छतरपुर के मंदिर में गुरूजी का समाधिस्थल आज भी लोगों को सम्बल प्रदान कर रहा है ! वहां भक्तों की एक परिवार के रूप में रोज ही भीड़ लगी रहती है, जिसका मानना है कि उनके जीवन में कोई भी कठिनाई या संकट आए, गुरुजी की दया और आशीर्वाद हमेशा उन्हें सही रास्ता दिखाएंगे। मंदिर के भव्य परिसर में लगने वाले रोजाना के लंगर में लोगों का आपसी सौहार्द्र और सभी का एक ही परिवार का सदस्य होने का भाव साफ परिलक्षित होता है............!
#हिन्दी_ब्लागिंग
अपने देश में समय-समय पर महान विभूतियों का जन्म होता रहा है। जिन्होंने समाज में पसरी बुराइयों को दूर करने और आम इंसान में चेतना जगाने, उनमें ज्ञान का बीजारोपण करने और जीवन का सही मार्ग दिखाने काम किया है। समय के साथ उनमें से कुछ विलक्षण हस्तियों को उनके अनुयायिओं ने अपना गुरु मान ईश्वर स्वरूप सम्मानित पद पर आसीन कर दिया ! ऐसे ही संतों में एक आध्यात्मिक, सम्मानित तथा अपने भक्तों में अत्यंत लोकप्रिय संत थे, छतरपुर वाले गुरूजी ! जिन्हें डुगरी वाले गुरुजी और शुक्राना गुरुजी के नाम से भी जाना जाता है। उनके अनुयायी तो उन्हें शिव जी का अंश मानते हैं !
.jpg) |
गुरु जी |
गुरु जी का असली नाम निर्मल सिंह था। उनका जन्म 7 जुलाई 1954 को पंजाब के मलेरकोटला जिले के डुगरी गांव में हुआ था। बचपन से ही उनका रुझान आध्यात्मिकता की ओर था, वे साधु-संतों के सान्निध्य में ही अपना समय व्यतीत किया करते थे। पर उनके पिता जी की प्रबल इच्छा थी कि वे खूब पढ़ें, उनकी कामना की कद्र करते हुए गुरु जी ने दो उपाधियां अर्जित कीं। पर उनका ध्येय और लक्ष्य तो कुछ और ही था और उसी के चलते उन्होंने 1975 में गृहत्याग कर खुद को पूर्णतया गहरी आध्यात्मिकता में रमा दिया !
.jpg) |
आश्रम, छतरपुर |
दे शाटन पर निकले गुरूजी को उनके आत्मज्ञान और धार्मिक विश्वास ने उन्हें जल्द ही एक महत्वपूर्ण और सम्मानित मार्गदर्शक बना दिया। 1990 के दशक में उन्होंने दिल्ली के छतरपुर के भट्टी माइंस इलाके में एक भव्य शिव मंदिर की स्थापना की ! जिसे आज उनके भक्त बड़ा मंदिर के नाम से जानते हैं। यह मंदिर लाखों लोगों के लिए आस्था और भक्ति का केंद्र बना हुआ है। भक्त यहां प्रार्थना करने आते हैं, अप्रत्यक्ष रूप में उनका आशीर्वाद प्राप्त कर, उनके उपदेशों पर अमल करते हैं।
.jpg) |
शिव जी की भव्य प्रतिमा |
गुरु जी ने हमेशा अपने अनुयायियों को, जिनमें देश-विदेश की कई जानी-मानी हस्तियां भी शामिल हैं, प्रेम, दया, और करुणा का संदेश दिया। उनका मानना था कि सभी धर्म समान हैं और ईश्वर एक ही है। उन्होंने यह सिखाया कि आध्यात्मिकता का असली अर्थ केवल धार्मिक अनुष्ठान और कर्मकांडों में नहीं है, बल्कि यह मनुष्य के दिल में होता है। उनका कहना था कि हमें अपनी आत्मा के साथ गहरे संबंध बनाने के लिए एक दूसरे से प्रेम करना चाहिए और दूसरों के साथ सौहार्दपूर्ण व्यवहार करना चाहिए।
.jpg) |
समाधी |
गुरु जी ने 31 मई 2007 को शरीर त्याग दिया, पर उनके उपदेश आज भी उनके अनुयायियों का सकारात्मक मार्गदर्शन कर उनकी जिंदगी को बेहतर बनाने में सहायक हो रहे हैं ! छतरपुर के मंदिर में गुरूजी का समाधिस्थल आज भी लोगों को सम्बल प्रदान कर रहा है ! वहां भक्तों की एक परिवार के रूप में रोज ही भीड़ लगी रहती है, जिसका मानना है कि उनके जीवन में कोई भी कठिनाई या संकट आए, गुरुजी की दया और आशीर्वाद हमेशा उन्हें सही रास्ता दिखाएंगे। मंदिर के भव्य परिसर में लगने वाले रोजाना के लंगर में लोगों का आपसी सौहार्द्र और सभी का एक ही परिवार का सदस्य होने का भाव साफ परिलक्षित होता है। मंदिर के अंदर-बाहर सैंकड़ों स्वयंसेवक, बिना किसी अपेक्षा के खुशी-खुशी, समर्पित भाव से वहां रोज आने वाले हजारों लोगों की सहायता के लिए तत्पर रहते हैं ! .jpg) |
भीतरी कक्ष |
किसी को भी गुरु, नायक या मार्गदर्शक का दर्जा देने में आम जनता की श्रद्धा-विश्वास तथा आस्था का बड़ा हाथ होता है ! जीवन की आपा-धापी की प्रचंड लपटों में जरा सी ठंडी बयार भी अत्यधिक सकून दे जाती है, भले ही वह प्रकृतिप्रदत्त हो ! पर हताश-निराश सर्वहारा को जब किसी के माध्यम से जरा सी भी राहत का एहसास होता है तो वह आँख मूँद कर उसे ही ईश्वर मान बैठता है ! एक सच्चे मार्गदर्शक, रहबर या समर्पित रहनुमा का मिलना सहरा में जल की उपलब्धि जैसा ही है ! आज के युग में जब कदम-कदम पर छल-कपट-फरेब अपना डेरा डाले बैठे हों तब इंसान को खुद के विवेक का सहारा ले, हंस जैसा होना चाहिए जिससे नीर-क्षीर की पहचान हो सके और प्रभु के सच्चे बंदे का सानिध्य मिल सके !@संदर्भ व चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें