सोमवार, 18 अगस्त 2025

शौक या अत्याचार 😢(विडियो सहित)

कभी  आपने पिजंड़े में   कैद जानवरों  के  चेहरों को ध्यान से देखा है  ? जहां  हर जीव के  चेहरे पर छटपटाहट, बेबसी, निराशा, उदासी, थकावट,  उकताहट जैसे भाव  स्थाई हो कर रह गए होते हैं ! यहां आहार तो  इन्हें बिना किसी उपक्रम व परिश्रम  के मिल जाता है ! इसीलिए बिना दौड़-भाग के सिर्फ खाने और सोने के कारण उनकी शारीरिक क्रियाऐं दिन ब दिन शिथिल होती चली जाती हैं और ये समय से पहले बूढ़े, बीमार होते चले जाते हैं.........!       

#हिन्दी_ब्लागिंग 

इंसान सदा से एक फितरती प्राणी रहा है ! वह अपने आप को संसार के सभी जीवों से उत्कृष्ट मानता आया है ! उसे लगता है कि वही इस जगत का स्वामी है, बाकी सारे जीव-जंतु उसकी मिल्कियत हैं ! इतना ही नहीं यदि वह सक्षम व सशक्त भी हो जाए तो वह तो निरीह इंसानों तक को नहीं बख्शता,उनको अपना दास बना लेता है, जानवर क्या चीज हैं ! 

शौक की कीमत 
सी मानसिकता के चलते कई लोग अपने शौक की पूर्ती के लिए जानवरों के बच्चों को पालते हैं ! जिनमें कई खूंखार जंगली नस्लें भी होती हैं ! शौक-शौक है ! बस, उसे पूरा करने की क्षमता होनी चाहिए ! संसार में ऐसे सक्षमों की कोई कमी नहीं है ! 

जानवरों को पालना कोई बुरी बात नहीं है ! देश-विदेश में ऐसा वर्षों से होता आया है ! यदि पशु-पक्षी बेसहारा हो, अपने परिवार से बिछुड़ा हुआ हो या उसकी जान को खतरा हो तो उसकी रक्षा करना, उसका जीवन बचाना पुण्य का काम माना जाता है ! परंतु सिर्फ अपने शौक को पूरा करने के लिए जंगली जानवरों के शावकों, पशु-पक्षियों या अन्य जीवों को सिर्फ अपने मनोरंजन के लिए बंदी बनाना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं माना जा सकता ! 

स्नेह 
शुरू-शुरू में पशु शावकों और इंसानों में सौहार्द बना रहता है, बच्चों को दुलार, प्यार, सेवा, सुरक्षा सब मिलता है, परंतु जब वही शावक कुछ बड़े हो जाते हैं और उनमें उनकी नैसर्गिक क्षमताएं, आदतें और प्रवित्तियां उभरने लगती हैं तो इंसानों को वे अपने लिए खतरा लगने लगते हैं और उन्हीं से डर कर उन्हें पिंजड़ों में बंदी बना नारकीय जीवन जीने पर मजबूर कर दिया जाता है ! 


प्रताड़ना 
चिड़ियाघर भी कुछ ऐसी ही जगह है ! फर्क इतना ही है कि वहां शौक नहीं बल्कि इंसान के जानने, समझने के नाम पर बेकसूर जीवों को छोटे-बड़े पिजरों में आजन्म कैद कर रखा जाता है ! जहां सबसे बड़ी मुसीबत सरीसृप जाति को होती है जो अपने आकार से कहीं छोटे कांच के बक्सों में कैद होते हैं ! भले ही कुछेक जानवरों के बाड़े बड़े होते हैं पर कैद, कैद होती है। आजादी, आजादी !

