''घाघ'' जहां खेती, नीति एवं स्वास्थ्य से जुड़ी कहावतों के लिए विख्यात हैं, वहीं ''भड्डरी'' की रचनाएं वर्षा, ज्योतिष और आचार-विचार से विशेष रूप से संबद्ध हैं।घाघ के समान ही लोकजीवन से संबंधित कहावतों में कही गई भड्डरी की भविष्यवाणियां भी बहुत प्रसिद्ध हैं। दोनों समकालीन तो हैं साथ ही यह समानता भी है कि घाघ की तरह भड्डरी का जीवन वृतांत भी निर्विवाद नहीं है। अनेकानेक किंवदंतियां दोनों के साथ जुडी हुई हैं। पर साथ ही यह भी सच है कि जितनी ख्याति जनकवि घाघ को मिली उतनी प्रसिद्धि भड्डरी को नहीं मिल पाई !आज की वर्तमान पीढ़ी इनके बारे में शायद ज्यादा न जानती हो, फिर भी बरसात द्वारे पर है, इसलिए समीचीन होगा, उससे जुड़े इन दोनों विलक्षण और अद्भुत व्यक्तित्वों के बारे कुछ जानना ...........!
#हिन्दी_ब्लागिंग
हमारा देश सदियों से कृषि प्रधान रहा है और भरपूर फसल के लिए अति आवश्यक है अच्छी वर्षा ! इसीलिए हर किसान के लिए इस बात का ज्ञान होना बहुत जरुरी होता है कि वर्षा कब होगी, होगी कि नहीं या कितनी मात्रा में होगी ! पुराने जमाने में नाहीं विज्ञान ने इतनी तरक्की की थी और नाहीं ही कोई मौसम विभाग हुआ करता था ,जो बरसात की सटीक जानकारी दे सके ! तो सब कुछ पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहे अनुभव पर ही निर्भर हुआ करता था। हालांकि हमारे ऋषियों-मुनियों ने यह सब बातें विस्तार से सदियों पूर्व लिपिबद्ध कर दी थीं पर वह सब संस्कृत में होने की वजह से अधिकांश लोगों के लिए अगम्य सी ही थीं ! इसी समस्या के निदान के लिए लोकभाषा में कहावतों के रूप में सूक्तियों का प्रादुर्भाव हुआ और इन्हीं कहावतों, भविष्यवाणियां के आधार पर वर्षों-वर्ष से हमारे किसान अपनी खेती एवं सामाजिक समस्याओं का निदान करते चले आए हैं। इन भविष्यवाणियों के जनक के रूप में करीब चार सौ सालों से निर्विवाद रूप से ''घाघ'' और 'भड्डरी'' का नाम लिया जाता रहा है। घाघ जहां खेती, नीति एवं स्वास्थ्य से जुड़ी कहावतों के लिए विख्यात हैं, वहीं भड्डरी की रचनाएं वर्षा, ज्योतिष और आचार-विचार के लिए प्रख्यात हैं।
#हिन्दी_ब्लागिंग
हमारा देश सदियों से कृषि प्रधान रहा है और भरपूर फसल के लिए अति आवश्यक है अच्छी वर्षा ! इसीलिए हर किसान के लिए इस बात का ज्ञान होना बहुत जरुरी होता है कि वर्षा कब होगी, होगी कि नहीं या कितनी मात्रा में होगी ! पुराने जमाने में नाहीं विज्ञान ने इतनी तरक्की की थी और नाहीं ही कोई मौसम विभाग हुआ करता था ,जो बरसात की सटीक जानकारी दे सके ! तो सब कुछ पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहे अनुभव पर ही निर्भर हुआ करता था। हालांकि हमारे ऋषियों-मुनियों ने यह सब बातें विस्तार से सदियों पूर्व लिपिबद्ध कर दी थीं पर वह सब संस्कृत में होने की वजह से अधिकांश लोगों के लिए अगम्य सी ही थीं ! इसी समस्या के निदान के लिए लोकभाषा में कहावतों के रूप में सूक्तियों का प्रादुर्भाव हुआ और इन्हीं कहावतों, भविष्यवाणियां के आधार पर वर्षों-वर्ष से हमारे किसान अपनी खेती एवं सामाजिक समस्याओं का निदान करते चले आए हैं। इन भविष्यवाणियों के जनक के रूप में करीब चार सौ सालों से निर्विवाद रूप से ''घाघ'' और 'भड्डरी'' का नाम लिया जाता रहा है। घाघ जहां खेती, नीति एवं स्वास्थ्य से जुड़ी कहावतों के लिए विख्यात हैं, वहीं भड्डरी की रचनाएं वर्षा, ज्योतिष और आचार-विचार के लिए प्रख्यात हैं।
