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बुधवार, 27 नवंबर 2024

अजब परिंदे, गजब परिंदे

कभी इनकी बोलियों पर भी ध्यान दीजिए तो पाएंगे कि अलग-अलग परिस्थितियों में इनकी आवाज का सुर भी अलग-अलग होता है ! प्रेमालाप में अलग राग ! सामान्य अवस्था में अलग तान ! गुस्से में अलग सा निनाद और खतरा भांपते ही भीषण चीत्कार ! जो भी है इन नन्हें मासूम परिंदों की अपनी अलग दुनिया भले ही हो पर ये ना हों तो हमारी जिंदगी भी बेरंग हो जाए...................!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

चिड़ियों-पक्षियों के लिए दाना-पानी तो तकरीबन सभी मुहैया करवाते हैं, पर इन अतिथियों की हरकतों पर  नजर कम ही जाती है ! उनकी अपनी दिनचर्या होती है, हमारे अपने क्रियाकलाप ! पर पिछली करोना की महाविपदा में समय की प्रचुरता ने इनकी चुहुलबाजी की ओर भी ध्यान दिलवाया और तभी से इनकी गतविधियां मेरे मनोरंजन का वॉयस बन गई हैं ! कोशिश रहती है कि सुबह-सबेरे कुछ पल इनके लिए भी सुरक्षित रह पाएं !  
 
पेड़ ही पेड़ 
प्रभु की कुछ कृपा ही रही है कि जहां भी मेरा रहना होता आया है, वहां वृक्षों की बहुतायद होती ही है ! इसी का सुखद परिणाम है कि जहां कॉलोनियों में कौवे कहीं नजर तक नहीं आते, वहीं मेरे यहां रोज उनकी आवक दर्ज होती रहती है। आसपास चीलें भी मंडराती दिखती हैं ! कोयल की कूक सदा की तरह सुनाई तो देती है, मोहतरमा खुद नहीं दिखतीं ! एक बार तो पता नहीं कहां से एक मोर भी भटकता हुआ आ गया था। पर चिंताजनक बात यह है कि हमारी प्यारी छुटकी सी गौरैया अब दिखाई नहीं पड़ती ! उसका अस्तित्व खतरे में पड़ा हुआ है ! खैर बात मौजूदा मेहमानों की हो रही थी, जिनकी थोड़ी-थोड़ी पहचान भी होने लगी है। इनमें मेरे यहां प्रसाद ग्रहण करने वालों में दो जोड़ी कौवे, मैना के दो युगल, दस-पंद्रह कबूतर, ढ़ेर सारे तोते तो तक़रीबन नियमित हैं ! कभी-कभी भूले-भटके दर्शन देने वालों में बया, नीलकंठ, फुदकी, बुलबुल और भी पता नहीं कौन-कौन, इक्का-दुक्का, मेरे लिए अजनबी, अपना हिस्सा ले फुर्र हो जाते हैं ! 
  
कुछ ही समय पहले इनकी ऐसी धमा-चौकड़ी होती थी, अब खोजे नहीं मिलतीं 
कौवे, जिन्हें शायद ही कोई पसंद करता हो, मुझे बहुत ही नफासत-पसंद लगे ! वे चुपचाप आकर अपने भोजन के पास बैठते हैं, गर्दन घुमा जायजा लेते हैं ! सतर्क रहते हुए जो भी खाना हो, उसका एक हिस्सा अपने पंजे में दबा, थोड़ा-थोड़ा खाना शुरू करते हैं या फिर चोंच में भर उड़न छू ! मेरा मानना है कि चोंच भर कर ले जाने वाली जरूर माँ होगी ! यह जीव कभी भी भोजन को  बिखराता या इधर उधर गिराता नहीं है ! इनके द्वारा पानी भी बड़े सलीके से पिया जाता है ! 

