सोमवार, 8 मार्च 2021

आधा विश्व हो तुम !!

एक ऐसे समाज को, जो खुद आबादी का आधा ही हिस्सा है, किसने हक दिया महिलाओं के लिए साल में एक दिन निश्चित करने का ? कोई पूछने वाला नहीं है कि क्यों भाई संसार की आधी आबादी के लिए ऐसा क्यों ? क्या ये कोई विलुप्तप्राय प्रजाति है  ? यदि ऐसा है तो पुरुषों के नाम क्यों नहीं कोई दिन निश्चित किया जाता ? पर सभी खुश हैं ! विडंबना यह है कि वे और भी आह्लादित हैं जिनके नाम पर ऐसा दिन मनाया जा रहा होता है ! समाज के इस महत्वपूर्ण हिस्से को इतना चौंधिया दिया गया है कि कुछेक को छोड़ वे अपने प्रति होते अन्याय, उपेक्षा को न कभी देख पाती हैं और न कभी महसूस ही कर पाती हैं........सामयिक पर पुरानी पोस्ट, कुछ फेर-बदल के साथ 

#हिन्दी_ब्लागिंग 

आज आठ मार्च है, महिलाओं को समर्पित एक दिन ! उन महिलाओं को जो विश्व का आधा हिस्सा हैं ! उन्हें बराबरी का एहसास करवाने, अपने हक़ के लिए जागरूक होने का दिन। पर सोचने की बात है कि क्या संसार का यह आधा भाग इतना कमजोर है कि उस पर  किसी विलुप्त होती  नस्ल की तरह ध्यान  दिया                                                                                                                                  
जाए ! उससे भी बड़ी बात, क्या सचमुच पुरुष केंद्रित समाज महिलाओं को बराबरी का हकदार मानता है ? क्या वह दिल से चाहता है कि ऐसा हो, या सिर्फ उन्हें मुगालते में रखने का नाटक है ?  क्या यह पुरुषों की ही सोच नहीं है कि महिलाओं को लुभाने के लिए साल में एक दिन उनको समर्पित कर दिया जाए ? वैसे ऐसे समाज को, जो खुद आबादी का आधा ही हिस्सा है उसे किसने हक दिया महिलाओं के लिए साल में एक दिन निश्चित करने का ? कोई पूछने वाला नहीं है कि क्यों भाई संसार की आधी आबादी के लिए ऐसा क्यों ? क्या वे कोई विलुप्तप्राय प्रजाति है ? यदि ऐसा है तो पुरुषों के नाम क्यों नहीं कोई दिन निश्चित किया जाता ? पर सभी खुश हैं ! विडंबना है कि वे तो और भी आह्लादित हैं जिनके नाम पर ऐसा दिन मनाया जा रहा होता है और इसे मनाने में तथाकथित सभ्रांत घरानों की महिलाएं बढ-चढ कर हिस्सा लेती हैं।
आज जरूरत है, महिलाओं को अपनी शक्ति को आंकने की, अपने बल को पहचानने की, अपनी क्षमता को पूरी तौर से उपयोग में लाने की, अपने सोए हुए जमीर को जगाने की और यह सब उसे खुद ही करना है ! आसान नहीं है यह सब, पर करना तो है ही ! 
आज जरूरत है सोच बदलने की। इस तरह की मानसिकता की जड पर प्रहार करने की। सबसे बडी बात महिलाओं को खुद अपना हक हासिल करने की चाह पैदा करने की। कभी हनुमान जी को उनकी शक्तियों की याद दिलाने में जामवंत ने सहायता की थी ! पर आज कोई भी ऐसा करने वाला नहीं है ! उन्हें खुद ही प्रयास करने होंगे, खुद ही  अपनी लड़ाई लड़नी होगी, खुद को ही सक्षम-सशक्त बनाना होगा ! हाँ,   
कुछ ज़रा सी बर्फ टूटी तो है. पर गति बहुत धीमी है, ऐसे में तो वर्षों-वर्ष लग जाएंगे ! क्योंकि यह इतना आसान नहीं है ! हजारों सालों की मानसिक गुलामी की जंजीरों को तोडने के लिए अद्मय, दुर्धष संकल्प और जीवट की जरूरत है। उन प्रलोभनों को ठुकराने के हौसले की जरूरत है जो आए दिन उन्हें परोस कर अपना मतलब साधा जाता है। 

