गुरुवार, 23 अक्टूबर 2025

असली चेहरा सामने आया, फितरत को भी सामने लाया

दरअसल ऐसे लोग राजनेता हैं ही नहीं ! उन्हें देश, धर्म, जाति, देशवासियों, किसी से भी कुछ लेना-देना नहीं है ! उन्हें मतलब है सिर्फ और सिर्फ अपने हितों से ! और इसके लिए वे कुछ भी करने को आतुर रहते हैं ! वे सिर्फ विदेशी ताकतों के मोहरे हैं जिन्हें येन-केन-प्रकारेण सत्ता हासिल करवा दी गई है और वे अपने आकाओं की बिछाई बिसात पर सिर्फ उनके आदेशानुसार हरकतें करते हैं....!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

वि देशी ताकतों द्वारा भारत में अपनी कठपुतलियों की असलियत को अब तक ढक-छुपा कर उनकी आड़ में खुद को सत्ता में सुपर पॉवर बनाए रखने का जो षड्यंत्र सालों से किया जाता रहा था, वह खुल कर सामने आ गया है ! आज के माहौल में उन्हें भी यह बात समझ में आ गई है कि अब भारत में इन प्यादों के बल पर अपने मनोनुकूल सरकार बनाना कतई मुमकिन नहीं है ! तो अब खुला खेल फर्रुखाबादी ! 
प्यादे 
पि छले दसेक वर्षों से कुछ तथाकथित राजनितिक लोग सनातन विरोधी, हिंदू विरोधी, धर्म विरोधी ब्यान पर ब्यान दिए जा रहे हैं, कोई कहता है हिन्दू धर्म ग्रंथ जला दो ! कोई देवी-देवताओं को काल्पनिक बताता है ! कोई लोकप्रिय त्योहारों को खतरनाक बता लोगों को भ्रमित करने की कुचेष्टा करता है ! कोई किसी उत्सव पर सवाल खड़े करने की हिमाकत कर देता है ! कोई देवी-देवताओं के बारे में अभद्र टिप्पणियां कर देता है! कोई अपने पर्वों पर होने वाले खर्च को धन की बर्बादी बता, विदेशी धर्मों से सीख लेने की बात करता है ! वह भी तब जब देश की बहुसंख्यक आबादी सनातन की आस्था से जुड़ी हुई है ! यह सब अकारण नहीं हो रहा, सब सोची-समझी साजिशों के तहत क्रियान्वित किया जा रहा है !
बकैती 

आम इंसान को यह सब वर्षों से सत्ता से दूर विपक्षी दलों की छटपटाहट या आक्रोश लग सकता है ! पर सच्चाई किसी और ही दिशा-दशा की ओर इशारा करती है ! आज के देश के माहौल को देखते हुए कोई भी व्यक्ति जो राजनीती से जुड़ा हो और उसे जरा सी भी राजनितिक समझ होगी तो वह कभी भी ऐसे ब्यान दे कर अपने कैरियर को खत्म नहीं करना चाहेगा ! दरअसल ऐसे लोग राजनेता हैं ही नहीं ! उन्हें देश, धर्म, जाति, देशवासियों किसी से भी कुछ लेना-देना नहीं है ! उन्हें मतलब है सिर्फ और सिर्फ अपने हितों से ! और इसके लिए वे कुछ भी करने को आतुर रहते हैं ! वे सिर्फ विदेशी ताकतों के मोहरे हैं जिन्हें येन-केन-प्रकारेण सत्ता हासिल करवा दी गई है और वे अपने आकाओं की बिछाई बिसात पर सिर्फ उनके आदेश के अनुसार ही हरकतें करते हैं ! 
बिसाती मोहरे 
ऐसा नहीं है कि शतरंज की बिसात बिछा उस पर सिर्फ प्यादों की परेड करवा दी जाती हो ! अपने उद्देश्य की पूर्ती के लिए पूरा ताम-झाम किया जाता है ! अकूत धनराशि खर्च की जाती है ! तरह-तरह के आख्यान-व्याख्यानों का जाल बिछाया जाता है ! प्रचार-प्रसार हेतु सोशल मीडिया का उपयोग-दुरूपयोग किया जाता है ! हर ऐसी शह जो इंसान के ईमान को डगमगा दे उसका उपयोग किया जाता है ! जिस किसी व्यक्ति का जरा सा भी रसूख या पहुँच होती है उसे खरीद कर अपनी दुरभिसंधि का सदस्य बना लिया जाता है ! पैसे का लालच दे कुछ भी बुलवा-लिखवा लिया जाता है ! पैसे को ही सर्वशक्तिमान बना दिया गया है !
सोशल मिडिया 
खरीदफरोख्त 
धन की शक्ति अपरंपार है ! दुनिया का कोई भी कोना उससे सुरक्षित नहीं है ! उसी के बल पर झूठ को सच की शेरवानी पहनवा, सजा-संवार कर उसकी बारात निकाल दी जाती है ! यह तो जग जाहिर है कि जब तक सच अपनी चप्पलें पहनता है, झूठ दुनिया के दस चक्कर लगा आता है और ऐसे लोग तो अपने धन-बल पर झूठ के लिए रॉकेट तक उपलब्ध करवा देते हैं ! लोग बहकावे में आ जाते हैं ! उधर विडंबना यह है कि सच को अपना सच बताने के लिए भी धन की शरण लेनी पड़ती है ! पर समय ने बदलना शुरू कर दिया है !

