रविवार, 29 दिसंबर 2024

इतिहास किसी के प्रति भी दयालु नहीं होता

इतिहास नहीं मानता किन्हीं भावनात्मक बातों को ! यदि वह भी ऐसा करता तो रावण, कंस, चंगेज, स्टालिन, हिटलर जैसे लोगों पर गढ़ी हुई अच्छाईयों की कहानियां ही हम सुन रहे होते ! पर इतिहास तो इतिहास है ! इस मामले में वह निस्पृह होने के साथ-साथ निर्मम भी बहुत है ! ऐसे में अपने कर्मों को जानते हुए भी यदि कोई कहे कि इतिहास उसके प्रति दयालु होगा या दयालुता बरतेगा, तो यह तो उसकी नासमझी ही होगी.............!

#हिंदी_ब्लागिंग 

हमारे पुराणों में शनिदेव को न्याय का देवता माना जाता है ! मान्यता है कि वह संसार के सभी प्राणियों को बिना किसी किसी भेदभाव, बिना किसी पक्षपात, बिना किसी दया-माया के उनके कर्मों के अनुसार फल देते हैं ! उनकी इसी न्याय प्रक्रिया के कारण डरते हैं लोग उनसे ! उन्हें क्रूर माना जाता है। इतिहास भी कुछ-कुछ वैसा ही है। यह भले ही कर्मों का फल ना देता हो, पर हर हाल में उनको उजागर जरूर करता है,  बिना कुछ छिपाए ! इस मामले में वह बड़ी निर्ममता से शल्य चिकित्सा करता है ! किसी की नहीं सुनता। इसीलिए कहा जाता है कि उससे सबक लेना चाहिए ! सीखना चाहिए उससे !

इतिहास कभी भी भेदभाव नहीं करता, नाहीं वह किसी का पक्ष लेता है ! सत्ताधीश उसे विकृत करने की कितनी भी कोशिश कर लें ! कुछ समय के लिए भले ही उस पर अपना मुखौटा मढ़ दें ! उसे जमींदोज कर उस पर झूठ का प्लास्टर चढ़ा दें, पर उसके सच का बीज इतना ताकतवर है कि वह हर विपरीत परिस्थिति को दरकिनार कर अंकुरित हो कर ही रहता है, कुछ समय भले ही लग जाए !

हमारी अच्छी या बुरी जो भी कह लें परंपरा रही है कि किसी के निधन के बाद उसकी बुराई नहीं करनी चाहिए, पर इतिहास तो नहीं ना मानता ऐसी भावनात्मक बातों को ! यदि वह भी ऐसा करता तो रावण, कंस, चंगेज, स्टालिन, हिटलर जैसे लोगों पर गढ़ी हुई अच्छाईयों की कहानियां ही हम सुन रहे होते ! पर इतिहास तो इतिहास है ! इस मामले में वह निस्पृह होने के साथ-साथ निर्मम भी बहुत है ! ऐसे में अपने कर्मों को जानते हुए भी यदि कोई कहे कि इतिहास उसके प्रति दयालु होगा या दयालुता बरतेगा, तो यह तो उसकी नासमझी ही होगी ! 

आज यानी वर्तमान में जो लिखा-बोला जा रहा है वही समयानुसार इतिहास बनेगा ! परंपरानुसार दो-चार दिन की बात छोड़ दें, भले ही मजबूरीवश, तो उसके बाद शालीनता, मृदु भाषा, सहनशीलता की पूरी विवेचना तो होगी ही, साथ ही साथ लिप्सा, कमजोरी, लियाकत, आत्म सम्मान हीनता का भी पूरा लेखा-जोखा लिया जाएगा ! देश, समाज का कितना भला हुआ और कितना नुक्सान उसका आकलन होगा और फिर जो निर्मम सत्य सामने आएगा, वही आगे चल कर इतिहास बनेगा जो ना किसी के साथ दयालुता बरतता है ना हीं बिना बात कठोरता.........!

बुधवार, 25 दिसंबर 2024

प्रेम, समर्पण, विडंबना

इस युगल के पास दो ऐसी वस्तुएं थीं, जिन पर दोनों को बहुत गर्व था। एक थी जिम की सोने की घड़ी, जो कभी उसके पिता और दादा के पास भी रह चुकी थी और दूसरे थे दैला के रेशमी सुनहरे घुटनों तक पहुँचते केश ! दैला ने अपने खूबसूरत केशों पर एक नजर डाली, एक सिहरन उसके पूरे शरीर में दौड़ गई। फिर किसी निष्कर्ष पर पहुँच उन्हें जूड़े का रूप दे, अपना बैग उठा वह वह शीघ्रता से दरवाजे से बाहर निकली और सीढियां उतर कर सड़क पर आ गई ............1

#हिन्दी_ब्लागिंग 

हम में से बहुतों ने प्रख्यात अमेरिकी लेखक विलियम सिडनी पोर्टर, जिन्हें ओ. हेनरी के नाम से ज्यादा जाना जाता है, की लोकप्रिय कहानी ''The Gift of the Magi'' पढ़ रखी होगी पर कईयों को शायद प्रेम और समर्पण की प्रतीक इस कहानी के बारे में जानकारी ना हो ! तो क्रिसमस के इस मौके पर आज ब्लॉग पर उसी कहानी का संक्षिप्त रूप रखने की कोशिश की है ! 

दैला अपनी आँखों में मजबूरी और बेबसी के आंसू भरे अपने बिस्तर पर औंधी पड़ी हुई थी। उसकी मुठ्ठी में थे, एक डॉलर और सत्तासी सेंट। जो जीवन की कशमकश से लड़ते हुए, खरीदारी में सौदेबाजी, कंजूसी और मन को मार-मार कर बचाए गए थे ! वह उन्हें तीन बार गिन चुकी थी, पर गिनने से रकम में बढ़ोत्तरी तो नहीं ना होती ! कल ही क्रिसमस है, उसे अपने प्रिय जिम को उपहार देना है, जिसकी योजना बनाने में उसने कई-कई दिन बिता दिए और उसकी जमा-पूंजी है एक डालर और सत्तासी सेंट। आंसू थे कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे ! सिमित आमदनी की मजबूरियां उस छोटे से कमरे में अपनी पूरी शिद्दत के साथ उजागर थीं। 