                                                 

पराधीन सपनेहुं सुख नाहीं 
भी आपने इन कैदी जीवों के चेहरों को ध्यान से देखा है ? जहां हर जीव के चेहरे पर बेबसी, छटपटाहट, निराशा, उदासी, थकावट, उकताहट जैसे भाव स्थाई हो कर रह गए होते हैं ! यहां इन्हें आहार बिना किसी उपक्रम के मिल जाता है ! इसलिए बिना दौड़-भाग के सिर्फ खाने और सोने के कारण उनकी शारीरिक क्रियाऐं दिन ब दिन शिथिल होती चली जाती हैं और ये समय से पहले बूढ़े, बीमार होते चले जाते हैं ! 

                                                 

       
आजादी 
हालांकि हम सब में इस को लेकर थोड़ी बहुत जागरूकता तो आई है पर वह ना के बराबर है ! इन प्राणियों को भी प्रेम, प्यार, करुणा और आजादी की उतनी ही जरुरत है, जितनी कि हमें !  

@चित्र अनुज रंजन तथा अंतर्जाल के सौजन्य से  

बुधवार, 13 अगस्त 2025

गैसलाइटिंग, समझदारी अवाम को ही दिखानी होगी

राजनीति में जनोन्माद का भाव पैदा करना स्वाभाविक है। कोई अगर किसी पार्टी पर हमला कर राजनीतिक बढ़त हासिल करने की कोशिश करता है तो इसमें कोई बुराई भी नहीं है। परंतु सोशल मीडिया के युग में, बार-बार फैलाए गए झूठ, आम जनता के लिए सच का रूप ले लेते हैं, यह खतरनाक है ! वर्तमान में झूठ, बल्कि खुले झूठ, का राजनीति में एक गैसलाइटिंग हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाना शुरू हो चुका है ! विपक्षी पर सार्वजनिक मंच से बेशर्मी से झूठ बोल, असंसदीय शब्द या मिथ्या घृणित आरोप लगा कर यह दावा करना कि मेरा कथन ही सच है, यही है गैसलाइटिंग..............!         

#हिन्दी_ब्लागिंग 

गैसलाइटिंग ! क्या होती है गैसलाइटिंग, जिसकी वेबसाइटों पर हुई बेपनाह खोज के कारण अमेरिका के जाने-माने पब्लिशर मेरियम बेवस्टर ने वर्ड ऑफ द ईयर चुना है ? उनके अनुसार इस शब्द का अर्थ है, किसी के द्वारा किसी के आत्म-संदेह को बढ़ावा देना ! किसी को उसकी सोच और विचारों पर संदेह दिला उनको नकारने के लिए प्रेरित करना। इससे पीड़ित व्यक्ति को अपनी ही समझ पर संदेह होने लगता है ! जिससे वह चिंता, अवसाद, भटकाव जैसी भावनाओं से ग्रस्त हो जाता है और इसका असर उसके मानसिक स्वास्थ्य पर भी हानिकारक रूप से पड़ने लगता है !

प्रभाव 
पैट्रिक हैमिल्टन के एक नाटक "गैस लाइट" का 1938 में मंचन हुआ था। बाद में 1944 में उस नाटक पर बनी फिल्म के कथानक में एक व्यक्ति धोखे से अपनी पत्नी को यह विश्वास दिलाने का प्रयास करता है कि वह पागल हो रही है, जबकि ऐसा था नहीं ! सबसे पहले गैसलाइटिंग शब्द का प्रयोग उसी फिल्म में किया गया था ! 

मय के साथ-साथ मुहावरों, शब्दों के अर्थ बदलते रहते हैं ! वर्तमान में गैसलाइटिंग का रूप और अर्थ बदल गया है ! आज छल, फरेब, दगाबाजी और खुले झूठ के जरिए सामाजिक मनोविज्ञान की हेराफेरी को भी "गैसलाइटिंग" कहा जा सकता है। वह साजिश के सिद्धांतों के तहत डीपफेक, ट्विटर, फेक न्यूज और ट्रोलिंग द्वारा सच को झूठ और झूठ को सच में बदलने का हथियार बन गया है ! आजकल, किसी राजनेता या राजनीतिक संगठन के लिये सार्वजनिक बातचीत को विषय से भटकाने और किसी विशेष दृष्टिकोण के पक्ष में या उसके खिलाफ राय में हेरफेर करने की रणनीति के रूप में गैसलाइटिंग का उपयोग करना सामान्य बात है।

