मंगलवार, 18 नवंबर 2008

एक रपट पड़ोसी देश से

दैनिक भास्कर अखबार में हर रविवार को जाहिदा हिना जी पकिस्तान से अपनी रपट लिखती हैं। उन्हीं के एक लेख के कुछ अंश दे रहा हूं। शायद जिससे बिना कुछ जाने इधर बैठे, उधर को स्वर्ग बता कर, अल्पसंख्यकों की भावनाओं से खेल, अपनी रोटी सेकने वालों को कुछ तो संकोच का एहसास हो।

जाहिदा जी के अनुसार पाकिस्तानी सरकार ने गरीब और बेसहारा महिलाओं को कुछ राहत देने के लिए उन्हें एक हजार रुपये देने का प्रावधान रखा है। उसके लिए एक पहचान पत्र की जरूरत होती है। इस पहचान पत्र की इतनी अहमियत है कि इसके बिना कोई वोट नहीं दे सकता है नही बैंक में एकाउंट ही खुल सकता है यहां तक कि रेल के टिकट के लिए भी इसकी जरूरत पड़ती है। फिर भी गांव देहात में औरतों के कार्ड़ नहीं बनाए जाते। पर हजार रुपये की घोषणा होने पर अब घर के मर्द ही महिलाओं को लेजा कर कार्ड बनवा रहे हैं। पर यहां भी औरतों की बदनसीबी आड़े आ रही है। सूबा-सरहद के एक छोटे से शहर लिंड़ी कौतल से खबर आयी है कि चरम पंथियों ने वार्निंग जारी की है कि औरतें सरकारी दफ्तर ना जाएं, क्योंकि यह गैर इस्लामी काम है और बेहयाई भी। घर के मर्दों को भी फरमान जारी हुआ है कि अपनी औरतों को घरों में रखें नहीं तो उनके खानदानों को इसकी सजा दी जाएगी। अब एक तरफ पेट की आग है तो दूसरी तरफ मौत का खौफ।

अभी कुछ दिनों पहले ब्लूचिस्तान में कुछ लड़कियों को जिंदा जला दिया गया था। मामला पकिस्तान के अपर हाऊस में उठाया गया तो वहां के सिनेटर ने हंगामा मचा दिया। उसके अनुसार औरतों को कत्ल करना बलूच परंपरा है और इसके खिलाफ आवाज उठाने की इजाजत नहीं दी जा सकती। विड़ंबना यह रही कि उस सिनेटर को मिनिस्टर बना दिया गया है।

सिंध की परंपरा रही है कि दो खानदानों की दुश्मनी खत्म करने के लिए आपस में शादियां करवा दी जाती हैं। इसी को ध्यान में रख तस्लीम नाम की लड़की ने अपने डाक्टर बनने के सपने को तोड़ आपसी रंजिश खत्म करने के लिए दूसरे खानदान में अपनी मर्जी से शादी कर ली। पर उसकी कुर्बानी बेकार गयी। झगड़ा तो खत्म नहीं हुआ उल्टे उसकी जान ले ली गयी। मारने के पहले उस पर कुत्ते छोड़े गये, जिन्होंने उसे भभोंड़ कर रख दिया। फिर उसकी मुश्किल हल करने के लिए उसे गोली मार दी गयी। अब उसकी मां और घरवाले फरियाद करते घूम रहे हैं। पर कोई सुनवाई नहीं हो रही। जबकि इस घटना का गवाह एक पत्रकार भी है। वजह, जहां कत्ल हुआ वह सिंध के चीफ मिनिस्टर का इलाका है।

यह कुछ घटनाएं हैं जो प्रकाश में आ गयीं हैं। कितनी-कितनी बातें डर से या और बहुत से कारणों से दबा दी जाती हैं। एक आवाज थी, बेनजीर भुटटो की, जो महिलाओं को उनका हक दिलवा सकती थी। पर उसे भी खामोश कर दिया गया।

6 टिप्‍पणियां:

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर ने कहा…

bahut sahi, aisa hee hota hai
narayan narayan

P.N. Subramanian ने कहा…

भारत के मुसलमान क्या इससे कोई सीख लेंगे? आभार.
http://mallar.wordpress.com

Dr. Ashok Kumar Mishra ने कहा…

अच्छा लिखा है आपने । मैने अपने ब्लाग पर एक लेख महिलाओं के सपने की सच्चाई बयान करती तस्वीर लिखा है । समय हो तो उसे पढें और राय भी दें-

http://www.ashokvichar.blogspot.com

राज भाटिय़ा ने कहा…

मेरे तो रॊगटे खडे हो गये...
धन्यवाद

Alpana Verma ने कहा…

behad dardnaak kissa hai..padhkar vishwas nahin hota ki aaj ke samay mein bhi aisa hota hai...

waisey yahan baluchii jyadatar taxi chalane waley hain aur batatey hain ki
aaj bhi un ke areas mein na bijali hain na paani-na hi mool suvidhyaYen--na hi sadaken-un ke anusaar-bahut hi buri halat hai baluchistan ki--

Smart Indian ने कहा…

बेहद शर्मनाक!

विशिष्ट पोस्ट

रणछोड़भाई रबारी, One Man Army at the Desert Front

सैम  मानेक शॉ अपने अंतिम दिनों में भी अपने इस ''पागी'' को भूल नहीं पाए थे। 2008 में जब वे तमिलनाडु के वेलिंगटन अस्पताल में भ...