शनिवार, 4 अक्टूबर 2008

मां दुर्गा का पांचवां स्वरुप "स्कन्दमाता"

नवरात्रि के पांचवें दिन मां दुर्गा के "स्कन्दमाता" स्वरुप की आराधना की जाती है। स्कन्द, भगवान कार्तिकेय का ही एक नाम है। इन्हीं की माता होने के कारण मां दुर्गा को स्कन्दमाता के नाम से भी जाना जाता है। इनकी चार भुजाएं हैं। अपनी दाहिनी भुजा में इन्होंने भगवान् कार्तिक को बाल रुप में उठा रखा है, दुसरी भुजा अभय मुद्रा में उठी हुई है तथा बाकि दोनों हाथों में कमल-पुष्प है। इनका वर्ण शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। सिंह भी इनका वाहन है।
इनकी उपासना से भक्त की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं तथा उसे परम शांति और सुख की प्राप्ति होती है। स्कन्दमाता की आराधना से बालरुप स्कन्द भगवान की भी उपासना अपने आप हो जाती है। नवरात्रि की पंचमी को स्कन्दमाता की आराधना करते समय साधक का मन विशुद्ध चक्र में अवस्थित होना चाहिए। सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक भी अलौकिक तेज व कांति से संपन्न हो जाता है।
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सिंहासनम्ता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया ।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।
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4 टिप्‍पणियां:

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

badhiya prastutikaran . dhanyawad.shubhakaman navaraatr parv ki.

राज भाटिय़ा ने कहा…

शर्मा जी आप का दिल से आभार

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बहुत आभार इस उम्दा कार्य के लिए.

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

आपलोगों के स्नेह से हौसला बना रहता है। हार्दिक धन्यवाद।

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