प्रक्रिया 
ज इस अस्त्र का इस्तेमाल, देश-विदेश में अपने ही देश, उसकी व्यवस्था, उसकी संस्थाओं की आलोचना करने और उन सब को व्यवस्थित तथा सुधारने के लिए खुद को प्रोजेक्ट करने के लिए हो रहा है ! हालांकि ऐसी हरकतों और बयानों के पीछे अपने कारण हो सकते हैं। लेकिन तथ्यों से खिलवाड़ और झूठ को सच की तरह पेश करने की हिमाकत, बेशर्मी, छल-कपट और मक्कारी की इंतहा है ! भले ही लानत-मलानत होती हो, शर्मसार होना पड़ता हो, पर निर्लज्जता की कोई सीमा नहीं है !

नेता ??
राजनीति में जनोन्माद का भाव पैदा करना स्वाभाविक है। कोई अगर किसी पार्टी पर हमला कर राजनीतिक बढ़त हासिल करने की कोशिश करता है तो इसमें कोई बुराई भी नहीं है। परंतु सोशल मीडिया के युग में, बार-बार फैलाए गए झूठ, आम जनता के लिए सच का रूप ले लेते हैं, यह खतरनाक है ! वर्तमान में झूठ, बल्कि खुले झूठ, का राजनीति में एक गैसलाइटिंग हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाना शुरू हो चुका है ! विपक्षी पर सार्वजनिक मंच से बेशर्मी से झूठ बोल, असंसदीय शब्द या मिथ्या घृणित आरोप लगा कर यह दावा करना कि मेरा कथन ही सच है, यही है वह बला, जिसे गैसलाइटिंग कहा जाता है 
गैसलाइटिंग ग्रसित 
से झूठ के पुलिंदों की सच्चाई को उजागर करने के लिए जनता यानी पब्लिक को ही गैस लाइटिंग के धुंए से फैले धुंधलके को दूर हटा, उसी गैस की रौशनी का उपयोग कर, सार्वजनिक रूप से, सरे आम, मक्कारों के चेहरों से  मुखौटे उतार, उनकी असलियत को देश-दुनिया के सामने लाना होगा ! तभी देश को शांति और सुरक्षा मिल पाएगी !

https://youtube.com/@gagansharma8554?si=70eu3nbJkp0Lti1W?view_as=subscribe?sub_confirmation=1 

सभी चित्रों के लिए अंतर्जाल का आभार  

रविवार, 10 अगस्त 2025

विश्वव्यापी टैरिफ संकट और हम

आज हम इतने सक्षम हैं कि ऐसी चुन्नोतियों से निपट सकें ! थोड़ा-बहुत नुक्सान तो हो सकता है, पर आग में तप कर ही सोना खरा उतरता है ! इसलिए हमें भी उस खर-दिमाग विदेशी के साथ  देसी अहमकों को भी अपना संदेश भेजना जरूरी है ! उसका यही तरीका है कि हमारे यहां जो त्यौहारों का समय शुरू होने जा रहा है, उसमें स्वदेशी या दूसरे देशों की ही खरीददारी करें ! जितना ज्यादा से ज्यादा हो सके, अमेरिका का बहिष्कार करें ! उसने हमारा प्रतिकार किया है तो हम भी उससे प्रतिशोध लें ! इसलिए देश प्रेम का यह संदेश, यह जज्बात, यह भावना, यह पैगाम, देश के कोने-कोने तक पहुंचना ही चाहिए ............!! 

