रविवार, 28 जून 2009

उनके लिए जो शादी शुदा हैं या शादी करने जा रहे हैं.

नरेश और सीमा पति-पत्नी। दस साल हो गये शादी को। एक आठ साल का बच्चा विवेक। बस यही छोटा सा परिवार। नरेश का अच्छा खासा, जमा-जमाया व्यवसाय था। हर सुख उपलब्ध था। घर-बार, गाड़ी, समर्पित, पत्नी सुंदर सा मेधावी बच्चा। पर उसका मन कहीं और सकून की तलाश में भटकता रहता था। इसी भटकन को थाम लिया था रंजना ने। यह संबंध इतने प्रगाढ हो गये कि इनकी मदहोशी में नरेश को अपने परिवार से अलग होने का निर्णय लेना पड़ा।
एक शाम घर लौटने के बाद खाने की टेबल पर बिना किसी लाग लपेट के उसने सीमा से कह दिया कि उसे तलाक चाहिये। उसे लगा था कि उसकी इस बात पर सीमा आसमान सर पर उठा लेगी, रोएगी, चिल्लाएगी। पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ उल्टे उसने नम्रता से सिर्फ इतना पूछा, क्यूं ? इसका कोई जवाब ना देकर नरेश अपने कमरे में चला गया। वह रात दोनों पर भारी गुजरी सीमा की रोते हुए और नरेश की तनाव में।
दूसरे दिन शाम को जान बूझ कर नरेश देर से घर आया और सीमा के सामने तलाक नामा रख अपने कमरे में चला गया। कागज़ में घर, गाड़ी तथा व्यवसाय में तीस प्रतिशत का हिस्सा सीमा के नाम करने की बात लिखी गयी थी। सीमा ने कागज़ पढ़ा और उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिये। अगली सुबह नरेश दफ्तर जाने लगा तभी कमरे में सीमा आयी उसके हाथ में एक लिफाफा था जो उसने नरेश को थमा दिया। उसमें लिखा था कि उसको नरेश की धन संपत्ति कुछ नहीं चाहिये। पर तलाक के लिये उसकी दो शर्तें हैं, पहली कि यह तलाक विवेक के आसन्न इम्तिहानों को देखते हुए एक महिने बाद लिया जाय। इस बीच उनका व्यवहार बिल्कुल सामान्य रहेगा। दुसरे नरेश रोज उसे उसी तरह कमरे में ले जाएगा जैसे उसे पहली रात ले कर गया था।
नरेश को इसमें कोई आपत्ती नहीं थी। उसने जब यह दोनों शर्तें रंजना को बतायीं तो वह जोर से हस पड़ी और बोली, वह बेवकूफ औरत समझती है कि क्या वह ऐसे अपनी शादी बचा लेगी ?
पहली रात जब नरेश सीमा को अपनी बाहों में उठा कमरे की ओर बढा तो नन्हा विवेक उनके पीछे तालियां बजा-बजा कर खूश हो बोलने लगा कि देखो पापा ने कैसे मेरी तरह मम्मी को उठाया हुआ है। सीमा आंखें बंद किये सिर्फ इतना बोली कि इसे हमारे अलगाव का पता नहीं लगना चाहिये। नरेश ने अपना सर सहमति में हिला दिया। इसी बीच उसका ध्यान सीमा के चेहरे की तरफ गया जहां उम्र ने अपना असर दिखाना शुरु कर दिया था बालों में भी चांदी के तार नज़र आने लगे थे।
इसी तरह एक दिन सीमा को उठा कर ले जाते हुए उसे लगा कि जिस औरत ने उसकी सुख-सुविधा के लिये अपने दिन रात एक कर दिये थे उसकी ओर उसने कभी रत्ती भर भी ध्यान नहीं दिया है। सीमा के प्रति उसे फिर जुडाव सा महसूस होने लगा। यह बात उसने रंजना से नहीं बतायी।
महीना खत्म होने में कुछ ही दिन रह गये थे। नरेश को सीमा की हर बात अब बारीकी से नज़र आने लगी थी। आज रात को जब वह सीमा को उठाए कमरे की ओर बढ रहा था तो उसके ध्यान में आया कि उसके कपड़े नाप के ना हो कर ढीले से हैं। गौर करने पर उसे सीमा काफी दुबली सी नज़र आयी। नरेश को लगा कि इस औरत को वह पिछले सालों की बनिस्पत अब ज्यादा समझने लगा है। उसे ग्यारह सालों के अपने दुख-सुख के लम्हे याद आने लगे। वह कठिन परिस्थितियां जब वह हार कर हताश हो जाता था तब इसी औरत के संबल, साहस, हौसले से वह उबर पाया है। उसी औरत की सहनशीलता, समझदारी से आज यह मुकाम हासिल हुआ है। इस बीच कभी भी उसका ध्यान दिन प्रति दिन क्षीण होती उसकी काया की तरफ नहीं गया। उसके लिये समर्पित उस औरत का एक पल भी वह ध्यान नहीं रख पाया। आज उसकी बाहों में सिमटी उस औरत ने कभी भी तो कोई शिकायत नहीं की। आज की रात अंतिम रात थी जब वह सीमा को उठाये कमरे की ओर जा रहा था। रोज की तरह सीमा अपनी आंखें बंद किये निश्चल पड़ी थी।
सबेरा होते ही इसके पहले कि मन बदल जाये नरेश घर से निकल गया। सीधा रंजना के पास जा बोला कि मैं  सीमा को तलाक नहीं दे सकता। जिसने मेरे लिये अपना जीवन समर्पित कर दिया हो मैं उसे धोखा नहीं दे सकता। इतना सुनते ही रंजना आपे से बाहर हो गयी उसने नरेश को एक जोर का धक्का दे कर कहा कि क्या तुम पागल हो गये हो ? नरेश ने कहा, हां, और वहां से निकल गया।
दूसरे दिन सीमा के सिरहाने एक कागज पड़ा था जिस पर लिखा था, मैं अपनी मृत्यु प्रयंत तुम्हें संभाले रहुंगा।
हमारी छोटी सी जिंदगी में यह एक दूसरे के प्रति जुड़ाव, एक दूसरे की खुशियों की हिफाजत, एक दूसरे का ख्याल ही जिन्दगी जीने में सहायक होता है ना कि घर, गाड़ी या भारी-भरकम बैंक बैंलेंस। तो अपनी व्यस्तता में से कुछ समय अपने साथी के लिये जरूर निकालें। अपने सुखी तथा लम्बे विवाहित जीवन के लिये। इसे अपने साथियों के साथ भी बांटें। हो सकता है कि इससे आप को कोई फर्क ना पड़े पर यह भी हो सकता है कि इससे किसी का परिवार टूटने से बच जाये।

