शनिवार, 28 जनवरी 2023

डर..! सभी को लगता है

समाज में सबसे निडर फौजी जवानों को माना जाता है ! इसी विषय डर पर, सेना से अवकाश लेने के बाद जब एक साक्षात्कार में सैम मानेकशॉ से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि जो इंसान यह कहता है कि उसे डर नहीं लगता, वह झूठ बोलता है ! कम-ज्यादा हो सकता है पर डर सबको लगता है ! सार्वजनिक रूप से भले ही कोई स्वीकार करे या ना करे ! यह पूछने पर कि क्या आपको भी लगता है ? तो उन्होंने कहा कि मैं आम लोगों से इस बात में अलग नहीं हूँ, मुझे भी लगता है......!       

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डर क्या है ! आम अर्थ में यह एक नकारात्मक भावना है। यह इंसानों में तब देखा जाता है जब उन्हें किसी से किसी प्रकार का जोखिम महसूस होता हो। यह जोखिम किसी भी प्रकार का हो सकता है, काल्पनिक भी और वास्तविक भी ! पर मृत्यु का भय सर्वोपरि होता है ! अलग-अलग व्यक्ति अलग-अलग प्रकार से इसका अनुभव करते हैं ! कुछ सिद्ध पुरुषों को छोड़ दिया जाए तो यह भावना कमोबेश सभी में रहती है ! डर सभी को लगता है !  


समाज में सबसे निडर फौजी जवानों को माना जाता है ! इसी विषय पर एक बार सेना से अवकाश लेने के बाद एक साक्षात्कार में सैम मानेकशॉ ने कहा था कि जो इंसान यह कहता है कि उसे डर नहीं लगता, वह झूठ बोलता है ! कम-ज्यादा हो सकता है पर डर सबको लगता है ! यह पूछने पर कि क्या आपको भी लगता है, उन्होंने एक आपबीती सुनाई ! 

उनके अनुसार जब वे विश्व युद्ध के दौरान बर्मा में नियुक्त थे तो उनके मातहत एक सोहन सिंह नाम का बिगड़ैल, शरारती किस्म का जवान हुआ करता था। उसकी हरकतों के कारण उसकी पदोन्नति नहीं होती थी ! ऐसे ही एक बार तरक्की के लिए उसका नाम भी लिस्ट में तो आया, पर उसे फिर मौका नहीं मिला ! उसके बाद मुझे बताया गया कि जरा सावधान रहें, आपकी सुरक्षा भी बढ़ाई जा रही है क्योंकि सोहन लाल ने कहा है कि आज मैं साहब को गोली मार दूँगा ! वैसे उससे उसके हथियार ले कर उसे बंदी बना लिया गया है ! ऐसा जान कर मैंने सोहन सिंह को बुलवाया और उससे इस बारे में पूछा, तो वह बोला, साहब बहुत बड़ी गलती हो गई ! लिस्ट में नाम ना पा कर गुस्से में ऐसा कह दिया ! माफ कर दीजिए ! मैंने कहा, नहीं. नहीं मुझे मारना है न, यह मेरी पिस्तौल ले और मुझे गोली मार दे ! यह कह कर मैंने अपनी पिस्तौल उसके सामने लोड कर उसकी ओर बढ़ा दी ! उसने हाथ जोड़ लिए और माफी माँगने लगा ! इसके बावजूद मेरे साथियों ने कहा कि इस पर विश्वास मत कीजिए, ये बाज नहीं आएगा ! पर मैंने सब जानते समझते हुए भी सोहन लाल को कहा कि आज रात तुम्हारी ड्यूटी मेरे टेंट के बाहर होगी और सुबह की चाय मेरे लिए तुम लेकर आओगे ! सुबह वह नियत समय पर गर्म पानी और चाय ले कर आया ! बाद में लोगों ने मुझसे पूछा कि साहब आपको डर नहीं लगा ! तो मैंने बताया कि जरूर लगा, पर लीडरशीप की मांग यह होती है कि उसको जाहिर न किया जाए ! लीडर से यह अपेक्षा रहती है कि वह सामने वाले की स्थितियों-परिस्थितियों को समझ, उसके अनुरूप स्थिति को संभाल सके ! 


