सोमवार, 20 अक्टूबर 2008

बिना शीर्षक के

ठंड़ के दिन थे। एक गिद्ध पहाड़ की चोटी पर बैठा गुनगुनी धूप का आनंद ले रहा था। इतने में उधर से यमराज गुजरे। वहां गिद्ध को बैठा देख उनकी भृकुटी में बल पड़ गये। उन्होंने कुछ कहा नहीं, बस अपने रस्ते चले गये। पर इधर गिद्ध महाराज के तो देवता ही कूच कर गये। सही भी था जिसको साक्षात यमराज ही टेढ़ी नज़र से देख गये हों, उसका तो भगवान ही मालिक है। गिद्ध बेचारा डर के मारे कांपे जा रहा था, उसे आज अपना अंत साफ दिखाई पड़ रहा था। इतने में उधर से नारद मुनि निकले। गिद्ध की ऐसी बुरी दशा देख उन्होंने उससे पूछा, गिद्ध राज, क्या हुआ ऐसे क्यूं कांप रहे हो। गिद्ध की तो आवाज ही नहीं निकल रही थी। बड़ी मुश्किल से उसने सारी बात नारद जी को बताई। नारद जी बोले तुम डरो मत। यमराज तो धर्मराज हैं, बिना बात वे किसी को भी दंडित नहीं करते। फिर भी तुम सुरक्षा की दृष्टि से यहां से सौ योजन दूर मलय पर्वत पर चले जाओ, वहां एक गुफा है, उसके अंदर जा कर बैठ जाना। मैं यमराज जी से तुम्हारे बारे में बात करता हूं।
इस तरह गिद्ध को सुरक्षित जगह भेज नारद जी यमराज जी के पास गये और उनसे पूछा, महाराज, उस बेचारे गिद्ध से क्या भूल हो गयी, जो आप उस पर क्रुद्ध हो गये। यमराज जी बोले, नहीं तो, मैं क्रोधित नहीं इस बात को लेकर आश्चर्यचकित था, कि उस गिद्ध की मौत तो सौ योजन दूर मलय पर्वत की गुफा में होनी है। वह यहां कैसे बैठा हुआ है।

5 टिप्‍पणियां:

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…

ek katha jo batati hai maut jahn likhi hai wahin hogi.
ek alag se katha bahut acchi.

राज भाटिय़ा ने कहा…

बिलकुल सही
धन्यवाद

Udan Tashtari ने कहा…

हा हा!! नारद पर जो भरोसा कर ले, उसका समझो बंटाधार. बेचारा गिद्ध!!

श्रीकांत पाराशर ने कहा…

Wah, achha drishtant hai, maza aaya.

बेनामी ने कहा…

is kahate hai hom karate hath jalana. bechara naarad.

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