#हिन्दी_ब्लागिंग 

आज पूरी दुनिया एक सिरफिरे, हठी, अहंकारी, पूर्वाग्रही, मूलत: व्यापारी राजनेता की नासमझी और अड़ियलपन का खामियाजा भुगतने के कगार पर खड़ी है ! अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प ने अपने हित के लिए  संसार के लगभग सभी देशों के विरुद्ध टैरिफ रूपी युद्ध छेड़ दिया है ! आर्थिक दृष्टि से जिसका असर परमाणु विस्फोट से भी ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता है ! पर साथ ही यह भी हो सकता है कि उसकी आर्थिक नीतियां आगे चल कर किसी और रूप में उसी के देश के लिए हानिकारक साबित हो जाएं ! भविष्य में क्या होगा, क्या नहीं, यह तो समय ही बता पाएगा ! 
पिछले दिनों अमेरिकन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कई देशों पर भारी-भरकम टैरिफ लगाने की घोषणा की है ! उसके इस फैसले ने दुनिया भर में हड़कंप सा मचा दिया है। उधर ट्रम्प का मानना है कि उसका यह कदम दूसरे देशों से पैसा ला कर अमेरिका को “ग्रेट अगेन” बनाने में सहायक होगा ! उसे लग रहा है कि जब जापानियों जैसे देशभक्त, स्वाभिमानी लोग उसके सामने झुक गए तो वह सारी दुनिया से अपनी बात मनवा लेगा, पर वैसा होता नजर नहीं आता !  

अभी तक जो बातें सामने आई हैं, उससे तो यही लगता है कि बड़े देश किसी भी प्रकार का समझौता करने की मन:स्थिति में नहीं हैं ! उलटे वे ट्रम्प को सबक सिखाने की ठान चुके हैं ! अमेरिका के पड़ोसी देश कनाडा ने एक एप बना लोगों को जागरूक करना शुरू कर दिया कि कौन सा प्रोडक्ट अमेरिका का है और कौन सा स्वदेशी ! इसके साथ ही उन्होंने छोटी-बड़ी हर दुकान पर घरेलू उत्पादों की संख्या बढ़वा दी है ! जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग अपने देश में बनी चीजें खरीदें ! 

फ्रांस ने अमेरिका का बहिष्कार अपने तरीके से शुरू कर दिया है ! वहां सोशल मीडिया पर वीडियो बनाए जा रहे हैं ! कहा जा रहा है कि अपने देश की चीजें अमेरिका से बेहतर हैं, उनका उपयोग कीजिए। इससे अमेरिकन कंपनियों को झटका लग रहा है !

डेनमार्क, स्पेन और आयरलैंड की किसान यूनियनों ने अमेरिकन बीज, खाद, सोयाबीन, पशु-आहार लेना बंद कर दिया है और लोगों को स्थानीय सामान खरीदने का आव्हान कर रहे हैं ! इसका असर वहां आयातित सामान पर पड़ा है, जो वैसे ही धरा का धरा पड़ा है, कोई लेने वाला नहीं है ! इससे वैकल्पिक स्थानीय उपज की मांग बढ़ी और किसानों को भी फायदा हो गया ! ऊपर से अमेरिका पर निर्भरता भी कम हो गई। 

र्मनी को देखें वहां अमेजन जैसी अमेरिकन ऑनलाइन कंपनियों से काम लेना बंद कर दिया गया है ! यहां तक कि अमेरिका के पेट्रोल तक का बहिष्कार शुरू हो चुका है ! उन्होंने भी दिखा दिया कि आज दुनिया आधे दशक पहले जैसी नहीं रह गई है कि कोई बाहुबली उससे जबरन अपनी बात मनवा ले !

नीदरलैंड के विश्वविद्यालयों में भी विरोध की लहर उठ चुकी है ! वहां से अमेरिकन प्रोडक्ट हटा दिए गए हैं ! छात्रों ने अमेरिका के कंप्यूटर, लैपटॉप जैसे इलेक्ट्रॉनक सामान और दूसरे गैजेट्स  वगैरह खरीदने बंद कर दिए हैं ! वे कहते हैं कि दुनिया के किसी भी देश का सामान ले लेंगे पर अमेरिका का नहीं लेंगे !

