वर्षों पहले, ताऊ ने भी अपना वर्चस्व बनाने के लिए ऐसी ही हरकत की थी। अपने भड़काउ भाषणों के द्वारा महाराष्ट्र की जनता को दो फाड़ कर वहां अपना एकाधिकार जमाने की। पर उस समय दिल्ली में एक मजबूत सरकार के हाथों में देश की बागडोर थी, एक निडर और दबंग महिला के नेतृत्व में। एक सिर्फ एक घुड़की मिली थी और तथाकथित शेर अपनी मांद में दुबक गया था। हिम्मत नहीं हुई थी कि कोई जवाब भी दे पाता। पर आज मामला बिल्कुल उल्टा है। कोई भी आता है आंख दिखा कर चला जाता है। सरकार को अपनी ही भसूड़ी पड़ी हुई है। अपने आप को बचाएं या देश को देखें। हिमाकत इतनी बढ़ गयी है, छुटभैइयों तक की, कि चोरी भी करते हैं फिर सीनाजोरी भी दिखाते हैं। महाराष्ट्र सरकार की तो छोड़ीए केन्द्र ही हिम्मत नहीं जुटा पा रहा कोई सख्त कदम उठाने का। एक कमजोर, हताश, हिचकोले खाते नेतृत्व से आशा करना भी बेवकूफी ही है।
यत्र-तत्र-सर्वत्र बिखरे बिहार, यू.पी. के निवासियों के धैर्य और संयम की जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है। इनकी चुप्पी इनकी कमजोरी नहीं समझदारी है। प्रभू से यही प्रार्थना है कि इनकी बनाए रखे और उनकी लौटा दे।
2 टिप्पणियां:
शर्मा जी आप सही फ़रमा रहै है, बिलकुल सही
धन्यवाद
बिल्कुल सही कह रहे हैं..यह समझदारी बनी रहे वरना हा हा कार मच जायेगा.
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