पहले तो उन्हें यह निश्चित करना होगा कि उनका लक्ष्य क्या है ! उन्हें क्या चाहिए ! सिर्फ मनचाहे कपडे पहनने और कहीं भी कुछ भी बोल सकने की छूट, ध्येय नहीं होना चाहिए है, वह भी सिर्फ बड़े शहरों में ! दूर-दराज के गांवों-कस्बों में आज भी कुछ ज्यादा नहीं बदला है । आश्चर्य होता है,  इस और  ध्यान ना देकर इस 
दिन कुछ, अपने आपको प्रबुद्ध, आधुनिक व खुद को सारी महिलाओं का प्रतिनिधि मान बैठी तथाकथित समाज सेविकाएं जो खुद किसी महिला का सरे-आम हक मारे बैठी होती हैं, मीडिया के वातानुकूलित कक्षों में कवरेज-नाम-दाम पाने के लिए, कुछ ज्यादा ही मुखर हो जाती हैं। उन्हें सिर्फ अपने  से मतलब होता है ! सोचने की बात है, क्या सिर्फ कुछ, अपने को आधुनिक, प्रगतिशील या बुद्धिजीवी होने का दिखावा करने वाली आत्मश्लाघि महिलाओं द्वारा चली आ रही परंपराओं के विरुद्ध जाने, समाज की मान्यताएं तोड़ने, पुरुषों की कुरीतियों को अपनाने भर से महिलाओं को बराबरी का दर्जा मिल जाएगा ! उन्हें उत्पीड़न से मुक्ति मिल जाएगी ! उनकी वर्जनाएं ख़त्म हो जाएंगी ! या फिर वर्षों से चले आ रहे षड्यंत्र के दलदल में और भी गहरे तक धसतीं चली जाएगीं !      

आज पुरुष केंद्रित समाज ने अपने इस महत्वपूर्ण हिस्से को इतना चौंधिया दिया है कि कुछेक को छोड़, वे अपने प्रति होते अन्याय, उपेक्षा को न कभी देख पाती हैं और न कभी महसूस ही कर पाती हैं। दोष उनका भी नहीं होता, आबादी का दूसरा हिस्सा इतना कुटिल है कि वह सब अपनी इच्छानुसार करता और करवाता है। फिर उपर से विडंबना यह कि वह एहसास भी नहीं होने देता कि तुम चाहे कितना भी चीख-चिल्ला लो, हम तुम्हें उतना ही देगें जितना हम चाहेंगे। 
सबसे अहम् जरूरत है, महिलाओं को अपनी शक्ति को आंकने की, अपने बल को पहचानने की, अपनी क्षमता को पूरी तौर से उपयोग में लाने की, अपने सोए हुए जमीर को जगाने की....और यह सब उसे खुद ही करना है ! आसान नहीं है यह सब, पर करना तो है ही.......! वैसे समय बदल रहा है ! समाज बदल रहा है ! जागरूकता आ रही है ! पर जैसा कि ऊपर कहा, रफ़्तार बहुत धीमी है, ख़ास कर मेट्रो या बड़े शहरों को छोड़ अभी भी परिवर्तन की बहुत... बहुत गुंजाइश है ! 

29 टिप्‍पणियां:

दिव्या अग्रवाल ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
दिव्या अग्रवाल ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
दिव्या अग्रवाल ने कहा…

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 08 मार्च 2021 को साझा की गई है......"सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" परआप भी आइएगा....धन्यवाद!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर।
अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

दिव्या जी
सम्मिलित करने हेतु अनेकानेक धन्यवाद

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शास्त्री जी
हार्दिक आभार

दिव्या अग्रवाल ने कहा…

लिंक में गलती है
आपकी लिखी रचना आज सोमवार 8 मार्च 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी सादर आमंत्रित हैं आइएगा....धन्यवाद!

Kamini Sinha ने कहा…

अपने आपको प्रबुद्ध, आधुनिक व खुद को सारी महिलाओं का प्रतिनिधि मान बैठी तथाकथित समाज सेविकाएं जो खुद किसी महिला का सरे-आम हक मारे बैठी होती हैं, मीडिया के वातानुकूलित कक्षों में कवरेज-नाम-दाम पाने के लिए, कुछ ज्यादा ही मुखर हो जाती हैं। उन्हें सिर्फ अपने से मतलब होता है ! सोचने की बात है, क्या सिर्फ कुछ, अपने को आधुनिक, प्रगतिशील या बुद्धिजीवी होने का दिखावा करने वाली आत्मश्लाघि महिलाओं द्वारा चली आ रही परंपराओं के विरुद्ध जाने, समाज की मान्यताएं तोड़ने, पुरुषों की कुरीतियों को अपनाने भर से महिलाओं को बराबरी का दर्जा मिल जाएगा ! उन्हें उत्पीड़न से मुक्ति मिल जाएगी ! उनकी वर्जनाएं ख़त्म हो जाएंगी !
ये एक कड़वा सत्य है और इस पर सोचने की जरूरत है। लेकिन हमारी उदारता कहे या संतुष्टी हम एक दिन पाकर भी बेहद खुश है।

या फिर वर्षों से चले आ रहे षड्यंत्र के दलदल में और भी गहरे तक धसतीं चली जाएगीं !

