सोमवार, 22 जुलाई 2019

"जो सुख छज्जू दे चौबारे, वो बल्ख ना बुखारे".......... कौन था यह छज्जू !


''जो सुख छज्जू दे चौबारे, वो बल्ख ना बुखारे।'' यह छज्जू कौन है जिसके चौबारे का जिक्र इस कहावत में किया गया है ! ऐसा ही समझा जाता रहा है कि बात को समझाने के लिए एक काल्पनिक नाम जोड़ दिया गया होगा। जबकि यह कोई काल्पनिक नाम नहीं है ! तक़रीबन साढ़े चार सौ साल पहले लाहौर में एक सज्जन रहा करते थे जिनका नाम छज्जू भगत था। कहीं-कहीं उनका नाम छज्जू भाटिया भी मिलता है। वे सर्राफे के एक नेक, सहृदय, दानशील व परोपकारी व्यापारी थे। उन्होंने ही लाहौर के अनारकली बाज़ार के इलाके में एक खूबसूरत व भव्य चौबारा बनवाया था। जहाँ दिन भर लोगों की महफ़िल जमी रहती थी ! एक दूसरे का दुःख-सुख बंटता था............!


#हिन्दी_ब्लागिंग
कोई भी कहावत, मुहावरा या लोकोक्ति यूं ही नहीं बन जाती या लोकप्रिय हो जाती, उसके पीछे जन-साधारण के अनुभव, अनुभूतियों और तजुर्बों या फिर जगह विशेष का पूरा हाथ होता है। कुछ लोग, वस्तुएं, घटनाएं अपने आप में इतने असाधारण होते हैं कि वे खुद एक मिसाल बन किंदवंती बन जाते हैं ! समय के साथ-साथ मूल बातें या चीजें तो काल के गर्त में समा जाती हैं, रह जाती हैं उक्तियां ! पर जब कभी ऐसी ही कहावत का स्रोत सामने आ जाता है या उसकी सच्चाई पता चलती है तो चौंकना, स्वाभाविक रूप से हो जाता है ! आज ऐसी ही एक कहावत की बात ''जो सुख छज्जू दे चौबारे, वो बल्ख ना बुखारे'' !

आज की पीढ़ी को तो शायद चौबारे का अर्थ भी मालुम ना हो, क्योंकि अब चौबारे नहीं होते। फ्लैट होते हैं उनकी बालकनी होती है। कभी-कभार किसी फिल्म में भले ही यह नाम सुनने को मिल जाए पर सच्चाई यही है कि चौबारा अब बीते युग की बात हो गया है ! जो कि कभी घर के एक विशेष स्थान का नाम होता था जो प्रायः घर के मुख्य द्वार या दहलीज़ के ऊपर पहली मंजिल पर बने एक छोटे कमरे को कहा जाता था। इस के एक दरवाज़े अथवा खिड़की का रुख सड़क की तरफ होता था। इस का उपयोग खासकर मनोरंजन इत्यादि के लिए किया जाता था। आज भी छज्जू का चौबारा कुछ-कुछ अच्छी हालत में अपनी कहानी कहता लाहौर में खड़ा है, पर कब तक ! क्योंकि उस पर भी रसूखदारों की गिद्ध दृष्टि पड़ चुकी है ! ये अलग बात है कि अब वैसा सुख या चैन भी वहां मयस्सर नहीं है।

