श्रीकृष्ण जी ने युद्ध भूमि में यह खबर फैला दी कि घायलावस्था के कारण हंस की मृत्यु हो गई है ! यह सुनते ही डिम्भक हताश-निराश हो गया और हंस के विछोह के चलते उसने यमुना जी में समाधि ले ली ! उधर डिम्भक की मौत की खबर सुनते ही हंस ने भी अपने प्राण त्याग दिए ! इन दोनों के जाने से जरासंध की सेना को काफी क्षति पहुंची पर युद्ध रुका नहीं, उसने 18 बार मथुरा पर आक्रमण किया........!
#हिन्दी_ब्लागिंग
अश्वत्थामा हतो नरो वा कुंजरो वा ! महाभारत युद्ध की इस बहुचर्चित घटना की तरह का एक वाकया इसके बहुत पहले भी एक बार घटित हो चुका था ! संयोग से उसके केंद्र में भी श्रीकृष्ण ही थे ! बात उस समय की है जब श्रीकृष्ण के हाथों कंस वध हुआ था ! इस बात से क्रोधित हो कंस के ससुर व मित्र जरासंध ने प्रतिशोध लेने के लिए मथुरा पर हमला कर दिया था ! जरासंध की सेना में दो अपार शक्तिशाली सेनानायक हंस और डिम्भक थे ! उस समय दुनिया भर में किसी के लिए भी उनसे पार पाना बहुत ही मुश्किल था ! श्रीकृष्ण जी के अनुसार उन दोनों की सहायता से जरासंध तीनों लोक का सामना कर सकता था। हंस और डिम्भक का आपस में हद से ज्यादा लगाव था ! दोनों दो जिस्म, एक जान थे ! एक-दूसरे के बिना उनका जीवित रहना नामुमकिन सा था ! यह बात सभी को ज्ञात थी !
इधर श्रीकृष्ण और बलराम मथुरा पर जरासंध के बार-बार के आक्रमण से परेशान हो गए ! हंस और डिम्भक के रहते उसे परास्त करना संभव नहीं था ! एक दिन युद्ध के दौरान हंस नामक एक राजा की मौत हो जाती है ! उसी समय श्रीकृष्ण जी को एक युक्ति सूझी ! वे हंस-डिम्भक के आपसी लगाव से भलीभांति परिचित थे ! उन्होंने उसी समय युद्ध भूमि में यह खबर फैला दी कि घायलावस्था के कारण हंस की मृत्यु हो गई है ! यह सुनते ही डिम्भक हताश-निराश हो गया और हंस के विछोह के चलते उसने यमुना जी में समाधि ले ली ! उधर डिम्भक की मौत की खबर सुनते ही हंस ने भी अपने प्राण त्याग दिए ! इन दोनों के जाने से जरासंध की सेना को काफी क्षति पहुंची पर युद्ध रुका नहीं ! उसने 18 बार मथुरा पर आक्रमण किया था !
महाभारत में 18 की संख्या का एक अलग ही महत्व है ! इस महाग्रंथ में 18 अध्याय हैं ! श्रीकृष्ण जी ने 18 दिन तक अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया, उसके भी 18 ही अध्याय हैं। युद्ध भी पूरे 18 दिन तक चला। इसमें दोनों पक्षों की सेना का योग भी 18 अक्षोहिणी था ! एक अक्षोहिणी सेना में शामिल रथों, हाथियों, घोड़ों और पैदल सैनिकों का योग भी 18 ही बनता है ! इसके अलावा इस महासंग्राम के सूत्रधार भी 18 ही थे ! और सबसे बड़े आश्चर्य की बात कि युद्ध के पश्चात जीवित बचे योद्धाओं की संख्या भी 18 ही थी ! इसमें क्या रहस्य था कहा नहीं जा सकता ! इसी तरह जरासंध ने भी मथुरा पर 18 बार ही हमले किए थे, जिनमें पहले का नेतृत्व हंस और डिम्भक ने किया था ! इन्हीं हमलों के चलते मथुरा वासियों की रक्षा, सुरक्षा और शांति के लिए प्रभु ने सैंकड़ों मील दूर जा कर द्वारका में अपनी राजधानी बसाई थी !
हंस और डिम्भक की गहरी मित्रता पर काफी कुछ लिखा कहा गया है ! कोई इसे ले कर कुछ कहता है तो कोई इस रिश्ते को कुछ और नाम दे देता है ! कोई कुछ अलग रंग दे देता है तो कोई किसी और ही दिशा में ले जाता है ! पर चाहे कुछ भी लिखा-कहा जाए एक बात तो निर्विवाद है कि उन दोनों की दोस्ती एक मिसाल तो थी ही !
8 टिप्पणियां:
बहुत रोचक तथ्यों पर आधारित ज्ञानवर्धक पोस्ट ।
हँस और डिम्भक की दोस्ती एवं श्रीकृष्ण की रणनीति....
बहुत सुंदर रोचक एवं ज्ञानवर्धक सृजन
वही अश्वत्थामा हतो हतः नरो...।
रोचक। पहली बार पता चली यह कहानी और महाभारत में 18 की संख्या का इतना महत्त्व भी। वैसे मैं खुद numerology में रुचि रखती हूँ। सादर आभार साझा करने हेतु।
अत्यंत रोचक लेख।
सादर।
सुधा जी
सदा स्वागत है आपका🙏🏻
मीना जी.🙏🏻
कितनी ही रोचक कथाऐं और जानकारियां अनजानी हैं या रखी गईं हमसे पता नहीं 🤔
श्वेता जी
बहुत बहुत आभार आपका🙏
मीना जी
महाभारत जैसे रोचक और शिक्षाप्रद ग्रंथ का कोई सानी नहीं है !
एक टिप्पणी भेजें