बेहद गंभीर प्रश्न है ये।

और यकीनन उत्तर यही है कि -हमें हमें अपना लक्ष्य तय करना होगा
"यह सब उसे खुद ही करना है ! आसान नहीं है यह सब, पर करना तो है ही !"


"सिर्फ मनचाहे कपडे पहनने और कहीं भी कुछ भी बोल सकने की छूट, ध्येय नहीं होना चाहिए है"
ये आज़ादी मिलने से हम खुद में बदलाव नहीं ला सकते। लेकिन हमारी उदारता कहे या संतुष्टी हम एक दिन पाकर भी बेहद खुश है।
बहुत ही प्रभावशाली एवं विचारणीय लेख,जो आपने एक पुरुष नजरिये से लिखा है मगर इससे मैं तो पूरी तरह सहमत हूँ।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

दिव्या जी
फिर एक बार हार्दिक धन्यवाद

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कामिनी जी
सच कहूं तो ऐसे दिन बडे बेमानी लगते हैं

जिज्ञासा सिंह ने कहा…


आज जरूरत है, महिलाओं को अपनी शक्ति को आंकने की, अपने बल को पहचानने की, अपनी क्षमता को पूरी तौर से उपयोग में लाने की, अपने सोए हुए जमीर को जगाने की और यह सब उसे खुद ही करना है ! आसान नहीं है यह सब, पर करना तो है ही ! ..आपका लेख लोगो को जागृत करनेवाला काम करेगा ..बहुत हो चिंतनीय विषय है..आपकी उत्कृष्ट भावनाओं का आदर करती हूं..सादर नमन..

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

जिज्ञासा जी
आपका सदा स्वागत है

Jyoti Dehliwal ने कहा…

बहुत ही प्रभावशाली एवं विचारणीय आलेख।

कविता रावत ने कहा…

आज जरूरत है, महिलाओं को अपनी शक्ति को आंकने की, अपने बल को पहचानने की, अपनी क्षमता को पूरी तौर से उपयोग में लाने की, अपने सोए हुए जमीर को जगाने की और यह सब उसे खुद ही करना है ! आसान नहीं है यह सब, पर करना तो है ही ! आज जरूरत है सोच बदलने की!
बिल्कुल सहमत आपके विचारों से ,

सदियों से जमीं जड़ें धीरे-धीरे उखड़ेंगी जरूर एक दिन और ये सब नारी को
बहुत सटीक सामयिक जागरूक लेख प्रस्तुति हेतु आपका धन्यवाद!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

कितना ही महिला दिवस मना लिया जाए लेकिन जब तक नारी के प्रति सोच नहीं बदलेगी तब तक बहुत ज्यादा कुछ नहीं बदलने वाला ।
सार्थक लेख ।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ज्योति जी
अनेकानेक धन्यवाद

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कविता जी
खुद को खुद ही सक्षम बनाना होगा! बिना किसी से अपेक्षा रखे!

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

संगीता जी
बिल्कुल! ऐसे दिन ही बेमानी हैं! वषों से तो रखते आ रहे हैं, मदर दिवस, हिंदी दिवस, पर्यावरण....आदि आदि आदि
हश्र तो सबके सामने है

Kamini Sinha ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Kamini Sinha ने कहा…

सादर नमस्कार ,

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (10-3-21) को "नई गंगा बहाना चाहता हूँ" (चर्चा अंक- 4,001) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कामिनी जी
सम्मिलित कर मान देने हेतु अनेकानेक धन्यवाद

आलोक सिन्हा ने कहा…

बहुत बहुत सुन्दर

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

आलोक जी
अनेकानेक धन्यवाद

Sudha Devrani ने कहा…

सही कहा आपने सिर्फ एक दिन महिला दिवस मनाने से क्या होगा महिलाओं को अपने हक अपने अधिकारों के लिए स्वयं ही लड़ना होगा ...जागरूक होना होगा
बहुत सटीक सार्थक एवं सारगर्भित लेख।

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

महलाओं को जागरूक होने के साथ आज की अंधी दौड़ से भी अपने को बचाना होगा.

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सुधा जी
सब कुछ होता है बस वही नहीं होता जिसकी जरूरत होती है

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

प्रतिभा जी
बिल्कुल! खुद ही कमान संभालनी होगी

कदम शर्मा ने कहा…

गंभीर पर सुंदर रचना

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कदम जी
हौसलाअफजाई के लिए शुक्रिया

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