सच्चाई 
इसी सब के बीच अचानक देश की आजादी से भी पहले से रचा जा रहा, पर अब तक दबा-ढका, एक ऐसा कुचक्र सामने आया है जिससे सभी अचंभित से हो गए हैं ! कोई खुद पाक-साफ रह कर, वर्षों से किसी को किसी और के विरुद्ध बरगला कर, किसी और से मतभेद करवा कर, किसी और  मुद्दे को भड़का कर लोगों को भ्रमित कर, उनका ध्यान कहीं और भटकवा कर, अपना उल्लू सीधा करता रहा ! उसका तरीका इतना प्रेममय,  दोस्ताना,  सौहार्दपूर्ण और स्नेहयुक्त था कि लोग  उसके इरादों  को कभी  भांप ही नहीं पाए ! परंतु वक्त सब का हिसाब करता और रखता है, उसका भी हुआ और उसके क्रियाकलापों की नग्नता सामने आ ही गई और जब आ ही गई तो वह भी खुल कर अब तक छुपे अपने गुर्गों, गणों के साथ सामने आ गया ! उसका नतीजा सबके सामने है और अब हमारी बारी है कि हमें किससे कैसे निपटना है !  
वन्देमातरम।। 

@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से 

गुरुवार, 9 अक्टूबर 2025

यहां हनुमान जी की देवी स्वरूप में पूजा होती है

इसके पीछे रामायण के लंका कांड में वर्णित उस घटना की मान्यता है, जिसमें अहिरावण राम व लक्ष्मण जी को छल से उठाकर, पाताल लोक ले जा कर अपनी आराध्य कामदा देवी को उनकी बलि चढ़ाना चाहता था, तभी हनुमान जी वहां जा कर मूर्ति में प्रवेश कर देवी के स्वरूप में उसका वध कर राम-लक्ष्मण दोनों भाइयों को अपने कंधों पर बैठा वापस ले आते हैं ! क्योंकि हनुमान जी ने मूर्ति में प्रवेश कर देवी का रूप धारण किया था, इसीलिए इस मंदिर में हनुमान जी की देवी स्वरूप में पूजा होती है..........!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

हमारा देश विचित्र, अनोखी, विलक्षण मान्यताओं से भरा पड़ा है ! कोई-कोई बात तो ऐसी होती है कि उस पर सहसा विश्वास ही नहीं होता ! पर जब वह बात साक्षात दिखती हो, उस मान्यता का सच में अस्तित्व नजर आता हो, तो अविश्वास की कोई गुंजाईश भी नहीं रह जाती है ! ऐसा ही एक अनोखा, अनूठा, सत्य हनुमान जी के मंदिर के रूप में छत्तीसगढ़ राज्य के रतनपुर जिले के गिरजाबंध इलाके में स्थित है !

मंदिर का मुख्यद्वार 
अपने देश में शायद ही कोई ऐसा इंसान हो जिसे हनुमान जी के बारे में कुछ भी पता न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता ! देशभर में हनुमानजी के कई लोकप्रिय चमत्कारिक मंदिर हैं और लगभग सभी मंदिर जागृत हैं। प्रत्येक मंदिर से उसका कुछ ना कुछ इतिहास भी जुड़ा हुआ है। पर उनके इस मंदिर के बारे में जानने वालों की संख्या बहुत ही सिमित है, यहां तक कि इस जगह से सिर्फ 140 कि.मी. या उससे भी कुछ कम दूरी पर स्थित राज्य की राजधानी रायपुर के अधिकांश लोगों को भी इस की कोई खास जानकारी नहीं है ! जो भी इसके बारे में सुनता है, चौंक कर रह जाता है !  
देवी स्वरूप 

विश्व के इस अनोखे, इकलौते मंदिर की विशेषता यह है कि इसमें हनुमान जी की देवी स्वरूप में पूरे साजोश्रृंगार के साथ पूजा-अर्चना की जाती है ! एक झटका सा लगा ना.....?? हनुमान जी, जो आजन्म ब्रह्मचारी रहे, हर नारी को पूज्यनीय माना ! उन्हीं की नारी स्वरूप में पूजा......!!  पर यह सच है ! इसके पीछे रामायण के लंका कांड में वर्णित उस घटना की मान्यता है, जिसमें अहिरावण राम और लक्ष्मण जी को छल से उठाकर पाताल लोक ले जा कर अपनी आराध्य कामदा देवी को उनकी बलि चढ़ाना चाहता है ! तभी हनुमान जी वहां जा कर मूर्ति में प्रवेश कर देवी के स्वरूप में उसका वध कर राम-लक्ष्मण दोनों भाइयों को अपने कंधों पर बैठा वापस ले आते हैं ! क्योंकि हनुमान जी ने मूर्ति में प्रवेश कर देवी का रूप धारण किया था, इसीलिए इस मंदिर में हनुमान जी की देवी स्वरूप में पूजा होती है !