तो सार यही है कि शरीर की प्रकृति प्रदत्त अन्य स्थाई भावनाओं, चेष्टाओं, जरूरतों की तरह डर भी एक जरूरी भावना है ! यह है, तभी इंसान खुद को सचेत, सावधान व सुरक्षित रख पाता है ! इंसान रूपी कंप्यूटर का यह ऐसा आवश्यक सॉफ्टवेयर है जिसे डिलीट नहीं किया जा सकता ! 

@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से

रविवार, 22 जनवरी 2023

अश्वत्थामा हतो.......! जैसा वाकया पहले भी एक बार घटित हो चुका था

श्रीकृष्ण जी ने युद्ध भूमि में यह खबर फैला दी कि घायलावस्था के कारण हंस की मृत्यु हो गई है ! यह सुनते ही डिम्भक हताश-निराश हो गया और हंस के विछोह के चलते उसने यमुना जी में समाधि ले ली ! उधर डिम्भक की मौत की खबर सुनते ही हंस ने भी अपने प्राण त्याग दिए ! इन दोनों के जाने से जरासंध की सेना को काफी क्षति पहुंची पर युद्ध रुका नहीं, उसने 18 बार मथुरा पर आक्रमण किया........!


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अश्वत्थामा हतो नरो वा कुंजरो वा ! महाभारत युद्ध की इस बहुचर्चित घटना की तरह का एक वाकया इसके बहुत पहले भी एक बार घटित हो चुका था ! संयोग से उसके केंद्र में भी श्रीकृष्ण ही थे ! बात उस समय की है जब श्रीकृष्ण के हाथों कंस वध हुआ था ! इस बात से क्रोधित हो कंस के ससुर व मित्र जरासंध ने प्रतिशोध लेने के लिए मथुरा पर हमला कर दिया था ! जरासंध की सेना में दो अपार शक्तिशाली सेनानायक हंस और डिम्भक थे ! उस समय दुनिया भर में किसी के लिए भी उनसे पार पाना बहुत ही मुश्किल था ! श्रीकृष्ण जी के अनुसार उन दोनों की सहायता से जरासंध तीनों लोक का सामना कर सकता था। हंस और डिम्भक का आपस में हद से ज्यादा लगाव था ! दोनों दो जिस्म, एक जान थे ! एक-दूसरे के बिना उनका जीवित रहना नामुमकिन सा था ! यह बात सभी को ज्ञात थी !


इधर श्रीकृष्ण और बलराम मथुरा पर जरासंध के बार-बार के आक्रमण से परेशान हो गए ! हंस और डिम्भक के रहते उसे परास्त करना संभव नहीं था ! एक दिन युद्ध के दौरान हंस नामक एक राजा की मौत हो जाती है ! उसी समय श्रीकृष्ण जी को एक युक्ति सूझी ! वे हंस-डिम्भक के आपसी लगाव से भलीभांति परिचित थे ! उन्होंने उसी समय युद्ध भूमि में यह खबर फैला दी कि घायलावस्था के कारण हंस की मृत्यु हो गई है ! यह सुनते ही डिम्भक हताश-निराश हो गया और हंस के विछोह के चलते उसने यमुना जी में समाधि ले ली ! उधर डिम्भक की मौत की खबर सुनते ही हंस ने भी अपने प्राण त्याग दिए ! इन दोनों के जाने से जरासंध की सेना को काफी क्षति पहुंची पर युद्ध रुका नहीं ! उसने 18 बार मथुरा पर आक्रमण किया था !