22 टिप्‍पणियां:

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

आपकी कहानी शुरु से आखिर तक एक सांस मे पढी. बहुत प्रवाह से लिखी है आपने यह कथा. और मुझे आश्चर्य इस बात का होरहा है कि यही कहानी मुझे एक ब्लागर मित्र ने अभी तीन दिन पहले ही हुबहु सुनाई थी फ़ोन पर. ये कोई संयोग है या क्या है? ईश्वर जाने.

रामराम.

विवेक सिंह ने कहा…

जो भी हो इस कहानी को पढ़कर अच्छा लगा !

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर कहानी,असल मै जिसे हम प्यार समझते है वो तो एक हवस होती है, ओर सच्चे प्यार मै हक मांगा नही जाता, खुद मिल जाता है, जेसे सीमा को मिला... बस समर्पन होना चाहिये, जहां समर्पन होगा प्यार भी वही मिलेगा, हक हक चिलाने वाला हमेशा अकेला ही रह जाता है.
धन्यवाद

बेनामी ने कहा…

भाटिया जी से सहमत... प्यार में सिर्फ समर्पण होना चाहिए...

..कहानी बहुत उम्दा लगी और जीवन में कुछ बाते सीखने योग्य मिली ...

...धन्यवाद

P.N. Subramanian ने कहा…

बहुत सुन्दर . प्रेरणादायी.

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…

acchi kahani

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

बहुत सुन्दर विवाहेत्तर समब्न्ध सचमुच ही मानसिक सुख-सुकून नहीं दे सकते.

