निजाम, बेपनाह दौलत का मालिक, इंग्लैंड से भी बड़े भूभाग का एकछत्र बादशाह, करोंडों रुपये सालाना की आमदनी पाने वाला संसार के धनाढ्य लोगों में से एक व्यक्ति। पर मानसिकता भिखारियों से भी बदतर। परले दर्जे का कंजूस। बेशुमार संम्पत्ती का स्वामी मैले तथा पैबंद लगे कपड़े पहने रहता था। उसकी टोपी पर मैल की परतें चढी रहती थीं। पैसा उसकी जान था। रोज नमाज के बाद वह अपनी कमर में लटकती चाबी से अपने खजाने को खोल उसमें रखे हीरे, जवाहरात तथा अशर्फियों के ढेर को देख अपने दिन की शुरुआत करता था। जब की उसकी बेगमें और औलादें सीलन भरे कमरों में नौकरों से भी बदतर अपनी जिंदगी के दिन काटने पर मजबूर थे। बड़े से बड़े रसूख वाले मेहमान को भी एक बिस्कुट और एक छोटे प्याले में चाय के अलावा उसने कभी भी किसी को कुछ पेश नहीं किया। पर उसे यदि कोई सिगरेट आफर करता था तो वह बेहिचक चार-पांच उठा लेता था। वैसे खुद हैदराबाद की सस्ती चारमीनार सिगरेट पीता था और उसके भी बचे टोटों से तंबाखू निकाल पाईप में इस्तेमाल करता था। उसकी कंजूसी की बात करें तो पूरी पोथी भर जाए। फिर भी एक दो बानगियां देखें :-
एक बार निजाम ने अपने मित्र दतिया नरेश से दतिया का मशहूर देसी घी खाने की इच्छा जताई। उन्होंने तुरंत दर्जनों टीन घी हैदराबाद भिजवा दिया। परंतु खत्म हो जाने के ड़र से निजाम ने ना घी खुद खाया ना किसी और को खाने दिया। दो एक वर्ष बीतने पर घी सड़ने लगा और उसकी दुर्गंध फैलनी शुरु हो गयी। जब गंध असह्य हो गयी तो निजाम ने अपने कोतवाल वेंकटराम रेड्डी को बुला घी को मंदिरों में बेच आने को कहा। रेड्डी एक बुद्धिमान और चतुर अधिकारी था। वह सड़े घी को मंदिरों में पहुंचाने का अंजाम जानता था। उसने सारा घी फिंकवा दिया और अपनी जेब से निजाम को पैसे दे दिये। निजाम भी मुफ्त के पैसे पा खुश हो गया।
चाटूकारों और अवसरवादीयों से घिरे निजाम का शासन रेड्डी जैसे अधिकारियों की बदौलत ही चल रहा था। एक बार बगीचे से आमों की आवक हुई। कुछ आम खराब होने की कगार पर थे। निजाम के उन्हें बेच देने के कहने पर रेड्डी ने कहा कि यह कोई नहीं लेगा। इस पर कुछ चापलूस दरबारियों ने उसकी बात काट कर कहा कि हुजूर इनकी तो कोई भी अच्छी कीमत दे देगा। निजाम ने रेड्डी को कहा कि जब ये बोल रहे हैं तो तुम कोशिश क्यों नहीं करते। दूसरे दिन रेड्डी ने वह सारे आम उन्हीं दरबारियों के घर भेज कर पैसे वसूल कर निजाम को थमा दिये। निजाम बोला मैं कहता था ना कि इनकी कीमत मिल जायेगी।
एक बार तो निजाम ने हद ही कर दी। लखनाऊ के मशहूर इत्र के व्यापारी असगर अली ने अपनी दुकान के उद्घाटन के लिये निजाम को न्योता दिया था। समारोह में सोने के ताले को चांदी की चाबी से खोलने के लिये जब चांदी की तश्तरी में चाबी पेश की गयी तो जनाब ने ताला खोल तश्तरी समेत ताला और चाबी भी अपनी जेब के हवाले कर ली। लोगों ने सोचा कि गलती से ऐसा हो गया होगा। इसके बाद दुनिया के बेहतरीन इत्रों को निजाम ने देखा, परखा और वहां सजे लाखों रुपये के इत्र को अपने निवास पर भिजवाने का हुक्म दे दिया। असगर अली बाग-बाग हो गया। एक ही झटके में उसका सारा माल बिक गया था। लोगों ने बधाईयों की झडी लगा दी। पर उस माल का पैसा बार-बार मांगने और कंपनी सेक्रेटरी से लेकर वायसराय तक को शिकायत करने के बावजूद असगर अली को कभी नहीं मिल पाया। इधर निजाम ने उस इत्र को छोटी-छोटी शीशियों में भरवा कर अपने दरबारियों, मुसाहिबों तथा कर्मचारियों को बेच करोंडों कमा लिये।
12 टिप्पणियां:
रोचक और बिल्कुल नई जानकारी।
आभार।
waah re nizam,ye bhi khub rahi.
आपके पास गजब-गजब खबरें रहती हैं। मजेदार पोस्ट।
हां इनके बारे ऐसा सुना है. बहुत रोचक जानकारी दी आपने.
रामराम.
बहुत अच्छे कंजूसी के किस्से...
हैदराबाद के निजाम की सनक के किस्से हमने भी खूब सुने हैं । यहाँ भी देख लिया । धन्यवाद ।
बहुत ही रोचक्।
तो चलते चल्ते, हैदराबादी से भी एक किस्सा सुन लीजिए:)
ईद के मौके पर निज़ाम ने अपने बेटे मोज़मजाह को अपने कपडे तोहफ़े के तौर पर भेज दिये। मोज़मजाह ने वो कपडे़ यह कह कर लौटा दिए कि "जिस के सर पर बाप का साया हो, वह उतारे हुए कपडे़ नहीं पहनता"!!
हैदराबाद के निजाम के अनसुने किस्से सुन कर मज़ा आया .
दतिया के लोग ऐसे ही भले होते हैं . में भी दतिया का हूँ और अपनी बहुत सारी रद्दी किताबें लोगों को उपहार में देना चाहता हूँ बशर्ते कोई सुपात्र मिले
बहुत रोचक किस्सा. इन्हें तो गिनीज में स्थान मिलना चाहिये.
क्या आप मुझे इस जानकारी का Source mail kar sakte hai ki ye kahan se aapko mila hai..mujhe apne research k liye iske jarurat hain thanks
Franklinnigam79@gmail.com
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