श्री हनुमते नम:

हनुमान जी की यह नारी स्वरूप प्रतिमा दक्षिणमुखी है। दक्षिणमुखी हनुमान भक्तों के लिए परम पवित्र और पूज्यनीय माने जाते हैं ! इस प्रतिमा के बाएँ कंधे पर प्रभु श्रीराम और दाएँ कंधे पर लक्ष्मण जी विराजमान हैं। हनुमान जी के पैरों के नीचे दो राक्षसों की मूर्तियां भी बनी हुई हैं !   आस्था,विश्वास,

लोकमत के अनुसार 10वीं - 11वीं शताब्दी में हनुमान जी के परम भक्त रतनपुर के राजा रत्नदेव के पुत्र को गंभीर बिमारी ने जकड़ रखा था ! राजा को सपने में हनुमान जी ने दर्शन दे, अपने होने के स्थान की जानकारी दे, उसे एक तालाब खुदवा कर उसके पास स्थापित करने को कहा ! राजा ने उनकी आज्ञा का पालन किया ! उस तालाब में स्नान करने के पश्चात उनके पुत्र पृथ्वी देव को रोग से मुक्ति मिली ! मान्यता है कि आज भी उस तालाब में 21 मंगलवार स्नान करने से असाध्य रोगों से छुटकारा मिल जाता है और समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं !

मान्यताएं जैसी भी हों, लोकमत कुछ भी हो, पर यह सच है कि यह मंदिर अपने आप में विलक्षण है, अनोखा है, अद्भुत है ! कभी भी मौका मिले तो एक बार यात्रा तो करनी ही चाहिए ! 

@छवियां अंतर्जाल के सौजन्य से 

गुरुवार, 25 सितंबर 2025

''जेन-जी'', इस में भी सनातन सबसे आगे है

हमारे यहां तो लम्बी कतार है उदाहरणों की, श्री कृष्ण, नचिकेता से शरू करें तो आधुनिक युग में भी  लक्ष्मी बाई, चंद्रशेखर, खुदीराम बोस, विवेकानंद, जतिंद्र नाथ, भगत सिंह, उमाकांत कड़िया, करतार सिंह सराभा, गिनते-गिनते थक जाएंगे पर इन शूरवीरों के नाम खत्म नहीं होंगे.........!

#हिन्दी_ब्लागिंग  

युवा वर्ग को ले कर अचानक एक गढ़ा गया शब्द ''जेन-जी'' उमड़ता है और दुनिया भर पर वितान सा छा जाता है ! ऐसे शब्द पहले भी बनते-बिगड़ते रहे हैं, तरह-तरह के बदलावों से उन्हें जोड़ा जाता  रहा है ! आज इसे यदि युवाओं की क्रांति से जोड़ा जा रहा है तो, युवा तो हर युग में हुआ है ! क्रांतियां तो युवाओं द्वारा ही होती हैं ! उन्हीं के द्वारा सदा गलत के विरोध में विद्रोह और प्रतिरोध हुए हैं !

सत्ता के विरुद्ध पहली क्रांति 

हमारे यहां तो यह चिर काल से होता आया है ! यदि अपने पूर्वाग्रह और कुंठा छोड़, सभी लाल-नीले-पीले, गोल-चपटे-तीरछी विचारधारा वाले, श्री कृष्ण चरित्र को पढ़ें तो ज्ञात हो जाएगा कि इस बारे में भी सनातन सबसे आगे है और उसका कोई सानी, कोई उदाहरण, कोई दृष्टांत, कोई मिसाल दुनिया में और कहीं नहीं मिलती ! 

जन-क्रांति 
श्री कृष्ण, जिनके विराट व्यक्तित्व को दुनियावी परिभाषाओं में नहीं बांधा जा सकता, हजारों-हजार साल पहले उन्होंने तो बाल्यकाल से ही अन्यायी, जन-विरोधी व्यवस्था का प्रतिरोध किया था ! युवा होते-होते इंद्र जैसी सत्ता को चुनौती दे डाली थी ! कंस जैसे महा शक्तिशाली राजा और उसके आतंक को खत्म कर डाला था ! 

अपने देश में तो लम्बी कतार है उदाहरणों की, श्री कृष्ण, नचिकेता से शरू करें तो आधुनिक युग में भी लक्ष्मी बाई, चंद्रशेखर, खुदीराम बोस, विवेकानंद, जतिंद्र नाथ, भगत सिंह, उमाकांत कड़िया, करतार सिंह सराभा गिनते-गिनते थक जाएंगे पर इन शूरवीरों के नाम खत्म नहीं होंगे ! 

