जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, चारों ओर सिर्फ़ अंधकार ही अंधकार था, तब "मां कूष्माण्डा" के सहयोग से ही ब्रह्माण्ड की रचना संभव हो पायी थी। इनकी मंद हंसी द्वारा ब्रह्माण्ड के उत्पन्न होने के कारण इनका नाम कूष्माण्डा देवी अभिहित किया गया। यही सृष्टि की आदि शक्ति हैं। इनका निवास सूर्य लोक में माना जाता है। इनके शरीर की कांति, रंगत व प्रभा सूर्य के समान ही तेजोमय है। कोई भी देवी-देवता इनके तेज और प्रभाव की समानता नहीं कर सकता। इन्हीं के तेज से दसों दिशाएं प्रकाशमान होती हैं। इनके आठ हाथ हैं, जिनमें कमण्डल,धनुष, बाण, कमल, कलश, चक्र तथा गदा हैं। आठवें हाथ में सिद्धियां प्रदान करने वाली जप माला है। इनका वाहन सिंह है।
इनकी आराधना से यश,बल आयु तथा आरोग्य प्राप्त होता है। सभी प्रकार की सिद्धियां इनके आशिर्वाद से सुलभ हो जाती हैं। चूंकि ये ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति का कारण हैं इसलिए संतान प्राप्ति की कामना रखने वाले को मां कूष्माण्डा की पूजा अर्चना करने से लाभ होता है। इस दिन साधक का मन 'अनाहत चक्र' में अवस्थित होता है। सच्चे मन से इनकी शरण में जाने से मनुष्य को परमपद प्राप्त हो जाता है।
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सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च ।
दधाना हरतपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे।।
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इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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2 टिप्पणियां:
बढिया पोस्ट।आभार॥
शर्मा जी धन्यवाद आप ने पुरी जान कारी दी, हमे तो इतना पता भी नही था,
धन्यवाद
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