आश्चर्य इस बात का रहा कि ये सारे पक्षी जोड़े में ही आते हैं और पाबंद इतने कि कभी-कभार छोड़, किसी ने भी कभी भी दूसरी प्रजाति के साथ छीना-झपटी का मौका नहीं आने दिया ! एक दूसरे में दखलंदाजी नहीं की ! जैसे जंगल में सरोवर का पानी पीने जानवर क्रम से आते हैं ठीक वैसे ही, बिना दूसरे को हैरान-परेशान किए। उनके आने से एक जीवंतता सी महसूस होने लगती है। उनकी हरकतों, प्रयासों, चुहल से एक हल्केपन का एहसास होने लगता है। तबियत तनाव मुक्त हो जाती है..............!!
#हिन्दी_ब्लागिंग
संसार में मानवों के इतर भी एक विशाल दुनिया है। उसमें आए दिन बदलाव भी होते रहते हैं। पर जिस पर हमारा ध्यान कम ही जाता है और कुछ का तो पता ही नहीं चल पाता कि कब क्या हो गया ! जैसे दो-तीन साल पहले तक हमारे इलाके में काफी गौरैया दिखा करती थीं पर आज बड़ी मुश्किल से नजर आती हैं ! अलबत्ता कबूतरों की तादाद बढ़ गई है। इनके साथ ही तोते भी अच्छी-खासी संख्या में हैं ! पर सबसे अहम् और अच्छी बात कि कभी लुप्तप्राय कौए फिर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने लगे हैं ! इनके अलावा कभी-कभार, इक्का-दुक्का, जाने-अनजाने अन्य पक्षियों की आवाजें भी सुनने को मिल जाती हैं। भले ही कोरोना के प्रकोप ने कहर ढाया हो पर उसके कारण ही हमारी हलचलों में कमी होने के कारण, सुधरे वातावरण के चलते ही इन परिंदों को देखने, उनके संपर्क में आने का सुख भी उपलब्ध हो पाया है।
हमारे घर के नजदीक ही एक बिल्ली-प्रेमी घर है, जहां आठ-दस बिल्लियां पलती हैं। अब जाहिर है वे घर में कैद हो कर तो रहेंगी नहीं, सो उनका इधर-उधर अबाध विचरण होता रहता है ! उन्हीं के आतंक के कारण हमने छत पर परिंदों की खातिर चुग्गा-पानी रखना बंद कर दिया था। अपने सामने ही जो थोड़ा-बहुत हो पाता था, उनके लिए कुछ उपलब्ध करवा दिया जाता था। तभी लॉक-डाउन आ गया ! सभी अपने-अपने घरों में नजरबंद हो गए ! तभी एक दिन अचानक ध्यान गया कि आँगन में अक्सर एक मैना का जोड़ा घूमते-चुगते दिखने लगा है। उनके लिए कुछ वहीं बिखेरा जाने लगा ! कुछ दिनों बाद उनकी संख्या तीन हुई, पर कुछ ही दिनों के लिए स्थाई मेहमान दो ही रहे ! एक दिन दो कबूतर भी पधारे। बढ़ती आमद देख, दीवाल पर एक कटोरे में चुग्गा-दाना रख दिया गया, ताकि वे नजरों के सामने, बिना किसी अप्रत्याशित जानलेवा हमले से सुरक्षित रह अपनी क्षुधापूर्ति कर सकें !
अपनी बारी आने के इंतजार में कौवा |
इतने दिनों के इनके साथ से इनकी आदतें, इनके खाने का अंदाज, खाते समय की सतर्कता सब धीरे-धीरे समझ में आने लगी हैं। जैसे की मैना खिलंदड़ी स्वभाव की होती है ! टिक कर नहीं खाती ! खाते-खाते कभी-कभी कुछ आवाज भी करती है ! ऊपर खाते हुए कुछ गिर जाता है तो नीचे आ चुगना शुरू कर देती है ! एक बार में ज्यादा नहीं खाती। कबूतर मस्त-मौला लगता है ! संगिनी खाती है तो कभी-कभी गर्दन फुला अलग खड़ा देखता रहता है ! खाता कम है, गिराता ज्यादा है ! औरों की बनिस्पत देर तक खाता है ! शायद खुराक ज्यादा होती हो ! कौवा झटके से आ कुछ खा, कुछ दबा झट से उड़ जाता है ! बेहद चौकन्ना रहता है। मिट्ठू मियाँ की बात ही अलग है। कम आते हैं, हरी मिर्ची का लालच देने के बावजूद ! टिंटियाते भी खूब हैं। पर उनसे ही सबसे ज्यादा रौनक लगती है।
अब जब सब कुछ नॉर्मल होने की राह पर है। तब भी मेरे इन मासूम साथियों का आना बदस्तूर जारी है। हालांकि हमारा आपस में दोस्ताना संबंध तो स्थापित नहीं हो पाया है, फिर भी अच्छा लगता है इनका आना ! इंतजार रहने लगा है इनका ! बदलते मौसम के साथ ही इनका समय भी बदल रहा है अब दिन भर में कभी भी की जगह सुबह व शाम का ही समय इन्हें अपने अनुकूल लगने लगा है। आने वाली गर्मी को देख इनके भोजन की व्यवस्था भी किसी माकूल जगह पर ही करनी पड़ेगी ! देखें कैसे क्या हो पाता है.....!