पर इतिहास इस बात का भी गवाह रहा है कि यदि भौतिक बदलावों को छोड़ दें तो जो क्रांतियां, तानाशाही, भ्रष्टाचार, वंश, भाई-भतीजावाद के विरोध में की गईं वे तात्कालिक रूप से तो सफल रहीं, परंतु समय के साथ फिर उनके परिणामों में बदलाव आता चला जाता है ! फिर वही पुरानी बुजुर्वा ताकतें हावी होती चली जाती हैं ! पर अब अच्छी बात यह है कि आज का युवा तकनिकी तौर पर पहले से ज्यादा सक्षम ज्ञानवान तथा जागरूक है, उसे ना तो ''नेरेटिवों'' से बहकाया जा सकता है ना हीं उससे सच्चाई छिपाई जा सकती है ! देश का भविष्य सुरक्षित है और रहेगा ! 

जय हिन्द 🙏

@चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से 

शुक्रवार, 19 सितंबर 2025

बाबा हरभजन सिंह, मृत्योपरांत भी देश सेवा में लीन (वीडियो सहित)

समय-समय पर वे सपने में आ कर, अपने सैनिकों को सतर्क करते रहते हैं। कई बार उन्होंने विषम परिस्थितियों के आने के पहले ही सेना को सचेत किया है ! उनकी सूचना हर बार पूरी तरह सही साबित हुई है ! पर वे खुद कभी दिखाई नहीं पड़ते ! पर दूसरी ओर चीनी सैनिकों का मानना है कि उन्होंने एकाधिक बार रात में बाबा हरभजन सिंह को घोड़े पर सवार होकर सीमा पर गश्त लगाते हुए देखा है ...........!    

#हिन्दी_ब्लागिंग 

क्या यह संभव है कि कोई सैनिक अपने देश से इतना प्रेम करता हो कि अपनी मृत्यु के पश्चात भी वह अपनी मातृभूमि की सुरक्षा के लिए सदा सचेत व तत्पर रहता हो ! शायद हाँ ! यहाँ शायद कहना भी शायद गलत होगा क्योंकि इस बात का प्रमाण हम नहीं विदेशी देश के सैनिक देते हैं ! भारत माँ के उस वीर सपूत का नाम है, हरभजन सिंह, जिन्हें मृत्योपरांत अब बाबा हरभजन सिंह के नाम से सादर याद किया जाता है !

बाबा हरभजन सिंह 

मंदिर
मंदिर में स्थित प्रतिमा 
अगस्त, 30, 1946 को पंजाब के गुजरांवाला में जन्मे हरभजन सिंह, बचपन से ही फौजी बनना चाहते थे ! उनकी इस अदम्य इच्छा का ही परिणाम था जिससे 9, फरवरी 1966 को भारतीय सेना के पंजाब रेजिमेंट में एक सिपाही के तौर पर उनकी नियुक्ति हुई ! 1968 में उन्हें 23वें पंजाब रेजिमेंट के साथ पूर्वी सिक्किम के बार्डर पर तैनात किया गया।



उसी वर्ष की घटना है ! ऐसा कहा और माना जाता है कि 4, अक्टूबर 1968 को जब वे नाथुला दर्रे से डोंगचुई तक अपनी पोस्ट के लिए खच्चरों पर रसद लेकर जा रहे थे, तभी बदकिस्मती से उनका पैर फिसल गया और वे कई फुट नीचे नदी में जा गिरे, पानी का तेज बहाव उनके शरीर को बहा कर दूर ले गया। पांच दिनों की तलाश पर भी जब उनका पता नहीं चल पाया तो उन्हें लापता घोषित कर दिया गया !

दफ्तर और रेस्ट रूम 
कहा जाता है कि उन्होंने अपने साथी सैनिक प्रीतम सिंह के सपने में आकर अपनी मौत की खबर दी और यह भी बताया कि उनका शरीर कहाँ मिलेगा। प्रीतम सिंह की बात पर पहले तो किसी ने भी विश्वास नहीं किया पर शव भी नहीं मिल पा रहा था सो बताए गए स्थान पर गहन खोज की गई और ठीक उसी जगह हरभजन सिंह का पार्थिव शरीर मिल गया। सेना ने सम्मान पूर्वक उनका अंतिम संस्कार किया ! इसके कुछ दिनों के बाद प्रीतम सिंह को एक बार फिर सपने में आ कर हरभजन जी ने अपनी समाधि बनाने की इच्छा व्यक्त की ! उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए सेना के उच्च अधिकारियों ने “छोक्या छो” नामक स्थान पर उनकी समाधि बनवा दी ! 