महाभारत में 18 की संख्या का एक अलग ही महत्व है !स महाग्रंथ में 18 अध्याय हैं ! श्रीकृष्ण जी ने 18 दिन तक अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया, उसके भी 18 ही अध्याय हैं।  युद्ध भी पूरे 18 दिन तक चला। इसमें दोनों पक्षों की सेना का योग भी 18 अक्षोहिणी था ! एक अक्षोहिणी सेना में शामिल रथों, हाथियों, घोड़ों और पैदल सैनिकों का योग भी 18 ही बनता है ! इसके अलावा इस महासंग्राम के सूत्रधार भी 18 ही थे ! और सबसे बड़े आश्चर्य की बात कि युद्ध के पश्चात जीवित बचे योद्धाओं की संख्या भी 18 ही थी ! इसमें क्या रहस्य था कहा नहीं जा सकता ! इसी तरह जरासंध ने भी मथुरा पर 18 बार ही हमले किए थे, जिनमें पहले का नेतृत्व हंस और डिम्भक ने किया था ! इन्हीं हमलों के चलते मथुरा वासियों की रक्षा, सुरक्षा और शांति के लिए प्रभु ने सैंकड़ों मील दूर जा कर द्वारका में अपनी राजधानी बसाई थी !


हंस और डिम्भक की गहरी मित्रता पर काफी कुछ लिखा कहा गया है ! कोई इसे ले कर कुछ कहता है तो कोई इस रिश्ते को कुछ और नाम दे देता है ! कोई कुछ अलग रंग दे देता है तो कोई किसी और ही दिशा में ले जाता है ! पर चाहे कुछ भी लिखा-कहा जाए एक बात तो निर्विवाद है कि उन दोनों की दोस्ती एक मिसाल तो थी ही !

बुधवार, 18 जनवरी 2023

पासोवर, पीला ढक्कन, कुलेखारा, बाजार की तनिक प्रशंसा तो बनती है

सुबह आँख खोलने के बाद से रात सोने के वक्त तक बाजार, चिराग के जिन्न की तरह आपके दरवाजे पर हाथ बांधे आपके हुक्म के इंतजार में खड़ा रहता है ! कुछ भी, कहीं से भी ला कर आपको सौंपने के लिए ! उदाहरण के लिए, एक औषधीय पौधा होता है, "कुलेखारा", इसकी पत्तियों का रस होमोग्लोबिन बढ़ाने में बहुत सहायक होता है ! अधिकाँश लोगों को तो इसकी जानकारी तो क्या इसका नाम तक भी ज्ञात नहीं होगा ! यह सब जगह उपलब्ध भी नहीं है ! ऐसे ही कोका कोला के पीले ढक्कन के पेय को भी लिया जा सकता है ! पर बाजार का जिन्न इन सबको देश के किसी भी कोने तक पहुँचाने में सक्षम है...........!

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आज पल-पल बदलते फैशन, पसंद और जरुरत के जमाने मे भले ही बाजार की नीतियों, उसकी मंशा, उसकी व्यूह-रचना, उसके मायाजाल में सिर्फ उसकी खुदगर्जी और धन अर्जन की प्रमुखता हो, पर एक बात से इंकार भी नहीं किया जा सकता कि अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए वह दिन-रात, 24x7, लगातार जी तोड़ मेहनत भी करता है ! उसकी नजर, अपने उपभोक्ताओं की हर जरुरत को, गुंजाईश चाहे कितनी भी छोटी से छोटी क्यों ना हो, भांपने और आंकने से नहीं चूकती ! इसके लिए उसकी ''मशीनरी'' बिना विराम के लगातार शोध करती रहती है ! अक्सर हमें लगता है कि हम बाजार के काले पहलू के षड्यंत्र में उलझते जा रहे हैं, पर उसका एक उजला पहलू भी है, भले ही उसका दायरा छोटा हो, पर अशक्त, उम्रदराज, घर से बाहर ना जा पाने को मजबूर, महिलाएं, काम में अत्यधिक व्यस्त लोगों के लिए वह किसी वरदान से कम भी नहीं है ! 