35 टिप्पणियां:
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १२ मार्च २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
श्वेता जी
सम्मिलित कर मान देने हेतु अनेकानेक धन्यवाद
मीना जी
चर्चा में रचना को सम्मिलित करने हेतु हार्दिक आभार
बहुत सुन्दर।
--
महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ।
शास्त्री जी
हार्दिक आभार
शास्त्री जी
हार्दिक आभार! आपको भी सपरिवार शुभकामनाएं
दिव्या जी
मान देने हेतु हार्दिक धन्यवाद! शुभ पर्व की अनेकानेक शुभकामनाएं नमस्ते शुभकामनाएं
बहुत सुंदर विवरण
बहुत बढ़िया🌻
कदम जी
बहुत-बहुत धन्यवाद
शिवम जी
आपकी प्रतिक्रियाओं से ही हौसला बना रहता है
चिड़ियों के संसार का बड़ी बारीकी से अध्ययन किया है आपने,ज्ञानवर्धक लेख, सादर नमन आपको
गगन जी, मुझे लगता है, जो मैं न लिख पाई आपने लिख दिया। बहुत रोचकता और आत्मीयता से आपने मूक पक्षियों के साथ नाता जोडा है। मुझे भी लॉक डाउन में अपने घर के लंबे चौड़े खुले आँगन में एक बात बराबर महसूस होती रही कि इस अवधि में मूक प्राणियों ने इंसानों के घरों में छुप जाने का खूब जश्न मनाया और वे दुगने जोश के साथ दुनिया में धूम मचाते सक्रिय रहे। मैंने हरे, नीले, पीले रंग की चिड़ियाँ अपने आँगन में देखी। मुझे लग रहा था कि पक्षी देश ,काल की सीमाओं को भूल अपने कलरव से जीवन का सबसे सुंदर संदेश दे रहे हों कि जो भी है यही एक पल है जीने के लिए।
उनका स्वछंद विचरण मन में बराबर आनंद भरता रहा।
अच्छा लगा आपके इस भोले भाले दोस्तों के बारे में पढ़कर। हार्दिक शुभकामनायें और आभार इस सुंदर, भावपूर्ण लेख के लिए🙏🙏
कामिनी जी
अनायास ही सब कुछ सामने आ मन मोह गया
रेणु जी
ये तो सदा ही हमारे आस-पास व साथ बने रहते हैं! हम ही नहीं देख-समझ पाते कायनात की इन अनुपम कृतियों को
ऐसे संगी साथी बहुत सुकून पहुँचाते मन को ।
।बहुत अच्छा लिखा है ।
कितने सुन्दर भावो को बिम्बो के माध्यम से सहेजा है। सुन्दर प्रस्तुति।
बहुत प्यारा और मनमोहक लेख ..मैने भी लॉकडाउन में कुछ ऐसे ही काम किए और समय अच्छा बीत गया.
संगीता जी
बहुत-बहुत आभार
संजय जी
आपकी टिप्पणियों से ही मनोबल बढता है! हार्दिक आभार
जिज्ञासा जी
कोरोना कुछ भला भी कर गया है।
सदा स्वागत है आपका
बहुत ही सुन्दर सृजन - - साधुवाद सह।
बहुत ही सुन्दर
शांतनु जी
अनेकानेक धन्यवाद
ओंकार जी
सदा स्वागत है, आपका
मुझे तो लगता है ये पक्षी प्रकृति के सुन्दर-सजीव खिलौने हैं,हमारे परिवार का विस्तार .
प्रतिभा जी
बिल्कुल सही ! साथ ही हमारे जीवन का अविभाज्य अंग
वाह! बहुत सुंदर कोमल हृदय के कोमल उद्गार।
पक्षियों के साथ समय.. बहुत शानदार रचना।
कुसुम जी
प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार
वाह बेहतरीन सृजन
मनोज जी
आपकी प्रतिक्रिया से खून बढ गया! तहे दिल से आभार
बहुत ही गहरे विचार और अनुभूति से परिपूर्ण लेखनी है...। आदरणीय गगन जी यदि संभव हो तो मैं इसे अपनी मासिक पत्रिका प्रकृति दर्शन के अगले अंक में लेना चाहता हूं...। बेहतर समझें तो मुझे मेल पर फोटोग्राफ, संक्षिप्त परिचय और आलेख संबंधित फोटोग्राफ मेल पर उपलब्ध करवा दीजिएगा। मेल आईडी नीचे दे रहा हूं
editorpd17@gmail.com
संदीप जी
"कुछ अलग सा" पर सदा स्वागत है,आपका!
सुंदर चित्रों से मनभावन बन गई है पोस्ट... जानकारी भी उपयोगी है।
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
वर्षा जी
अनेकानेक धन्यवाद
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