समाधि बनने के बाद अजीबोगरीब वाकए होने लगे ! ऐसा लगने लगा जैसे मृत्यु के बाद भी हरभजन सिंह अपनी ड्यूटी करते हुए चीनी सेना की गतिविधियों पर नजर रखते हैं और समय-समय पर सपने में आ कर अपने सैनिकों को सतर्क करते रहते हैं। कई बार उन्होंने विषम परिस्थितियों के आने के पहले ही सेना को सचेत किया है ! उनकी सूचना हर बार सही साबित हुई है ! पर वे खुद कभी दिखाई नहीं पड़ते ! पर दूसरी ओर चीनी सेना ने बॉर्डर पर घोड़े पर सवार किसी जवान को अपनी निगरानी करते हुए पाया है ! इन बातों की पुष्टि सैन्य अधिकारीयों ने भी की है ! भारतीय सेना के जवान उन्हें ''नाथुला के नायक'' के रूप में याद करते हैं ! 

 


समाधि स्थल 
इन सब बातों के चलते, सेना द्वारा एक अद्भुत निर्णय लिया गया ! उसके द्वारा उन्हें मरणोपरांत कैप्टन की उपाधि से सम्मानित किया गया और बाकी सैनिकों की तरह हरभजन सिंह जी को भी वेतन, दो महीने की छुट्टी, इत्यादि सुविधाएं दी जाने लगीं ! दो महीने की छुट्टी के दौरान उनके घर जाने के लिए ट्रेन में दो सहायकों के साथ उनकी सीट बुक करवाई जाने लगी ! सेना के जवान बताते हैं कि बाबा को ड्यूटी पर कोई भी गफलत बर्दास्त नहीं है, जब कभी किसी सिपाही की सीमा पर पहरा देते वक्त आंख लग जाती है तो उनको अदृश्य चाटें भी पड़ते हैं, जैसे कोई उन्हें जगा रहा हो !

पूजा स्थल 
लोगों में इस जगह को लेकर बढ़ती आस्था तथा उनकी सुरक्षा और सुविधा को ध्यान में रखते हुए भारतीय सेना ने 1982 में  9 किलोमीटर नीचे एक मंदिर बनवा दिया, जिसे अब बाबा हरभजन मंदिर के नाम से जाना जाता है।  हर साल हजारों लोग यहां दर्शन करने आते हैं। मंदिर में बाबा हरभजन सिंह के जूते और बाकी का सामन रखा गया है। भारतीय सेना के जवान इस मंदिर की चौकीदारी करते हैं ! वहां पर तैनात सिपाहियों का कहना है कि रोज उनके जूतों पर किचड़ लगा हुआ होता है और उनके बिस्तर पर सलवटें भी दिखाई पड़ती हैं, जैसे उस पर कोई सोया हो ! ‌

बाबा हरभजन सिंह जी का छोटी सी उम्र में परलोक-गमन के कारण उनकी देश सेवा की अदम्य इच्छा पूरी नहीं हो सकी ! इसीलिए शायद उन्होंने अपनी अल्पकालीन देश सेवा को दीर्घकालिक में तब्दील करने के लिए ही उस लोक में जाने के बजाए अशरीरी रूप में यहीं रह अपने को मातृभूमि के लिए समर्पित कर दिया ! आज उस घटना को घटे करीब 57 साल होने जा रहे हैं, लेकिन उनकी आत्मा आज भी भारतीय सेना के लिए अपना कर्तव्य निभा रही है। सेना भी उनको सदा आदर के साथ याद रखती है। उसी ने उन्हें 'बाबा' की उपाधि दी है। वे हमेशा अमर रहेंगे।

मंदिर और चीनी सीमा 
 
कुहासे से घिरा मंदिर 

यह मंदिर सिक्किम राज्य की राजधानी गंगटोक से 59 किलोमीटर की दूरी पर नाथुला दर्रे से 9 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, यानी एक तरह से चीनी सीमा से लगा हुआ है ! उनकी निगाह हम पर सदा बनी रहती है ! इसके अलावा यहां का मौसम बिल्कुल अप्रत्याशित है ! एक पल में सुहाना, दूसरे पल में शीत लहर ! कभी कुहासा इतना गहरा कि कुछ गज देखना भी दूभर हो जाता है ! इसलिए यात्रा के पहले समुचित तैयारी होनी चाहिए ! सेना द्वारा संचालित यहां एक गिफ्ट शॉप भी है, जहां से यादगार के तौर पर खरीदारी की जा सकती है ! 

जय हिन्द ! जय हिन्द की सेना !!

गुरुवार, 28 अगस्त 2025

त्रासदी, नंबर दो होने की 😔 (विडियो सहित)

वीडियो में एक  व्यक्ति रैंप  पर स्नोबोर्डिंग  करने  की  कोशिश  करता  है, पर असफल  हो  जाता है। यूट्यूब पर जावेद करीम के दुनिया के पहले  वीडियो के  आने के  बाद अपलोड  हुआ यह दूसरा  ''माई स्नोबोर्डिंग स्किल्ज़'' नाम का वीडियो है ! असफलता इस  मायने में भी  कि यह पहले वीडियो ''मी एट द जू'' के कुछ घंटों बाद ही अपलोड  किया गया था !  विडंबना रही  कि समय ने  इसे प्रथम  अपलोड वीडियो होने से रोक, ख्याति से दूर कर नंबर दो के अभिशाप के साथ अज्ञातवास में धकेल दिया............!!    