इंग्लैण्ड में खुदरा व्यापारियों से कहा जा रहा है कि वे अमेरिका में बने सामान को हटा उस जैसे यूरोपियन या दूसरे देशों के सामान को बेचें। वहां जिस देश का बना है उस देश का लेबल लगाना भी आवश्यक कर दिया गया है। यह बात वहां के पार्ल्यामेंट तक गई। वहां की जनता ने भी सरकार का साथ दे कर कहा कि हम आपके साथ हैं और ट्रम्प को उसी की भाषा में जवाब देना चाहिए ! काश ! हमारे यहां की एक प्रजाति को भी  ब्रिटिश दासता-बोध से मुक्ति मिले ! 

स्ट्रेलया व न्यूजीलैंड ने भी अमेरिका से आने वाली डिब्बा बंद खाद्य सामग्री का बहिष्कार कर राष्ट्रपति ट्रम्प को नसीहत देने की कोशिश की है ! वहां कहा जा रहा है कि अपने खाने में अमेरिकन फ्रोजन प्रोडक्ट को हटा कर अपने देश का ताजा खाना खाएं ! इससे कैलोग जैसे सिरिअल डिब्बा बंद खाद्य पदार्थों की बिक्री बहुत ज्यादा गिर गई है ! 

क्षिणी कोरिया के युवकों ने अमेरिकन वस्तुओं की लिस्ट बना अपने लोगों को उन्हें ना खरीदने के लिए आगाह किया है ! उन्होंने तो पिज्जा हट, अमेजन, मैकडोनाल्ड, बर्गर किंग जैसी कंपनियों के साथ-साथ अमेरिकन फिल्मों और नेटफ्लिक्स जैसे चैनलों तक के बहिष्कार का आह्वान कर डाला है ! यह आंदोलन बहुत तेजी से बढ़ रहा है !

यूरोप से इतर मिडिल ईस्ट ने भी अमेरिका और उसकी वस्तुओं के बहिष्कार का ऐलान कर दिया है। नतीजतन सभी जगह अमेरिकन वस्तुओं की बिक्री 30% तक घट गई है ! इससे कारों, अमेजन, कॉस्मेटिक कंपनियों सहित मैक्डोनाल्ड, कोकाकोला, डिब्बा बंद खाद्यों की आमदनी पर भी गहरा असर पड़ रहा है ! यहां तक कि अमेरिका के मनोरंजन जगत पर भी खतरा मंडराने लगा है !

यह तो हुई विदेशों की बात ! इस विपत्ति पर हम क्या करेंगे ? हमारा क्या रुख रहेगा ? भारत की जनता क्या करेगी ? भारत के छोटे-बड़े व्यापारी क्या करेंगे ? हमारे मॉल और रिटेल आउटलेट इस ओर कौन सा कदम उठाएंगे ?  क्या हम अभी भी अमेरिकन उत्पादों के माया जाल में फंस अपने देश का अहित करते रहेंगे ?  यह सारे सवाल मुंह उठाए खड़े हैं ! ऐसे सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि कुछ विदेशी ताकतों की कठपुतलियां, मतलबपरस्त, सत्ता-लोलूप, दासत्वबोध से ग्रसित, देश-द्रोही लोग हमें गुमराह करने के लिए प्राणपण से जुटे हुए हैं ! वे नहीं चाहते कि अपना देश, दुनिया में एक ताकत बन कर उभरे ! पर उन्हें और उनके आकाओं को यह आभास तक नहीं है कि जब हमारी विशाल सागर सदृश आबादी उनके विरोध में उठ खड़ी होगी तो उनका क्या हश्र होगा ! 

मारी विडंबना यह है कि हमें अपने देश-हित के लिए सदा से दो तरफा आक्रमणों का सामना करना पड़ता तहा है ! विदेशी और अंदरूनी ! विदेशी तो खुल कर सामने आते रहे हैं, पर ज्यादा खतरा हमें सदा से मुखौटा धारी भीतर घातियों से रहा है ! पर समय के बदलाव और अवाम की जागरूकता के कारण अब इनके मंसूबे सभी को पता चल चुके हैं ! शक्लें पहचानी जाने लगी हैं ! इसका असर भी दिखने लगा है !