ओ. हेनरी 
ऐसा नहीं है कि जिम और दैला के दिन सदा से ऐसे ही थे, इस युगल ने भी अच्छे दिन देखे और बिताए हैं। पर समय सदा एक सा कहाँ रहता है ! पर उनके बीच का अटूट, प्रगाढ़ प्रेम का स्थाई भाव वैसा ही बना हुआ है। समय भले ही बदल गया हो पर दोनों एक दूसरे के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते। कुछ देर बाद दैला बिस्तर से उठी, आंसू पोछे। चेहरे पर पानी के छींटे मार प्रकृतिस्थ होने की कोशिश की। पर मुंह बाए सामने खड़ी कल की समस्या का कोई हल निकलता नहीं दिख रहा था ! कल क्रिसमस का त्यौहार है, इस दिन के लिए वह महीनों से एक-एक पैनी करके पैसे बचा रही है, पर जमा हो पाए हैं सिर्फ एक डॉलर और सत्तासी सेंट, इतनी सी रकम से वह कैसे अपने प्यारे जिम के लिए उपहार खरीद पाएगी, यह बात उसे परेशान किए जा रही थी !

समस्या से जूझती दैला को एकाएक कमरे में लगे आईने में अपनी शक्ल दिखाई दी। अपना अक्श देखते ही उसकी आँखें चमक उठीं। उसने शीघ्रता से अपने केशों को खोल लिया और अपनी पूरी लम्बाई तक उन्हें नीचे लटका दिया। इस युगल के पास दो ऐसी वस्तुएं थीं, जिन पर दोनों को बहुत गर्व था। एक थी जिम की सोने की घड़ी, जो कभी उसके पिता और दादा के पास भी रह चुकी थी और दूसरे थे दैला के रेशमी सुनहरे घुटनों तक पहुँचते केश ! दैला ने अपने खूबसूरत केशों पर एक नजर डाली, एक सिहरन उसके पूरे शरीर में दौड़ गई। फिर किसी निष्कर्ष पर पहुँच उन्हें जूड़े का रूप दे, अपना बैग उठा वह वह शीघ्रता से दरवाजे से बाहर निकली और सीढियां उतर कर सड़क पर आ गई।

दैला जहां पहुँच कर रुकी वहां लिखा था - "मैडम सोफ्रोनी - सभी प्रकार के केश प्रसाधनों की विक्रेता"। दैला लपककर एक मंजिल जीना चढ़ गई और अपने-आपको संभालते हुए सीधे दुकान की मालकिन से पूछा कि क्या आप मेरे बाल खरीदेंगी ? महिला ने कहा, "क्यों नहीं, यही तो हमारा धंधा है। जरा अपना हैट हटाकर मुझे आपके बालों पर एक नजर डालने दीजिये।"  दैला ने हैट हटाया, महिला ने अपने अभ्यस्त हाथों में केश राशि को उठा उसका आकलन कर कहा "बीस डॉलर।" "ठीक है। जल्दी कीजिये," दैला बोली। 

थोड़ी ही देर में उसके बाल कट चुके थे और वह दुकानों की खाक छान रही थी, जिम के उपहार के लिए। तभी उसे वह चीज मिल गई जिसकी उसको तलाश थी, वह थी जिम की सोने की घड़ी के लिए प्लेटिनम की चैन ! घर पहुँच दैला क्रिसमस की तैयारी में जुटी ही थी कि तभी जिम अंदर आया। आते ही उसकी दृष्टि दैला पर टिक गई ! उन नजरों में कुछ ऐसा था जिससे दैला डर सी गई, वह दौड़ कर उसके पास पहुंची और रुआँसी होकर कहने लगी - "मेरे प्यारे जिम, मेरी तरफ इस तरह मत देखो। मैंने अपने बाल सिर्फ इसलिए बेचे क्योंकि क्रिसमस पर तुम्हें उपहार दिए बिना मैं यह क्रिसमस नहीं मना सकती थी। बाल तो घर की खेती है, फिर उग आयेंगे। तुम बिलकुल चिंता मत करो, मेरे बाल बहुत तेजी से बढ़ते हैं। तुम्हें क्रिसमस मुबारक हो ! देखो, मैं तुम्हारे लिए कितनी सुन्दर घड़ी की चेन लाई हूँ ! जरा अपनी घड़ी तो देना, देखूँ तो यह उस पर कैसी लगती है ?

जिम जैसे किसी दूसरे संसार में था !  रहा था जैसे बहुत प्रयत्न करने पर भी वह सत्य को समझ ना पा रहा हो। फिर अचानक जैसे बेहोशी से जागते हुए उसने दैला को छाती से लगा लिया। उसने अपने ओवरकोट की जेब से एक पैकेट निकाला और उसे मेज पर रखा और बोला "मुझे गलत मत समझना दैला ! दुनिया की कोई भी चीज तुम्हारे प्रति मेरे प्यार को कम नहीं कर सकती। लेकिन अगर तुम इस पैकेट को खोलोगी तो तुम्हें मालूम होगा कि तुम्हें देखकर मैं क्यों स्तब्ध रह गया था !"

दैला ने तुरंत पैकेट खोला और उसके खुलते ही उसके मुँह से चीख निकल गई ! आँखों से आसुओं का सैलाब बह निकला ! मेज पर बिखरा हुआ था कछुए की हड्डी से बना कंघे-कंघियों का संग्रह, जिनके गोल किनारों पर जड़े हुए थे सुंदर चमकीले नग ! जिन्हें अपने बालों में सजाने का सदा से उसका सपना रहा था !  जिसको पाने के लिए वह सदा भगवान से प्रार्थना किया करती थी !

दैला अपने बालों को बेच जिस घड़ी के लिए चेन लाई थी उसी घड़ी को बेच जिम उसके बालों के लिए कंघों का सेट ले आया था ! अब दोनों ही उपहार किसी काम के नहीं थे ! जिम और दैला दोनों एक दूसरे को गले से लगाए आंसू बहाए जा रहे थे। ये आंसू गवाह थे उनके प्यार के, उनके समर्पण के, उनके त्याग के !