#हिन्दी_ब्लागिंग 

दुनिया में समय, क्रम या पद में जो महत्व प्रथम, पहला, सर्वप्रथम यानी नंबर एक का है, उसके सामने अगले उपक्रम गौण हो कर रह जाते हैं ! चाँद पर उतरने वाले पहले मानव का नाम विश्वप्रसिद्ध हो गया पर कुछ क्षण बाद उतरने वाले को कितने लोग जानते हैं ? एवरेस्ट पर दूसरे सफल अभियान को कितने लोग जानते हैं ! बिंद्रा और नीरज ने स्वर्ण पदक जीते दूसरे नंबर पर कौन रहा, कुछ ही लोगों को इसमें दिलचस्पी होगी ! किसी भी खेल, प्रतियोगिता, परीक्षण, उपलब्धि, खोज या स्पर्द्धा में प्रथम को ही दुनिया याद रखती है, फिर भले ही वह उपलब्धि, क्षणांश से हो, रत्ती भर के फर्क से हो या भाग्य से ! डेटा एनालिस्टों को छोड़ दें तो आम इंसान की स्मृति में उसके लिए कोई स्थान नहीं बन पाता !   

सी संदर्भ में यूट्यूब पर अप-लोड किए गए पहले विडिओ को देखा जाए, जिसके बारे में लाखों लोगों को इतनी सारी जानकारी है कि 19 सेकेंड का MeAtTheZoo नामक यह विडिओ यूट्यूब के सह-संस्थापक जावेद करीम द्वारा 23 अप्रैल 2005 को सेन डियागो के चिड़ियाघर में हाथियों के सामने बना कर अपलोड किया गया था, जिसको अब तक 17 करोड़ से भी ज्यादा बार देखा जा चुका है ! पर इसके बाद दूसरा वीडियो कौन सा है, गिने-चुने यूट्यूबर को छोड़ कर शायद ही कोई बता पाए ! 

जावेद करीम 

खोज करने पर पता चला कि यूट्यूब पर अपलोड हुआ दूसरा वीडियो 'माई स्नोबोर्डिंग स्किल्ज़' नाम का है ! इसमें एक व्यक्ति रैंप पर स्नोबोर्डिंग करने की कोशिश करता है पर असफल हो जाता है। असफलता इस मायने में भी क्योंकि यह करीम के 'मी एट द ज़ू' वीडियो के कुछ घंटों बाद ही अपलोड किया गया था, समय ने इसे प्रथम अपलोड वीडियो होने से रोक, ख्याति से दूर कर, नंबर दो के अभिशाप के साथ अज्ञातवास में धकेल दिया ! 

यूट्यूब पर अपलोड होने वाला दूसरा वीडियो 

वैसे यूट्यूब पर 'असफल वीडियो' नाम की भी एक श्रेणी है, जिसमें लोग किसी खास गतिविधि, ज्यादातर खेल, कोई शारीरिक गतिविधि या क्रीड़ा करते हैं और असफल होते हैं। यूट्यूब पर अपलोड हुआ यह दूसरा वीडियो जाने-अनजाने इस श्रेणी का प्रथम वीडियो बन गया है ! इसे एक अमेरिकन यूट्यूबेर और स्नोबोर्डर ''MW'' द्वारा पोस्ट किया गया था, जिसने इसके बाद कोई और वीडियो पोस्ट नहीं किया। उसके पूरे नाम की भी जानकारी नहीं मिलती ! यह वीडियो भी पहले वाले की तरह कुछ खास नहीं है, लेकिन इतिहास के दूसरे सबसे पुराने यूट्यूब वीडियो का खिताब अपने नाम करने के बावजूद अज्ञात सा ही है ! इस लिंक पर वह वीडियो देखा जा सकता है - https://youtu.be/LeAltgu_pbM

तो इस सब का सार यही है कि दुनिया में अपनी पहचान और लोगों की यादाश्त में जगह बनानी है तो प्रथम या पहला होना अति आवश्यक है !  

@दोनों वीडियो अंतर्जाल के सौजन्य से 🙏

सोमवार, 18 अगस्त 2025

शौक या अत्याचार 😢(विडियो सहित)

कभी  आपने पिजंड़े में   कैद जानवरों  के  चेहरों को ध्यान से देखा है  ? जहां  हर जीव के  चेहरे पर छटपटाहट, बेबसी, निराशा, उदासी, थकावट,  उकताहट जैसे भाव  स्थाई हो कर रह गए होते हैं ! यहां आहार तो  इन्हें बिना किसी उपक्रम व परिश्रम  के मिल जाता है ! इसीलिए बिना दौड़-भाग के सिर्फ खाने और सोने के कारण उनकी शारीरिक क्रियाऐं दिन ब दिन शिथिल होती चली जाती हैं और ये समय से पहले बूढ़े, बीमार होते चले जाते हैं.........!       

