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रविवार, 10 अगस्त 2025

विश्वव्यापी टैरिफ संकट और हम

आज हम इतने सक्षम हैं कि ऐसी चुन्नोतियों से निपट सकें ! थोड़ा-बहुत नुक्सान तो हो सकता है, पर आग में तप कर ही सोना खरा उतरता है ! इसलिए हमें भी उस खर-दिमाग विदेशी के साथ  देसी अहमकों को भी अपना संदेश भेजना जरूरी है ! उसका यही तरीका है कि हमारे यहां जो त्यौहारों का समय शुरू होने जा रहा है, उसमें स्वदेशी या दूसरे देशों की ही खरीददारी करें ! जितना ज्यादा से ज्यादा हो सके, अमेरिका का बहिष्कार करें ! उसने हमारा प्रतिकार किया है तो हम भी उससे प्रतिशोध लें ! इसलिए देश प्रेम का यह संदेश, यह जज्बात, यह भावना, यह पैगाम, देश के कोने-कोने तक पहुंचना ही चाहिए ............!! 

#हिन्दी_ब्लागिंग 

आज पूरी दुनिया एक सिरफिरे, हठी, अहंकारी, पूर्वाग्रही, मूलत: व्यापारी राजनेता की नासमझी और अड़ियलपन का खामियाजा भुगतने के कगार पर खड़ी है ! अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प ने अपने हित के लिए  संसार के लगभग सभी देशों के विरुद्ध टैरिफ रूपी युद्ध छेड़ दिया है ! आर्थिक दृष्टि से जिसका असर परमाणु विस्फोट से भी ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता है ! पर साथ ही यह भी हो सकता है कि उसकी आर्थिक नीतियां आगे चल कर किसी और रूप में उसी के देश के लिए हानिकारक साबित हो जाएं ! भविष्य में क्या होगा, क्या नहीं, यह तो समय ही बता पाएगा ! 
पिछले दिनों अमेरिकन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कई देशों पर भारी-भरकम टैरिफ लगाने की घोषणा की है ! उसके इस फैसले ने दुनिया भर में हड़कंप सा मचा दिया है। उधर ट्रम्प का मानना है कि उसका यह कदम दूसरे देशों से पैसा ला कर अमेरिका को “ग्रेट अगेन” बनाने में सहायक होगा ! उसे लग रहा है कि जब जापानियों जैसे देशभक्त, स्वाभिमानी लोग उसके सामने झुक गए तो वह सारी दुनिया से अपनी बात मनवा लेगा, पर वैसा होता नजर नहीं आता !  

अभी तक जो बातें सामने आई हैं, उससे तो यही लगता है कि बड़े देश किसी भी प्रकार का समझौता करने की मन:स्थिति में नहीं हैं ! उलटे वे ट्रम्प को सबक सिखाने की ठान चुके हैं ! अमेरिका के पड़ोसी देश कनाडा ने एक एप बना लोगों को जागरूक करना शुरू कर दिया कि कौन सा प्रोडक्ट अमेरिका का है और कौन सा स्वदेशी ! इसके साथ ही उन्होंने छोटी-बड़ी हर दुकान पर घरेलू उत्पादों की संख्या बढ़वा दी है ! जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग अपने देश में बनी चीजें खरीदें ! 

फ्रांस ने अमेरिका का बहिष्कार अपने तरीके से शुरू कर दिया है ! वहां सोशल मीडिया पर वीडियो बनाए जा रहे हैं ! कहा जा रहा है कि अपने देश की चीजें अमेरिका से बेहतर हैं, उनका उपयोग कीजिए। इससे अमेरिकन कंपनियों को झटका लग रहा है !

डेनमार्क, स्पेन और आयरलैंड की किसान यूनियनों ने अमेरिकन बीज, खाद, सोयाबीन, पशु-आहार लेना बंद कर दिया है और लोगों को स्थानीय सामान खरीदने का आव्हान कर रहे हैं ! इसका असर वहां आयातित सामान पर पड़ा है, जो वैसे ही धरा का धरा पड़ा है, कोई लेने वाला नहीं है ! इससे वैकल्पिक स्थानीय उपज की मांग बढ़ी और किसानों को भी फायदा हो गया ! ऊपर से अमेरिका पर निर्भरता भी कम हो गई। 

र्मनी को देखें वहां अमेजन जैसी अमेरिकन ऑनलाइन कंपनियों से काम लेना बंद कर दिया गया है ! यहां तक कि अमेरिका के पेट्रोल तक का बहिष्कार शुरू हो चुका है ! उन्होंने भी दिखा दिया कि आज दुनिया आधे दशक पहले जैसी नहीं रह गई है कि कोई बाहुबली उससे जबरन अपनी बात मनवा ले !

