समाज में सबसे निडर फौजी जवानों को माना जाता है ! इसी विषय डर पर, सेना से अवकाश लेने के बाद जब एक साक्षात्कार में सैम मानेकशॉ से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि जो इंसान यह कहता है कि उसे डर नहीं लगता, वह झूठ बोलता है ! कम-ज्यादा हो सकता है पर डर सबको लगता है ! सार्वजनिक रूप से भले ही कोई स्वीकार करे या ना करे ! यह पूछने पर कि क्या आपको भी लगता है ? तो उन्होंने कहा कि मैं आम लोगों से इस बात में अलग नहीं हूँ, मुझे भी लगता है......!
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डर क्या है ! आम अर्थ में यह एक नकारात्मक भावना है। यह इंसानों में तब देखा जाता है जब उन्हें किसी से किसी प्रकार का जोखिम महसूस होता हो। यह जोखिम किसी भी प्रकार का हो सकता है, काल्पनिक भी और वास्तविक भी ! पर मृत्यु का भय सर्वोपरि होता है ! अलग-अलग व्यक्ति अलग-अलग प्रकार से इसका अनुभव करते हैं ! कुछ सिद्ध पुरुषों को छोड़ दिया जाए तो यह भावना कमोबेश सभी में रहती है ! डर सभी को लगता है !
समाज में सबसे निडर फौजी जवानों को माना जाता है ! इसी विषय पर एक बार सेना से अवकाश लेने के बाद एक साक्षात्कार में सैम मानेकशॉ ने कहा था कि जो इंसान यह कहता है कि उसे डर नहीं लगता, वह झूठ बोलता है ! कम-ज्यादा हो सकता है पर डर सबको लगता है ! यह पूछने पर कि क्या आपको भी लगता है, उन्होंने एक आपबीती सुनाई !
उनके अनुसार जब वे विश्व युद्ध के दौरान बर्मा में नियुक्त थे तो उनके मातहत एक सोहन सिंह नाम का बिगड़ैल, शरारती किस्म का जवान हुआ करता था। उसकी हरकतों के कारण उसकी पदोन्नति नहीं होती थी ! ऐसे ही एक बार तरक्की के लिए उसका नाम भी लिस्ट में तो आया, पर उसे फिर मौका नहीं मिला ! उसके बाद मुझे बताया गया कि जरा सावधान रहें, आपकी सुरक्षा भी बढ़ाई जा रही है क्योंकि सोहन लाल ने कहा है कि आज मैं साहब को गोली मार दूँगा ! वैसे उससे उसके हथियार ले कर उसे बंदी बना लिया गया है ! ऐसा जान कर मैंने सोहन सिंह को बुलवाया और उससे इस बारे में पूछा, तो वह बोला, साहब बहुत बड़ी गलती हो गई ! लिस्ट में नाम ना पा कर गुस्से में ऐसा कह दिया ! माफ कर दीजिए ! मैंने कहा, नहीं. नहीं मुझे मारना है न, यह मेरी पिस्तौल ले और मुझे गोली मार दे ! यह कह कर मैंने अपनी पिस्तौल उसके सामने लोड कर उसकी ओर बढ़ा दी ! उसने हाथ जोड़ लिए और माफी माँगने लगा ! इसके बावजूद मेरे साथियों ने कहा कि इस पर विश्वास मत कीजिए, ये बाज नहीं आएगा ! पर मैंने सब जानते समझते हुए भी सोहन लाल को कहा कि आज रात तुम्हारी ड्यूटी मेरे टेंट के बाहर होगी और सुबह की चाय मेरे लिए तुम लेकर आओगे ! सुबह वह नियत समय पर गर्म पानी और चाय ले कर आया ! बाद में लोगों ने मुझसे पूछा कि साहब आपको डर नहीं लगा ! तो मैंने बताया कि जरूर लगा, पर लीडरशीप की मांग यह होती है कि उसको जाहिर न किया जाए ! लीडर से यह अपेक्षा रहती है कि वह सामने वाले की स्थितियों-परिस्थितियों को समझ, उसके अनुरूप स्थिति को संभाल सके !
तो सार यही है कि शरीर की प्रकृति प्रदत्त अन्य स्थाई भावनाओं, चेष्टाओं, जरूरतों की तरह डर भी एक जरूरी भावना है ! यह है, तभी इंसान खुद को सचेत, सावधान व सुरक्षित रख पाता है ! इंसान रूपी कंप्यूटर का यह ऐसा आवश्यक सॉफ्टवेयर है जिसे डिलीट नहीं किया जा सकता !
@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से
2 टिप्पणियां:
सही कहा डर तो सभी को लगता है। अच्छी प्रस्तुति👌
रूपा जी
"कुछ अलग सा" पर सदा स्वागत है आपका🙏🏻
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