मंगलवार, 7 अक्टूबर 2008

आविष्कार की मां का नाम आवश्यकता है

इस शीर्षक को जापानियों ने सही ठहराया है, अपने मछली प्रेम से।

जापानियों का मछली प्रेम जग जाहिर है। परन्तु वे व्यंजन से ज्यादा उसके ताजेपन को अहमियत देते हैं। परन्तु आज कल प्रदुषण के कारण समुद्री तट के आसपास मछलियों का मिलना लगभग खत्म हो गया है। इसलिए मछुवारों को गहरे समुद्र की ओर जाना पड़ता था। इससे मछलियां तो काफी तादाद में मिल जाती थीं, पर आने-जाने में लगने वाले समय से उनका ताजापन खत्म हो जाता था। मेहनत ज्यादा बिक्री कम, मछुवारे परेशान। फिर इसका एक हल निकाला गया। नौकाओं में फ्रिजरों का इंतजाम किया गया, मछली पकड़ी, फ्रिजर में रख दी, बासी होने का डर खत्म। मछुवारे खुश क्योंकि इससे उन्हें और ज्यादा शिकार करने का समय मिलने लग गया। परन्तु वह समस्या ही क्या जो ना आए। जापानिओं को ज्यादा देर तक फ्रिज की गयी मछलियों का स्वाद नागवार गुजरने लगा। मछुए फिर परेशान। पर मछुवारों ने भी हार नहीं मानी। उन्होंने नौका में बड़े-बड़े बक्से बनवाए और उनमें पानी भर कर मछलियों को जिन्दा छोड़ दिया। मछलियां ग्राहकों तक फिर ताजा पहुंचने लगीं। पर वाह रे जापानी जिव्हो, उन्हे फिर स्वाद में कमी महसूस होने लगी। क्योंकि ठहरे पानी में कुछ ही देर मेँ मछलियां सुस्त हो जाती थीं और इस कारण उनके स्वाद में फ़र्क आ जाता था। पर जुझारु जापानी मछुवारों ने हिम्मत नहीं हारी और एक ऐसी तरकीब इजाद की, जिससे अब तक खानेवाले और खिलानेवाले दोनों खुश हैं। इस बार उन्होंने मछलियों की सुस्ती दूर करने के लिए उन बड़े-बड़े बक्सों में एक छोटी सी शार्क मछली डाल दी। अब उस शार्क का भोजन बनने से बचने के लिए मछलियां भागती रहती हैं और ताजी बनी रहती हैं। कुछ जरूर उसका आहार बनती हैं पर यह नुक्सान मछुवारों को भारी नहीं पड़ता।

है ना, तीन इंच की जबान के लिए दुनिया भर की भाग-दौड़।

8 टिप्‍पणियां:

Nitish Raj ने कहा…

सच ये भागदौड़ तो कुछ ज्यादा हैं हम भारतीय इतना तो नहीं कर सकते। खाने के तो शौकीन हैं पर इतने भी नहीं।

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…

3 inch ki jawan ka swad pura karne ke liye japaniyon ka avishkar sach main swadisht hoga

अमित अग्रवाल ने कहा…

ha ha ha
japani log bhi toooo much hai.
wakai bahut taza jaankaari dee apne.
shukria janab.

राज भाटिय़ा ने कहा…

क्या बात है इन जापनियो की.इसी लिये तो मै जपानी नही, बल्कि पंजाबी नुं, मक्की की रोटी ओर सरंसो का सागं
धन्यवाद

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

नितीश जी, हम शौकीन हैं, वे चटोरे :-)

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

धीरू भाई, इस तीन इंची ने ना जाने कब-कब, क्या-क्या कहर ढाया है !

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अमित जी, ये टू शॉर्ट होते हुए भी टू मच हैं :-)

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

राज जी, सही बात; अपनी साग-रोटी ही भली

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