नीदरलैंड के विश्वविद्यालयों में भी विरोध की लहर उठ चुकी है ! वहां से अमेरिकन प्रोडक्ट हटा दिए गए हैं ! छात्रों ने अमेरिका के कंप्यूटर, लैपटॉप जैसे इलेक्ट्रॉनक सामान और दूसरे गैजेट्स  वगैरह खरीदने बंद कर दिए हैं ! वे कहते हैं कि दुनिया के किसी भी देश का सामान ले लेंगे पर अमेरिका का नहीं लेंगे !

इंग्लैण्ड में खुदरा व्यापारियों से कहा जा रहा है कि वे अमेरिका में बने सामान को हटा उस जैसे यूरोपियन या दूसरे देशों के सामान को बेचें। वहां जिस देश का बना है उस देश का लेबल लगाना भी आवश्यक कर दिया गया है। यह बात वहां के पार्ल्यामेंट तक गई। वहां की जनता ने भी सरकार का साथ दे कर कहा कि हम आपके साथ हैं और ट्रम्प को उसी की भाषा में जवाब देना चाहिए ! काश ! हमारे यहां की एक प्रजाति को भी  ब्रिटिश दासता-बोध से मुक्ति मिले ! 

स्ट्रेलया व न्यूजीलैंड ने भी अमेरिका से आने वाली डिब्बा बंद खाद्य सामग्री का बहिष्कार कर राष्ट्रपति ट्रम्प को नसीहत देने की कोशिश की है ! वहां कहा जा रहा है कि अपने खाने में अमेरिकन फ्रोजन प्रोडक्ट को हटा कर अपने देश का ताजा खाना खाएं ! इससे कैलोग जैसे सिरिअल डिब्बा बंद खाद्य पदार्थों की बिक्री बहुत ज्यादा गिर गई है ! 

क्षिणी कोरिया के युवकों ने अमेरिकन वस्तुओं की लिस्ट बना अपने लोगों को उन्हें ना खरीदने के लिए आगाह किया है ! उन्होंने तो पिज्जा हट, अमेजन, मैकडोनाल्ड, बर्गर किंग जैसी कंपनियों के साथ-साथ अमेरिकन फिल्मों और नेटफ्लिक्स जैसे चैनलों तक के बहिष्कार का आह्वान कर डाला है ! यह आंदोलन बहुत तेजी से बढ़ रहा है !

यूरोप से इतर मिडिल ईस्ट ने भी अमेरिका और उसकी वस्तुओं के बहिष्कार का ऐलान कर दिया है। नतीजतन सभी जगह अमेरिकन वस्तुओं की बिक्री 30% तक घट गई है ! इससे कारों, अमेजन, कॉस्मेटिक कंपनियों सहित मैक्डोनाल्ड, कोकाकोला, डिब्बा बंद खाद्यों की आमदनी पर भी गहरा असर पड़ रहा है ! यहां तक कि अमेरिका के मनोरंजन जगत पर भी खतरा मंडराने लगा है !

यह तो हुई विदेशों की बात ! इस विपत्ति पर हम क्या करेंगे ? हमारा क्या रुख रहेगा ? भारत की जनता क्या करेगी ? भारत के छोटे-बड़े व्यापारी क्या करेंगे ? हमारे मॉल और रिटेल आउटलेट इस ओर कौन सा कदम उठाएंगे ?  क्या हम अभी भी अमेरिकन उत्पादों के माया जाल में फंस अपने देश का अहित करते रहेंगे ?  यह सारे सवाल मुंह उठाए खड़े हैं ! ऐसे सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि कुछ विदेशी ताकतों की कठपुतलियां, मतलबपरस्त, सत्ता-लोलूप, दासत्वबोध से ग्रसित, देश-द्रोही लोग हमें गुमराह करने के लिए प्राणपण से जुटे हुए हैं ! वे नहीं चाहते कि अपना देश, दुनिया में एक ताकत बन कर उभरे ! पर उन्हें और उनके आकाओं को यह आभास तक नहीं है कि जब हमारी विशाल सागर सदृश आबादी उनके विरोध में उठ खड़ी होगी तो उनका क्या हश्र होगा ! 

