बुधवार, 24 जून 2009

वृक्ष सिखाता जीवन-दर्शन

वर्षों पहले एक छोटे से बीज ने धरती में पनाह ली। धरा ने भी उसे अपनी ममतामयी गोद में समेट लिया। उपयुक्त माहौल पाकर बीज ने अपनी जड़ें जमीन में फैला कर अपनी पकड़ मजबूत कर एक दिन अपना सर जमीन के बाहर निकाला। उसके सामने विशाल संसार अपनी हजारों अच्छाईयों और बुराईयों के साथ पसरा पड़ा था। उस छोटे से कोमल, नाजुक, हरे पौधे ने चारों ओर नज़र घुमा कर देखा फिर सर उठा कर आसमान की उंचाईयों की तरफ अपनी नज़र फिराई और मन ही मन उस उंचाई को नापने का दृढ निश्चय कर लिया।

समय बीतता गया। धरती के देश आपस में लड़ते-भिड़ते रहे। उनकी आपसी दुश्मनी से वातावरण विषाक्त होता रहा। एक दूसरे को नीचा दिखाने में हजारों लाखों जाने जाती रहीं। पर पौधे ने अपना सफर जारी रखा। विज्ञान तरक्की की राह दिखाता रहा। इंसान अंतरिक्ष की सीमायें लांघने लगा। पौधा भी धीरे धीरे जमीन में अपनी पकड़ और अच्छी तरह जमाते हुए संसार के अच्छे-बुरे बदलाव देखते हुए अपनी मंजिल की ओर अग्रसर होता रहा।
पौधा शुरुआती खतरों से बच कर बड़ा होता गया। अब उसकी छाया में पशु आ कर अपनी थकान मिटाने लगे थे। पक्षियों ने उसकी ड़ालियों की सुरक्षा में अपने नीड़ों को स्थान दे दिया था। कभी-कभी थके हारे स्त्री-पुरुष भी उसकी छांव में गर्मी से राहत पाने आ बैठते थे और सर उठा कर उसकी विशालता उसकी उपादेयता को मुग्ध भाव से देख प्रकृति के शुक्रगुजार हो जाते थे। कभी-कभी इस वृक्ष को देख उन्हें प्रेरणा भी मिलती थी। ऐसा होता भी क्यूं ना?
यह पेड़ ही तो था जो वक्त के अनगिनत थपेड़े खा कर भी अपना सर ऊंचा किये खड़ा था। तूफानों के सामने बहुत बार उसे झुकना जरूर पड़ा पर मुसीबत जाते ही वह दुगनी उम्मीद से अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होता रहा। उसके पैर अपनी जमीन में गहरे तक उतरे रहे पर उसने सदा अपना सर रोशनी और ऊंचाईयों की तरफ बनाये रखा। अति विषम परिस्थितियों में भी उसके अस्तित्व पर शायद इसीलिये आंच नहीं आयी, क्योंकि उसका जन्म ही हुआ था दूसरों की भलाई के लिये, दूसरों को जीवन प्रदान करने के लिये, दूसरों को आश्रय देने के लिये, दूसरों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये। जिसका जीवन ही औरों की भलाई के लिये बना हो उसकी रक्षा करने के लिये तो कायनात भी अपनी पूरी ताकत लगा देती है।

10 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

achhi baat !
anand aaya.............badhaai !

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत शानदार बात कही आपने.

रामराम.

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर बात कही आप ने इस कहानी के माध्यम से,
धन्यवाद

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

बहुत ही सुन्दर तरीके से इस जीवन दर्शन को समझाया आपने........धन्यवाद

P.N. Subramanian ने कहा…

बहुत अच्छा लगा आपके आलेख को पढ़कर. आज फिर हमें अपने पिताश्री की याद आ गयी. वे कभी कभार कवितायेँ भी रचा करते थे, मलयालम में. एक कविता में उन्होंने पेड़ के रूप में धरती पर अवतरित होने कीइच्छा जताई थी.कभी अनुवाद प्रस्तुत करूँगा.

P.N. Subramanian ने कहा…

बहुत अच्छा लगा आपके आलेख को पढ़कर. आज फिर हमें अपने पिताश्री की याद आ गयी. वे कभी कभार कवितायेँ भी रचा करते थे, मलयालम में. एक कविता में उन्होंने पेड़ के रूप में धरती पर अवतरित होने कीइच्छा जताई थी.कभी अनुवाद प्रस्तुत करूँगा.

Udan Tashtari ने कहा…

प्रेरक प्रसंग है.

Himanshu Pandey ने कहा…

सुन्दर प्रविष्टि । सुब्रमण्यम जी से हमारा भी आग्रह कि वे शीघ्र ही कविता पोस्ट करें । हम उत्सुक खड़े हैं ।

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

बहुत ही बढिया...

mkbhardwaj ने कहा…

mene dekha faldaar paid jhukte hain tatha khokhla arand ka paid akarta hai. M K BhardwajGurgaon

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