सलीका 
इसके ठीक उलट हमारे कबूतर महाराज हैं ! उन्हें शायद खाद्य के छोटे टुकड़े करने नहीं आते ! एक टुकड़ा चोंच में दबा गर्दन झटक-झटक कर उसे खाने लायक बनाते हैं, इस प्रक्रिया में खाते कम गिराते-बर्बाद ज्यादा करते हैं ! गंदगी फैलाने में भी इनकी अहम भूमिका होती है। एक दूसरे को धकियाते-भगाते भी रहते हैं ! इनका पानी पीने का अंदाज भी कुछ अलग है, चोंच में जरा पानी ले गर्दन ऊपर झटक उसे निगलते हैं !   
आज नो झगड़ा 
मैना अपने में मस्त रहती हैं ! मुख्य ढेर के अलावा बेझिझक इधर-उधर घूमते हुए, गिरे हुए कण भी चुग लेती हैं ! हर बार अपना ही घर समझ यह पाखी जोड़े में ही आता है। उपरोक्त सारे पक्षी जितने शान्ति प्रिय लगते हैं, तोते उतना ही शोर मचाते हैं ! हर समय चीखते-चिल्लाते इधर-उधर मंडराते हैं ! उनको कुछ खा कर भागने की भी बहुत जल्दी रहती है ! उनको पानी पीते नहीं देख पाया हूँ कभी ! जो भी हो पर होते बहुत सुन्दर हैं, प्रकृति की एक अद्भुत कलाकारी ! इन्हीं के बीच दौड़ती-भागती सदा व्यस्त रहने वाली गिलहरी का तो कहना ही क्या, उसके तो अपने ही जलवे होते हैं !    
मस्तमौला 
एक बात जो सबसे ज्यादा चकित करती है वह है इन सारे पक्षियों का आपसी ताल-मेल ! कभी-कभार छोड़, कोई भी किसी दूसरी प्रजाति के साथ छीना-झपटी या धक्का-मुक्की करते नहीं दिखता ! बिना किसी को हैरान-परेशान किए धैर्य पूर्वक अपनी बारी का इन्तजार कर अपना हिस्सा प्राप्त करते हैं ! उनकी प्यारी हरकतें, प्रयास, चुहल से एक हल्केपन का एहसास होने लगता है। तबियत तनाव मुक्त हो जाती है !
अपनी बारी का इन्तजार 
अब ऐसा है कि जब ये जीव आपके आस-पास रहते, मंडराते हैं तो भोजन के अलावा अपनी और भी जरूरतें यहीं से तो पूरी करेंगे ! इसलिए इनका जब घोंसला बनाने का समय आता है तो कुछ घरेलू चीजों पर आफत आ जाती है ! झाड़ू के तिनके, चिक के कपड़े का धागा, कहीं से झांकती रूई, पौधों की सूखी डंडियां, ऊन के टुकड़े, पालीथीन के छोटे टुकड़े और ना जाने क्या-क्या, जो इनको अपने मतलब लायक लगता है उसे साधिकार उठा ले जाते हैं ! यह सारा प्रयोजन किसी छोटे बच्चे की शैतानी की तरह होता है, जो शरारत करते समय लगातार आपकी प्रतिक्रिया का भी अंदाज लगाता रहता है !
हीरामन 
कभी इनकी बोलियों पर भी ध्यान दीजिए तो पाएंगे कि अलग-अलग परिस्थितियों में इनकी आवाज का सुर भी अलग-अलग होता है ! प्रेमालाप में अलग राग ! सामान्य अवस्था में अलग तान ! गुस्से में अलग सा निनाद और खतरा भांपते ही भीषण चीत्कार ! जो भी है इन नन्हें मासूम परिंदों की अपनी अलग दुनिया भले ही हो पर ये ना हों तो हमारी जिंदगी भी बेरंग हो जाए !   

गुरुवार, 11 मार्च 2021

लॉक-डाउन के मेरे मासूम साथी

आश्चर्य इस बात का रहा कि ये सारे पक्षी जोड़े में ही आते हैं और पाबंद इतने कि कभी-कभार छोड़, किसी ने भी कभी भी दूसरी प्रजाति के साथ छीना-झपटी का मौका नहीं आने दिया ! एक दूसरे में दखलंदाजी नहीं की ! जैसे जंगल में सरोवर का पानी पीने जानवर क्रम से आते हैं ठीक वैसे ही, बिना दूसरे को हैरान-परेशान किए। उनके आने से एक जीवंतता सी महसूस होने लगती है। उनकी हरकतों, प्रयासों, चुहल से एक हल्केपन का एहसास होने लगता है। तबियत तनाव मुक्त हो जाती है..............!!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

संसार में मानवों के इतर भी एक विशाल दुनिया है। उसमें आए दिन बदलाव भी होते रहते हैं। पर जिस पर हमारा ध्यान कम ही जाता है और कुछ का तो पता ही नहीं चल पाता कि कब क्या हो गया ! जैसे दो-तीन साल पहले तक हमारे इलाके में काफी गौरैया दिखा करती थीं पर आज बड़ी मुश्किल से नजर आती हैं ! अलबत्ता कबूतरों की तादाद बढ़ गई है। इनके साथ ही तोते भी अच्छी-खासी संख्या में हैं ! पर सबसे अहम् और अच्छी बात कि कभी लुप्तप्राय कौए फिर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने लगे हैं ! इनके अलावा कभी-कभार, इक्का-दुक्का, जाने-अनजाने अन्य पक्षियों की आवाजें भी सुनने को मिल जाती हैं। भले ही कोरोना के प्रकोप ने कहर ढाया हो पर उसके कारण ही हमारी हलचलों में कमी होने के कारण, सुधरे वातावरण के चलते ही इन परिंदों को देखने, उनके संपर्क में आने का सुख भी उपलब्ध हो पाया है। 


