मैं क्या सोच रहा था कि अपुन भी तो वर्षों-वर्ष इस दिखावे की अंधी दौड़ में शामिल रहे ! हर साल इस मौके पर नए-नए कपड़े ला-लाकर आलमारी को भरते गए ! बाटा कंपनी के स्लोगन ''पूजोय चाई नोतून जूतो'' से प्रभावित हो पता नहीं कितने जूते, चप्पल, सैंडिल खरीद मारे ! सफाई, रौशनी, दीया-बाती-लड़ी-पटाखे, मिठाइयां सब कुछ तो हुआ, माँ का ध्यान पाने के लिए ! पर वे मेहरबान होती रहीं, फिलिप्स, बाटा, रेमंड, ड्यूलक्स, हल्दीराम पर, जिन्होंने हमारा ही धन समेट मारा.......!
#हिन्दी_ब्लागिंग
दीपावली की धूम-धाम ! हजारों-लाखों दीए, मोमबत्तियां, रंग-बिरंगे बल्बों की लड़ियां ! अमीर-गरीब सबके घर, अपनी-अपनी हैसियत के अनुसार रौशनी में नहाए हुए ! साल की इस सबसे घनेरी रात में भी दिन के उजाले का भ्रम ! नए, रंग-बिरंगे वस्त्रों में सजे नागरिक ! गहने-आभूषणों की दुकानों में ना समा सकने वाली भीड़ ! पकवानों की महक ! शोर-शराबा ! हँसते-गाते, तोहफे बांटते लोग ! क्या इनको देख अपने सालाना भ्रमण पर निकली माँ लक्ष्मी भ्रमित नहीं हो जाती होंगी ! जब वे यहां के रौनक-मेले, पानी से बहते धन और माया की बदौलत उत्पन्न स्वर्गिक छटा देखती होंगी तो यह सोच कि यहां तो मेरे सभी भक्त आनंद के सागर में आकंठ डूबे हैं, सुखी हैं ! उलटे पांव लौट ना जाती होंगी..........!
वैसे तो माँ अन्तर्यामी हैं ! कौन कैसा है, सब पता है उनको ! पर कुछ अहं ब्रह्मास्मि का अहम् पाले लोगों के आख्यानों से वे गफलत में भी पड़ जाती होंगी कि कहीं सचमुच कोई भूखा तो नहीं रह रहा ! कोई ऐसा तो नहीं जो हाड़-तोड़ मेहनत करने पर भी दो जून की रोटी का जुगाड़ ना कर पा रहा हो ! कोई कल की चिंता में आज बिसूरता बैठा हो ! कोई जीवन-यापन नहीं, कठिनाई से जीवन काट रहा हो ! किसी के अथक कर्म करने के बावजूद भाग्य साथ ना दे रहा हो ! इसी आशंकाओं के कारण वे चली आती हैं, हर बार ! माँ जो ठहरीं !
माँ तो सर्वज्ञाता हैं ! ऐसा भी हो सकता कि वे यहां आती ही ना हों ! सीधे वहीं चली जाती हों, जहां उनकी सचमुच जरुरत है ! क्योंकि अब इस तरह का कुछ-कुछ आभास होने लगा है कि सर्वहारा के जीवन में भी कुछ-कुछ बदलाव आने लगा है, भले ही धीमी गति से ही सही ! माँ तो माँ हैं, ममत्व भरी, दयालु, सबकी पीड़ा हरने वाली, पर उनके भी अपने नियम-कायदे होंगे ! एक दम आमूलचूल परिवर्तन करना तो शायद उनके लिए भी संभव नहीं होगा ! पर फिर भी गरीब-गुरबों पर माँ की कृपा हो रही है, इसके संकेत मिलने लगे हैं ! कृपा होनी भी चाहिए सब पर ! जब मनुष्य जीवन दिया है तो उसमें पशु-भाग्य क्यों ?
बचपन में एक कहानी पढ़ी थी, जिसका सार था कि दिवाली की रात घूमते हुए माँ लक्ष्मी को एक गरीब ब्राह्मण की कुटिया दिखाई पड़ी, जिसमें एक छोटा सा दीपक जल रहा था और ब्राह्मण दंपत्ति अधपेट खा कर भी प्रभु का आभार मान रहे थे ! उनको देख माँ का हृदय पसीज गया और उन्होंने उनके शेष जीवन को सुखमय बना दिया !
इधर मैं क्या सोच रहा था कि अपुन भी वर्षों-वर्ष इस दिखावे की अंधी दौड़ में शामिल रहे ! हर साल इस मौके पर नए-नए कपड़े ला-लाकर आलमारी को भरते गए ! बाटा कंपनी के स्लोगन ''पूजोय चाई नोतून जूतो'' से प्रभावित हो पता नहीं कितने जूते, चप्पल, सैंडिल खरीद मारे ! सफाई, रोशनी, दिया-बाती-लड़ी-पटाखे, मिठाइयां सब कुछ तो हुआ माँ का ध्यान पाने के लिए पर वे मेहरबान होती रहीं, फिलिप्स, बाटा, रेमंड, ड्यूलक्स, हल्दीराम पर, जिन्होंने हमारा ही धन समेट मारा !
वैसे उस कहानी के ब्राह्मण जितनी मुश्किलात अपनी हरगिज नहीं हैं ! सदन-वाहन-वसन सब कर्मों के अनुसार सुलभ हैं ! अब किसी तरह की चाहत भी नहीं है ! गुजारा हो रहा है ! पर बाटा-रेमंड जैसी सहूलियतें भी तो नहीं हैं ! एक ''वो'' वाली फिलिंग भी नहीं आ पा रही ! तो इस बार कुछ अलग करने की धुन में ऊपर-नीचे-दाएं-बाएं रोशनियों के समुद्र में अपना लैगून, सिर्फ रोजमर्रा की लाइट के साथ रहा ! नो धूम-धड़ाका, नो हल्ला-गुल्ला ! सिर्फ घर के देवस्थान पर दीप दान !
अब देखना यह है कि आज रात ऊपर से अवतरित होते हुए, इस चकाचौंधी रौशनी, धूम-धड़ाके, शोर-शराबे के बीच मैं और मुझ ब्राह्मण का, कुछ अलग सा, आवास-निवास उन्हें नजर आ पाते भी हैं कि नहीं.........!
@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से
7 टिप्पणियां:
दीप पर्व शुभ हो |
सुशील जी
पावन पर्व पर आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं
दिग्विजय जी
रचना को सम्मिलित करने हेतु अनेकानेक धन्यवाद
बहुत सुन्दर
ओंकार जी
सपरिवार, पावन पर्व की शुभकामनाएं स्वीकारें
सुन्दर
हरीश जी
सपरिवार शुभकामनाएं स्वीकारें
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