आज कोई भी चीज, यानी कोई भी चीज चाहिए हो तो वह एक कॉल पर घर बैठे उपलब्ध हो सकती है ! फिर वह चाहे खाना हो, दवा हो, रोजमर्रा की जरुरत की वस्तुएं हों, यात्रा का टिकट हो, होटल की बुकिंग हो, स्टेशन-एयरपोर्ट तक जाने के लिए वाहन हो, कपडे हों, जूते हों .... क्या-क्या गिनाया जाए, शायद ही कोई चीज ऐसी हो जो घर बैठे उपलब्ध न हो सकती हो ! उसके ऊपर पसंद ना आने पर वापसी की भी सुविधा ! सुबह आँख खोलने के बाद से रात सोने के वक्त तक बाजार, चिराग के जिन्न की तरह आपके दरवाजे पर हाथ बांधे आपके हुक्म के इंतजार में खड़ा रहता है ! कुछ भी, कहीं से भी ला कर आपको सौंपने के लिए ! उदाहरण स्वरुप, एक औषधीय पौधा होता है, "कुलेखारा", इसकी पत्तियों का रस होमोग्लोबिन बढ़ाने में बहुत सहायक होता है ! अधिकाँश लोगों को तो इसकी जानकारी तो क्या इसका नाम तक भी ज्ञात नहीं होगा ! यह सब जगह उपलब्ध भी नहीं है ! पर बाजार का जिन्न इसे भी देश के किसी भी कोने तक पहुँचाने में सक्षम है ! अजूबा ही तो है यह !

कुलेखारा की पत्तियां 


कुछ साल पहले तक हमारे कट्टर जैन भाइयों को यात्रा या पर्यटन के दौरान खाने-पीने के मामले में बहुत दिक्क्तों का सामना करना पड़ता था ! आज देश के किसी भी हिस्से में अच्छे होटल जैन फूड परोसने में सक्षम हैं ! तीज-त्योहारों के अनुरूप हर तरह की खाद्य सामग्री या जरुरत की वस्तुएं देश के हर कोने में उपलब्ध हैं ! बाजार तो जैसे संसार के हर इंसान की छोटी से छोटी जरुरत पूरी करने के लिए कमर कसे बैठा है ! इसका छोटा सा उदाहरण कोका कोला कंपनी है जो साल में एक बार, बसंत के महीने में अपनी परंपरागत बोतलों के साथ ही यहूदियों के धार्मिक त्यौहार (Passover) को ध्यान में रख एक पीले ढक्कन वाली बोतल भी बाजार में उतारती है। इस त्यौहार में यहूदी लोगों को गेहूं, जई, राई, जौ, मक्का, चावल, बीन्स इत्यादि का सेवन वर्जित होता है और चूंकि कोका कोला में मक्के के रस का प्रयोग किया जाता है इसलिए वे इसे पीने से बचते हैं। इस बात को भांप कर कोका कोला इन दिनों के लिए अपने मुख्य उत्पाद के साथ एक और पेय भी तैयार करता है जिसमें कॉर्न सिरप की जगह चीनी मिलाई जाती है, इसे Kosher Coke कहा जाता है और इसकी पहचान के लिए इसे पीले ढक्कन की बोतलों में भर कर रखा जाता है जिससे इसकी आसानी से पहचान हो सके ! यह बताता है कि बाजार की नजर कितनी पैनी है ! तो लब्बोलुआब यही रहा कि हर चीज के दो पहलू होते हैं ! बाजार से भी अच्छाई और बुराई दोनों जुडी हैं ! हंस तो हमें ही बनना होगा !       