@आदरांजलि - ओ. हेनरी  

रविवार, 22 दिसंबर 2024

ठेका, चाय की दुकान का

यह शै ऐसी है कि इसकी दुकान का नाम दूसरी आम दुकानों की तरह तो रखा नहीं जा सकता, इसलिए बड़े-बड़े अक्षरों में ठेका देसी या अंग्रेजी शराब लिख उसके साथ वैधता तथा लाइसेंस नंबर इत्यादि लिख दिए गए ! इसीलिए इस ठेके के ठिकाने इतने मशहूर हो गए कि इन्होंने ने बाकी ठेकों को किनारे कर अपने इस रूप को अप्रतिम ख्याति दिलवा दी ! यही कारण था कि हमारे ग्रुप के ''वैष्णव सदस्य'' चाय की दूकान का नाम ठेके के रूप में  देख ठठिया से गए थे........................!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

पिछले दिनों ग्रुप के साथ उदयपुर यात्रा के दौरान घूमते-घूमते संध्या समय च्यास की तलब लगने पर एक चाय की दूकान पर काफिला रुका ! उसके बोर्ड पर ''ठेका चाय का'' लिखा देख सबको कुछ बात करने का एक मुद्दा मिल गया। क्योंकि ठेका शब्द सुनते-देखते ही किसी के भी दिमाग में शराब की दुकान की ही तस्वीर आती है ! चाय के साथ उसका मेल नहीं बैठ पाने के कारण कई मित्र असमंजस में पड़ गए थे । 


लो, आप भी देख लो 

वैसे इस शब्द ठेका के कई अर्थ होते हैं, पर मुख्यता इसको सहारे या समर्थन के पर्याय के रूप में जाना जाता है ! किसी के ठहरने के अस्थाई स्थान को भी ठेका या फिर ठिकाना कहा जाता है। भारतीय शास्त्रीय संगीत में तबला वादन में या फिर कव्वाली में सहारा देने वाली ''ताल'' को भी ठेका कहा जाता है ! किसी कार्य को करवाने केलिए दिए जाने वाले कांट्रैक्ट या संविदा को भी ठेका ही कहा जाता है। 


अब रही शराब की दुकानों को ठेका कहे जाने की आम बात ! जिनको सिर्फ सरकार द्वारा ही मान्यता दी जाती है, इसलिए सरकारी नियमों के अनुसार शराब की हर दूकान के बोर्ड पर उसकी वैधता की पूरी जानकारी लिखी होती है। अब यह शै ऐसी है कि इसकी दुकान का नाम दूसरी आम दुकानों की तरह तो रखा नहीं जा सकता, इसलिए बड़े-बड़े अक्षरों में ठेका देसी या अंग्रेजी शराब लिख उसके साथ वैधता तथा लाइसेंस नंबर इत्यादि लिख दिए जाते हैं ! इसीलिए इस ठेके के ठिकाने इतने मशहूर हो गए कि इन्होंने बाकी ठेकों को किनारे कर अपने इस रूप को अप्रतिम ख्याति दिलवा दी ! यही कारण था कि हमारे ग्रुप के ''वैष्णव सदस्य'' चाय की दूकान के नाम को ठेके के रूप में देख ठठिया से गए थे  😅

शनिवार, 30 नवंबर 2024

"मोबिकेट" यानी मोबाइल शिष्टाचार

आज मोबाइल शिष्टाचार पर बात करना  करना ठीक ऐसा ही है जैसे किसी कॉलेज के छात्र को पांचवीं क्लास का कोर्स समझाया जा रहा हो ! अधिकाँश लोग इन सब बातों को जानते भी हैं, पर फिर भी जाने-अनजाने चूक हो ही जाती है ! आज की दुनिया में यह भले ही एक वरदान है, लेकिन इसका अनुचित प्रयोग कभी-कभी दूसरों की परेशानी का सबब बन जाता है ! खास कर तब, जब यह बिना एहसास दिलाए आपकी लत में बदल चुका हो ! आज खुद को भोजन मिले ना मिले पर इसका 'पेट'भरे रहना, इसकी चार्जिंग की ज्यादा चिंता रहती है ! इसलिए यह जरुरी  हो गया है कि अभिभावक बचपन से ही अपने बच्चों को "मोबिकेट" से अवगत कराते रहें............!     

#हिन्दी_ब्लागिंग 

कल मेरे एक मित्र घर आए ! मैं लैप-टॉप पर अपना कुछ काम कर रहा था ! उनके आते ही मैंने उसे बंद कर उनका अभिवादन किया ! अभी आधे मिनट की दुआ-सलाम भी ठीक तरह से नहीं हुई थी कि उनका फोन घनघना उठा और वे उस पर व्यस्त हो गए ! बात खत्म होने के बाद भी वे उसमें निरपेक्ष भाव से अपना सर झुकाए कुछ खोजने की मुद्रा बनाए रहे ! इधर मैं उजबक की तरह उनको ताकता बैठा था ! बीच में एक बार मैंने एक मैग्जीन उठा उसके एक-दो पन्ने पलटे कि शायद भाई साहब को मेरी असहजता का कुछ एहसास हो ओर पर वे वैसे ही निर्विकार रूप से अपने प्रिय के साथ मौन भाव से गुफ्तगू में व्यस्त बने रहे ! हार कर मैं भी अपने कम्प्यूटर को दोबारा होश में ले आया ! हालांकि मुखातिब उनकी ओर ही रहा ! पर पता नहीं उन्हें क्या लगा या क्या याद आ गया कि वे अचानक उठ कर बोले, अच्छा चला जाए ! मैंने कहा, बस ! बैठो ! बोले, नहीं फिर कभी आऊंगा !  

                

 मोबाइल फोन, आज हर आम और खास के लिए यह कितना महत्वपूर्ण बन गया है, इसके बारे में बात करना समय बर्बाद करना है ! आज खुद को भोजन मिले ना मिले पर इसका ''पेट'' भरे रहना, इसकी चार्जिंग, जरुरी है ! आज की दुनिया में यह भले ही एक वरदान है, लेकिन इसका अनुचित प्रयोग कभी-कभी दूसरों की परेशानी का सबब बन जाता है ! और खास कर तब, जब यह बिना एहसास दिलाए आपकी लत में बदल चुका हो ! सोचिए आप किसी के घर गए हैं, तो वह अपने दस काम छोड़ आपकी अगवानी करता है और आप हैं कि आपका फोन आपको छोड़ ही नहीं रहा ! मान लीजिए इसका उल्टा हो जाए, आप किसी के यहां जाएं और वह अपने फोन पर व्यस्त रहे, तो.......! 

