डाक्टरी के पेशे को सदा सम्मान की दृष्टि से देखा जाता रहा है। पर कभी-कभी कोई ऐसी खबर आ जाती है जो मन में आक्रोश उत्पन्न कर देती है। बात गुजरात के जामनगर की है। वहां के गुरु गोविंद सिंह अस्पताल में एक गर्भवती महिला अपने चेक-अप के लिये आयी थी। परिक्षण के दौरान उसके एच.आई.वी. पाजिटिव होने का पता चलते ही महिला रोग प्रभारी डा. नलिनीबहन तथा एक अन्य डा. दिप्तीबहन ने उसका उपचार करने से मना ही नहीं किया बल्कि उसके माथे पर एच.आई.वी. होने की पट्टी भी चिपका दी। इतने पर भी उन्हें शायद संतोष नहीं मिला इसके बाद उस निरीह महिला को अस्पताल का चक्कर लगाने को भी मजबूर किया गया।
अस्पताल प्रबंधन के इस रवैये का पता चलते ही महिला संगठनों के विरोध पर संबन्धित लोगों पर कार्यवाहि तो की गयी पर अस्पताल के अधिक्षक अरुण व्यास की लीपापोती पर नज़र डालें जिनका मामले की सफाई पर कहना था कि 'ऐसा इस लिये किया गया जिससे डाक्टरों को पता चल जाये कि उक्त महिला इस रोग से पीडित है।' अब उनसे कौन पूछेगा कि क्या अन्य रोग से ग्रसित रोगियों की पहचान कैसे की जाती है?
मैं यहां बात रोग के प्रति दृष्टिकोण की करना चाहता हूं। इस रोग के फैलने में सहायक कारणों मे से एक असंयमित देह संबंध है। पर लोग अन्य कारणों को भूल इस कारण को ही ज्यादा याद रखते हैं और इस रोग से ग्रस्त रोगी को सहानुभूति मिलने के बजाय दोषी ज्यादा समझा जाता है। बार-बार प्रकाशित-प्रचारित होने के बावजूद इसे संक्रामक रोग समझने कि प्रवृत्ति खत्म नहीं हो पा रही है। जब सेवा और इलाज करने वाले डाक्टरों का ऐसा रवैया है तो आम इंसान से कहां तक और कैसी उम्मीद की जा सकती है।
17 टिप्पणियां:
काहे के डाक्टर? किसी समय में भगवान माने जाते थे और आजकल तो??
शर्मा जी ,अब जो नकल मार मार कर या फ़िर रिशवत दे कर, या फ़िर आरक्षण से डाकटर बना हो उसे क्या सहानुभुति होगी लोगो से, वो तो पहले अपनी ऎश का समान जुटायेगां, ओर ऎसे डाकटर ही अन्य डाकटरो के नाम को खराब करते है.
आप ने बहुत खेद जनक खबर सुनाई, उस डाकटर की डिग्री झट से छिन लेनी चाहिये, कोई माफ़ी नामा नही, या फ़िर उस डाकटर के माथे पर भी लिखा जाये कि मै महा मुर्ख हुं.
धन्यवाद
मुझे शिकायत है
पराया देश
छोटी छोटी बातें
नन्हे मुन्हे
यदि डॉक्टरी सेवापरायणता का माध्यम होती तो ऐसा होता ही क्यों ? संवेदना की शून्यता भी इसका कारण है ।
यह महिलाओं द्वारा सारी स्त्रियों का अपमान है. महिला आयोग कहाँ है?
डाकटर को अपना फर्ज पूरा करना चाहिए्मरिज का इलाज करना चाहिए।ऐसे डाकटरों की तो डिग्ररीयां रद्द कर देनी चाहिए।लेकिन सब जानते हैं होना कुछ भी नही है कुछ दिन शोर मचेगा फिर सभी कुछ पहले जैसा ही चलता रहेगा।
इस घटना को पढ कर आज से दस साल पुरानी घट्ना याद आ गई, जब पंजाब के किसी गांव में एक महिला ने एक पाव रोटी चुराई तो उसके माथे पर पुलिस ने मै चोर हूं गुदवा दिया था..
हम सब संवेदनहीनता की ओर बढ़ते जा रहे हैं
आपके विचारो से सहमत हूँ . बहुत विचारणीय बात कहीं है आपने.
पेशे की गरिमा खम होती जारही है.
रामराम.
jab dr sahab aisa kar rahen hai to ab aam aadmi ko hi pahal karna hoga,apna kadan badhana parega..aur jahan tak dr ka sawal hai abhi dr to aisa nahi sochte hai na
ऐसे डाकटर ही पेशे की बदनामी का कारण है।
क्या कहा जाये ऐसे में..बहुत अफसोस की बात है.