मारी विडंबना यह है कि हमें अपने देश-हित के लिए सदा से दो तरफा आक्रमणों का सामना करना पड़ता तहा है ! विदेशी और अंदरूनी ! विदेशी तो खुल कर सामने आते रहे हैं, पर ज्यादा खतरा हमें सदा से मुखौटा धारी भीतर घातियों से रहा है ! पर समय के बदलाव और अवाम की जागरूकता के कारण अब इनके मंसूबे सभी को पता चल चुके हैं ! शक्लें पहचानी जाने लगी हैं ! इसका असर भी दिखने लगा है !

वैसे भी आज हम इतने सक्षम तो हो ही गए हैं कि ऐसी चुन्नोतियों से निपट सकें ! थोड़ा-बहुत नुक्सान तो हो सकता है, पर आग में तप कर ही सोना खरा उतरता है ! इसलिए हमें भी उस खर-दिमाग विदेशी के साथ-साथ देशी अहमकों को भी अपना संदेश भेजना जरूरी है और उसका यही तरीका है कि हमारे यहां जो त्योहारों का समय शुरू होने जा रहा है उसमें स्वदेशी या दूसरे देशों की ही खरीददारी करें ! जितना ज्यादा से ज्यादा हो सके, उसका बहिष्कार करें ! उसने हमारा प्रतिकार किया है तो हम भी उससे प्रतिशोध लें ! 

देश में लाखों लाख ऐसे मासूम लोग हैं, जो झूठ के बहकावे में आ जाते हैं ! दस बार उनके सामने बोला गया असत्य उन्हें सत्य लगने लगता है ! उन्हें सच्चाई बताना जरुरी है ! उन्हें जागरूक करने की जरुरत है ! उनके सामने मक्कारों की पोल खोलना आज की सर्वोपरि आवश्यकता है ! इसलिए देश प्रेम का यह संदेश, यह जज्बात, यह भावना, यह पैगाम, देश के कोने-कोने तक पहुंचना ही चाहिए ! 

जय हिंद ! वंदेमातरम !!

गुरुवार, 7 अगस्त 2025

रक्षाबंधन, कई रिश्ते गुथे हैं इसमें

रक्षाबंधन, एक जुड़ाव जिसका उपयोग अपनी सुरक्षा या किसी चीज की अपेक्षा करने वाले का, अपने सहायक को, अपनी याद दिलाते रहने के लिए एक प्रतीक चिन्ह के रूप में किया जाता रहा है। अनादिकाल से चले आ रहे इस मासूम से त्यौहार पर भी, आज के आधुनिकरण  के इस युग में अन्य भारतीय त्योहारों की तरह बाजार की कुदृष्टि पड़ चुकी है ! जो सक्षम लोगों को मंहगे-मंहगे उपहार, खरीदने को उकसा कर इस पुनीत पर्व की गरिमा और पवित्रता को ख़त्म करने पर उतारू है..........!!   