                                                       
घर के अलावा आज तो यह हालत हैं कि कुछ लोग ऑफिस पहुँच कर भी अपने फोन से बाहर नहीं निकल पाते ! मिटिंग हो, सामने क्लाइंट हो, जरुरी कागजात देखे-परखे जाने हों, जरुरी काम समय सीमा में निपटना हो, इनका फोन बीच में गुर्राने लगता है और ये सब कुछ छोड़ उसमें घुस जाते हैं बिना चिंता किए कि सामने वाले का समय बर्बाद हो रहा है ! बहुत जरुरी सूचना हो तो भी अलग बात है, बेकार के मीम या क्लिप को भी बिना पूरा हुआ नहीं छोड़ते ! मैंने तो ऐसे-ऐसे शख्स भी देखे हैं जो अपनई इन समय खाऊ बकवासों को अपने काम के लिए बैठे व्यक्ति को भी दिखाने से बाज नहीं आते ! कई तो अपना काम छोड़ फोन उठा बाहर की तरफ चल देते हैं, चहलकदमी करते हुए, मोबाईल जो ठहरा ! 

                                          
इस लत के तहत, लत ही तो है, जो अधिकांश लोगों पर इतनी हावी हो गई है कि वे रास्ता-घाट, समय-कुसमय कुछ नहीं देखते, फोन पर चीखने लगते हैं ! ऐसे लोगों से रोज ही, सार्वजनिक जगहों पर, सड़क पर, बस में, ट्रैन में सामना होता रहता है, जिनका ध्वनि स्तर इतना ऊँचा होता है कि उनके घर-परिवार की व्यक्तिगत समस्याएं सरे बाजार आम हो जाती हैं ! पर वे अपने यंत्र पर इतने मशगूल होते हैं कि इसका उनको आभास भी नहीं हो पाता कि वे दूसरों को विचलित करने का वायस बन रहे हैं ! इसी लत के कारण, अनजाने में ही सही, यदि किसी के साथ बात करते या सामने बैठे हुए आप अपने फोन पर ''अन्वेषण'' करने लगते हैं, तो सामने वाला अपने को उपेक्षित समझ, भले ही मुंह से कुछ न बोले, बुरा जरूर मान बैठता है भले ही अपनी जरुरत के लिए दांत निपोरता रहे !  

जानकारों ने, मनोवैज्ञानिकों ने, इस लत के लिए कुछ सुझाव दिए हैं ! उन पर अमल करना जरुरी हो गया है, जिससे फिजूल की परिस्थितियां या माहौल पनपने ना पाएं ! भले ही इन सुझावों पर अमल करना ऐसा लगे जैसे किसी कॉलेज के छात्र को पांचवीं क्लास का कोर्स समझाया जा रहा हो, पर यह जरुरी भी है कि बड़े तो अनुकरण करें ही साथ ही अभिभावक शुरू से ही अपने बच्चों को "मोबिकेट" की इन जानकारी से अवगत कराते रहें ! 

सबसे पहले तो फोन आने या करने पर अपना स्पष्ट परिचय दें ! ''पहचान कौन'' या ''अच्छा ! अब हम कौन हो गए'' जैसे वाक्यों से सामने वाले के धैर्य की परीक्षा ना लें ! हो सकता है कि आपने जिसे फोन किया हो उसके बजाए सामने कोई और हो, जो आपकी आवाज ना पहचानता हो !फोन करते समय सामने वाले का गर्मजोशी और खुशदिली से अभिवादन करें ! आपका लहजा ही आपकी छवि घडता है ! स्पष्ट, संक्षिप्त और सामने वाले की व्यस्तता को देख बात करें ! बात करते समय किसी का भी तेज बोलना या चिल्लाना अच्छा नहीं माना जाता, फिर भले ही वह आपका लहजा हो या फिर फोन की रिंग-टोन ! हमेशा विनम्र रहें और अभद्र भाषा के प्रयोग तथा किसी को कभी भी फोन करने से बचें। गलती से गलत नंबर लग जाए तो क्षमा जरूर मांगें !

जब भी आपसे कोई आमने-सामने बात कर रहा हो तो मोबाईल पर बेहद जरुरी कॉल को छोड़ ना ज्यादा बात करें ना हीं स्क्रॉल करें ! वहीं ड्राइविंग के वक्त, खाने की टेबल पर, बिस्तर या टॉयलेट में तो खासतौर पर मोबाइल न ले जाएं । इसके अलावा अपने कार्यस्थल या किसी मीटिंग के दौरान फोन साइलेंट या वाइब्रेशन पर रखें और मेसेज भी न करें ! कुछ खास जगहों या अवसरों, जैसे धार्मिक स्थलों, बैठकों, अस्पतालों, सिनेमाघरों, पुस्तकालयों, अन्त्येष्टि इत्यादि पर बेहतर है कि फोन बंद ही रखा जाए  !

इन सब के अलावा कुछ बातें और भी ध्यान देने लायक हैं ! कईयों की आदत होती है दूसरों के फोन में ताक-झांक करने की जो कतई उचित नहीं है नाहीं बिना किसी की इजाजत उसका फोन देखने लगें ! बिना वजह कोई भी एसएमएस दूसरों को फारवर्ड ना करें, जरूरी नहीं कि जो चीज आपको अच्छी लगे वह दूसरों को भी भाए ! आजकल मोबाइल में कैमरा, रिकॉर्डर और ऐसी अनेक सुविधाएं होती हैं। इन सुविधाओं का बेजा इस्तेमाल न कर जरूरत के वक्त ही इस्तेमाल करें !  

आज ध्यान में रखने की बात यह है कि यदि आधुनिक यंत्रों का आविष्कार यदि हमें तरह-तरह की सुख-सुविधा प्रदान कर रहा है, तो हमारा भी फर्ज बनता है कि हमारी सहूलियतें दूसरों की मुसीबत या असुविधा ना बन जाएं ! 