हमारे घर के नजदीक ही एक बिल्ली-प्रेमी घर है, जहां आठ-दस बिल्लियां पलती हैं। अब जाहिर है वे घर में कैद हो कर तो रहेंगी नहीं, सो उनका इधर-उधर अबाध विचरण होता रहता है ! उन्हीं के आतंक के कारण हमने छत पर परिंदों की खातिर चुग्गा-पानी रखना बंद कर दिया था। अपने सामने ही जो थोड़ा-बहुत हो पाता था, उनके लिए कुछ उपलब्ध करवा दिया जाता था। तभी लॉक-डाउन आ गया ! सभी अपने-अपने घरों में नजरबंद हो गए ! तभी एक दिन अचानक ध्यान गया कि आँगन में अक्सर एक मैना का जोड़ा घूमते-चुगते दिखने लगा है। उनके लिए कुछ वहीं बिखेरा जाने लगा ! कुछ दिनों बाद उनकी संख्या तीन हुई, पर कुछ ही दिनों के लिए स्थाई मेहमान दो ही रहे ! एक दिन दो कबूतर भी पधारे। बढ़ती आमद देख, दीवाल पर एक कटोरे में चुग्गा-दाना रख दिया गया, ताकि वे नजरों के सामने, बिना किसी अप्रत्याशित जानलेवा हमले से सुरक्षित रह अपनी क्षुधापूर्ति कर सकें !  



धीरे-धीरे मेहमानों की संख्या में बढ़ोत्तरी होती गई। पहले मैना का जोड़ा आया ! फिर कबूतर का ! फिर दो तोते और फिर दो कौए ! आश्चर्य इस बात का रहा कि ये सारे पक्षी जोड़े में ही आए और पाबंद इतने कि कभी-कभार को छोड़ कभी भी दूसरी प्रजाति के साथ छीना-झपटी का मौका नहीं आने दिया !  एक दूसरे में दखलंदाजी नहीं की ! जैसे जंगल में सरोवर का पानी पीने जानवर क्रम से आते हैं ठीक वैसे ही, बिना दूसरे को हैरान-परेशान किए। उनके आने से एक जीवंतता सी महसूस होने लगती है। उनकी हरकतों, प्रयासों, चुहल से एक हल्केपन का एहसास होने लगता है। तबियत तनाव मुक्त हो जाती है। 
अपनी बारी आने के इंतजार में कौवा 

इतने दिनों के इनके साथ से इनकी आदतें, इनके खाने का अंदाज, खाते समय की सतर्कता सब धीरे-धीरे समझ में आने लगी हैं। जैसे की मैना खिलंदड़ी स्वभाव की होती है ! टिक कर नहीं खाती ! खाते-खाते कभी-कभी कुछ आवाज भी करती है ! ऊपर खाते हुए कुछ गिर जाता है तो नीचे आ चुगना शुरू कर देती है ! एक बार में ज्यादा नहीं खाती। कबूतर मस्त-मौला लगता है ! संगिनी खाती है तो कभी-कभी गर्दन फुला अलग खड़ा देखता रहता है ! खाता कम है, गिराता ज्यादा है ! औरों की बनिस्पत देर तक खाता है ! शायद खुराक ज्यादा होती हो ! कौवा झटके से आ कुछ खा, कुछ दबा झट से उड़ जाता है ! बेहद चौकन्ना रहता है। मिट्ठू मियाँ की बात ही अलग है। कम आते हैं, हरी मिर्ची का लालच देने के बावजूद ! टिंटियाते भी खूब हैं। पर उनसे ही सबसे ज्यादा रौनक लगती है।  


अब जब सब कुछ नॉर्मल होने की राह पर है। तब भी मेरे इन मासूम साथियों का आना बदस्तूर जारी है। हालांकि हमारा आपस में दोस्ताना संबंध तो स्थापित नहीं हो पाया है, फिर भी अच्छा लगता है इनका आना ! इंतजार रहने लगा है इनका ! बदलते मौसम के साथ ही इनका समय भी बदल रहा है अब दिन भर में कभी भी की जगह सुबह व शाम का ही समय इन्हें अपने अनुकूल लगने लगा है। आने वाली गर्मी को देख इनके भोजन की व्यवस्था भी किसी माकूल जगह पर ही करनी पड़ेगी ! देखें कैसे क्या हो पाता है.....! 

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