वैसे भी आज हम इतने सक्षम तो हो ही गए हैं कि ऐसी चुन्नोतियों से निपट सकें ! थोड़ा-बहुत नुक्सान तो हो सकता है, पर आग में तप कर ही सोना खरा उतरता है ! इसलिए हमें भी उस खर-दिमाग विदेशी के साथ-साथ देशी अहमकों को भी अपना संदेश भेजना जरूरी है और उसका यही तरीका है कि हमारे यहां जो त्योहारों का समय शुरू होने जा रहा है उसमें स्वदेशी या दूसरे देशों की ही खरीददारी करें ! जितना ज्यादा से ज्यादा हो सके, उसका बहिष्कार करें ! उसने हमारा प्रतिकार किया है तो हम भी उससे प्रतिशोध लें ! 

देश में लाखों लाख ऐसे मासूम लोग हैं, जो झूठ के बहकावे में आ जाते हैं ! दस बार उनके सामने बोला गया असत्य उन्हें सत्य लगने लगता है ! उन्हें सच्चाई बताना जरुरी है ! उन्हें जागरूक करने की जरुरत है ! उनके सामने मक्कारों की पोल खोलना आज की सर्वोपरि आवश्यकता है ! इसलिए देश प्रेम का यह संदेश, यह जज्बात, यह भावना, यह पैगाम, देश के कोने-कोने तक पहुंचना ही चाहिए ! 

जय हिंद ! वंदेमातरम !!

गुरुवार, 7 अगस्त 2025

रक्षाबंधन, कई रिश्ते गुथे हैं इसमें

रक्षाबंधन, एक जुड़ाव जिसका उपयोग अपनी सुरक्षा या किसी चीज की अपेक्षा करने वाले का, अपने सहायक को, अपनी याद दिलाते रहने के लिए एक प्रतीक चिन्ह के रूप में किया जाता रहा है। अनादिकाल से चले आ रहे इस मासूम से त्यौहार पर भी, आज के आधुनिकरण  के इस युग में अन्य भारतीय त्योहारों की तरह बाजार की कुदृष्टि पड़ चुकी है ! जो सक्षम लोगों को मंहगे-मंहगे उपहार, खरीदने को उकसा कर इस पुनीत पर्व की गरिमा और पवित्रता को ख़त्म करने पर उतारू है..........!!   

#हिन्दी_ब्लागिंग 

क्षाबंधन, आज भले ही यह त्यौहार भाई-बहन के पवित्र रिश्ते तक सिमट कर रह गया है, पर हमारे पौराणिक ग्रंथों और ऐतिहासिक कथाओं व लेखों में इस कच्चे सूत के बंधन का विवरण उपलब्ध है। जिनमें इस रक्षा-सूत्र का उपयोग अन्य परिस्थितियों में भी किए जाने का उल्लेख मिलता है। जहां अपनी सुरक्षा या किसी चीज की अपेक्षा करने वाले का, सहायता करने वाले को, अपनी याद दिलाते रहने के लिए एक प्रतीक चिन्ह प्रदान किया जाता रहा है। अनादिकाल से चले आ रहे इस रिवाज ने धीरे-धीरे अब एक पर्व का रूप ले लिया है ।  
देवी लक्ष्मी और दैत्यराज बलि 
पौराणिक काल पर नजर डालें तो राजा बलि की कथा में इसका विवरण मिलता है, जो शायद इसका सबसे पहला उल्लेख है। जब राजा बलि को वरदान स्वरूप भगवान विष्णु उसकी रक्षार्थ स्वर्ग छोड़ पाताल में रहने लगे थे, तब लक्ष्मी जी ने राजा बलि की कलाई पर सूत का धागा बांध उससे उपहार स्वरूप अपने पति को वापस मांग लिया था।
भाई-बहन का स्नेह 
पुराणों के अनुसार देवासुर संग्राम में देवताओं के पक्ष को कुछ कमजोर देख इन्द्राणी ने इंद्र की सुरक्षा के लिए उसकी कलाई पर एक मंत्र पूरित धागा बांधा था। जो रक्षा बंधन ही था।

