सोमवार, 13 अक्तूबर 2008

हसने का कोई समय होता है क्या?

बंताजी ने अपने घर के ऊपर का हिस्सा एक फौजी को किराए पर दे दिया। फौजी ठहरा फौजी। रोज आधी रात को अपने भारी-भरकम जूतों के साथ धम-धम करता सीढ़ियां चढ़े, अपने कमरे में जा, अपने जूतों को खोल एक को इधर फेंके दूसरे को उधर, रात को भारी जूतों की आवाज से बंता परिवार परेशान। एक दिन हिम्मत कर बंताजी ने फौजी को कहा कि आप रात को अपने जूते फेंकें नहीं, आवाज से बच्चे डर जाते हैं। फौजी ने कहा कि आज से आवाज नहीं होगी, आप आराम से सोयें। रात को फौजी लौटा, कमरे में जा उसने एक जूता उतार कर फेंका तो उसे सबेरे की बात याद आ गयी। उसने दूसरा जूता धीरे से उतार कर रखा और सो गया। सबेरे उठ उसने बंताजी से पूछा, क्योंजी रात ठीक से नींद आई? बंताजी बोले कहांजी हम तो रात भर दूसरे जूते के गिरने का इंतजार करते रह गये।
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चर्च में पादरी शराब की बुराईयों को उदाहरण दे कर समझा रहा था, यदि शराब पैर से भी छू जाए तो नरक जाना पड़ता है। डेविड बताओ क्या समझे?फ़ादर, ऐसी चीज को जो पैर लगायेगा, वह नरक में जायेगा।
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संता गंभीर अपराध में पकड़ा गया। उसने वकील से कहा कि चाहे लाखों रुपये लग जायें, मुझे सजा नहीं होनी चाहिये। वकील ने सांत्वना दी, इतने रुपये रहते मैं सजा नहीं होने दूंगा। सचमुच संता के पास जबतक एक भी पैसा रहा, वकील ने सजा नहीं होने दी।

2 टिप्‍पणियां:

राज भाटिय़ा ने कहा…

अजी सोने से पहले खुब हंसा दिया अब तो सपने मै भी फ़ोजी ओर बंता ही दिखाई देगे.
धन्यवाद

अभिषेक मिश्र ने कहा…

Anutha aur vividhatapurna hai blog aapka. Swagat mere blog par bhi.

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