गुरुवार, 27 नवंबर 2008

कहाँ मुंह छिपाए बैठे हैं

कहां हैं देवताओं के नाम वाली सेनाओं के सेनापति? लोग भी समझ लें कि सिर्फ नाम रख लेने से ही देवत्व नहीं आ जाता। क्यूं नहीं जागती इनकी गैरत? कहां मुंह छिपाये छिपे बैठे हैं निर्दोषों पर कहर बरपाने वाले? अपने ही देश के गरीब, निहत्थे, बेसहारा लोगों पर अपनी मर्दानगी दिखाने वालों को क्यूं सांप सूंघ गया है। बात तो तब होती कि आज सामने आकर ललकारते देश के दुश्मनों को। जतला देते कि हम सचमुच अपने राज्य के लोगों की चिंता करते हैं। पर नहीं उस खेल में और इस हकीकत में जमीन-आसमान का फर्क है। वहां जान लेने पर भी खुद पर आंच ना आने की गारंटी थी। यहां सीधे ऊपर जाने का रास्ता नजर आता है।

8 टिप्‍पणियां:

seema gupta ने कहा…

" कायर हैं डरपोक हैं सामने कैसे आयेंगे..."

regards

Manuj Mehta ने कहा…

वाह बहुत सशक्त रचना. मेरी बधाई स्वीकार करें.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

agar bajrang dal ki baat kar rahe to meri ghor asahmati.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

agar bajrang dal ki baat kar rahe to meri ghor asahmati.

राज भाटिय़ा ने कहा…

अरे अब कहां चुप बेठा है, अपने आप को शेर कहता है, अपने ही भाईयो को मार कर खाता है...

Smart Indian ने कहा…

वेलेंटआइन डे के कार्ड खरीदने वाले किशोरों को मुर्गा बनाकर अपनी दादागिरी दिखाने के काम आते हैं उनके वज्रांग. दूसरे दल वाले अपनी ही बेटियों के चेहरे पर तेजाब डालने में बहादुरी समझते हैं. रहनुमा हर दूसरे प्रदेश के ख़िलाफ़ बयानबाजी देने की ड्यूटी निभा रहे हैं. हम कलमवीर अपनी कुर्सी पर बैठकर बाकी सब को कोसकर देशभक्ति की रस्म पूरी कर केते हैं. जान अंततः देश का वीर सिपाही ही देता है इन सबके लिए - हम सबके लिए!

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अनुराग जी,
नमस्कार।
आपकी बात सही है। पर यह तो आप भी मानेगें कि इसी कलमवीरता के कारण अनेकों बार क्रांतियां हुई हैं, जनजागरण हुआ है, तानाशाह हों या अक्षम शासन इसी ने देशों की तकदीर बदली है। हर काम तो हरेक के बस का नहीं होता, पर अपने काम के प्रति जोश जगाना दिशा दिखाना भी कम कर्तव्यशीलता से कम नहीं है।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

मेरा इशारा राज ठाकरे और उनकी सेना की तरफ था। ऐसी परिस्थितियों में शब्दों में कटुता आ जाती है। मन उद्विग्न रहता है। पर इस घटना पर राष्ट्र ने जो एकजुटता दिखाई है, इससे सिर्फ सत्ता हथियाने की राजनीति करने वालों को आत्ममंथन करने की आवश्यकता है।

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