कुबेर को धन का संरक्षक माना जाता है। पूराने मंदिरों में उनकी मुर्तियां दरवाजे पर स्थापित मिलती हैं। परंतु उन मुर्तियों में उन्हें कुरूप, मोटा और बेड़ौल ही दिखाया गया है। दिग्पाल के रूप में या यक्ष के रूप में उनका विवरण मिलता है। पर उन्हें कभी दूसरी श्रेणी के देवता से ज्यादा सम्मान नहीं दिया गया। नाहीं कहीं उनकी पूजा का विधान है। उनके पिता ऋषि विश्रवा थे, जो लंकापति रावण के भी जनक थे। हो सकता है कि रावण के कुल गोत्र का होने से उनकी उपेक्षा होती गयी हो।
धन के संरक्षक होने के बावजूद उन्हें कभी भी लक्ष्मीजी के समकक्ष नहीं माना गया। क्योंकि लक्ष्मीजी के साथ परोपकारी भावना जुड़ी हुई है। कल्याणी होने की वजह से वे सदा गतिशील रहती हैं। वे धन को एक जगह ठहरने नहीं देतीं। पर कुबेर के साथ ठीक उल्टा है। इनके बारे में धारणा है कि इनका धन स्थिर रहता है। इनमें संचय की प्रवृति रहती है (शायद इसीलिये अपने रिजर्व बैंक आफ इंड़िया के बाहर इनकी प्रतिमा स्थापित की गयी है)। उनसे परोपकार की भावना की अपेक्षा नही की जाती।
वैसे भी कुबेर के बारे में जितनी कथायें मिलती हैं उनमें इन्हें पूर्व जन्म में चोर, लुटेरा यहां तक की राक्षस भी निरुपित किया गया है। यह भी एक कारण हो सकता है कि इनकी मुर्तियों में वह सौम्यता और सुंदरता नहीं नजर आती जो देवताओं की प्रतिमाओं में नज़र आती है।
इनकी कल्पना धन का घड़ा लिये हुए की गयी है तथा निवास सुनसान जगहों में वट वृक्ष पर बताया गया है। लगता है कि इनको जो भी सम्मान मिला है वह इनके धन के कारण ही मिला है श्रद्धा के कारण नहीं। क्योंकी वह धन भी सद्प्रयासों द्वारा नहीं जुटाया गया था। इसीलिये इनकी कहीं पूजा नहीं होती।
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इनकी कल्पना धन का घड़ा लिये हुए की गयी है तथा निवास सुनसान जगहों में वट वृक्ष पर बताया गया है। लगता है कि इनको जो भी सम्मान मिला है वह इनके धन के कारण ही मिला है श्रद्धा के कारण नहीं। क्योंकी वह धन भी सद्प्रयासों द्वारा नहीं जुटाया गया था। इसीलिये इनकी कहीं पूजा नहीं होती।
13 टिप्पणियां:
इसका अर्थ यह है कि विद्या की तरह ही धन भी बांटने की ही चीज है .. धन्यवाद !!
बहुत सुन्दर और महत्वपूर्ण जानकारी. कुबेर का कहीं से ढूँढ ढांड कर एक चित्र भी दे देते तो मजा आ जाता.
bahut hi uttam jankari...... yadi ek phoo hoti to accha hota
यक्ष, कुबेर आदि को अर्धदेव माना गया है यह देवताओं का षड्यंत्र है जिसे मनुष्य ने निरुपित किय है . सुब्रमणियम जी मैने अभी अभी अपने ब्लोग पुरातत्ववेत्ता पर कुबेर की अन्नपूर्णा माता के रूप मे पूजा का एक किस्सा दिया है और एक तस्वीर भी लगाइ है क्रपया देखें http://sharadkokas.blogspot.com
शर्मा जी!
बढ़िया जानकारी दी है,
आभार!
अच्छी पोस्ट के लिए आभार
- लावण्या
आज भी बहुत से लोगों को इसिलिये सम्मान मिल जाता है कि वे कुबेर के कृपापात्र हैं।अच्छा लिखा आपने।
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