रक्षासूत्र 
एक बहुचर्चित कथा श्रीकृष्ण और द्रौपदी की है जब द्रौपदी ने अपनी साड़ी के टुकड़े से श्रीकृष्ण की घायल उंगली पर पट्टी बांधी थी, जिसके फलस्वरूप भरी सभा में चीरहरण के समय उसकी रक्षा हो पाई थी।
श्रीकृष्ण, द्रौपदी  
एक अप्रचलित कथा श्री गणेश के साथ जुडी हुई है। इसके अनुसार जब गणेश के पुत्रों शुभ और लाभ ने मनसा माता को गणेश जी को राखी बांधते देखा तो उन्होंने भी खुद को राखी बंधवाने के लिए बहन की मांग की तो श्री गणेश ने अग्नि की सहायता से एक कन्या को उत्पन्न किया, जिसे संतोषी माता का नाम मिला।
पर्व 
तिहास के दर्पण में झांकें तो राणा सांगा के देहावसान के बाद गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने चित्तौड़ पर हमला किया तो रानी कर्णावती ने  हुमायूँ को अपनी सुरक्षा की गुहार के साथ राखी भिजवाई थी। यह अलग बात है कि हुमायूँ की सेना के देर से पहुंचने के कारण उन्हें जौहर करना पड़ गया था।
रक्षा बंधन 
आज भी ब्राह्मण पुरोहित इस दिन अपने यजमानों को मौली बांध कर दक्षिणा प्राप्त करते हैं। जो एक तरह से उन्हें मिलने वाली सुरक्षा का ही एक रूप है। जनेऊ धारण करने वाले लोग भी इसी दिन अपना पुराना जनेऊ त्याग नया धारण करते हैं।   
यज्ञोपवीत धारण 
जो भी हो सावन की पूर्णिमा को मनाए जाने वाले इस त्यौहार का भाई-बहनों को साल भर इन्तजार रहता है। जो दूर-दराज रहने वालों को इसी बहाने मिलने का अवसर मुहैय्या करवा रिश्तों में फिर गर्माहट भर देता है। पर आज कहां बच पा रहा है "ये राखी धागों का त्यौहार'',  आधुनिकीकरण के इस युग में बाजार की कुदृष्टि हर भारतीय त्यौहार की तरह इस पर भी पड़ चुकी है जो सक्षम लोगों को मंहगे-मंहगे उपहार, जिनकी कीमत करोड़ों रुपये लांघ जाती है, खरीदने को उकसा कर इस पुनीत पर्व की गरिमा और पवित्रता को खत्म करने पर उतारू है। जरुरत है जागरूक होने की, इन विसंगतियों को रोकने की !

@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से 🙏  

रविवार, 3 अगस्त 2025

राष्ट्रपति लिंकन और केनेडी की जिंदगी और हत्या की अविश्वसनीय समानताएं

अमेरिका में कई राजनीतिक हस्तियों की हत्याएं हुईं हैं ! जिनमें अब्राहम लिंकन, जेम्स गारफील्ड, विलियम मैककिनले, रोनॉल्ड विलसन रीगन और अमरीकी राष्ट्रपति जॉन एफ. कैनेडी की बहु-चर्चित व प्रमुख रही हैं ! लेकिन लिंकन और केनेडी की जिंदगी और हत्या से जुड़े संयोग ऐसे हैं, जो हैरान कर के रख देते हैं, इसके अलावा और ऐसे उदाहरण कहीं खोजे नहीं मिलते ........!!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

कभी-कभी दुनिया में कुछ ऐसा घटित हो जाता है जिस पर सहसा विश्वास ही नहीं होता ! पर करना पड़ता है क्योंकि सब कुछ सामने घटित होता है। ऐसा ही एक अनोखा, विलक्षण वाकया है, अमेरिका के दो राष्ट्रपतियों के साथ घटी घटनाओं का ! हालांकि दोनों राष्ट्राध्यक्षों के कार्यकाल में करीब सौ सालका फासला है, पर थोड़ी सी अदला-बदली के साथ दोनों के जीवन में घटी घटनाओं की समानता और उनके बीच का सामंजस्य आश्चर्य से भर देता है ! विश्वास नहीं होता कि ऐसा कुछ हुआ होगा ! यह सच दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर कर देता है ! 