#हिन्दी_ब्लागिंग 

क्षाबंधन, आज भले ही यह त्यौहार भाई-बहन के पवित्र रिश्ते तक सिमट कर रह गया है, पर हमारे पौराणिक ग्रंथों और ऐतिहासिक कथाओं व लेखों में इस कच्चे सूत के बंधन का विवरण उपलब्ध है। जिनमें इस रक्षा-सूत्र का उपयोग अन्य परिस्थितियों में भी किए जाने का उल्लेख मिलता है। जहां अपनी सुरक्षा या किसी चीज की अपेक्षा करने वाले का, सहायता करने वाले को, अपनी याद दिलाते रहने के लिए एक प्रतीक चिन्ह प्रदान किया जाता रहा है। अनादिकाल से चले आ रहे इस रिवाज ने धीरे-धीरे अब एक पर्व का रूप ले लिया है ।  
देवी लक्ष्मी और दैत्यराज बलि 
पौराणिक काल पर नजर डालें तो राजा बलि की कथा में इसका विवरण मिलता है, जो शायद इसका सबसे पहला उल्लेख है। जब राजा बलि को वरदान स्वरूप भगवान विष्णु उसकी रक्षार्थ स्वर्ग छोड़ पाताल में रहने लगे थे, तब लक्ष्मी जी ने राजा बलि की कलाई पर सूत का धागा बांध उससे उपहार स्वरूप अपने पति को वापस मांग लिया था।
भाई-बहन का स्नेह 
पुराणों के अनुसार देवासुर संग्राम में देवताओं के पक्ष को कुछ कमजोर देख इन्द्राणी ने इंद्र की सुरक्षा के लिए उसकी कलाई पर एक मंत्र पूरित धागा बांधा था। जो रक्षा बंधन ही था।

रक्षासूत्र 
एक बहुचर्चित कथा श्रीकृष्ण और द्रौपदी की है जब द्रौपदी ने अपनी साड़ी के टुकड़े से श्रीकृष्ण की घायल उंगली पर पट्टी बांधी थी, जिसके फलस्वरूप भरी सभा में चीरहरण के समय उसकी रक्षा हो पाई थी।
श्रीकृष्ण, द्रौपदी  
एक अप्रचलित कथा श्री गणेश के साथ जुडी हुई है। इसके अनुसार जब गणेश के पुत्रों शुभ और लाभ ने मनसा माता को गणेश जी को राखी बांधते देखा तो उन्होंने भी खुद को राखी बंधवाने के लिए बहन की मांग की तो श्री गणेश ने अग्नि की सहायता से एक कन्या को उत्पन्न किया, जिसे संतोषी माता का नाम मिला।
पर्व 
तिहास के दर्पण में झांकें तो राणा सांगा के देहावसान के बाद गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने चित्तौड़ पर हमला किया तो रानी कर्णावती ने  हुमायूँ को अपनी सुरक्षा की गुहार के साथ राखी भिजवाई थी। यह अलग बात है कि हुमायूँ की सेना के देर से पहुंचने के कारण उन्हें जौहर करना पड़ गया था।
रक्षा बंधन 
आज भी ब्राह्मण पुरोहित इस दिन अपने यजमानों को मौली बांध कर दक्षिणा प्राप्त करते हैं। जो एक तरह से उन्हें मिलने वाली सुरक्षा का ही एक रूप है। जनेऊ धारण करने वाले लोग भी इसी दिन अपना पुराना जनेऊ त्याग नया धारण करते हैं।   
यज्ञोपवीत धारण 
जो भी हो सावन की पूर्णिमा को मनाए जाने वाले इस त्यौहार का भाई-बहनों को साल भर इन्तजार रहता है। जो दूर-दराज रहने वालों को इसी बहाने मिलने का अवसर मुहैय्या करवा रिश्तों में फिर गर्माहट भर देता है। पर आज कहां बच पा रहा है "ये राखी धागों का त्यौहार'',  आधुनिकीकरण के इस युग में बाजार की कुदृष्टि हर भारतीय त्यौहार की तरह इस पर भी पड़ चुकी है जो सक्षम लोगों को मंहगे-मंहगे उपहार, जिनकी कीमत करोड़ों रुपये लांघ जाती है, खरीदने को उकसा कर इस पुनीत पर्व की गरिमा और पवित्रता को खत्म करने पर उतारू है। जरुरत है जागरूक होने की, इन विसंगतियों को रोकने की !

