पंजाब के दो दिन के प्रवास में जो भी देखा-पाया, वह प्रदेश के बारे में फैले या फैलाए गए दुष्प्रचार के बिल्कुल विपरीत था। हालांकि यह आकलन सिमित समय और दायरे का ही था पर हांडी में पक रहे चावलों का अंदाज उसके एक कण से ही लग जाता है। पर इसका अर्थ यह भी नहीं है कि वहां सब कुछ चाक-चौबंद या दुरुस्त है पर वैसा भी नहीं है जैसा पूरे देश को बताया जा रहा था। पर ऐसा हुआ क्यों ? लोगों का मानना है कि पहले आपसी सहयोग से ही खेती-खलिहानी होती थी। फिर जैसे प्रकृति में किसी जगह हवा गर्म हो ऊपर उठती है तो तत्काल आस-पास की वायु उस रिक्त स्थान की पूर्ति करने पहुंच जाती है, वैसे ही जब पंजाब के हर घर से लोग विदेश जाने लगे तो उसकी खानापूर्ति के लिए यू.पी., बिहार, यहां तक कि बांग्लादेशी भी अपनी अच्छाइयों और बुराइयों के साथ रोजगार के सिलसिले में यहां आ बसे। शायद तभी से कुछ गलत आदतें यहां पनपी ! फिर भी पहले से हालात में बहुत सुधार हुआ है। अच्छा लगा मोबाइल थामने की जगह बच्चों को दौड़ते-भागते-खेलते देख कर ................!
#हिन्दी_ब्लागिंग
वर्षों बाद पिछले हफ्ते पंजाब जाना हुआ। साथ थीं, तरह-तरह की आशंकाऐं, भ्रांतियां, गैर-जिम्मेदराना मिडिया द्वारा प्रदत्त, नशे और पंजाब को एक दूसरे का पर्याय बताने वाली उल्टी-सीधी जानकारियां, पर वहां के दो दिन के प्रवास में जो भी देखा-पाया वह प्रदेश के बारे में फैले या फैलाए गए दुष्प्रचार के बिल्कुल विपरीत था। हालांकि यह आकलन सिमित समय और दायरे का ही था पर हांडी में पक रहे चावलों का अंदाज उसके एक कण से ही लग जाता है। पर इसका अर्थ यह भी नहीं है कि वहां सब कुछ चाक-चौबंद या दुरुस्त है पर वैसा भी नहीं है जैसा पूरे देश को बताया जा रहा था।
#हिन्दी_ब्लागिंग
वर्षों बाद पिछले हफ्ते पंजाब जाना हुआ। साथ थीं, तरह-तरह की आशंकाऐं, भ्रांतियां, गैर-जिम्मेदराना मिडिया द्वारा प्रदत्त, नशे और पंजाब को एक दूसरे का पर्याय बताने वाली उल्टी-सीधी जानकारियां, पर वहां के दो दिन के प्रवास में जो भी देखा-पाया वह प्रदेश के बारे में फैले या फैलाए गए दुष्प्रचार के बिल्कुल विपरीत था। हालांकि यह आकलन सिमित समय और दायरे का ही था पर हांडी में पक रहे चावलों का अंदाज उसके एक कण से ही लग जाता है। पर इसका अर्थ यह भी नहीं है कि वहां सब कुछ चाक-चौबंद या दुरुस्त है पर वैसा भी नहीं है जैसा पूरे देश को बताया जा रहा था।
यात्रा के दौरान मुझे तीन गांवों में जाने का अवसर मिला। पहला अपने ननिहाल हदियाबाद, जो फगवाड़ा शहर से ड़ेढेक की. मी. की दूरी पर फगवाड़ा-नूरमहल रोड पर स्थित है, पर अब शहर का ही हिस्सा बन गया है। वहां जाने के लिए फगवाड़ा बस-अड्डे से कुछ आगे शुगर मिल से बाएं मुड़ते ही वह रामगढ़िया कालेज है, जहां फिल्म स्टार धर्मेंद्र ने अपनी शुरुआती पढ़ाई की थी, संयोगवश मेरे चाचाजी भी वहीं पढ़े थे। वहाँ मेरे बड़े मामाजी के दोस्त दो शिक्षक हैं, घर के कार्यक्रम में उनसे मिलना हुआ, कुछ देर बात की। गांव में भी पूरा दिन गुजरा, पर कहीं भी कुछ अस्वाभाविक जैसा नहीं लगा। उल्टे आत्मीयता, प्रेम, भाईचारे का ही माहौल मिला। वहाँ की तक़रीबन सौ साल पुरानी पाठशाला और सरकारी स्कूल के गुरुजनों से भी युवाओं के बारे में, पंजाब के हालात के बारे में बात हुई। पर किसी ने भी परिस्थिति को चिंताजनक नहीं बताया।
दूसरा पड़ाव था, जालंधर शहर के जमशेर कस्बे के पास का गांव, चननपुरा। यहां मेरे मौसाजी का पुश्तैनी घर है। भाई जीवन के साथ रात में वहीं बसेरा था। वहां का नजारा ही कुछ और था ! बढती ठंड के बावजूद रात के आठ-साढ़े आठ बजे गांव के बच्चे फ्लड लाइट में फ़ुटबाल खेल रहे थे। यहां अक्सर इस खेल की प्रतियोगिताएं होती रहती हैं। दूसरा दिन छुट्टी का था। अल-सुबह भी बच्चे खेल-कूद में व्यस्त दिखे ना कि मोबाइल में ! वहीं भाई के पडोसी स्थानीय वैद्य श्री विनोद जी ने प्रदेश में नशे इत्यादि के चलन को सिरे से तो नहीं नकारा, पर इस गांव में किसी के भी लती होने की या उनसे ऐसे किसी व्यक्ति के इलाज करवाने की किसी भी बात से इंकार किया। लत तो यहां मोबाईल की भी नहीं दिखी किसी में भी !
तीसरा पड़ाव था होशियारपुर के पास का एक और छोटा सा गांव रिहाणा-जट्टा, कभी देहात हुआ करता यह गांव आज सीवर युक्त पक्के मार्ग, अच्छे-खासे घरों, दुकानों, बिजली-पानी जैसी जरूरतों से युक्त साफ़-सुथरी जगह है। हमारे वहां पहुंचने पर घर का युवक, घर में बाइक होने के बावजूद सायकिल ले कर कुछ लाने निकला। जीतनी देर भी हम वहां रहे, किसी ने भी मोबाइल को हाथ नहीं लगाया। बाद में ध्यान दिया तो वहां अधिकांश लोग सायकिल का उपयोग करते दिखे। सुविधा व सम्पन्नता होने के बावजूद ! अच्छा लगा यह देख कर।
कार्यक्रम के दौरान एक सज्जन से भेंट हुई जो ''लवली यूनिवर्सिटी'' में प्रोफ़ेसर हैं। बातचीत के दौरान इशारों में ही वहां के युवा और नशे की बात छेड़ी तो उन्होंने बे-बाक हो कहा कि पहले आपसी सहयोग से ही खेती-खलिहानी होती थी। फिर लोगों में विदेश जाने का मोह बहुत बढ़ गया। फिर जैसे प्रकृति में किसी जगह हवा गर्म हो ऊपर उठती है तो तत्काल आस-पास की वायु उस रिक्त स्थान की पूर्ति करने पहुंच जाती है। वैसे ही जब पंजाब के हर घर से लोग विदेश जाने लगे तो उसकी खानापूर्ति के लिए यू.पी., बिहार, यहां तक कि बांग्लादेशी भी अपनी अच्छाइयों और बुराइयों के साथ रोजगार के सिलसिले में यहां आ बसे। शायद तभी से कुछ गलत आदतें यहां पनपीं ! फिर भी पहले से हालात में बहुत सुधार हुआ है। यहां के मुख्य मंत्री #कैप्टन_अमरिंदर_सिंह इस बारे में बहुत गंभीर हैं और पूरी तरह प्रदेश को नशे की गिरफ्त से छुटकारा दिलाने को प्रतिबद्ध हैं। कानून-व्यवस्था भी काफी सुधरी है। आशा है पंजाब फिर अपना खोया गौरव प्राप्त कर लेगा, जल्दी।
अपनी इस संक्षिप्त यात्रा में एक बात जो सबसे अच्छी लगी वह यह कि छोटे से छोटे गांवों में भी खेलने के लिए अच्छे-खासे मैदान उपलब्ध कराए गए हैं, बिजली की सुविधा के साथ। वहाँ के बच्चे-युवा-युवतियां भी खेलों में रूचि रखते हैं जो एक सकारात्मक निशानी है, लोगों के जागरूक होने की। तसल्ली यह भी हुई कि पंजाब के हालात सुधार की ओर हैं। वैसे नशाखोरी कहां नहीं होती हमारे देश में ! कुछ प्रदेशों में तो शराब वितरण भी वहाँ की सरकारें ही करती हैं। और तो और देश की राजधानी की हालत भी बहुत अच्छी तो नहीं ही कही जा सकती ! इसलिए इस जहर से अपनी नस्लों-पीढ़ियों को बचाने की मुहीम आम जनता को ही छेड़नी पड़ेगी, बिना सरकार का मुंह जोहे !
