मंगलवार, 2 जुलाई 2019

बूँदों की सरगम पर राग पावस

नन्ही-नन्हीं बूँदों के अलौकिक संगीत के बीच सतरंगी पुष्पों से श्रृंगार किए, धानी चुनरी ओढ़े, दूब के मखमली गलीचे पर जब प्रकृति, इंद्रधनुषी किरणों के साथ हौले से पग धरती है तो नभ के अमृत-रस से सराबोर हुए पृथ्वी के कण-कण का मन-मयूर नाचने-गाने को बाध्य सा हो जाता है। बसंत यदि ऋतु-राज है तो वर्षा ऋतु-साम्राज्ञी है......!


#हिन्दी_ब्लागिंग  

इस बार देश में पड़ी भीषण, झुलसा देने वाली भयंकर गर्मी ने अपने रौद्र रूप से सारे इलाकों को त्रस्त कर रख दिया था ! दिनकर के प्रकोप से सारी धरा व्याकुल हो उठी ! जल संकट गहराने लगा, जीव-जंतु, पशु-पक्षी, मनुष्य-पादप सब निर्जीव से हो गए, तब जा कर प्रकृति ने फिर करवट बदली है ! कुछ देर से ही सही सकून देने वाली पावस ऋतु के कदमों में बंधी पायल की सुमधुर रिम-झिम ध्वनि सुनाई पड़ने लगी है। धीरे-धीरे सारा देश इस मधुर ध्वनि के आगोश में खो जाने वाला है। इस बार कुछ देर से ही सही पर आकाश से बरसने वाली इस अमृत रूपी बरसात से जल्द ही सिर्फ हमारा देश ही नहीं, पाकिस्तान और बांग्ला देश भी तृप्त और खुशहाल होने वाले हैं। जून से सितंबर तक होने वाली इस बरसात को जो हवाएं, हिंद और अरब महासागर से उठ, अपने देश को दक्षिण-पश्चिम दिशा से घेर, जमीन की तरफ पानी लेकर आती हैं उन्हीं हवाओं को "मानसून" के नाम से जाना जाता है। मानसून नाम अरबी भाषा के ''मावसिम'' शब्द से आया है।


इन दिनों की राह तो जैसे सारी कायनात देख रही होती है ! मौसम का यह खुशनुमा बदलाव समस्त चराचर को अभिभूत कर रख देता है। आकाश में जहां सिर्फ आग उगलते सूर्य का राज होता था वहीं अब जल से भरे कारे-कजरारे मेघों का आधिपत्य हो जाता है। उनसे झरती नन्ही-नन्हीं बूँदों के अलौकिक संगीत के बीच जब सतरंगी पुष्पों से श्रृंगार किए, धानी चुनरी ओढ़े, दूब के मखमली गलीचे पर जब प्रकृति, इंद्रधनुषी किरणों के साथ हौले से पग धरती है तो नभ के अमृत-रस से सराबोर हुए पृथ्वी के कण-कण का मन-मयूर नाचने-गाने को बाध्य सा हो जाता है। बसंत यदि ऋतु-राज है तो वर्षा ऋतु-साम्राज्ञी है। प्राचीन काल के ऋषि-मुनियों से लेकर आज तक शायद ही कोई कवि या रचनाकार हुआ होगा जो इसके प्रेम-पाश से बच सका हो। 



भारत में इसका आगाज तक़रीबन एक जून से हो जाता है, पर इसकी आहट मई के अंतिम हफ्ते से ही सुनाई देने लग जाती है। हमारा मौसम विभाग देश भर के विभिन्न भागों से तापमान, हवा के रुख, बर्फ़बारी, वायुमंडल के दवाब इत्यादि आंकड़ों को ध्यान में रख कई तथ्यों का अध्ययन कर आने वाले मौसम की भविष्यवाणी करता है। पर आंकड़ों में जरा सी चूक आकलन में काफी हेर-फेर ला देती है ! फिर भी इस विभाग की उपयोगिता और उसकी कर्मठता पर सवाल खड़े नहीं किए जा सकते। सवाल तो खड़े होने चाहिए हम पर ! जिनकी  गलतियों का खामियाजा भुगत कर पर्यावरण दूषित हो रहा है, ''ग्लोबल वार्मिंग'' बढ़ रही है ! यह डर की बात तो है ही और ऐसा लग भी रहा है कि मानसून, जो सदियों से भारत पर सहृदय, दयाल और मेहरबान रहता आया है वह आने वाले वक्त में अपना समय और दिशा बदल सकता है। उससे हमारे विशाल देश को कितनी समस्याओं का सामना करना पडेगा उसका अंदाज लगाना भी मुश्किल है ! ऐसा हो न हो कि प्रकृति का यह अनुपम, अनमोल तोहफा, राग पावस और बूँदों की सरगम की मधुर ध्वनि किसी कंप्यूटर की डिस्क में ही सिमट कर रह जाए !

4 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (03-07-2019) को "मेघ मल्हार" (चर्चा अंक- 3385) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शास्त्री जी,
नमस्कार, स्नेह यूँही बना रहे !

HARSHVARDHAN ने कहा…

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन नये भारत का उदय - अनुच्छेद 370 और 35A खत्म - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

हर्ष जी, हार्दिक आभार

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