गुरुवार, 5 जनवरी 2023

बाजार के चक्रव्यूह में अभिमन्यु बनता उपभोक्ता

एक ऐसे ही बाल बढ़ाऊ और केश निखारू उत्पाद ने प्याज को ही अपना ब्रांड एम्बेस्डर बना डाला है ! चतुराई इतनी कि अपनी साख जमाने के लिए उसने प्याज के दो रंग के बीजों लाल और काले से एक का शैंपू और दूसरे का तेल बना बाजार में धकेल दिया ! जितनी बारीकी से उसने केश विहीनों के मनोविज्ञान पर काम किया उतना शोध तो सिर्फ रॉकेट साइंस में ही होता होगा ! कीमत ज्यादा ना लगे इस आशंका में नीचे लिख दिया 1ml सिर्फ तीन रूपए का............!

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जबसे बाबा रामदेव ने बाजार के समर में आयुर्वेद का परचम थामा है, तबसे जाने-माने नामों यथा तुलसी, आंवला, हल्दी, अदरक के साथ-साथ अन्य नामालूम से साग-सब्जियों-लता-गुल्मों-पौधे-पत्तियों के दिन भी फिर गए हैं ! हर कॉस्मेटिक ब्रांड अपने उत्पाद में किसी भी वनस्पति का नाम थोप खुद को प्रकृति का सगा सिद्ध करने पर तुला हुआ है साथ ही लोगों के रुझान और मौके को ताड़ते और आयुर्वेद के नाम को भुनाते हुए अपने उत्पाद की कीमत तिगुनी-चौगुनी कर दी है ! एक ऐसे ही बाल बढ़ाऊ और केश निखारू उत्पाद ने प्याज को ही अपना ब्रांड एम्बेस्डर बना डाला है ! चतुराई इतनी कि अपनी साख जमाने के लिए उसने प्याज के दो रंग के बीजों लाल और काले से एक का शैंपू और दूसरे का तेल बना बाजार में धकेल दिया ! जितनी बारीकी से उसने केश विहीनों के मनोविज्ञान पर शोध किया उतना तो सिर्फ रॉकेट साइंस में ही होता होगा ! लोगों की इस धारणा को भुनाते हुए कि अच्छी और खास चीज मंहगी ही होती है, कंपनी ने अपने 200ml तेल की कीमत रख दी 600/- रूपए ! कीमत ज्यादा ना लगे इस आशंका में नीचे लिख दिया 1ml सिर्फ तीन रूपए का ! यही हथकंडा शैंपू के लिए भी अपनाया गया ! जिससे उपभोक्ता को लगे कि बस इतनी सी कीमत ! इंसान की कमजोरियों का फायदा उठा उसे अपने काबू की  ''जकड़'' में कैसे बनाए रखना है, यह इसका ताजा उदाहरण है !    

बहुत से लोगों को याद होगा एक जमाने में, सस्ती के समय कम कीमत में ढेर सा सामान आ जाता था, इसलिए चार सेर की धड़ी या पांच सेर की पनसेरी का चलन था ! समय गुजरा, मन-सेर-छटांक को किनारे कर किलोग्राम का चलन शुरू हो गया ! फिर मंहगाई बढ़ी तो इंसान के मनोविज्ञान को समझते हुए बाजार ने जिंसों की कीमत को कम दर्शाने के लिए एक किलो की पैकिंग 900 ग्राम और 500 ग्राम की जगह 400 ग्राम कर सामान बेचना शुरू कर दिया ! एक किलो की कीमत की जगह कब एक पाव या 250 ग्राम के रेट बता ग्राहक को भुलावे में रखा जाने लगा, पता ही नहीं चला ! किसी चीज की कीमत चुपचाप दुगनी कर, उसके साथ एक-दो चीजें मुफ्त देने या उस चीज की कीमत में 50-60 प्रतिशत की छूट दिखा, आम इंसान को गुमराह कर उसे लूटने की ऐसी प्रथा शुरू हो गई, जिसमें लुटने वाला भी ख़ुशी महसूस करने लगा ! इंसान के दिमाग को जितनी खूबी से बाजार ने समझा है उतना तो शायद ही कोई समझ पाया हो ! कब, कहां, कैसे इसे अपने हिसाब से चलाना-समझाना है, इसे क्या दिखा-बता कर अपना मतलब निकल सकता है, इसमें बाजार की ताकतों को महारत हासिल है और इसमें सहायक होती हैं नामी-गिरामी, सामाजिक हस्तियां जो अपनी शख्शियत का लाभ उठा, पैसे लेकर आम इंसान को सच-झूठ कुछ भी समझा कर कंपनियों को लाभ पहुंचाती रहती हैं, भले ही उनका ड्राइवर भी उस वस्तु का इस्तेमाल ना करता हो ! 