दूसरा पड़ाव था, जालंधर शहर के जमशेर कस्बे के पास का गांव, चननपुरा। यहां मेरे मौसाजी का पुश्तैनी घर है। भाई जीवन के साथ रात में वहीं बसेरा था। वहां का नजारा ही कुछ और था ! बढती ठंड के बावजूद रात के आठ-साढ़े आठ बजे गांव के बच्चे फ्लड लाइट में फ़ुटबाल खेल रहे थे। यहां अक्सर इस खेल की प्रतियोगिताएं होती रहती हैं। दूसरा दिन छुट्टी का था। अल-सुबह भी बच्चे खेल-कूद में व्यस्त दिखे ना कि मोबाइल में ! वहीं भाई के पडोसी स्थानीय वैद्य श्री विनोद जी ने प्रदेश में नशे इत्यादि के चलन को सिरे से तो नहीं नकारा, पर इस गांव में किसी के भी लती होने की या उनसे ऐसे किसी व्यक्ति के इलाज करवाने की किसी भी बात से इंकार किया। लत तो यहां मोबाईल की भी नहीं दिखी किसी में भी !
तीसरा पड़ाव था होशियारपुर के पास का एक और छोटा सा गांव रिहाणा-जट्टा, कभी देहात हुआ करता यह गांव आज सीवर युक्त पक्के मार्ग, अच्छे-खासे घरों, दुकानों, बिजली-पानी जैसी जरूरतों से युक्त साफ़-सुथरी जगह है। हमारे वहां पहुंचने पर घर का युवक, घर में बाइक होने के बावजूद सायकिल ले कर कुछ लाने निकला। जीतनी देर भी हम वहां रहे, किसी ने भी मोबाइल को हाथ नहीं लगाया। बाद में ध्यान दिया तो वहां अधिकांश लोग सायकिल का उपयोग करते दिखे। सुविधा व सम्पन्नता होने के बावजूद ! अच्छा लगा यह देख कर।
कार्यक्रम के दौरान एक सज्जन से भेंट हुई जो ''लवली यूनिवर्सिटी'' में प्रोफ़ेसर हैं। बातचीत के दौरान इशारों में ही वहां के युवा और नशे की बात छेड़ी तो उन्होंने बे-बाक हो कहा कि पहले आपसी सहयोग से ही खेती-खलिहानी होती थी। फिर लोगों में विदेश जाने का मोह बहुत बढ़ गया। फिर जैसे प्रकृति में किसी जगह हवा गर्म हो ऊपर उठती है तो तत्काल आस-पास की वायु उस रिक्त स्थान की पूर्ति करने पहुंच जाती है। वैसे ही जब पंजाब के हर घर से लोग विदेश जाने लगे तो उसकी खानापूर्ति के लिए यू.पी., बिहार, यहां तक कि बांग्लादेशी भी अपनी अच्छाइयों और बुराइयों के साथ रोजगार के सिलसिले में यहां आ बसे। शायद तभी से कुछ गलत आदतें यहां पनपीं ! फिर भी पहले से हालात में बहुत सुधार हुआ है। यहां के मुख्य मंत्री #कैप्टन_अमरिंदर_सिंह इस बारे में बहुत गंभीर हैं और पूरी तरह प्रदेश को नशे की गिरफ्त से छुटकारा दिलाने को प्रतिबद्ध हैं। कानून-व्यवस्था भी काफी सुधरी है। आशा है पंजाब फिर अपना खोया गौरव प्राप्त कर लेगा, जल्दी।
अपनी इस संक्षिप्त यात्रा में एक बात जो सबसे अच्छी लगी वह यह कि छोटे से छोटे गांवों में भी खेलने के लिए अच्छे-खासे मैदान उपलब्ध कराए गए हैं, बिजली की सुविधा के साथ। वहाँ के बच्चे-युवा-युवतियां भी खेलों में रूचि रखते हैं जो एक सकारात्मक निशानी है, लोगों के जागरूक होने की। तसल्ली यह भी हुई कि पंजाब के हालात सुधार की ओर हैं। वैसे नशाखोरी कहां नहीं होती हमारे देश में ! कुछ प्रदेशों में तो शराब वितरण भी वहाँ की सरकारें ही करती हैं। और तो और देश की राजधानी की हालत भी बहुत अच्छी तो नहीं ही कही जा सकती ! इसलिए इस जहर से अपनी नस्लों-पीढ़ियों को बचाने की मुहीम आम जनता को ही छेड़नी पड़ेगी, बिना सरकार का मुंह जोहे !