#हिन्दी_ब्लागिंग 

इंसान सदा से एक फितरती प्राणी रहा है ! वह अपने आप को संसार के सभी जीवों से उत्कृष्ट मानता आया है ! उसे लगता है कि वही इस जगत का स्वामी है, बाकी सारे जीव-जंतु उसकी मिल्कियत हैं ! इतना ही नहीं यदि वह सक्षम व सशक्त भी हो जाए तो वह तो निरीह इंसानों तक को नहीं बख्शता,उनको अपना दास बना लेता है, जानवर क्या चीज हैं ! 

शौक की कीमत 
सी मानसिकता के चलते कई लोग अपने शौक की पूर्ती के लिए जानवरों के बच्चों को पालते हैं ! जिनमें कई खूंखार जंगली नस्लें भी होती हैं ! शौक-शौक है ! बस, उसे पूरा करने की क्षमता होनी चाहिए ! संसार में ऐसे सक्षमों की कोई कमी नहीं है ! 

जानवरों को पालना कोई बुरी बात नहीं है ! देश-विदेश में ऐसा वर्षों से होता आया है ! यदि पशु-पक्षी बेसहारा हो, अपने परिवार से बिछुड़ा हुआ हो या उसकी जान को खतरा हो तो उसकी रक्षा करना, उसका जीवन बचाना पुण्य का काम माना जाता है ! परंतु सिर्फ अपने शौक को पूरा करने के लिए जंगली जानवरों के शावकों, पशु-पक्षियों या अन्य जीवों को सिर्फ अपने मनोरंजन के लिए बंदी बनाना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं माना जा सकता ! 

स्नेह 
शुरू-शुरू में पशु शावकों और इंसानों में सौहार्द बना रहता है, बच्चों को दुलार, प्यार, सेवा, सुरक्षा सब मिलता है, परंतु जब वही शावक कुछ बड़े हो जाते हैं और उनमें उनकी नैसर्गिक क्षमताएं, आदतें और प्रवित्तियां उभरने लगती हैं तो इंसानों को वे अपने लिए खतरा लगने लगते हैं और उन्हीं से डर कर उन्हें पिंजड़ों में बंदी बना नारकीय जीवन जीने पर मजबूर कर दिया जाता है ! 


प्रताड़ना 
चिड़ियाघर भी कुछ ऐसी ही जगह है ! फर्क इतना ही है कि वहां शौक नहीं बल्कि इंसान के जानने, समझने के नाम पर बेकसूर जीवों को छोटे-बड़े पिजरों में आजन्म कैद कर रखा जाता है ! जहां सबसे बड़ी मुसीबत सरीसृप जाति को होती है जो अपने आकार से कहीं छोटे कांच के बक्सों में कैद होते हैं ! भले ही कुछेक जानवरों के बाड़े बड़े होते हैं पर कैद, कैद होती है। आजादी, आजादी !

                                                 

पराधीन सपनेहुं सुख नाहीं 
भी आपने इन कैदी जीवों के चेहरों को ध्यान से देखा है ? जहां हर जीव के चेहरे पर बेबसी, छटपटाहट, निराशा, उदासी, थकावट, उकताहट जैसे भाव स्थाई हो कर रह गए होते हैं ! यहां इन्हें आहार बिना किसी उपक्रम के मिल जाता है ! इसलिए बिना दौड़-भाग के सिर्फ खाने और सोने के कारण उनकी शारीरिक क्रियाऐं दिन ब दिन शिथिल होती चली जाती हैं और ये समय से पहले बूढ़े, बीमार होते चले जाते हैं ! 

                                                 

       
आजादी 
हालांकि हम सब में इस को लेकर थोड़ी बहुत जागरूकता तो आई है पर वह ना के बराबर है ! इन प्राणियों को भी प्रेम, प्यार, करुणा और आजादी की उतनी ही जरुरत है, जितनी कि हमें !  

@चित्र अनुज रंजन तथा अंतर्जाल के सौजन्य से  

बुधवार, 13 अगस्त 2025

गैसलाइटिंग, समझदारी अवाम को ही दिखानी होगी

राजनीति में जनोन्माद का भाव पैदा करना स्वाभाविक है। कोई अगर किसी पार्टी पर हमला कर राजनीतिक बढ़त हासिल करने की कोशिश करता है तो इसमें कोई बुराई भी नहीं है। परंतु सोशल मीडिया के युग में, बार-बार फैलाए गए झूठ, आम जनता के लिए सच का रूप ले लेते हैं, यह खतरनाक है ! वर्तमान में झूठ, बल्कि खुले झूठ, का राजनीति में एक गैसलाइटिंग हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाना शुरू हो चुका है ! विपक्षी पर सार्वजनिक मंच से बेशर्मी से झूठ बोल, असंसदीय शब्द या मिथ्या घृणित आरोप लगा कर यह दावा करना कि मेरा कथन ही सच है, यही है गैसलाइटिंग..............!         