@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से 

बुधवार, 27 नवंबर 2024

अजब परिंदे, गजब परिंदे

कभी इनकी बोलियों पर भी ध्यान दीजिए तो पाएंगे कि अलग-अलग परिस्थितियों में इनकी आवाज का सुर भी अलग-अलग होता है ! प्रेमालाप में अलग राग ! सामान्य अवस्था में अलग तान ! गुस्से में अलग सा निनाद और खतरा भांपते ही भीषण चीत्कार ! जो भी है इन नन्हें मासूम परिंदों की अपनी अलग दुनिया भले ही हो पर ये ना हों तो हमारी जिंदगी भी बेरंग हो जाए...................!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

चिड़ियों-पक्षियों के लिए दाना-पानी तो तकरीबन सभी मुहैया करवाते हैं, पर इन अतिथियों की हरकतों पर  नजर कम ही जाती है ! उनकी अपनी दिनचर्या होती है, हमारे अपने क्रियाकलाप ! पर पिछली करोना की महाविपदा में समय की प्रचुरता ने इनकी चुहुलबाजी की ओर भी ध्यान दिलवाया और तभी से इनकी गतविधियां मेरे मनोरंजन का वॉयस बन गई हैं ! कोशिश रहती है कि सुबह-सबेरे कुछ पल इनके लिए भी सुरक्षित रह पाएं !  
 
पेड़ ही पेड़ 
प्रभु की कुछ कृपा ही रही है कि जहां भी मेरा रहना होता आया है, वहां वृक्षों की बहुतायद होती ही है ! इसी का सुखद परिणाम है कि जहां कॉलोनियों में कौवे कहीं नजर तक नहीं आते, वहीं मेरे यहां रोज उनकी आवक दर्ज होती रहती है। आसपास चीलें भी मंडराती दिखती हैं ! कोयल की कूक सदा की तरह सुनाई तो देती है, मोहतरमा खुद नहीं दिखतीं ! एक बार तो पता नहीं कहां से एक मोर भी भटकता हुआ आ गया था। पर चिंताजनक बात यह है कि हमारी प्यारी छुटकी सी गौरैया अब दिखाई नहीं पड़ती ! उसका अस्तित्व खतरे में पड़ा हुआ है ! खैर बात मौजूदा मेहमानों की हो रही थी, जिनकी थोड़ी-थोड़ी पहचान भी होने लगी है। इनमें मेरे यहां प्रसाद ग्रहण करने वालों में दो जोड़ी कौवे, मैना के दो युगल, दस-पंद्रह कबूतर, ढ़ेर सारे तोते तो तक़रीबन नियमित हैं ! कभी-कभी भूले-भटके दर्शन देने वालों में बया, नीलकंठ, फुदकी, बुलबुल और भी पता नहीं कौन-कौन, इक्का-दुक्का, मेरे लिए अजनबी, अपना हिस्सा ले फुर्र हो जाते हैं ! 
  
कुछ ही समय पहले इनकी ऐसी धमा-चौकड़ी होती थी, अब खोजे नहीं मिलतीं 
कौवे, जिन्हें शायद ही कोई पसंद करता हो, मुझे बहुत ही नफासत-पसंद लगे ! वे चुपचाप आकर अपने भोजन के पास बैठते हैं, गर्दन घुमा जायजा लेते हैं ! सतर्क रहते हुए जो भी खाना हो, उसका एक हिस्सा अपने पंजे में दबा, थोड़ा-थोड़ा खाना शुरू करते हैं या फिर चोंच में भर उड़न छू ! मेरा मानना है कि चोंच भर कर ले जाने वाली जरूर माँ होगी ! यह जीव कभी भी भोजन को  बिखराता या इधर उधर गिराता नहीं है ! इनके द्वारा पानी भी बड़े सलीके से पिया जाता है ! 

सलीका 
इसके ठीक उलट हमारे कबूतर महाराज हैं ! उन्हें शायद खाद्य के छोटे टुकड़े करने नहीं आते ! एक टुकड़ा चोंच में दबा गर्दन झटक-झटक कर उसे खाने लायक बनाते हैं, इस प्रक्रिया में खाते कम गिराते-बर्बाद ज्यादा करते हैं ! गंदगी फैलाने में भी इनकी अहम भूमिका होती है। एक दूसरे को धकियाते-भगाते भी रहते हैं ! इनका पानी पीने का अंदाज भी कुछ अलग है, चोंच में जरा पानी ले गर्दन ऊपर झटक उसे निगलते हैं !   
आज नो झगड़ा 
मैना अपने में मस्त रहती हैं ! मुख्य ढेर के अलावा बेझिझक इधर-उधर घूमते हुए, गिरे हुए कण भी चुग लेती हैं ! हर बार अपना ही घर समझ यह पाखी जोड़े में ही आता है। उपरोक्त सारे पक्षी जितने शान्ति प्रिय लगते हैं, तोते उतना ही शोर मचाते हैं ! हर समय चीखते-चिल्लाते इधर-उधर मंडराते हैं ! उनको कुछ खा कर भागने की भी बहुत जल्दी रहती है ! उनको पानी पीते नहीं देख पाया हूँ कभी ! जो भी हो पर होते बहुत सुन्दर हैं, प्रकृति की एक अद्भुत कलाकारी ! इन्हीं के बीच दौड़ती-भागती सदा व्यस्त रहने वाली गिलहरी का तो कहना ही क्या, उसके तो अपने ही जलवे होते हैं !    
मस्तमौला 
एक बात जो सबसे ज्यादा चकित करती है वह है इन सारे पक्षियों का आपसी ताल-मेल ! कभी-कभार छोड़, कोई भी किसी दूसरी प्रजाति के साथ छीना-झपटी या धक्का-मुक्की करते नहीं दिखता ! बिना किसी को हैरान-परेशान किए धैर्य पूर्वक अपनी बारी का इन्तजार कर अपना हिस्सा प्राप्त करते हैं ! उनकी प्यारी हरकतें, प्रयास, चुहल से एक हल्केपन का एहसास होने लगता है। तबियत तनाव मुक्त हो जाती है !
अपनी बारी का इन्तजार 
अब ऐसा है कि जब ये जीव आपके आस-पास रहते, मंडराते हैं तो भोजन के अलावा अपनी और भी जरूरतें यहीं से तो पूरी करेंगे ! इसलिए इनका जब घोंसला बनाने का समय आता है तो कुछ घरेलू चीजों पर आफत आ जाती है ! झाड़ू के तिनके, चिक के कपड़े का धागा, कहीं से झांकती रूई, पौधों की सूखी डंडियां, ऊन के टुकड़े, पालीथीन के छोटे टुकड़े और ना जाने क्या-क्या, जो इनको अपने मतलब लायक लगता है उसे साधिकार उठा ले जाते हैं ! यह सारा प्रयोजन किसी छोटे बच्चे की शैतानी की तरह होता है, जो शरारत करते समय लगातार आपकी प्रतिक्रिया का भी अंदाज लगाता रहता है !
हीरामन 
कभी इनकी बोलियों पर भी ध्यान दीजिए तो पाएंगे कि अलग-अलग परिस्थितियों में इनकी आवाज का सुर भी अलग-अलग होता है ! प्रेमालाप में अलग राग ! सामान्य अवस्था में अलग तान ! गुस्से में अलग सा निनाद और खतरा भांपते ही भीषण चीत्कार ! जो भी है इन नन्हें मासूम परिंदों की अपनी अलग दुनिया भले ही हो पर ये ना हों तो हमारी जिंदगी भी बेरंग हो जाए !   

