सैम मानेक शॉ अपने अंतिम दिनों में भी अपने इस ''पागी'' को भूल नहीं पाए थे। 2008 में जब वे तमिलनाडु के वेलिंगटन अस्पताल में भर्ती थे तो अक्सर डाक्टरों के साथ उनके किस्से साझा किया करते थे ! समझा जा सकता है कि जब मानेक शॉ जैसी हस्ती बार-बार किसी को याद करती हो तो उस इंसान में कितनी खूबियां होंगी ! आज ये दोनों विभूतियां हमारे साथ नहीं हैं, पर देश सदा उनका आभारी और कृतज्ञ रहेगा........................!
#हिन्दी_ब्लागिंग
कई बार फिल्मों में या सीरियलों की आभासी दुनिया में सेना या पुलिस को किसी आम से व्यक्ति से गुप्त सूचनाएं प्राप्त करते देखा-दिखलाया जाता है ! कहानी का अंग मान हम उस पर ज्यादा ध्यान भी नहीं देते ! पर असली जिंदगी में हर देश में ऐसे लोगों का अस्तित्व है, यह बात भी अनजानी नहीं हैं ! उनके द्वारा दी गई गुप्त जानकारियों की वजह से अनेकों बार बड़ी सफलताएं भी हासिल होती हैं पर उन्हें ना कभी सार्वजनिक सम्मान मिल पाता है ना हीं कोई उन्हें जान पाता है ! उनके घरवालों को भी शायद ही उनके कारनामों का पता होता हो ! वैसे उनकी सुरक्षा और काम के लिए उनका गुमनामी के कोहरे में बना रहना ही बेहद जरुरी भी होता है ! पर कभी-कभी संयोगवश जब ऐसे ही किसी विलक्षण व्यक्ति की शख्शियत लोगों के सामने आती है तो उनकी उपलब्धियां जान कर सब अपने दांतों तले उंगलियां दबा लेते हैं !
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जनरल सैम मानेक शॉ |
ऐसे ही एक विलक्षण शख्स थे, रणछोड़ रबारी, पूरा नाम रणछोड़भाई सवाभाई रबारी ! जिन्होंने 1965 तथा 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में बिना बंदूक उठाए, अपने हुनर से पाकिस्तान को ऐसे जख्म दिए जो वह कभी नहीं भूल सकेगा ! सेना में इन्हें पागी यानी मार्गदर्शक के नाम से भी जाना जाता था ! इनके सबसे बड़े प्रशंसक खुद जनरल मानेक शॉ थे ! जो उन पर गहरा भरोसा करते थे। उन्हीं की सिफारिश पर रणछोड़ जी को ''रेगिस्तानी मोर्चे पर एक आदमी की सेना,'' One Man Army at the Desert Front का खिताब दे कर सम्मानित किया गया था।
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रणछोड़भाई रबारी |
गुजरात के बनासकांठा के पिथापुर गांव के रबारी परिवार में जन्में, भेड़, बकरी और ऊंट पालने वाले एक साधारण व्यक्ति रणछोड़ रबारी को दुनिया ने तब जाना जब 1971 के युद्ध की जीत के उपलक्ष्य में दिल्ली में मनाए जा रहे जश्न में उनको भी आमंत्रित किया गया। हेलिकॉप्टर में वे अपने साथ रोटी, सूखी लाल मिर्च और प्याज लेकर आए और उस भव्य आयोजन में उनके साथ सैम मानेक शॉ ने भी उनके घर की रोटी और प्याज खाया। सम्मान देते भी क्यों ना ! यही वह इंसान था जिसने अपने बल-बूते पर 1965 और 1971 के युद्ध में हजारों भारतीय सैनिकों की जान बचाई थी ! उधर पाकिस्तान ने उन्हें पकड़वाने पर पचास हजार का इनाम रखा था !
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मान पत्र |
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प्रशस्ति पत्र |
आगे चल कर 1965 और 1971 के युद्धों में उनकी भूमिका के लिए उन्हें संग्राम पदक, पुलिस पदक और समर सेवा स्टार सहित कई पुरस्कार प्रदान किए गए। सन 2007 के स्वतंत्रता दिवस समारोह में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भी उनका उल्लेख किया। उन्हें पुलिस और सीमा सुरक्षा बल (BSF) दोनों के द्वारा सम्मानित किया गया। सुरक्षा बल की अपनी कई पोस्टों के नाम मंदिर, दरगाह और जवानों के नाम पर हैं, किन्तु रणछोड़भाई देश के पहले ऐसे आम इंसान हैं, जिनके नाम पर सेना ने अपनी किसी पोस्ट का नामकरण किया है। गुजरात के बनासकांठा के अंतर्राष्ट्रीय सीमा क्षेत्र में सुईगाम की एक सीमा चौकी को 'रणछोड़दास पोस्ट' नाम दिया गया है और साथ ही उनकी एक प्रतिमा भी स्थापित की गई है।
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फिल्म, भुज |
2021 में भारत-पाकिस्तान युद्ध पर बनी एक फिल्म, भुज, The Pride of India, आई थी, जिसमें अजय देवगन, सोनाक्षी सिन्हा, संजय दत्त और नोरा फतेही की मुख्य भूमिकाएं थीं। इसमें अजय देवगन ने इस युद्ध के नायक रहे भारतीय वायु सेना के स्क्वाड्रन लीडर विजय कार्णिक के किरदार को निभाया था। उसी के साथ संजय दत्त ने भी इस फिल्म में भारतीय सेना के स्काउट रणछोड़दास पागी के असल किरदार को साकार किया था ! यह भी उन्हें एक तरह की श्रद्धांजलि ही थी !
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सेवा निवृत्ति के उपरांत |
सैम मानेक शॉ अपने अंतिम दिनों में भी अपने इस ''पागी'' को भूल नहीं पाए थे। 2008 में जब सैम मानेकशॉ तमिलनाडु के वेलिंगटन अस्पताल में भर्ती थे तो अक्सर डाक्टरों के साथ उनके किस्से साझा किया करते थे ! समझा जा सकता है कि जब मानेक शॉ जैसी हस्ती बार-बार किसी को याद करती हो तो उस इंसान में कितनी खूबियां होंगी ! आज ये दोनों विभूतियां हमारे साथ नहीं हैं ! 27 जून 2008 में सैम मानेक शॉ का निधन हो गया ! जुलाई 2009 में रणछोड़ जी ने भी स्वैच्छिक सेवानिवृति ले ली। जनवरी 2013 में 112 वर्ष की उम्र में वे भी इस दुनिया को छोड़ गए।
@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से
3 टिप्पणियां:
✨🙏
उम्दा पोस्ट
footprints of civilization,
हार्दिक आभार आपका
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