#हिन्दी_ब्लागिंग 

गैसलाइटिंग ! क्या होती है गैसलाइटिंग, जिसकी वेबसाइटों पर हुई बेपनाह खोज के कारण अमेरिका के जाने-माने पब्लिशर मेरियम बेवस्टर ने वर्ड ऑफ द ईयर चुना है ? उनके अनुसार इस शब्द का अर्थ है, किसी के द्वारा किसी के आत्म-संदेह को बढ़ावा देना ! किसी को उसकी सोच और विचारों पर संदेह दिला उनको नकारने के लिए प्रेरित करना। इससे पीड़ित व्यक्ति को अपनी ही समझ पर संदेह होने लगता है ! जिससे वह चिंता, अवसाद, भटकाव जैसी भावनाओं से ग्रस्त हो जाता है और इसका असर उसके मानसिक स्वास्थ्य पर भी हानिकारक रूप से पड़ने लगता है !

प्रभाव 
पैट्रिक हैमिल्टन के एक नाटक "गैस लाइट" का 1938 में मंचन हुआ था। बाद में 1944 में उस नाटक पर बनी फिल्म के कथानक में एक व्यक्ति धोखे से अपनी पत्नी को यह विश्वास दिलाने का प्रयास करता है कि वह पागल हो रही है, जबकि ऐसा था नहीं ! सबसे पहले गैसलाइटिंग शब्द का प्रयोग उसी फिल्म में किया गया था ! 

मय के साथ-साथ मुहावरों, शब्दों के अर्थ बदलते रहते हैं ! वर्तमान में गैसलाइटिंग का रूप और अर्थ बदल गया है ! आज छल, फरेब, दगाबाजी और खुले झूठ के जरिए सामाजिक मनोविज्ञान की हेराफेरी को भी "गैसलाइटिंग" कहा जा सकता है। वह साजिश के सिद्धांतों के तहत डीपफेक, ट्विटर, फेक न्यूज और ट्रोलिंग द्वारा सच को झूठ और झूठ को सच में बदलने का हथियार बन गया है ! आजकल, किसी राजनेता या राजनीतिक संगठन के लिये सार्वजनिक बातचीत को विषय से भटकाने और किसी विशेष दृष्टिकोण के पक्ष में या उसके खिलाफ राय में हेरफेर करने की रणनीति के रूप में गैसलाइटिंग का उपयोग करना सामान्य बात है।

प्रक्रिया 
ज इस अस्त्र का इस्तेमाल, देश-विदेश में अपने ही देश, उसकी व्यवस्था, उसकी संस्थाओं की आलोचना करने और उन सब को व्यवस्थित तथा सुधारने के लिए खुद को प्रोजेक्ट करने के लिए हो रहा है ! हालांकि ऐसी हरकतों और बयानों के पीछे अपने कारण हो सकते हैं। लेकिन तथ्यों से खिलवाड़ और झूठ को सच की तरह पेश करने की हिमाकत, बेशर्मी, छल-कपट और मक्कारी की इंतहा है ! भले ही लानत-मलानत होती हो, शर्मसार होना पड़ता हो, पर निर्लज्जता की कोई सीमा नहीं है !

नेता ??
राजनीति में जनोन्माद का भाव पैदा करना स्वाभाविक है। कोई अगर किसी पार्टी पर हमला कर राजनीतिक बढ़त हासिल करने की कोशिश करता है तो इसमें कोई बुराई भी नहीं है। परंतु सोशल मीडिया के युग में, बार-बार फैलाए गए झूठ, आम जनता के लिए सच का रूप ले लेते हैं, यह खतरनाक है ! वर्तमान में झूठ, बल्कि खुले झूठ, का राजनीति में एक गैसलाइटिंग हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाना शुरू हो चुका है ! विपक्षी पर सार्वजनिक मंच से बेशर्मी से झूठ बोल, असंसदीय शब्द या मिथ्या घृणित आरोप लगा कर यह दावा करना कि मेरा कथन ही सच है, यही है वह बला, जिसे गैसलाइटिंग कहा जाता है 
गैसलाइटिंग ग्रसित 
से झूठ के पुलिंदों की सच्चाई को उजागर करने के लिए जनता यानी पब्लिक को ही गैस लाइटिंग के धुंए से फैले धुंधलके को दूर हटा, उसी गैस की रौशनी का उपयोग कर, सार्वजनिक रूप से, सरे आम, मक्कारों के चेहरों से  मुखौटे उतार, उनकी असलियत को देश-दुनिया के सामने लाना होगा ! तभी देश को शांति और सुरक्षा मिल पाएगी !

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सभी चित्रों के लिए अंतर्जाल का आभार  

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