यह गाडी इतनी सुविधाजनक और लोकप्रिय हो गयी कि हर कोई इसकी सवारी करने लगा। इसलिए एक की बजाए दो गाड़ियां चलने लगीं। आमने-सामने आ जाने पर पड़ने वाली मुश्किल का आसान सा हल निकाल लिया गया। जब बीच रास्ते में दो गाड़ियां मिलतीं तो ''मुसाफिर'' ट्रालियों को बदल लेते ! गाड़ीवान भी अपने-अपने घोड़ों का रुख दूसरी तरफ कर विपरीत दिशा में अग्रसर हो जाते ...........!
#हिन्दी_ब्लागिंग
वर्तमान समय में घोड़े द्वारा खींचे जाने वाले वाहन "इक्का, तांगा या बग्गी" बीते दिनों की बात हो चुके हैं। यदि गाहे-बगाहे कहीं दीखते भी हैं तो मनोरंजन, तफरीह या शादी-ब्याह में ! लेकिन यह जान कर आश्चर्य होगा कि हमारे पड़ोसी मुल्क यानी पाकिस्तान में अभी भी लाहौर से करीब सौ की.मी. दूर, घोड़े की सहायता से एक परिवहन सेवा चलाई जा रही है। इस ''सुविधा'' को हॉर्स ट्रेन या घोडा रेल के नाम से जाना जाता है। जो रेल की तर्ज पर पटरियों पर तकरीबन तीन की.मी. तक चल, लोगों को अपने गंतव्य तक पहुंचाती है। इस घोडा-रेल की शुरुआत करीब 100 साल पहले जाने-माने व्यवसायी सर गंगाराम ने की थी | आजकल इसका वीडियो सोशल मीडिया पर काफी देखा और पसंद किया जा रहा है। इसका प्रसारण पाकिस्तान टी.वी. पर अनेकों बार हो चुका है, जिसके फलस्वरूप बाहर से इसे देखने आने वालों का तांता गंगापुर में लगा ही रहता है।
https://youtu.be/9uMhbzNUdlU
#हिन्दी_ब्लागिंग
वर्तमान समय में घोड़े द्वारा खींचे जाने वाले वाहन "इक्का, तांगा या बग्गी" बीते दिनों की बात हो चुके हैं। यदि गाहे-बगाहे कहीं दीखते भी हैं तो मनोरंजन, तफरीह या शादी-ब्याह में ! लेकिन यह जान कर आश्चर्य होगा कि हमारे पड़ोसी मुल्क यानी पाकिस्तान में अभी भी लाहौर से करीब सौ की.मी. दूर, घोड़े की सहायता से एक परिवहन सेवा चलाई जा रही है। इस ''सुविधा'' को हॉर्स ट्रेन या घोडा रेल के नाम से जाना जाता है। जो रेल की तर्ज पर पटरियों पर तकरीबन तीन की.मी. तक चल, लोगों को अपने गंतव्य तक पहुंचाती है। इस घोडा-रेल की शुरुआत करीब 100 साल पहले जाने-माने व्यवसायी सर गंगाराम ने की थी | आजकल इसका वीडियो सोशल मीडिया पर काफी देखा और पसंद किया जा रहा है। इसका प्रसारण पाकिस्तान टी.वी. पर अनेकों बार हो चुका है, जिसके फलस्वरूप बाहर से इसे देखने आने वालों का तांता गंगापुर में लगा ही रहता है।
https://youtu.be/9uMhbzNUdlU
राय बहादुर सर गंगाराम एक प्रसिद्ध इंजिनियर उद्यमी, और साहित्यकार थे। अपने कपडे के व्यवसाय से लाहौर शहर को हर क्षेत्र में व्यापक सहयोग देने, उसे संवारने, उसे समृद्ध बनाने के अपने उपक्रम के कारण उन्हें ''आधुनिक लाहौर के पिता'' का उपनाम दिया गया था। दिल्ली में भी अस्पतालों की कमी को देखते हुए 1951 में उनकी याद में एक सर्व-सुविधा युक्त अस्पताल बनाया गया, जिसे गंगाराम हॉस्पिटल के नाम से जाना जाता है।
वे एक बेहतरीन इंजिनियर तो थे ही ! जब उन्होंने अपने क्षेत्र में लोगों को आवागमन की असुविधाओं से जूझते देखा तो उनके दिमाग में एक अनोखी और अद्वितीय परिवहन योजना ने जन्म लिया। वह थी, आज भी चल रही अनोखी घोड़ा ट्रेन सुविधा ! जिला लीलपुर (अब फैसलाबाद) की तहसील जारनवाला में, अपने गांव गंगापुर से बुकियाना रेलवे स्टेशन (लाहौर-जारनवाला रेलवे लाइन पर) तक उन्होंने दो फिट चौड़े रास्ते पर लकड़ी के तख्ते बिछवा कर उस पटरियां लगवा दीं। फिर एक ठेले जैसी ट्रॉली में, पटरी पर चल सकने लायक चक्के फिट कर उसे ट्रैक पर रखवा दिया ! इंजिन की जगह घोड़े का इस्तेमाल किया गया और इस तरह शुरू हो गयी दुनिया की अजीबोगरीब, इकलौती घोडा रेल। पटरियों पर चलने के कारण घोड़े को कम जोर लगाना पड़ता था और सड़क के तांगे वगैरह की बनिस्पत इस ठेले पर एक बार में ज्यादा लोग सफर कर सकते थे। घोड़े को ठोकर इत्यादि से बचाने के लिए तख्तों पर मिटटी डाल उसे अच्छी तरह समतल कर दिया गया था। फिर एक सोसायटी बना इसकी सारी जिम्मेदारी उसे सौंप दी गयी, जो नाम मात्र का शुल्क ले इसकी सेवा लोगों को उपलब्ध करवाने लगी। स्थानीय लोगों में यह अनोखी सवारी के नाम से मशहूर हो गयी।
यह गाडी इतनी सुविधाजनक और लोकप्रिय हो गयी कि हर कोई इसकी सवारी करने लगा। इसलिए एक की बजाए दो गाड़ियां चलने लगीं। आमने-सामने आ जाने पर पड़ने वाली मुश्किल का आसान सा हल निकाल लिया गया। जब बीच रास्ते में दो गाड़ियां मिलतीं तो ''मुसाफिर'' ट्रालियों को बदल लेते। चालक भी अपने-अपने घोड़ों का रुख दूसरी तरफ कर विपरीत दिशा में अग्रसर हो जाते। आजादी के बाद भी सालों इसका चलना बदस्तूर जारी रहा। पर 1980 के दशक में कुछ कारणों से इसे बंद करना पड़ गया था ! पर चूंकि यह अपनी तरह का एक अनोखा अजूबा था इसलिए 2010 में फैसलाबाद जिला प्राधिकरणों ने सांस्कृतिक विरासत का रूप दे कर इसे फिर से शुरू करवा दिया। भले ही इसके बारे में ज्यादा लोग ना जानते हों पर यह आधुनिक युग का एक अजूबा तो जरूर ही है !