शनिवार, 16 नवंबर 2024

रणछोड़भाई रबारी, One Man Army at the Desert Front

सैम मानेक शॉ अपने अंतिम दिनों में भी अपने इस ''पागी'' को भूल नहीं पाए थे। 2008 में जब वे तमिलनाडु के वेलिंगटन अस्पताल में भर्ती थे तो अक्सर डाक्टरों के साथ उनके किस्से साझा किया करते थे ! समझा जा सकता है कि जब मानेक शॉ जैसी हस्ती बार-बार किसी को याद करती हो तो उस इंसान में कितनी खूबियां होंगी ! आज ये दोनों विभूतियां हमारे साथ नहीं हैं, पर देश सदा उनका आभारी और कृतज्ञ रहेगा........................!  

#हिन्दी_ब्लागिंग 

कई बार फिल्मों में या सीरियलों की आभासी दुनिया में सेना या पुलिस को किसी आम से व्यक्ति से गुप्त सूचनाएं प्राप्त करते देखा-दिखलाया जाता है ! कहानी का अंग मान हम उस पर ज्यादा ध्यान भी नहीं देते ! पर असली जिंदगी में हर देश में ऐसे लोगों का अस्तित्व है, यह बात भी अनजानी नहीं हैं ! उनके द्वारा दी गई गुप्त जानकारियों की वजह से अनेकों बार बड़ी सफलताएं भी हासिल होती हैं पर उन्हें ना कभी सार्वजनिक सम्मान मिल पाता है ना हीं कोई उन्हें जान पाता है ! उनके घरवालों को भी शायद ही उनके कारनामों का पता होता हो ! वैसे उनकी सुरक्षा और काम के लिए उनका गुमनामी के कोहरे में बना रहना ही बेहद जरुरी भी होता है ! पर कभी-कभी संयोगवश जब ऐसे ही किसी विलक्षण व्यक्ति की शख्शियत लोगों के सामने आती है तो उनकी उपलब्धियां जान कर सब अपने दांतों तले उंगलियां दबा लेते हैं !
जनरल सैम मानेक शॉ 
ऐसे ही एक विलक्षण शख्स थे, रणछोड़ रबारी, पूरा नाम रणछोड़भाई सवाभाई रबारी ! जिन्होंने 1965 तथा 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में बिना बंदूक उठाए, अपने हुनर ​​से पाकिस्तान को ऐसे जख्म दिए जो वह कभी नहीं भूल सकेगा ! सेना में इन्हें पागी यानी मार्गदर्शक के नाम से भी जाना जाता था ! इनके सबसे बड़े प्रशंसक खुद जनरल मानेक शॉ थे ! जो उन पर गहरा भरोसा करते थे। उन्हीं की सिफारिश पर रणछोड़ जी को ''रेगिस्तानी मोर्चे पर एक आदमी की सेना,'' One Man Army at the Desert Front का खिताब दे कर सम्मानित किया गया था। 
रणछोड़भाई रबारी
गुजरात के बनासकांठा के पिथापुर गांव के रबारी परिवार में जन्में, भेड़, बकरी और ऊंट पालने वाले एक साधारण व्यक्ति रणछोड़ रबारी को दुनिया ने तब जाना जब 1971 के युद्ध की जीत के उपलक्ष्य में दिल्ली में मनाए जा रहे जश्न में उनको भी आमंत्रित किया गया। हेलिकॉप्टर में वे अपने साथ रोटी, सूखी लाल मिर्च और प्याज लेकर आए और उस भव्य आयोजन में उनके साथ सैम मानेक शॉ ने भी उनके घर की रोटी और प्याज खाया। सम्मान देते भी क्यों ना ! यही वह इंसान था जिसने अपने बल-बूते पर 1965 और 1971 के युद्ध में हजारों भारतीय सैनिकों की जान बचाई थी ! उधर पाकिस्तान ने उन्हें पकड़वाने पर पचास हजार का इनाम रखा था !

मान पत्र 

प्रशस्ति पत्र 
आगे चल कर 1965 और 1971 के युद्धों  में उनकी भूमिका के लिए उन्हें संग्राम पदक,  पुलिस पदक और समर सेवा स्टार सहित कई पुरस्कार प्रदान किए गए। सन 2007 के  स्वतंत्रता दिवस समारोह में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भी उनका उल्लेख किया। उन्हें  पुलिस और  सीमा सुरक्षा बल (BSF) दोनों के द्वारा सम्मानित किया गया।  सुरक्षा बल की  अपनी कई पोस्टों  के नाम मंदिर, दरगाह और जवानों के नाम पर हैं, किन्तु रणछोड़भाई देश के पहले  ऐसे आम इंसान हैं,  जिनके नाम  पर सेना ने अपनी किसी पोस्ट का नामकरण किया  है।  गुजरात के बनासकांठा  के अंतर्राष्ट्रीय सीमा क्षेत्र  में सुईगाम की एक सीमा चौकी को 'रणछोड़दास पोस्ट' नाम दिया गया है और साथ ही उनकी एक प्रतिमा भी स्थापित की गई है।

फिल्म, भुज 

2021 में भारत-पाकिस्तान युद्ध पर बनी एक फिल्म, भुज, The Pride of India, आई थी, जिसमें अजय देवगन, सोनाक्षी सिन्हा, संजय दत्त और नोरा फतेही की मुख्य भूमिकाएं थीं। इसमें अजय देवगन ने इस युद्ध के नायक रहे भारतीय वायु सेना के स्क्वाड्रन लीडर विजय कार्णिक के किरदार को निभाया था। उसी के साथ संजय दत्त ने भी इस फिल्म में भारतीय सेना के स्काउट रणछोड़दास पागी के असल किरदार को साकार किया था ! यह भी उन्हें एक तरह की श्रद्धांजलि ही थी !


