही नही, वहां तो ......
धन्यवाद

वीनस केसरी ने कहा…

मजेदार
पढ़वाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद

वीनस केसरी

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