ऐसे शैतान डॉक्टरों को सेवा से पृथक कर देना चहिए।
अब मैं इस गाने के मतलब बदल कर गाता हूँ....
शर्म आती है मगर ये कहना होगा
अब हमें आपके कदमों मे रहना होगा..
कोई निलम्बित हुआ क्या? होगा होगा..यदि हल्ला मचा तो होगा..पर कोई चपरासी या नर्स.
अजी ज़नाब, एक सवाल तो रह ही गया..
टीवी कैमरे के सामने उसकी पहचान यहाँ तक की नाम और घटनाबयानी को को बारँबार फ़्लैश कर देशव्यापी स्तर पर प्रचारित करने वाले चौथे खँभे को आप किस रूप में देखते हैं ? क्या कोई बतायेगा ?
मेरे हिसाब से नँगे के ऊपर तत्काल कोई न कोई कपड़ा डाल ढक देता है, पूरे मोहल्ले को इकट्ठा कर ढिंढोंरा पीटना किस अन्याय को ढकने वाला न्याय है ?
लीजिये गलत पते पर पहुँची टिप्पणी यहाँ हाज़िर किये देता हूँ :
हमलोग रेलवे दुर्धटना स्थल पर पहुँचते ही फ़ौरन अतिगँभीर, क्षतिग्रस्त काया, दहशतज़दा, कुछ कम घायल और मामूली घायलों को चिन्हित कर दिया करते थे । यह एक आम प्रैक्टिस थी, ज़ाहिर है यह डाक्टरों की टीम में से एक कनिष्ठ डाक्टर किसी अनुभवी वार्डब्याय की सहायता से ही किया करता है । इसमें चूक भी होती है ।
एच. आई.वी. जैसे सँक्रमित रोगियों को यदि अलग वार्ड नहीं है, तो चिन्हित किया जाना अनिवार्य है । अमूमन यह वार्ड के आन ड्यूटी सिस्टर इँचार्ज के पास दर्ज़ करा दिया जाता है । यहाँ यह चूक चिकित्सारत डाक्टर और रोगी की सुश्रुषा से जुड़े जन के बीच सँवादहीनता से हुई लगती है, पर ?
पर यह निताँत एकाँगी निष्कर्ष है । क्योंकि टीवी कैमरे के सामने उसकी पहचान यहाँ तक की नाम और घटनाबयानी को को बारँबार फ़्लैश कर देशव्यापी स्तर पर प्रचारित करने वाले चौथे खँभे को आप किस रूप में देखते हैं ? क्या कोई बतायेगा ?
यदि इसके बाद किये जाने वाले एक अन्य विश्वसनीय टेस्ट वेस्टनब्लाट के लिये रक्त नमूनों को लेने आने वाले पैथालाजी-कर्मी को सावधान करने हेतु इस प्रकार की अस्थायी टैगिंग रही हो तो ?
अब कोई यह भी उछाल सकता है कि, इस अत्याधुनिक टेस्ट में एक ’ ब्लाट ’ क्यों लगा है ?
हिन्दी ब्लागिंग मीडिया कवरेज़ का अँधानुकरण करते रहने को कब तक अभिशप्त रहेगा ? बिना सम्पूर्ण तथ्यों को खँगाले कुछ भी लिख देना एक सामाजिक अन्याय है ।
अपनी नमाज़ अदा करने में डाक्टरों के गले रोज़ा पड़ना कोई नई बात भी नहीं है ।
यह टिप्पणी डाक्टरों की पैरवी नहीं, बल्कि देखने वाले चश्में के नम्बर पर प्रश्नचिन्ह है ।
आप अपनी जगह ठीक हो सकते हैं। पर एक दुर्घटना में सैकड़ों लोगों को चिन्हित करना समझ में आता है। पर आप भी पूरी बात पढ नहीं पाये हैं शायद। यदि माथे पर पट्टी चिपकाना ही पहचान का एकमात्र उपाय रह गया है इस युग में भी अस्पतालों के पास, अपने कर्मचारियों को बचाने के लिये तो फिर उस महिला को वार्ड़ों में क्यूं घुमाया गया और फिर उन डाक्टरों ने उसका इलाज करने से क्यूं मना कर दिया ?
वैसे भी और बहुत से संक्रामक रोग हैं, उनके मरीजों के सरों पर तो पट्टियां नहीं लगाई जाती। उनसे भी तो अस्पतालों के कर्मचारियों की सेहत को खतरा हो सकता है।
रही आपके अनुसार ब्लागर के मीड़िया का "अंधानुकरण" करने की बात तो मेरा नम्र निवेदन है कि यह कोई पिच्छलगुओं का जमावड़ा नहीं है। कृपया पोस्टों को देखा करें। मीड़िया की गलत जानकारी को भी यहां कोई बक्शता नहीं है।
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