हर मां अपने बेटे के विवाह योग्य होने पर यही चाहती है कि उसकी भी एक सर्वगुण सम्पन्न बहू आ जाये। इसके लिये वह अपने पुत्र को तरह-तरह की हिदायतें भी देती रहती आयी है। समय के साथ-साथ ये हिदायतें भी बदलती रही हैं। जरा गौर फर्माइए :-
1960 - के दशक में मां की इच्छा होती थी कि लड़के की शादी अपनी जात बिरादरी में ही हो। ताकि अपने तीज त्योहारों का लड़की को भी पता हो।
1970 - में इस बात पर ज्यादा ध्यान दिया जाने लगा कि लड़की अपने ही धर्म को मानने वाली हो। यही वह अपने बेटे से भी कहती रहती थी।
1980 - आते-आते पुरानी बातों को तकरीबन नजरंदाज कर दिया गया। अब माएं बेटों को यह सलाह देने लगीं कि और कुछ ना सही पर लड़की अपनी हैसियत वाले परिवार से होनी चाहिये।
1990 - समय बीतता गया। आगे बढने की होड़ में युवकों का विदेश गमन कोई नयी बात नहीं रह गयी। तब माओं का भी सुर बदला और वे चाहने लगीं कि उनका बेटा अपने देश की कन्या से ही विवाह करे।
2000 - समय के साथ-साथ युवाओं की सोच से माएं चिंताग्रस्त रहने लगी थीं। लड़के अपने कैरियर के लिये अपनी उम्र की परवाह छोड़ने लगे थे। वे पहले अपने भविष्य को सुरक्षित करना चाहते थे। इसलिये विवाह की उम्र निकलती जाती थी। तब माएं यही चाहती और सलाह देती थीं कि समय रहते अपनी उम्र की लड़की से शादी कर ले।
2009 - देखते-देखते वर्तमान भी आ पहुंचा। विचार बदल गये। सोचें बदल गयीं। रहन-सहन के तौर-तरीके बदल गये। जाहिर है मांओं की सोच और सलाहों में भी बदलाव आया होगा। तो मां अब अपने बेटे से यही कहती है कि बेटा शादी कर ले। किसी से भी, "पर वह लड़की होनी चाहिये"।
1960 - के दशक में मां की इच्छा होती थी कि लड़के की शादी अपनी जात बिरादरी में ही हो। ताकि अपने तीज त्योहारों का लड़की को भी पता हो।
1970 - में इस बात पर ज्यादा ध्यान दिया जाने लगा कि लड़की अपने ही धर्म को मानने वाली हो। यही वह अपने बेटे से भी कहती रहती थी।
1980 - आते-आते पुरानी बातों को तकरीबन नजरंदाज कर दिया गया। अब माएं बेटों को यह सलाह देने लगीं कि और कुछ ना सही पर लड़की अपनी हैसियत वाले परिवार से होनी चाहिये।
1990 - समय बीतता गया। आगे बढने की होड़ में युवकों का विदेश गमन कोई नयी बात नहीं रह गयी। तब माओं का भी सुर बदला और वे चाहने लगीं कि उनका बेटा अपने देश की कन्या से ही विवाह करे।
2000 - समय के साथ-साथ युवाओं की सोच से माएं चिंताग्रस्त रहने लगी थीं। लड़के अपने कैरियर के लिये अपनी उम्र की परवाह छोड़ने लगे थे। वे पहले अपने भविष्य को सुरक्षित करना चाहते थे। इसलिये विवाह की उम्र निकलती जाती थी। तब माएं यही चाहती और सलाह देती थीं कि समय रहते अपनी उम्र की लड़की से शादी कर ले।
2009 - देखते-देखते वर्तमान भी आ पहुंचा। विचार बदल गये। सोचें बदल गयीं। रहन-सहन के तौर-तरीके बदल गये। जाहिर है मांओं की सोच और सलाहों में भी बदलाव आया होगा। तो मां अब अपने बेटे से यही कहती है कि बेटा शादी कर ले। किसी से भी, "पर वह लड़की होनी चाहिये"।
10 टिप्पणियां:
शर्माजी आगे जाकर सोच कहीं इससे भी आगे ना बढ जाये?:)
रामराम.
ताऊ जी, ड़र तो यही है (-:
वाह शर्मा जी क्या बात है, मेरी मां की भी १९८०, ओर १९९० वाली ही सोच रही थी कि बेटा किसी गोरी से शादी ना कर बेठना.
अब २०१० मै क्या सोचेगी.......
achchha chutkula lekin kadwi hakikat
2009 me to kamaal ho gaya . 377 ke baad bhagwaan hi malik hoga
हा हा!! कैसा समय बदला है!!
मजा आ गया. आभार.
हा..हा..
धन्य हो :)
वीनस केसरी
सुन्दर ।
धन्यवाद!
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