घाघ और भड्डरी के विषय में अनेक किंवदंतियां प्रसिद्ध हैं। पर दोनों के बारे में बहुत विस्तृत रूप से जानकारी उपलब्ध नहीं है ! चूँकि इनकी कहावतें एक ही शैली की होती हैं, इसलिए अनेक लोगों का विश्वास है कि ये दो अलग-अलग इंसान ना होकर एक ही आदमी के नाम हैं ! यहां तक कि कुछ लोग तो इनके दोहों की शुरुआत, ''कहै घाघ सुनु भड्डरी'' को देख इन्हें पति-पत्नी तक मानते हैं। कुछ लोगों के अनुसार उत्तर प्रदेश के पूर्वी क्षेत्र-बिहार, बंगाल एवं असम प्रदेश में ''डाक'' नामक कवि की भी घाघ जैसी ही कृषि सम्बन्धी कहावतें मिलती हैं जिसके आधार पर उन विद्वानों का अनुमान है कि डाक और घाघ भी एक ही थे।
घाघ के बारे में मान्यता है कि बचपन से ही वे कृषि विषयक समस्याओं के निदान में दक्ष थे। छोटी उम्र में ही उनकी प्रसिद्धि इतनी बढ़ गयी थी कि दूर-दूर से लोग अपनी खेती सम्बन्धी समस्याओं को लेकर इनके पास आया करते थे। चाहे बैल खरीदना हो या खेत जोतना, बीज बोना हो अथवा फसल काटना, घाघ के पास उनकी हर मुश्किल का समाधान हुआ करता था। इस सब के बावजूद इनके बारे में कोई ठोस जानकारी उपलब्ध नहीं है। यहां तक कि घाघ नाम है या उपनाम इसमें भी मतभेद हैं ! पर पं. राम नरेश त्रिपाठी जी ने अपनी खोजों के आधार पर इनका नाम देवकली दुबे माना है। उनका जन्म, निर्विवाद रूप से तो नहीं फिर भी सोलहवीं शताब्दी में अकबर बादशाह के जमाने में उत्तर-प्रदेश के कन्नौज शहर के पास के एक गांव चौधरी सराय में हुआ माना जाता है। इस बात को इससे भी पुष्टि मिलती है कि, इनकी प्रतिभा से प्रभावित और प्रसन्न हो अकबर ने इन्हें प्रचुर धन, जमीन और चौधरी की उपाधि प्रदान की थी, जिस पर इन्होंने कन्नौज से कुछ ही दूरी पर सराय घाघ नामक गांव की स्थापना की थी। जिसका अस्तित्व आज भी है। इनकी सातवीं-आठवीं पीढ़ी के कुछ परिवार आज भी वहां रहते हैं। जो भी हो घाघ अपने कृषि संबंधी ज्ञान के लिए उत्तर तथा मध्य भारत के सबसे बड़े विद्वान, पर्यावरणविद, खगोल ज्ञानी, कृषि गुरु और दार्शनिक कवि माने जाते हैं। जिनकी सरल, सुगम्य स्थानीय भाषा आज भी सीधे-सादे, अशिक्षित किसानों का मार्गदर्शन कर रही है।
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गोबर, मैला, नीम की खली, या से खेती दुनी फली।
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वही किसानों में है पूरा, जो छोड़ै हड्डी का चूरा।
भड्डरी कौन थे, किस प्रांत के थे, किस भाषा में उन्होने कहावतों का सृजन किया, यह आज भी विद्वानों में चर्चा का विषय है। भड्डरी के जन्म के सम्बन्ध में ग्रामीण अंचलों में अनेक किंवदंतियां चलन में हैं। कुछ उन्हें राजस्थान से जोड़ते हैं तो कुछ काशी से। और चूँकि घाघ की कविताओं में उनका अक्सर जिक्र आया है तो उनका काशी निवासी होना ज्यादा तर्क-सम्मत लगता है। ऐसी मान्यता है कि इनमें दैवीय प्रतिभा थी जिससे वे सटीक भविष्यवाणी किया करते थे।
शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय।
तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए।।
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भादों की छठ चांदनी, जो अनुराधा होय।
ऊबड़ खाबड़ बोय दे, अन्न घनेरा होय।।
जो भी हो पर इतना तो सत्य जरूर है कि घाघ और भड्डरी दोनों में दैवी प्रतिभा थी। उनकी जितनी भी कहावतें हैं, सभी प्रायः खरी उतरती हैं। घाघ जहां खेती, नीति एवं स्वास्थ्य से जुड़ी कहावतों के लिए विख्यात हैं, वहीं भड्डरी की रचनाएं वर्षा, ज्योतिष और आचार-विचार से विशेष रूप से संबद्ध हैं। आज भी देश के सुदूर गांवों-कस्बों में किसानों को इनकी कहावतें कंठस्थ हैं और खेती-खलिहानी में पथ-प्रदर्शक का काम करते हुए खादों के विभिन्न रूपों, गहरी जोत, मेंड़ बाँधने, फसलों के बोने के समय, बीज की मात्रा, दालों की खेती के महत्व इत्यादि हर मसले पर सहायक होती हैं। हालाँकि घाघ का लिखा हुआ कुछ भी उपलब्ध नहीं है पर उनका दृढ अभिमत था कि कृषि सबसे उत्तम व्यवसाय है।
उत्तम खेती मध्यम बान, निकृष्ट चाकरी, भीख निदान।
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उत्तम खेती जो हर गहा, मध्यम खेती जो सँग रहा।
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खाद पड़े तो खेत, नहीं तो कूड़ा रेत।
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गोबर राखी पाती सड़ै, फिर खेती में दाना पड़ै।
दोनों में यह समानता भी है कि घाघ की तरह भड्डरी का जीवन वृतांत भी निर्विवाद नहीं है। दोनों समकालीन थे।घाघ के समान ही लोकजीवन से संबंधित कहावतों में कही गई भड्डरी की भविष्यवाणियां भी बहुत प्रसिद्ध हैं। पर जितनी ख्याति जनकवि घाघ को मिली उतनी प्रसिद्धि भड्डरी को नहीं मिली।
सोम सुक्र सुरगुरु दिवस, पौष अमावस होय।
घर घर बजे बधावनो, दुखी न दीखै कोय।।
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सावन पहिले पाख में, दसमी रोहिनी होय।
महंग नाज अरु स्वल्प जल, विरला विलसै कोय।।
जो भी हो दोनों ही व्यक्ति अत्यंत कुशल, बुद्धिमान, नीतिमान तथा भविष्य का ज्ञान रखने वाले थे। आज के समय में यदि कोई इंसान नीतिनिपुण, चालाक व गहरी सूझबूझ वाला हो तो उस ''घाघ'' कहकर बुलाया जाने लगता है ! इसीसे उसकी व्यक्तित्व की गहराई का अंदाजा लग जाता है।
6 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (05-07-2019) को ", काहे का अभिसार" (चर्चा अंक- 3387) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शास्त्री जी, नमस्कार, स्नेह बना रहे
सादर नमस्कार !
आपकी लिखी रचना "साप्ताहिक मुखरित मौन में" शनिवार 6 जुलाई 2019 को साझा की गई है......... "साप्ताहिक मुखरित मौन" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
मीना जी, अनेकानेक धन्यवाद
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्मदिवस - मैथिलीशरण गुप्त और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
हर्ष जी, हार्दिक धन्यवाद
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