वर्षों से गुणीजन सीख देते आये हैं कि जुबान पर काबू रखना चाहिये। यह चाहे तो तूफान खड़ा कर दे या शांति का समुद्र लहरा दे। रहीमजी ने तो बाकायदा चेतावनी दी है - "रहिमन जिह्वा बावरी, कहिगै सरग पाताल। आपु तो कहि भीतर रही, जूती सहत कपाल।"
कौन नहीं जानता कि द्रोपदी के एक वाक्य ने महाभारत जैसे युद्ध की नींव ड़ाल दी थी। वहीं, इतिहास के अनुसार, पोरस और सिकंदर में सुलह-सफाई हो गयी थी।
पर शायद वह जमाना ही अलग था। आज के समय में वाणी का उपयोग अपने आप को प्रमोट करने के लिये किया जाने लगा है। कुछ दिनों पहले वरुण गांधी की पहचान मेनका गांधी के पुत्र के रूप में ही होती थी, पर एक वाक्यांश ने उनका नाम देश के कोने-कोने में पहुंचवा दिया। उसी तर्ज पर एक और वाक्य बम फटा और रीता बहुगुणा हर चैनल और अखबार की सुर्खियों में छा गयीं। वैसे राजनीति के पंक में लिथड़े पड़े महत्वाकांक्षी लोगों के लिये तुरंत अग्रिम पंक्ति में आने का यह रास्ता आज के कतिपय दिग्गज कहलाने वाले नेताओं नेत्रियों ने ही खोला और सुझाया था। इसका फायदा तो यह है कि आप एक झटके में खबरों में छा जाओ। कुछ हाय-तौबा मचती है पर वह टिकाऊ नहीं होती। धीरे-धीरे छाछ अलग हो जाती है और मक्खन ही मक्खन बचा रह जाता है। यह सोचने की बात है कि इस तरह की अमर्यादित टिप्पणियों का हश्र मालुम होने के बावजूद लोग क्यों जोखिम मोल लेते हैं। समझ में तो यही आता है कि यह सब सोची समझी राजनीति के तहत ही खेला गया खेल होता है। इस खेल में ना कोई किसी का स्थाई दोस्त होता है नही दुश्मन। इसका साक्ष्य तो सारे देश ने पिछले दिनों देखा ही था। इस नये वक्य बम से जो हड़कंप मचा है वह भी जल्द शांत हो जायेगा। उसके फायदे और नुक्सान का आकलन भी जल्दि ही सामने आ जायेगा।
कौन नहीं जानता कि द्रोपदी के एक वाक्य ने महाभारत जैसे युद्ध की नींव ड़ाल दी थी। वहीं, इतिहास के अनुसार, पोरस और सिकंदर में सुलह-सफाई हो गयी थी।
पर शायद वह जमाना ही अलग था। आज के समय में वाणी का उपयोग अपने आप को प्रमोट करने के लिये किया जाने लगा है। कुछ दिनों पहले वरुण गांधी की पहचान मेनका गांधी के पुत्र के रूप में ही होती थी, पर एक वाक्यांश ने उनका नाम देश के कोने-कोने में पहुंचवा दिया। उसी तर्ज पर एक और वाक्य बम फटा और रीता बहुगुणा हर चैनल और अखबार की सुर्खियों में छा गयीं। वैसे राजनीति के पंक में लिथड़े पड़े महत्वाकांक्षी लोगों के लिये तुरंत अग्रिम पंक्ति में आने का यह रास्ता आज के कतिपय दिग्गज कहलाने वाले नेताओं नेत्रियों ने ही खोला और सुझाया था। इसका फायदा तो यह है कि आप एक झटके में खबरों में छा जाओ। कुछ हाय-तौबा मचती है पर वह टिकाऊ नहीं होती। धीरे-धीरे छाछ अलग हो जाती है और मक्खन ही मक्खन बचा रह जाता है। यह सोचने की बात है कि इस तरह की अमर्यादित टिप्पणियों का हश्र मालुम होने के बावजूद लोग क्यों जोखिम मोल लेते हैं। समझ में तो यही आता है कि यह सब सोची समझी राजनीति के तहत ही खेला गया खेल होता है। इस खेल में ना कोई किसी का स्थाई दोस्त होता है नही दुश्मन। इसका साक्ष्य तो सारे देश ने पिछले दिनों देखा ही था। इस नये वक्य बम से जो हड़कंप मचा है वह भी जल्द शांत हो जायेगा। उसके फायदे और नुक्सान का आकलन भी जल्दि ही सामने आ जायेगा।
6 टिप्पणियां:
yahan to har cheej men nafa nuksaan dekha jata hai.
एकदम सही आंकलन है आपका.
अफसोसजनक घटनाक्रम रहा/
जुबान पर काबू रखना चाहिये। यह चाहे तो तूफान खड़ा कर दे या शांति का समुद्र लहरा दे। रहीमजी ने तो बाकायदा चेतावनी दी है -
"रहिमन जिह्वा बावरी, कहिगै सरग पाताल।
आपु तो कहि भीतर रही, जूती सहत कपाल।"
शिक्षाप्रद पोस्ट के लिए बधाई।
एकदम सटीक आलेख.. आभार
बिल्कुल सोचा समझा नासमझ भाषण..
एक टिप्पणी भेजें