नासिक के कुंभ के मेले में जो भगदड़ मची थी, उसी में अपनी इस कहानी के पात्र दो गधे दोस्त बिछड़ गये थे। उनमें से एक किसी गांव में पहुंच गया और वहां एक कुम्हार के पास रहने लगा। दूसरा भटकते-भटकते शहर चला गया। वहां एक नट ने उसे आश्रय दिया। वर्षों बीत गये ऐसे ही एक दिन गांव का गधा घूमते हुए बाई चांस शहर जा पहुंचा। वहां उसने एक नट को तमाशा दिखाते देखा तो वह भी भीड़ में घुस गया। तभी उसकी नज़र अपने बिछड़े दोस्त पर पड़ी जो सूख कर कांटा हो गया था। दोनों एक-दूसरे को पहचान कर गले मिले, फिर गांव वाले ने अपने दोस्त की हालत देख पूछा कि यह क्या हालत बना रखी है, कुछ लेते क्यों नहीं, यदि यहां खाना-वाना नहीं मिलता है तो मेरे साथ गांव चलो। मेरी ओर देखो तुमसे बड़ा ही होउंगा पर कितना स्मार्ट लगता हूं। तुम तो जैसे बुढा गये हो। यह सब सुन शहर वाला गधा बोला नहीं दोस्त मैं कहीं नहीं जाऊंगा यहां मेरी जिंदगी संवरने का चांस है। गांव वाले ने कहा, क्या खाक चांस है, जब जिंदगी ही नहीं रहेगी तो क्या संवारोगे? वैसे, बाइ द वे, क्या उम्मीद लगाये बैठे हो ? शहर वाले ने बतलाना शुरु किया कि वह देखो उन दो बल्लीयों पर तनी रस्सी पर जो कन्या चल रही है, वह इस नट की लड़की है। नट रोज खेल शुरु करने के पहले उससे कहता है कि खेल में गड़बड़ी नहीं होनी चाहिये। यदि तू रस्सी से गिर पड़ी, तो याद रख, मैं तेरी शादी इसी गधे से कर दूंगा।
और बस भाई ! मैं इसी आस में यहां पड़ा हूं कि कभी तो किसी दिन---------------
और बस भाई ! मैं इसी आस में यहां पड़ा हूं कि कभी तो किसी दिन---------------
3 टिप्पणियां:
ऐसा ही कुछ हमने लड़कपन में सुना था. एक सरदार हर रोज एक ही फिल्म को देखने जाया करता था. एक सीन में एक गाँव की लड़की नहाने के लिए कपडे उतार रही है. उसी समय एक रेलगाडी गुजरती है. इसलिए वह दृश्य नहीं दिख पाता. सरदार इस आस को लिए रोज पिक्चर देखने जाता है कि कभी तो गाडी लेट होगी.
ha ha ha haaaaaaaaa sahi hai aas lagaye rahiye....
Bechara, insano ki bat ka wiswas kar baitha
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