लिंकन और केनेडी 
जिन दोनों की बात है, उन में पहले हैं, प्रेसिडेंट अब्राहम लिंकन तथा दूसरे हैं जॉन एफ. केनेडी। 

प्रेसिडेंट लिंकन 1860 मे राष्ट्रपति चुने गये थे ! केनेडी का चुनाव 1960 मे हुआ था ! 

अब्राहम लिंकन को 1846 में कांग्रेस के लिए चुना गया था, वहीं 100 साल बाद यानि 1946 में जॉन एफ कैनेडी को कांग्रेस के लिए चुना गया था। 

लिंकन और केनेडी दोनों के नामों में सात-सात अक्षर हैं।

दोनों राष्ट्रपतियों का संबंध नागरिक अधिकारों से जुडा हुआ था !

लिंकन के सेक्रेटरी का नाम केनेडी तथा केनेडी के सेक्रेटरी का नाम लिंकन था !

दोनों राष्ट्रपतियों का कत्ल शुक्रवार को अपनी पत्नियों के सामने उनकी उपस्थिति में ही हुआ था !

लिंकन के हत्यारे बूथ ने थियेटर मे लिंकन पर गोली चला कर एक स्टोर मे शरण ली थी और केनेडी का हत्यारा ओस्वाल्ड स्टोर मे केनेडी को गोली मार कर एक थियेटर मे जा छुपा था ! 

बूथ का जन्म 1839 मे तथा ओस्वाल्ड का 1939 मे हुआ था ! 

दोनों हत्यारों की हत्या मुकद्दमा चलने के पहले ही कर दी गयी थी ! 

दोनों के हत्यारों जॉन विल्क्स बूथ (John Wilkes Booth) और ली हार्वे ओसवाल्ड (Lee Harvey Oswald) के नामों में 15-15 अक्षर हैं ! 

* दोनों राष्ट्रपतियों के उत्तराधिकारियों का नाम जॉनसन था ! 

लिंकन के उत्तराधिकारी एन्ड्रयु जॉनसन का जन्म 1808 में तथा केनेडी के वारिस लिंडन जॉनसन का जन्म 1908 मे हुआ था।   

लिंकन की हत्या फ़ोर्ड के थियेटर में हुई थी, जबकी केनेडी फ़ोर्ड कम्पनी की कार में सवार थे !

अमेरिका में कई राजनीतिक हस्तियों की हत्याएं हुईं हैं ! जिनमें अब्राहम लिंकन, जेम्स गारफील्ड, विलियम मैककिनले, रोनॉल्ड विलसन रीगन और अमरीकी राष्ट्रपति जॉन एफ. कैनेडी की बहु-चर्चित व प्रमुख रही हैं ! लेकिन लिंकन और केनेडी की जिंदगी और हत्या से जुड़े संयोग ऐसे हैं, जो हैरान कर के रख देते हैं, इसके अलावा और ऐसे उदाहरण कहीं खोजे नहीं मिलते !

इतनी समानताएं ! इतने संयोग ! खुद तो खुद साथ में जुड़े लोग, साल, दिन भी वैसी ही विशिष्टता लिए हुए ! हैरान करने वाला है यह सारा सच !

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शौक या अत्याचार 😢(विडियो सहित)

कभी  आपने पिजंड़े में   कैद जानवरों  के  चेहरों को ध्यान से देखा है  ? जहां  हर जीव के  चेहरे पर छटपटाहट, बेबसी, निराशा, उदासी, थकावट,  उकताह...