अपने यहां, ख़ास कर उत्तर भारत में एक कहावत पुराने समय से अत्यंत प्रचलित रही है, ''जो सुख छज्जू दे चौबारे, वो बल्ख ना बुखारे।'' जिसका मूल अर्थ यह है कि परदेस में भले ही कितना ऐशो-आराम हो, सुविधाएं हों पर जो सुख -चैन अपने घर में मिलता है वह अन्यत्र नहीं ! कहावत में बल्ख और बुखारे के उल्लेख से ऐसा लगता है जैसे कि ये दो शहर आस-पास ही स्थित हों और युग्म शब्द बन गए हों ! हमारे कोटा-बूंदी, कुल्लू-मनाली, लुधियाना-जालंधर, दमन-दीव की तरह ! पर अपनी पूरी भव्यता और संपन्नता के साथ एक ही सिल्क रूट पर स्थित होने के बावजूद, जहां बल्ख अफगानिस्तान के उत्तरी प्रांत का एक शहर है वहीं बुखारा उज्बेकिस्तान का एक शहर ! अलग-अलग देशों में, एक-दूसरे से सैंकड़ों की.मी. दूर। फिर यह छज्जू कौन है ! जिसके चौबारे का जिक्र कहावत में किया गया है ! क्या सम्बंध है इनका आपस में ! तो ऐसा समझा जाता रहा, कि बात को समझाने के लिए एक काल्पनिक नाम जोड़ लिया गया होगा। जबकि यह कोई काल्पनिक नाम नहीं है।
तक़रीबन साढ़े चार सौ साल पहले लाहौर में एक सज्जन रहा करते थे जिनका नाम छज्जू भगत था। कहीं-कहीं उनका नाम छज्जू भाटिया या छज्जू मल भाटिया भी मिलता है। वे एक नेक, सहृदय, दानशील व परोपकारी सर्राफा व्यापारी थे। जो लोगों की सेवा और प्रभु भक्ति में लीन रहा करते थे। उन्होंने ही लाहौर के अनारकली बाज़ार के इलाके में एक खूबसूरत व भव्य चौबारा बनवाया था। जहां दिन भर लोगों की महफ़िल जमी रहती थी, एक दूसरे का दुःख-सुख बंटता था ! हंसी-ठठा होता था। खाने-पीने की कोई चिंता नहीं होती थी, हर चीज का इंतजाम छज्जू भगत की ओर से किया जाता था। वहीं बैठ कर वह स्थानीय लोगों की भरसक-यथासंभव मदद किया करते थे। सारे लोग जैसे किसी अदृश्य प्रेम धागे से बंध गए थे।
उन दिनों बल्ख और बुखारे की ख्याति अपनी खूबसूरती और भव्यता के कारण दुनिया में दूर-दूर तक फैली हुई थी। इसी के चलते छज्जू मल जी के एक मित्र सूरज मल नामक सज्जन का मन वहां घूमने जाने का हुआ। वे एक महीने का कह कर गए भी ! पर लोगों को बहुत आश्चर्य हुआ जब वे सप्ताह भर में ही लौट आए ! लोगों ने जब इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि, कहीं मन ना लगने के कारण वे बुखारा गए ही नहीं: बल्ख से ही वापस लौट आए ! क्योंकि यहां जैसा, प्यार, अपनत्व, भाईचारा कहीं दिखा ही नहीं ! उन का मन उचाट हो गया और वे बीच में ही यात्रा ख़त्म कर लौट आए। तब उन्होंने यह पंक्ति कही कि ‘वो बल्ख ना बुखारे – जो बात छज्जू के चौबारे’ और तब से यह बात कहावत के रूप में प्रसिद्ध हो गयी।
इन सब बातों की कोई पुष्टि तो नहीं हो पाती पर जो कुछ इधर-उधर पढ़ने को मिलता है उसके अनुसार छज्जू भगत का असली नाम छज्जू भाटिया या छज्जू मल भाटिया था। वे लाहौर के रहने वाले थे। मुगल बादशाह जहांगीर के समय वे सोने का व्यापार किया करते थे। 1640 में उनके निधन के बाद उनके अनुयायियों ने लाहौर के पुरानी अनारकली स्थित डेरे में उनकी समाधि बना दी।


*संदर्भ - दैनिक भास्कर व अंतरजाल

11 टिप्‍पणियां:

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 22 जुलाई 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

22 जुलाई 2019 को 10:12 am
गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

यशोदा जी, बहुत-बहुत धन्यवाद !

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

22 जुलाई 2019 को 10:42 am
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (23-07-2019) को "बाकी बची अब मेजबानी है" (चर्चा अंक- 3405) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

22 जुलाई 2019 को 11:10 am
गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शास्त्री जी, हार्दिक आभार
22 जुलाई 2019 को 11:44 am

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

noopuram ने कहा…

आपका लिखा कुछ ताज़ी हवा बहने जैसा लगा.
पढ़ कर ज़ायका बदल गया बहुत अच्छा लगा.
22 जुलाई 2019 को 8:16 pm
गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

नुपुरम जी, कुछ अलग सा" पर सदा स्वागत है
22 जुलाई 2019 को 8:44 pm

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

Meena Bhardwaj ने कहा…

आपका लेखन अपनी जड़ों से जोड़ता है ।
22 जुलाई 2019 को 9:02 pm

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

मीना जी, हौसला बढाने का बहुत-बहुत शुक्रिया
22 जुलाई 2019 को 10:24 pm

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

Onkar ने कहा…

बहुत सुन्दर
23 जुलाई 2019 को 11:24 am

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ओंकार जी, स्नेह यूं ही बना रहे
23 जुलाई 2019 को 11:51 am

26 फ़रवरी 2020 को 4:43 pm

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

गलती से डिलीट हो गयी यह पोस्ट और टिप्पणियां पाबला जी के प्रयास से ही वापस पाई जा सकीं। उनका हार्दिक आभार !

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