सेवा निवृत्ति के उपरांत 

  • सैम मानेक शॉ अपने अंतिम दिनों में भी अपने इस ''पागी'' को भूल नहीं पाए थे। 2008 में जब सैम मानेकशॉ तमिलनाडु के वेलिंगटन अस्पताल में भर्ती थे तो अक्सर डाक्टरों के साथ उनके किस्से साझा किया करते थे ! समझा जा सकता है कि जब मानेक शॉ जैसी हस्ती बार-बार किसी को याद करती हो तो उस इंसान में कितनी खूबियां होंगी ! आज ये दोनों विभूतियां हमारे साथ नहीं हैं ! 27 जून 2008 में सैम मानेक शॉ का निधन हो गया ! जुलाई 2009 में रणछोड़ जी ने भी स्वैच्छिक सेवानिवृति ले ली। जनवरी 2013 में 112 वर्ष की उम्र में वे भी इस दुनिया को छोड़ गए।

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  • @सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से 

सोमवार, 4 नवंबर 2024

दीपक, दीपोत्सव का केंद्र

अच्छाई की बुराई पर जीत की जद्दोजहद, अंधेरे और उजाले के सदियों से चले आ रहे महा-समर, निराशा को दूर कर आशा की लौ जलाए रखने की पुरजोर कोशिश ! चिरकाल से चले आ रहे इस संग्राम में उसी आशा की लौ के स्थापन के लिए अपनी छोटी सी जिंदगी को दांव पर लगा, अपने महाबली शत्रु तमस से जूझती हैं, चिरागों के रूप में, सूर्यदेव की अनुपस्थिति में उनका प्रतिनिधित्व करने वाली रश्मियाँ ! दीपोत्सव के केंद्र में दीपक ही तो होता है.......................!         

#हिन्दी_ब्लागिंग  

दीपोत्सव  फिर आने का वादा कर समय-चक्र पर सवार हो विदा ले गया ! साल की सबसे घनघोर काली रात के भय से उबारने वाला यह त्यौहार सदा याद दिलाता रहता है, अच्छाई की बुराई पर जीत की जद्दोजहद, अंधेरे और उजाले के सदियों से चले आ रहे महा-समर, निराशा को दूर कर आशा की लौ जलाए रखने की पुरजोर कोशिश की ! चिरकाल से चले आ रहे इस संग्राम में उसी आशा की लौ के स्थापन के लिए अपनी छोटी सी जिंदगी को दांव पर लगा, अपने महाबली शत्रु तमस से जूझती हैं, चिरागों के रूप में, सूर्यदेव की अनुपस्थिति में उनका प्रतिनिधित्व करने वाली रश्मियाँ ! दीपोत्सव के केंद्र में दीपक ही तो होता है !   

दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पावन पर्व है। हम भारतवासियों का दृढ विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है, झूठ का नाश होता है ! दीपावली भी यही चरितार्थ करती है, असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय ! अंधकार कितना भी गहरा क्यों ना हो, ये छोटे-छोटे दीपक रौशनी के सिपाही बन, अपनी सीमित शक्तियों के बावजूद, एक मायाजाल रच, विभिन्न रूप धर, अंधकार को मात देने के लिए अपनी जिंदगी को दांव पर लगा देते हैं। ताकि समस्त जगत को खुशी और आनंद मिल सके। 

अपनी छोटी सी पर सार्थक जिंदगी के पश्चात दीपक बुझ तो जरूर जाता है पर उसका बलिदान व्यर्थ नहीं जाता ! इसकी परख निश्छल मन वाले बच्चों के चेहरे पर फैली मुस्कान और खुशी को देख कर अपने-आप हो जाती है। एक बार अपने तनाव, अपनी चिंताओं, अपनी व्यवस्तताओं को दर-किनार कर यदि कोई अपने बचपन को याद कर, उसमें खो कर देखे तो उसे भी इस दैवीय एहसास का अनुभव जरूर होगा। यही है इस पर्व की विशेषता, इसके आतिशी मायाजाल का करिश्मा, जो सबको अपनी गिरफ्त में ले कर उन्हें चिंतामुक्त कर देने की, चाहे कुछ देर के लिए ही सही, क्षमता रखता है। बाहरी संसार को रौशन करने के उसके इस प्रयास के साथ ही कितना अच्छा हो यदि हमारी यह कोशिश रहे कि जगत में उजास बनाए रखने के साथ ही हम अपने अंतस में छिपे राग-द्वेष, ईर्ष्या, क्रोध, वैमनस्य जैसे तमस को भी दूर कर दें ! जिससे मानव मात्र के भले के साथ ही देश-समाज-जगत में भी सुख-शांति-चैन का माहौल स्थापित हो सके ! 

एक बार फिर आप सब मित्रों, परिजनों और "अनदेखे अपनों" को हृदय की गहराइयों से हार्दिक शुभकामनाएं !परमपिता की असीम कृपा से सब लोग सपरिवार, स्वस्थ, प्रसन्न व सुरक्षित रहें ! सुख-शांति का वास हो ! आने वाला समय सभी के लिए शुभ और मंगलमय हो ! सब का जीवन पथ सदा प्रशस्त व आलोकित रहे ! यही कामना है !    

शुक्रवार, 1 नवंबर 2024

प्रयोग, इस दीपावली पर, कुछ अलग सा

मैं क्या सोच रहा था कि अपुन भी तो वर्षों-वर्ष इस दिखावे की अंधी दौड़ में शामिल रहे ! हर साल इस मौके पर नए-नए कपड़े ला-लाकर आलमारी को भरते गए ! बाटा कंपनी के स्लोगन ''पूजोय चाई नोतून जूतो'' से प्रभावित हो पता नहीं कितने जूते, चप्पल, सैंडिल खरीद मारे ! सफाई, रौशनी, दीया-बाती-लड़ी-पटाखे, मिठाइयां सब कुछ तो हुआ, माँ का ध्यान पाने के लिए ! पर वे मेहरबान होती रहीं, फिलिप्स, बाटा, रेमंड, ड्यूलक्स, हल्दीराम पर, जिन्होंने हमारा ही धन समेट मारा.......!   