@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से 🙏  

शनिवार, 23 अक्टूबर 2021

करवाचौथ, बाजार तथा विघ्नसंतोषियों के निशाने पर

करवाचौथ के व्रत पर सवाल उठाने वाले मूढ़मतियों ने शायद छठ पूजा का नाम नहीं सुना होगा ! जो लिंग-विशिष्ट त्यौहार नहीं है। जिसके चार दिनों तक चलने वाले अनुष्ठान बेहद कठोर  होते हैं और नर-नारी अबाल-वृद्ध सभी के द्वारा श्रद्धा से मनाए जाते हैं। शायद व्रत का विरोध करने वालों को इसका अर्थ सिर्फ भोजन ना करना ही मालुम है। जब कि व्रत अपने प्रियजनों को सुरक्षित रखने, उनकी अनिष्ट से रक्षा करने की मंशा का सांकेतिक रूप भर है। ऐसे लोग एक तरह से अपनी नासमझी से महिलाओं की भावनाओं को कमतर आंक उनका अपमान ही करते हैं और जाने-अनजाने महिला और पुरुष के बीच गलतफहमी की खाई को और गहरा करने में सहायक होते हैं ! वैसे देखा जाए तो पुरुष द्वारा घर-परिवार की देख-भाल, भरण-पोषण भी एक तरह का व्रत ही तो है जो वह आजीवन निभाता है............!   

#हिन्दी_ब्लागिंग

करवा चौथ ! वर्षों से सीधे-साधे तरीके, बिना किसी ताम-झाम, बिना कुछ या ज्यादा खर्च किए सादगी से मनाया जाता आ रहा, पति-पत्नी के कोमल रिश्तों के प्रेम का प्रतीक, एक मासूम सा छोटा सा उत्सव ! पर समय के साथ-साथ इस पर भी बाजार की गिद्ध-दृष्टि लग गई ! शुरुआत भी उसी जगह, सिनेमा से हुई जहां से आज तक अधिकांश बुराइयां पनपती रही हैं ! पर संक्रामक्ता प्रदान की टी.वी.सीरियलों ने ! उनके अनगढ़, विषय-वस्तु से अनजान, गुगलई ज्ञानी निर्माता-निर्देशकों ने तो बंटाधार ही कर डाला ! इस दिन को ले कर, ऐसा ताम-झाम, ऐसी रौनक, ऐसे-ऐसे तमाशे और ऐसी-ऐसी तस्वीरें पेश की गयीं कि जो त्यौहार एक सीधी-साधी गृहणी अकेले या अपने कुछ रिश्तेदारों के साथ, सरलता व सादगी से मना लेती थी, वह भी दिखावे की चकाचौंध से भ्रमित हो बाजार के झांसे में आ गई। 

पहले की तरह अब महिलाएं घर के अंदर तक ही सिमित नहीं रह गई हैं। पर इससे उनके अंदर के प्रेमिल भाव, करुणा, त्याग, स्नेह, परिवार की मंगलकामना जैसे भाव खत्म नहीं हुए हैं ! और जब तक प्रकृति-प्रदत्त ऐसे गुण विद्यमान रहेंगे, तब तक कोई भी षड्यंत्र, कुचक्र या साजिश हमारी आस्था, हमारे विश्वास, हमारी परंपराओं का कुछ भी नहीं बिगाड़ पाएंगे

अब बाजार तो ठहरा बाजार ! उसे तो सिर्फ अपने लाभ से मतलब होता है। बस उसने महिलाओं की दशा को भांपा और उनकी भावनाओं को ''कैश'' करना शुरू कर दिया। देखते-देखते साधारण सी चूडी, बिंदी, टिकली, धागे सब "डिजायनर" होते चले गए। दो-तीन-पांच रुपये की चीजों की कीमत 100-150-200 रुपये हो गई। अब सीधी-सादी प्लेट या थाली से काम नहीं चलता, उसे सजाने की अच्छी खासी कीमत वसूली जाने लगी ! कुछ घरानों में छननी से चांद को देखने की प्रथा घर में उपलब्ध छननी से पूरी कर ली जाती थी पर अब उसे भी बाजार ने साज-संवार, दस गुनी कीमत कर, आधुनिक रूप दे, महिलाओं के लिए आवश्यक बना डाला। चाहे फिर वह साल भर या सदा के लिए उपेक्षित घर के किसी कोने में ही पडी रहे। पहले शगन के तौर पर हाथों में मेंहदी खुद ही लगा ली जाती थी या आस-पडोस की महिलाएं एक-दूसरे की सहायता कर देती थीं, पर आज यह लाखों का व्यापार बन चुका है। उसे भी पैशन और फैशन बना दिया गया है ! कल के एक घरेलू, आत्म केन्द्रित, सरल,मासूम से उत्सव, एक आस्था, को खिलवाड का रूप दे दिया गया। करोड़ों की आमदनी का जरिया बना दिया गया !    

