मंगलवार, 16 जून 2009

क्या बोतलबंद पानी बेचनेवाली कंपनियां पीने के पानी की कमी बनाए रखना चाहती हैं ?

पानी को लेकर आज चारों ओर लोगों को जागरुक बनाने की मुहीम चलाई जा रही है। इसी संदर्भ में रोज-रोज डरावनी तस्वीरें पेश कर इसके खत्म होने का डर दिखाया जा रहा है। ठीक है, पानी की किल्लत भयावह रूप ले चुकी है। भूजल खिसकते-खिसकते पाताल जा पहुंचा है। पांच-पांच नदियों वाला प्रदेश पंजाब भी इसकी कमी शिद्दत से महसूस कर रहा है। पर यह कोई अचानक आई विपदा नहीं है। हमारी आबादी जब बेहिसाब बढी है तो उसके रहने, खाने, पीने की जरूरतें भी तो साथ आनी ही थीं। अरब से ऊपर की आबादी को आप बिना भोजन-पानी के तो रख नहीं सकते थे। उनके रहने खाने के लिये कुछ तो करना ही था जिसके लिये कुछ न कुछ बलिदान करना ही पड़ना था। सो संसाधनों की कमी लाजिमी थी पर हमें उपलब्ध संसाधनों की कमी का रोना ना रो, उन्हें बढाने की जी तोड़ कोशिश करनी चाहिये, समाज को जागरूक करने के साथ-साथ।
पानी की बात करें तो पृथ्वी पर पीने के पानी की जरूर कमी है, पर पानी का भंड़ार असीमित है। थल को जल ने चारों ओर से घेर रखा है। जरूरत है उसी पानी को पीने के योग्य बनाने की। जब टायलेट का दुषित जल साफ कर दोबारा काम में लाया जा सकता है तो इस अथाह राशी को क्यों नहीं। ऐसा नहीं है कि इस ओर ध्यान नहीं दिया गया पर इस विधि के मंहगी होने के कारण इस पर उतना ध्यान नहीं दिया गया शायद। पर जब आप इस विधि पर होने वाले खर्च और बोतल बंद पानी पर लुटाये गये पैसों की तुलना करेंगे तो चौंक उठेंगे। कितनी अजीब बात है कि नल से मिलने वाले पानी से बोतलबंद पानी करीब 1500 गुना मंहगा होता है। जिसके शुद्ध होने पर भी संदेह है। संसार में अरबों रुपये का बोतल का पानी बिकता है। जिसे रखने के लिये करोड़ों बोतलों की जरूरत पड़ती है। जिनके बनाने के दौरान लाखों टन जहरीली गैसों का उत्सर्जन होता है। एक करोड़ से ज्यादा बोतलें रोज कूड़े में तब्दील हो जाती हैं। यकीन मानिए अरबों रुपये खर्च होते हैं इस बोतलबंद पानी को बनाने तथा हम तक पहुंचाने में। तुलनात्मक रूप से देखा जाए तो समुद्र के पानी को पीने योग्य बनाने में होने वाला खर्च भविष्य को देखते हुए जरा सी भी फिजुलखर्ची नहीं होगी। यह भी तो हो सकता है कि पानी को दूध से भी मंहगा बेचने वाली कंपनियां इस राह में रोड़ा अटकाती हों।
कुछ दिनों पहले कहीं पढा था कि मद्रास में वैज्ञानिकों ने समुद्र के पानी को पीने लायक बनाने में सफलता पा ली है वह भी एक रुपये प्रति लीटर के खर्च पर (खेद है मैं उस खबर को संभाल कर रख नहीं पाया)। पर कयी रेगिस्तानों से घिरे देशों में इस तरह का पानी काम में लाया जाता है।
मेरा तात्पर्य यह है कि मुसीबत तो अपना डरावना चेहरा लिये सामने खड़ी है। उससे मुकाबला करने का आवाहन होना चाहिये नकि उससे लोगों को भयभीत करने का। दुनिया में यदि दसियों हजार लोग विनाश लीला पर तुले हैं तो उनकी बजाय उन सैंकड़ों लोगों के परिश्रम को सामने लाने की मुहिम छेड़ी जानी चाहिये जो पृथ्वी तथा पृथ्वीवासियों को बचाने के लिये दिन-रात एक किये हुए हैं।

12 टिप्‍पणियां:

गिरिजेश राव, Girijesh Rao ने कहा…

उम्दा लेख।
वैसे इजराइल ने समुद्र के पानी को पीने योग्य बनाने के लिए अच्छा काम किया है। लेकिन जब मैंने पढ़ा था तो प्रक्रिया बहुत महँगी थी । अब जाने क्या हो? इस पर जानकारी इकठ्ठी करनी होगी। मद्रास वाली खबर उत्साह जनक है तो बोतल बन्द पानी वाली कम्पनियों के षड़्यंत्र वाली बात अगर है तो गम्भीर है।

इच्छा शक्ति की कमी है, नहीं तो रास्ते तो हैं ही।

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

बहुत अच्छा मुद्दा उठाया है आपने....

Unknown ने कहा…

is mudde ko manavta k hit me utha kar aapne hamen bhi prerit kiya hai...
u8mda post !

Udan Tashtari ने कहा…

विचारणीय मुद्दा है. कंपनियां तो व्यवसायिक हित ही देखेंगी.

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

दुनिया का यही कायदा है. चंद लोगों के लिये इंसानों को भेड बकरियों की तरह काट डाला गया. एक हिटलर की सनक ने कितने यहुदियों को मौत के घाट उतार दिया?

यहां तो दसियों हजार लोगों का सवाल है. तो आप सोच लिजिये न्याय की बात क्या है?

रामराम.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

गगन शर्मा जी।
इसीलिए पानी और दूध का एक ही रेट है।

Neha Pathak ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Neha Pathak ने कहा…

मैने यह बात पहली बार सुन हैं और जानकर बड़ी हैरानी हुई।

Arvind Kumar ने कहा…

sahi mudde pe bahas chheda hai aapne

Gyan Darpan ने कहा…

बहुत विचारणीय और ज्वलंत मुद्दा उठाया है आपने |

राज भाटिय़ा ने कहा…

शर्मा जी पता नही केसे यह पोस्ट मेरे फ़िड मै नही आई...
अगर हम बरसात के , ओर नदियो के पानी को ही सम्भाल कर रखे तो भी पीने के पानी की कोई किल्लत नही, लेकिन हम माने गे थोडे सब उलटे काम हमारे जिम्मे है.


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Chetan ने कहा…

ham botal ka paani saaph samajh kar santust ho jaate hai. par wah bhii bahut baar steshan ke nal ka bhara paani hi hota hai.

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