डॉक्टर आर्थो से अनुबंध ख़त्म हो गया लगता है 

बाजार की भूख ने तो सुरसा को भी मात दे दी ! इससे पार पाने के लिए तरह-तरह की तरकीबें बेचने वाले करोड़पति बन गए ! पहले एक तरह के शैंपू-तेल-परफ्यूम आते थे ! फिर पुरुषों-महिलाओं-बच्चों के लिए क्यों अलग-अलग होने चाहिए यह समझा कर उत्पाद बढ़ाए ! आज आप क्या खाएंगे, क्या पहनेंगे, किससे नहाएंगे, किससे सेहत बनाएंगें, सब बाजार ने अपने अधिकार में ले लिया है ! यह अलग बात है कि देश-विदेश में पदक जीतने वाले शायद ही हार्लिक्स-कॉम्पलान या बोर्नविटा जैसे उत्पादों से लाभान्वित हुए हों ! पर जो दिखता है वही बिकता है का सिद्धांत बदस्तूर जारी है ! यह भी सही है कि जब तक लोग भुलावे में आते रहेंगे तब तक गंजों को कंघी और पहाड़ों पर बर्फ बेची जाती रहेगी !     

रविवार, 1 जनवरी 2023

नीलकंठ धाम, पोयचा, गुजरात

यह विशाल मंदिर और इसका परिसर इतना सुंदर, मनमोहक और आकर्षक है कि इसकी भव्यता को शब्दों में व्यक्त करना बहुत ही कठिन है ! मंदिर का परिसर किसी महल जैसा लगता है। इसकी हर चीज, चाहे वह मूर्तियां हों, चाहे नक्काशी हो, चाहे सजावट हो, चाहे वास्तुशिल्प हो, के के आकर्षण में पर्यटक अचंभित सा अभिभूत हो बंध सा जाता है ! यहां से वापस जाने का मन ही नहीं करता...........!                                                

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गुजरात,अपनी परंपरा, संस्कृति तथा धार्मिक स्थलों की वजह से देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में अपनी विशिष्ट पहचान रखता है ! फिर चाहे वह द्वारका हो, बेट द्वारका हो, सोमनाथ व नागेश्वर ज्योतिर्लिंग हों, प्रभास क्षेत्र हो, अक्षरधाम हो या फिर सरदार सरोवर ! इंसान देखते-देखते थक जाए पर दिव्य, मनोरम, दर्शनीय स्थलों की गिनती पूरी न हो ! ऐसा ही एक अनुपम धार्मिक स्थल है, नीलकंठ धाम !  