यह तो रही बाजार की लिप्सा की बात ! यह व्रत-त्यौहार हमारे देश में प्राचीन काल से चले आ रहे हैं, जब महिलाएं घर संभालती थीं और पुरुषों पर उपार्जन की जिम्मेवारी होती थी। पर कुछ लोग देश में ऐसे भी हैं जिन्हें पारंपरिक त्यौहारों, उत्सवों या मान्यताओं से सख्त ''एलर्जी'' है ! कुछ तथाकथित आधुनिक नर-नारियों द्वारा विदेशी पंथों, विचारधाराओं तथा षड्यंत्रों के तहत सिर्फ अपने फायदे के लिए सदा तीज-त्यौहारों पर जहर उगला जाता है। उसी के तहत आज करवा चौथ को भी पिछडे तथा दकियानूसी त्यौहार की संज्ञा दे दी गयी है। इल्जाम यह भी लगाया जाता है कि पुरुष प्रधान समाज द्वारा महिलाओं को दोयम दर्जा देने की साजिश के तहत ही ऐसे उत्सव बनाए गए हैं ! जबकि सच्चाई यह है कि सदियों से घर की महिलाएं ही अपनी बच्चियों को ऐसे आयोजनों की जानकारी देती आ रही हैं ! मेरे ख्याल से तो कोई पुरुष जबरदस्ती अपनी पत्नी को दिन भर भूखा रहने को नहीं कहता होगा ! कहना भी नहीं चाहिए !    

आयातित कल्चर, विदेशी सोच तथा तथाकथित आधुनिकता के हिमायती कुछ लोगों को महिलाओं का दिन भर उपवासित रहना उनका उत्पीडन लगता है। अक्सर उनका सवाल रहता है कि पुरुष क्यों नहीं अपनी पत्नी के लिए व्रत रखते ? करवाचौथ के व्रत पर सवाल उठाने वाले मूढ़मतियों ने शायद छठ पूजा का नाम नहीं सुना होगा ! जो लिंग-विशिष्ट त्यौहार नहीं है। जिसके चार दिनों तक चलने वाले अनुष्ठान बेहद कठोर  होते हैं फिर भी नर-नारी अबाल-वृद्ध सभी के द्वारा पूरी श्रद्धा और आस्था से मनाए जाते हैं। 

व्रत का विरोध करने वालों को इसका अर्थ सिर्फ भोजन ना करना ही मालुम है। जब कि व्रत अपने प्रियजनों को सुरक्षित रखने, उनकी अनिष्ट से रक्षा करने की मंशा का सांकेतिक रूप भर है। ऐसे लोग एक तरह से अपनी नासमझी से महिलाओं की प्रेम, समर्पण, चाहत जैसी भावनाओं को कमतर आंक उनका अपमान ही करते हैं और जाने-अनजाने महिला और पुरुष के बीच गलतफहमी की खाई को और गहरा करने में सहायक होते हैं ! वैसे देखा जाए तो पुरुष द्वारा घर-परिवार की देख-भाल, भरण-पोषण भी एक तरह का व्रत ही तो है जो वह आजीवन निभाता है, पर इस बात का प्रचार करने या सामने लाने से विघ्नसंतोषियों को उनके कुचक्र को, उनके षड्यंत्र को कोई फायदा नहीं बल्कि नुक्सान ही है, इसलिए इस पर सदा चुप्पी बनाए रखी जाती है ! 

आज समय बदल गया है ! पहले की तरह अब महिलाएं घर के अंदर तक ही सिमित नहीं रह गई हैं। पर इससे उनके अंदर के प्रेमिल भाव, करुणा, त्याग, स्नेह, परिवार की मंगलकामना जैसे भाव खत्म नहीं हुए हैं ! और जब तक प्रकृति-प्रदत्त ऐसे गुण विद्यमान रहेंगे, तब तक कोई भी षड्यंत्र, कुचक्र या साजिश हमारी आस्था, हमारे विश्वास, हमारी परंपराओं का कुछ भी नहीं बिगाड़ पाएंगे !

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