शुक्रवार, 2 नवंबर 2018

रणथंभौर दुर्ग, उसमें स्थित भवन तथा मंदिर

इस अभेद्य दुर्ग के अंदर गणेश जी के मंदिर के अलावा एक रघुनाथ मंदिर, एक जैन मंदिर, एक माँ काली का शक्ति पीठ, बाइस खंबा छतरी के नीचे एक गुफा में एक विशाल शिव लिंग भी स्थापित है। इन सब के साथ ही यहां एक मस्जिद भी निर्मित है। परन्तु इनके साथ ही जिसकी भरमार है जो सैंकड़ों की तादाद में यहां, वहाँ, दाएं, बाएं, ऊपर, नीचे सब जगह मौजूद है, वे हैं लंगूर ! पर एक बात है वे किसी को कोई हानि नहीं पहुंचाते। शिमला के जाकू या मथुरा-वृन्दावन के शरारती वानर युथों से उनकी कोई तुलना नहीं है...........!

#हिन्दी_ब्लागिंग  
रणथंभौर दुर्ग, राजस्थान के सवाई माधोपुर शहर से करीब से 12-13 कि.मी. की दुरी पर रन और थंभ नाम की पहाडियों के बीच रणथम्भौर अभ्यारण्य के बीच में स्थित यह एक अभेद्य दुर्ग है। हालांकि इसका निर्माण चौहान वंश के राजाओं द्वारा 944 ईस्वी शुरू हो गया था पर इसकी पहचान प्रमुखता से राव हम्मीर देव चौहान के साथ की जाती है। मुहम्मद गौरी से पृथ्वी राज चौहान के हार जाने के बाद उनके पुत्र गोविंदराज ने रणथम्भौर को अपनी राजधानी बनाया था। उनके अलावा विभिन्न राजाओं का यहां आधिपत्य रहा। पर इसको सबसे ज्यादा ख्याति मिली हम्मीर देव के, 1282-1301, शासन काल में। उनके 19 वर्षो का शासन इस दुर्ग का स्वर्णिम युग रहा था। उनके द्वारा लडे गए 17 युद्धों में से उन्हें 13 में विजय प्राप्त हुई थी। फिर बाद में सवाई माधो सिंह ने फिर से पास के गांव और इस इलाके का विकास किया और इस किले को और भी सुदृढ़ करवाया। इसीलिए इस पूरे इलाके का नाम उनके नाम पर सवाई माधोपुर रखा गया।



हम्मीर कुंड 









आज भी इस दुर्ग की मजबूती और बेहतर हालत को देख कर इसके स्वर्ण काल का अंदाज आसानी से लगाया जा सकता है। किले के अंदर बड़ी मात्रा में दीवारें देखने को मिलती है। यहां सात द्वार भी है जिनके नाम हैं, नवलखा पोल, हाथिया पोल, गणेश पोल, अंधेरी पोल, दिल्ली गेट, सत्पोल, सूरज पोल। इन द्वारों की विशालता-भव्यता और सुरक्षता देखते ही बनती है। 


हम्मीर महल 
छत्तीस खंबा छतरी 

दुर्ग के पश्चिमी दिशा में भी कई भवन और इमारतें अपनी उत्कृष्ट अवस्था में खड़े हैं। जिनमें प्रमुख हैं, हम्मीर पैलेस, बत्तीस खम्भा छत्री, हैमर, बडी कच्छारी,  छोटी कछारी इत्यादि। पर इन सब में जो स्थान सबसे लोकप्रिय, विश्व-प्रसिद्द, आस्था और मान्यता प्रद है, जिससे जन-जन की भावनाएं जुडी हुई हैं, वह है यहां का त्रिनेत्र गणेश या प्रथम गणेश मंदिर। इसमें गणपति अपने पूरे परिवार के साथ विराजमान हैं। इनके साथ एक कथा भी जुडी हुई है। बात तब की है जब राजा हम्मीर अल्लाउद्दीन खिलजी के साथ युद्ध रत थे। युद्ध के पहले ही किले में प्रचुर खाद्य सामग्री एकत्रित कर ली गयी थी। पर लड़ाई लंबी खिंच जाने के कारण अनाज के गोदाम खाली होने लगे। गणेश जी के महान भक्त राजा को चिंता ने घेर लिया। उसी समय एक रात उन्हें सपने में गणेश जी ने दर्शन दिए और कहा तुम्हारी सारी चिंताएं और मुसीबतें जल्द ही ख़त्म हो जाएंगीं। सुबह किले की एक दीवाल में तीन नेत्रों वाली मूर्ति चिपकी पाई गयी और सारे अन्न भंडार भी भरे-पुरे हो गए। युद्ध के समाप्त होने पर राजा हम्मीर ने वहीँ गणेश जी का मंदिर बनवा दिया। जहां गणेश चतुर्थी पर लाखों की भीड़ जुटती है। इसके साथ ही देश-विदेश से भक्तजन अपने किसी भी पुण्य कार्य को आरंभ करने के पहले श्री गणेश को पत्र लिख आमंत्रित करते हैं, जिससे उनका कार्य निर्विघ्न और सुखमय हो। इस काम के लिए डाक विभाग द्वारा एक पत्र वाहक सिर्फ मंदिर के लिए निमंत्रण पत्र ले जाने के लिए नियुक्त किया हुआ है। 


रघुनाथ मंदिर प्रवेश द्वार 


शक्ति पीठ, माँ काली मंदिर 
गणेश मंदिर 

गणेश जी के मंदिर के अलावा किले में एक रघुनाथ मंदिर, एक जैन मंदिर, एक माँ काली का शक्ति पीठ, बाइस खंबा छतरी के नीचे एक गुफा में एक विशाल शिव लिंग भी स्थापित है। इन सब के साथ ही यहां एक मस्जिद भी निर्मित है। परन्तु इनके साथ ही जिसकी भरमार है जो सैंकड़ों की तादाद में यहां, वहाँ, दाएं, बाएं, ऊपर, नीचे सब जगह मौजूद है, वे हैं लंगूर ! पर एक बात है वे किसी को कोई हानि नहीं पहुंचाते। शिमला के जाकू या मथुरा-वृन्दावन के शरारती वानर युथों से उनकी कोई तुलना नहीं है। 


जैन मंदिर 
गणेश मंदिर की ओर 


वानर परिवार 



वैसे रणथम्भौर का सबसे बड़ा आकर्षण तो यहां का वन्य अभ्यारण्य ही है। जहां बाघों के लिए सुरक्षित वातावरण उपलब्ध करवाया गया है। उनकी बढ़ती संख्या के  सुखद परिणाम भी मिले है। बाघों के अलावा जंगली सूअर, भालू, वैन भैंसे, हिरणों की कई प्रजातियों के साथ-साथ अनेक प्रकार के पक्षियों का भी यहां बसेरा है। जंगल सफारी के लिए सबसे अच्छा तथा अनुकूल मौसम ऑक्टूबर से मार्च-अप्रैल तक का होता है। वर्षा के मौसम में सफारी दो महीने के लिए बंद रहती है। यहां वायु या थल मार्ग से कहीं से भी आसानी से पहुंचा जा सकता है। रहने खाने के लिए भी बहुत सारे अच्छे और बजट वाले होटल वगैरह उपलब्ध हैं। 

4 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (03-11-2018) को "भारत की सच्ची विदेशी बहू" (चर्चा अंक-3144) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शास्त्री जी, बहुत-बहुत धन्यवाद

HARSHVARDHAN ने कहा…

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन सोहराब मोदी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

हर्ष जी, हार्दिक आभार

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