विशाल परिसर 


यह आश्चर्यजनक स्थान राजपीपला नर्मदा जिले के नर्मदा नदी के तट पर पोइचा गाँव में स्थित है। जो अहमदाबाद से 170 किमी, वड़ोदरा से 60 किलोमीटर और सरदार सरोवर बाँध, केवड़िया से तक़रीबन 30 किमी की दूरी पर पोयचा नामक गांव में स्थापित है। यह स्वामीनारायण मंदिर लोगों की आस्था का एक बहुत बड़ा केंद्र है। नर्मदा नदी के तट के समीप,  2013 में 105 एकड़ में बने इस भव्य मंदिर का निर्माण स्वामी नारायण गुरुकुल राजकोट की तरफ से करवाया गया है। इसके मुख्यद्वार का अनूठापन, इसकी वास्तुकला, इसके उद्यान, इसकी मूर्तियों की सजीवता, शांत वातावरण, एक-एक पत्थर पर उकेरी गई इसकी कारीगरी पर्यटकों को बाँध कर रख लेती है ! यह अलौकिक स्थान श्रद्धालुओं के साथ-साथ पर्यटकों में भी अत्यंत लोकप्रिय है ! इसीलिए यहां आने वाले लोगों का तांता लगा रहता है। 

भव्य व आकर्षक प्रवेशद्वार 



यह विशाल मंदिर और इसका परिसर इतना सुंदर, मनमोहक और आकर्षक है कि उसकी भव्यता को शब्दों में व्यक्त करना बहुत ही कठिन है ! मंदिर का परिसर किसी महल जैसा लगता है। इसकी हर चीज, चाहे वह मूर्तियां हों, चाहे नक्काशी हो, चाहे सजावट हो, चाहे वास्तुशिल्प हो, के आकर्षण में पर्यटक अचंभित सा अभिभूत हो बंध सा जाता है ! यहां से वापस जाने का मन ही नहीं करता ! सबसे बड़ी बात यहां फोटो खींचने की कोई मनाही नहीं है, जिससे पर्यटक यहां की अद्भुत यादें अपने साथ घर भी ले जा सकता है। 





मंदिर परिसर के द्वार के समीप विशाल नटराज की मूर्ति स्थापित है, जिसकी भव्यता देखते ही बनती है। परिसर में मौजूद सरोवर मंदिर की सुंदरता में चार चांद लगाता है। सरोवर में भगवान गणेश, शिवलिंग और हनुमान जी की प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं। इसके अलावा मंदिर परिसर में प्रभु के चौबीस अवतारों के साथ-साथ स्वामी नारायण, शिवलिंग, गणेश जी, हनुमान जी, राधाकृष्ण देव इत्यादि के  32 और छोटे-बड़े मंदिर बने हुए हैं। रोज होने वाली रथ-यात्रा तथा रात का साउंड व लाइट शो अपना अतिरिक्त आकर्षण रखते हैं ! मंदिर में नीचे की ओर बहती नर्मदा नदी में डुबकी लगाने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ सुबह से ही इकट्ठा हो जाती है। अंधेरा होने पर मंदिर अलग-अलग तरह की लाइट्स से रोशनी में नहा जाता है। जो इस इमारत की खूबसूरती को और भी बढ़ा देती है। 

स्वामी नारायण जी का मंदिर 

सरोवर का निर्मल जल 

मूर्तियों की सजीवता 

स्वामी नारायण रथ 
इसके सहजानंद परिसर में, नीलकंठ हृदय कमल, भारतीय संस्कृति और हिंदू तीर्थयात्रा, विज्ञान नगर, मनोरंजन पार्क, नाव की सवारी, भुल भुलैया इत्यादि का आनंद लिया जा सकता है। इसके खुलने का समय सुबह 11:00 बजे से रात  8:00 बजे तक है। सहजानंद विश्वविद्यालय के 7 भाग हैं। इस सभी भागों में भारतीय संस्कृति और धार्मिक ब्योरों कोआकर्षक ढंग से पेश किया गया है। यदि कभी गुजरात घूमने का सुयोग बने तो कार्यक्रम में नीलकंठ धाम जरूर शामिल होना चाहिए।  

विशिष्ट पोस्ट

"मोबिकेट" यानी मोबाइल शिष्टाचार

आज मोबाइल शिष्टाचार पर बात करना  करना ठीक ऐसा ही है जैसे किसी कॉलेज के छात्र को पांचवीं क्लास का कोर्स समझाया जा रहा हो ! अधिकाँश लोग इन सब ...