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

रिश्तों के बन्धन को मजबूती प्रदान करती एक् बहुत ही प्रेरणादायक कथा....आभार

Unknown ने कहा…

umda kahaani 1
satat pravaahpoorn shaili
sundar shabdaavli
__________waah waah waah
badhaai !

प्रकाश गोविंद ने कहा…

आज आपके ब्लॉग पर पहली बार
अनायास आना हुआ जो की सुखद रहा !

बहुत ही अच्छी कहानी है !
साथ ही प्रेरणादायक भी !

ये छोटी-छोटी महत्वपूर्ण बातें ही हैं जिन्हें लोग भूल जाते हैं .. मिस्टर नरेश जिस ख़ुशी की तलाश में जा रहे थे वो महज एक छलावा या मृगतृष्णा मात्र थी ! ये बातें सिर्फ पति-पत्नी के मध्य ही लागू नहीं होतीं ... जीवन में आये हर एक रिश्ते के साथ लागू होती हैं !

आज की आवाज

पुरुषोत्तम कुमार ने कहा…

बहुत ही अच्छी कहानी।

वीनस केसरी ने कहा…

मेरी शादी नहीं हुई है और अभी ४ साल तक तो करने का भी कोई इरादा नहीं है
फिर भी आपकी कहानी पढी
कुछ गलत तो नहीं किया :)
वीनस केसरी

बेनामी ने कहा…

अमिताभ बच्चन के ब्लॉग से ली है कम से कम इतना तो बता ही देना था, बेकार में लोग इसे आपकी लेखनी मान तारीफों के पुल बांधे जा रहे हैं. बड़ी शर्मिंदगी महसूस होती है जब किसी और की रचना को लोग आपकी समझ बधाई दें.

http://bigb.bigadda.com/?p=2812

To All Married Couples and Singles Who Intend To Get Married

Gyan Darpan ने कहा…

बहुत सुन्दर . प्रेरणादायी.

neeta ने कहा…

kahani apne maqsad men kamyab hai. ...bahut-bahut badhai

RAJENDRA ने कहा…

This is really good for a man of flickering mind who keep on looking only demerits of partner

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ताऊ जी, नमस्कार।
मुझे भी यह कहानी मेरे भाई ने ई-मेल की थी। आज के टेंशनाए माहौल में लगा कि अच्छी बात फैलनी चाहिए सो इसे पोस्ट का रूप दे दिया।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ab incon.
भाई मेरे, खुश रहो।
यह लिखने का मतलब वाह-वाही पाना कम लोगों तक संदेश पहुंचाना ज्यादा था। यह संदेश मुझे अपने ई-मेल पर मिला था, अच्छा लगा तो पोस्ट कर दिया। बुरा मत मानियेगा क्या बच्चन साहब ने यह लिखा है कि उनको यह प्रेरणा कहां से मिली। क्योंकि मैंने आज तक उनका ब्लाग नहीं पड़ा है। अन्यथा न लिजियेगा।
चाहे जैसे भी आये, मेरे ब्लाग पर आने पर आभारी हूं।

मोहन वशिष्‍ठ ने कहा…

गगन जी नमस्‍कार
सर आपने कहानी क्‍या आज के हालातों को सुधारने का बहुत ही अच्‍छा कदम उठाया है कभी कभी हम आवेश में आकर कोई गलत कदम उठा लेते हैं बिना सोचे मगर ऐसे अगर सोच विचारा जाए तो शायद ही कोई जिंदगी खराब हो बल्कि हर जगह खुशहाली होगी
आदरणीय मैं चाहता हूं कि आपकी इस कहानी को मैं भी अपनी मेल के द्वारा अपने जानकारों को भेजूं अगर आप इसकी इजाजत देंगे तो आपकी इजाजत का इंतजार रहेगा

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

मोहन जी, नमस्कार।
मुझे भी यह कहानी मेरे भाई ने मुझे भेजी थी। ऐसी बातों का तो जितना विस्तार हो अच्छा है। आप इसे आगे बढाईए जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक यह पहुंच सके।

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

bahut khoob

Unknown ने कहा…

Aapki kahani bahut hi hridaysparshi hai.

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