बुधवार, 12 नवंबर 2008

टिप्पणीयों को लेकर कटुता न फैले

24 अक्टूबर को मैने टिप्पणी माडरेशन पर अपनी व्यक्तिगत राय रखी थी। जिस पर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं आईं थी। उसी विषय पर कल सुरेश चिपलूनकर जी की पोस्ट आई। पर उस पर की गयी टिप्पणियों में थोड़ी कटुता का आभास मिल रहा था। मेरा तो इस पर फिर यही कहना है कि, 'मुंडे-मुंडे मतिर्भिन्ना'। जितने लोग हैं उतने दिमाग हैं, उतनी ही राय हैं। सब को अपने विचार रखने का हक है। यदि हमें एक-दूसरे की राय अच्छी नहीं लगती, तो बजाय कटुता बढ़ाने के बात वहीं खत्म कर देना उचित है। एक सलाह दी गयी थी कि माडरेशन से एक अपमानजनक स्थिति बन जाती है और जैसा कि कुश ने कहा कि अपनी मेहनत बेकार जाती लगती है। तो इससे मैं पूरी तरह सहमत हूं। पर यदि सामने वाला अपने बारे में कुछ अच्छा भी नहीं सुनना चाहता तो हम ही क्यों जबरदस्ती अपना समय और दिमाग खराब करें। तो जैसा चल रहा है वैसा ही चलने दिया जाए। जब उनकी बात हमें ठीक नहीं लगती तो उनको भी पूरा हक है कि हमारी बात मानें या ना मानें।

6 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

धन्यवाद जी

राहुल सि‍द्धार्थ ने कहा…

हम यहां कटुता फैलाने के लिए नहीं है सो सबको इसका ध्यान रखना चाहिए.गुरूपर्व की बधाई

राज भाटिय़ा ने कहा…

असी तुहाडी गल तो राजी हां जी

जितेन्द़ भगत ने कहा…

आपने सही कहा, असहमति‍ जताता अलग बात है, गाली देना अलग। बस बात को सलीके से रखने की अदा चाहि‍ए।

Unknown ने कहा…

टिपण्णी लिखने में समय लगता है, उर्जा का भी व्यय होता है. कमेन्ट मोडरेशन इस नाते अच्छा नहीं लगता. पर अगर कोई ऐसा करता है तो क्या किया जाय. मैंने ऐसे बहुत से ब्लाग्स को अपनी ब्लाग लिस्ट से निकाल दिया है. आप लोग भी ऐसा कर सकते हैं.

Smart Indian ने कहा…

आज के इस साइबर जंगल में किसी के घर में दरवाज़ा लगे होने पर हम सिर्फ़ इसलिए ऐतराज़ नहीं कर सकते हैं क्योंकि हमें खुले में रहना निरापद लगता है. और न ही इस विचार में कोई अक्लमंदी है की मैंने उन घरों में जाना छोड़ दिया है जिन में दरवाजा लगा हुआ है. आज के समय में जहाँ हर आयु-वर्ग के लोगों की पहुँच इन्टरनेट तक है और साथ ही हर दर्जे का स्पैमर अपना कचरा किसी भी खुले हुए दरवाज़े में फैंकने को तैयार बैठा है, वहाँ पर मोडरेशन रखना हमारी नैतिक जिम्मेदारी बन जाती है. फ़िर भी हर ब्लॉगर को स्वतंत्रता है की वह जैसा ठीक समझे करे, हम अपनी राय व्यक्त कर सकते हैं मगर उससे भिन्न राय रखने वालों का बहिष्कार (अपनी अपनी ब्लाग लिस्ट से निकाल देना आदि) करने को मैं असहिष्णुता ही समझता हूँ. मार्क ट्वेन की बात याद आती है, "दूसरों पर वैसा व्यवहार मत थोपो जैसा तुम अपने लिए चाहते हो, हो सकता है की उनकी अभिरुचि तुमसे अलग हो."

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