#हिन्दी_ब्लागिंग 

दीपावली की धूम-धाम ! हजारों-लाखों दीए, मोमबत्तियां, रंग-बिरंगे बल्बों की लड़ियां ! अमीर-गरीब सबके घर, अपनी-अपनी हैसियत के अनुसार रौशनी में नहाए हुए ! साल की इस सबसे घनेरी रात में भी दिन के उजाले का भ्रम ! नए, रंग-बिरंगे वस्त्रों में सजे नागरिक ! गहने-आभूषणों की दुकानों में ना समा सकने वाली भीड़ ! पकवानों की महक ! शोर-शराबा ! हँसते-गाते, तोहफे बांटते लोग ! क्या इनको देख अपने सालाना भ्रमण पर निकली माँ लक्ष्मी भ्रमित नहीं हो जाती होंगी ! जब वे यहां के रौनक-मेले, पानी से बहते धन और माया की बदौलत उत्पन्न स्वर्गिक छटा देखती होंगी तो यह सोच कि यहां तो मेरे सभी भक्त आनंद के सागर में आकंठ डूबे हैं, सुखी हैं ! उलटे पांव लौट ना जाती होंगी..........!   

वैसे तो माँ अन्तर्यामी हैं ! कौन कैसा है, सब पता है उनको ! पर कुछ अहं ब्रह्मास्मि का अहम् पाले लोगों के आख्यानों से वे गफलत में भी पड़ जाती होंगी कि कहीं सचमुच कोई भूखा तो नहीं रह रहा ! कोई ऐसा तो नहीं जो हाड़-तोड़ मेहनत करने पर भी दो जून की रोटी का जुगाड़ ना कर पा रहा हो ! कोई कल की चिंता में आज बिसूरता बैठा हो ! कोई जीवन-यापन नहीं, कठिनाई से जीवन काट रहा हो ! किसी के अथक कर्म करने के बावजूद भाग्य साथ ना दे रहा हो ! इसी आशंकाओं के कारण वे चली आती हैं, हर बार ! माँ जो ठहरीं !  


माँ
तो सर्वज्ञाता हैं ! ऐसा भी हो सकता कि वे यहां आती ही ना हों ! सीधे वहीं चली जाती हों, जहां उनकी सचमुच जरुरत है ! क्योंकि अब इस तरह का कुछ-कुछ आभास होने लगा है कि सर्वहारा के जीवन में भी कुछ-कुछ बदलाव आने लगा है, भले ही धीमी गति से ही सही ! माँ तो माँ हैं, ममत्व भरी, दयालु, सबकी पीड़ा हरने वाली, पर उनके भी अपने नियम-कायदे होंगे ! एक दम आमूलचूल परिवर्तन करना तो शायद उनके लिए भी संभव नहीं होगा ! पर फिर भी गरीब-गुरबों पर माँ की कृपा हो रही है, इसके संकेत मिलने लगे हैं ! कृपा होनी भी चाहिए सब पर ! जब मनुष्य जीवन दिया है तो उसमें पशु-भाग्य क्यों ?

बचपन में एक कहानी पढ़ी थी, जिसका सार था कि दिवाली की रात घूमते हुए माँ लक्ष्मी को एक गरीब ब्राह्मण की कुटिया दिखाई पड़ी, जिसमें एक छोटा सा दीपक जल रहा था और ब्राह्मण दंपत्ति अधपेट खा कर भी प्रभु का आभार मान रहे थे ! उनको देख माँ का हृदय पसीज गया और उन्होंने उनके शेष जीवन को सुखमय बना दिया ! 

इधर मैं क्या सोच रहा था कि अपुन भी वर्षों-वर्ष इस दिखावे की अंधी दौड़ में शामिल रहे ! हर साल इस मौके पर नए-नए कपड़े ला-लाकर आलमारी को भरते गए ! बाटा कंपनी के स्लोगन ''पूजोय चाई नोतून जूतो'' से प्रभावित हो पता नहीं कितने जूते, चप्पल, सैंडिल खरीद मारे ! सफाई, रोशनी, दिया-बाती-लड़ी-पटाखे, मिठाइयां सब कुछ तो हुआ माँ का ध्यान पाने के लिए पर वे मेहरबान होती रहीं, फिलिप्स, बाटा, रेमंड, ड्यूलक्स, हल्दीराम पर, जिन्होंने हमारा ही धन समेट मारा !

वैसे उस कहानी के ब्राह्मण जितनी मुश्किलात अपनी हरगिज नहीं हैं ! सदन-वाहन-वसन सब कर्मों के अनुसार सुलभ हैं ! अब किसी तरह की चाहत भी नहीं है ! गुजारा हो रहा है ! पर बाटा-रेमंड जैसी सहूलियतें भी तो नहीं हैं ! एक ''वो'' वाली फिलिंग भी नहीं आ पा रही ! तो इस बार कुछ अलग करने की धुन में ऊपर-नीचे-दाएं-बाएं रोशनियों के समुद्र में अपना लैगून, सिर्फ रोजमर्रा की लाइट के साथ रहा ! नो धूम-धड़ाका, नो हल्ला-गुल्ला ! सिर्फ घर के देवस्थान पर दीप दान ! 

अब देखना यह है कि आज रात ऊपर से अवतरित होते हुए, इस चकाचौंधी रौशनी, धूम-धड़ाके, शोर-शराबे के बीच मैं और मुझ ब्राह्मण का, कुछ अलग सा, आवास-निवास उन्हें नजर आ पाते भी हैं कि नहीं.........!

@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से                

विशिष्ट पोस्ट

भइया ! अतिथि आने वाले हैं

इन्हें बदपरहेजी से सख्त नफरत है। दुनिया के किसी भी कोने में इन्हें अपनी शर्तों का उल्लंघन होते दिखता है तो ये अपने को रोक नहीं पाते और वहां ...