रविवार, 14 जून 2009

क्या जुड़वाओं में ऐसा संभव है ?

एक खबर ने वर्षों पहले बचपन में देखी एक स्टंट फिल्म की धुंधली सी याद ताजा कर दी। उसमें नायक का दोहरा रोल था। एक को चोट लगती थी तो दुसरे को भी तकलीफ होती थी। एक को दर्द होता था तो दुसरा भी बेचैन हो उठता था। यह खबर भी कुछ वैसी ही है। मध्य-प्रदेश के विदिशा शहर में रहने वाली दो जुड़वां बहनों में अजीबो-गरीब तारतम्य है। एक का नाम चांदनी है और दूसरी का रोशनी। पांचवीं कक्षा में एक साथ पढने वाली दोनों बहनों की पसंद-नापसंद, खान-पान, कपड़े वगैरह की रुचि एक जैसी ही हैं। पर सबसे ज्यादा चौंकाने की बात यह है कि अगर एक के शरीर में दर्द होता है तो दूसरी बहन भी उसे महसूस करती है। एक को जुकाम होता है तो दूसरी की नाक भी बहने लगती है। एक को बुखार आता है तो दूसरी का शरीर भी तपने लगता है। एक को ड़ांट पड़ती है तो दूसरी भी उदास हो जाती है। उनकी मां के अनुसार दो-तीन घटनाएं ऐसी हुई हैं कि यदि उनके सामने ना हुई होतीं तो वह भी विश्वास नहीं करतीं। उन्होंने बताया कि एक बार चांदनी अपने रिश्तेदार के यहां गयी हुई थी वहां उसे उल्टियां होने लगीं तो घर पर रोशनी को भी उबकाई आने लगीं थी। फिर एक बार साइकिल से गिरने पर रोशनी के पैर में मोच आ गयी तो उसी समय चांदनी के भी उसी पैर में दर्द शुरु हो गया। सबसे आश्चर्यजनक बात तो तब हुई जब साईकिल से गिरने पर चांदनी के आगे का दांत टूट गया तो उसी दिन रोशनी को भी ठोड़ी पर उसी जगह चोट लग गयी।
वैसे भी दोनों बहनों में इतनी समानता है कि दोनों को पहचानना बहुत मुश्किल है। रिश्तेदारों की बात जाने दें, जिनसे रोज मिलना नहीं होता है, परन्तु उन्हें रोज पढानेवाली शिक्षिकाएं भी भ्रम में पड़ जाती हैं। बचपन से उनका इलाज करने वाले डा. माहेश्वरी भी बताते हैं कि जब भी इलाज करवाना होता है तो दोनों साथ ही आती हैं। वे बताते हैं कि मैं इन्हें बचपन से देखता आ रहा हूं, दोनों को एक जैसी ही बिमारी या तकलीफ होती है। यह पूछने पर कि दोनों के शरीर में इतना ताल-मेल क्यूं और कैसे है, वे भी इसे विचित्र संयोग कह कर चुप हो जाते हैं। मेडीकल सांईस के अनुसार जुड़वां बच्चों का स्वभाव, बिमारियां, बनावट एक जैसी हो सकती हैं, पर एक को चोट लगने पर दूसरे को भी चोट लगना, वह भी उसी अंग और जगह पर, समझ से परे की बात है।
केरल का एक गांव, कोड़िन्ही, जो अपने 250 से भी ज्यादा जुड़वों के कारण जगत प्रसिद्ध है, जिसका जिक्र कुछ दिनों पहले मैंने अपनी एक पोस्ट किया था, वहां भी ऐसी कोई बात कभी नहीं सुनी गयी कभी। वैसे आज के युग में जब नाम व शोहरत की चाहत में मां-बाप अपने नौनीहालों से कहीं भी कुछ भी ऐंड़-बैंड करवाने से गुरेज नहीं करते तो चोट वाली बातें क्या शक पैदा नहीं करतीं ?

10 टिप्‍पणियां:

अजय कुमार झा ने कहा…

हाँ सर ऐसा मैंने भी पढा है कहीं..और चिकित्सा विज्ञान भी मानता है की कुछ होता तो है ऐसा ही..बढिया जानकारी और दिलचस्प विषय के लिए धन्यवाद.

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

मैंने बहुत पहले गोरा काला फिल्म देखी थी जिसमे राजेन्द्र कुमार के डबल रोल थे . एक को लगता था तो दूसरे को दर्द होता था फिर उसके बाद कई समाचार भी पढें है जुड़वा बच्चो के के सम्बन्ध में . अपने भी रोचक जानकारी दी है .

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

अत्यंत रोचक जानकारी.

रामराम.

P.N. Subramanian ने कहा…

रोचक जानकारी. हमें ऐसे ही दो व्यक्तियों की जानकारी है. एक का नाम था राम लखन तिवारी और दुसरे थे लखन राम तिवारी. दोनों को ही एक ही संस्था में नौकरी मिली, पदोनत्त होकर एक ही पद से सेवानिब्वृत्त हुए और एक ही दिन परलोक भी गए

राज भाटिय़ा ने कहा…

शर्मा जी हमारे यहां जुडवां बच्चे बहुत ज्यादा मिलते है, पहले कभी गोर नही किया, अब कल परसो किसी जुडवा से जरुर पुछुगां, इस सुंदर जानकारी के लिये आप का धन्यवाद

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

जुड़वाँ बच्चों में अक्सर ऐसे भाव पाए जाते हैं।
अपने रोचक जानकारी दी है।
बधाई।

Chetan ने कहा…

ajb hai par gajab hai.

अभिषेक मिश्र ने कहा…

Vakai anutha sanyog hai ye!

Arvind Gaurav ने कहा…

bahut ajeebogareeb ghatna batai aapne....kya vigyan ke anurup iska koi jabab hai agar hai to kripya bataye mujhe intzaar rahega.

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अरविंद जी,
दोनों बच्चियों का ईलाज करनेवाले डाक्टर भी इस सवाल पर चुप लगा जाते हैं। पोस्ट के अंतिम पैरा में मैंने एक शक प्रकट किया है, जो सच नहीं हो तो बेहतर है।

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