विज्ञापनों में दादा-दादी बने ये दोनों पति-पत्नी कोई मामूली कलाकार नहीं हैं। वोडाफोन के विज्ञापन के आशा और बाला के रूप में प्रसिद्ध हुए, 73साल की शांता धनंजयन और 78साल के वी.पी. धनंजयन दोनों पति-पत्नी, दिग्गज नृत्य कलाकार हैं, जो चेन्नई के अड्यान में 1968 से भरतनाट्यम सिखाने के लिए भारत कलांजलि स्कूल चला रहे हैं। जिसके लिए उन्हें 2009 में पद्मभूषण से सम्मानित किया जा चुका है। #वोडाफोन वाले बधाई के पात्र हैं जो फूहड़ता के इस युग में भी इतने साफ़-सुथरे , दिल को छूने वाले, सार्थक, पारिवारिक विज्ञापनों की रचना करने का हौसला रखते हैं ............!
#हिन्दी_ब्लागिंग
दिन-ब-दिन फूहड, छिछोरे और स्तरहीन होते जाते, बकवास इश्तिहारों के बीच कुछ ऐसे विज्ञापन भी देखने को मिल जाते हैं, जो दिल को छू लेते हैं। इनमें वोडाफोन एक आदर्श उदाहरण है। जो बिना किसी ''स्टार'' की बैसाखी के भी अपने विज्ञापनों को, दर्शकों के दिलो-दिमाग में पैवस्त कर, लोकप्रिय बनाने में माहिर हैं। सच कहा जाए तो इनके ''बुजुर्ग दम्पति या पग या जुजु सेना'' अपनी मासूमियत, भोलेपन और सरलता के कारण कई-कई सुपर स्टारों पर भारी पड़ते हैं।
#हिन्दी_ब्लागिंग
दिन-ब-दिन फूहड, छिछोरे और स्तरहीन होते जाते, बकवास इश्तिहारों के बीच कुछ ऐसे विज्ञापन भी देखने को मिल जाते हैं, जो दिल को छू लेते हैं। इनमें वोडाफोन एक आदर्श उदाहरण है। जो बिना किसी ''स्टार'' की बैसाखी के भी अपने विज्ञापनों को, दर्शकों के दिलो-दिमाग में पैवस्त कर, लोकप्रिय बनाने में माहिर हैं। सच कहा जाए तो इनके ''बुजुर्ग दम्पति या पग या जुजु सेना'' अपनी मासूमियत, भोलेपन और सरलता के कारण कई-कई सुपर स्टारों पर भारी पड़ते हैं।
टी.वी. दर्शक और खेल प्रेमी, वोडाफोन के करीब दो साल पहले 2017 में हुई IPL क्रिकेट स्पर्द्धा के खेलों के बीच आने वाले उन विज्ञापनों को भूले नहीं होंगे, जिनमें एक प्यारे, भोले-भाले, साठ पार के बुजुर्ग दम्पति, ''बाला और आशा'' के गोवा भ्रमण को केंद्र बना एक बहुत सुंदर विज्ञापन श्रृंखला रची गयी थी। आनन-फानन में, बिना किसी शोर-शराबे के दोनों ने लोगों के मनों को जीत उनके घर के सदस्य के रूप में जगह बना ली थी ! विज्ञापनों में दादा-दादी बने ये दोनों पति-पत्नी कोई मामूली कलाकार नहीं हैं। वोडाफोन के विज्ञापन के आशा और बाला के रूप में प्रसिद्ध हुए, 73 साल की शांता धनंजयन और 78 साल के वी.पी. धनंजयन दोनों दिग्गज नृत्य कलाकार हैं जो चेन्नई के अड्यान में 1968 से भरतनाट्यम सिखाने के लिए भारत कलांजलि स्कूल चला रहे हैं। जिसके लिए उन्हें 2009 में पद्मभूषण से सम्मानित किया जा चुका है। यह उनकी जिजीविषा ही है, जो अपने गोवा वाले विज्ञापन के लिए धनंजयन जी ने अठहत्तर पार की उम्र में पहली बार धोती के बदले पैंट-टी शर्ट पहनी, स्कूटर चलाना सीखा तथा युवाओं की तरह के हाव-भाव, करतब करते हुए विश्वसनीयता व सहजता से इंटरनेट का उपयोग कर जीवन का आनंद लेते दिखे थे।
अब फिर एक बार दोनों वोडाफोन की एक नयी विज्ञापन श्रृंखला ''The Future is exciting. Ready ?'' के साथ फिर एक बार परदे पर अवतरित हुए हैं। इस बार विदेश भ्रमण में रोमिंग की खासियतें, फोन पर डॉक्टर की सलाह या अपने खुद के किचन के व्यवसाय में वोड़ाफोन की सहूलियतों का उपयोग करते-बताते नजर आएंगे। फिलहाल अभी तो आशा जी की रसोई में सहयोगी बने बालाजी की अपनी पत्नी के साथ मासूमियत भरी प्यारी सी नोकझोंक देखते ही बनती है। इस बार भी यह बात तय है कि निर्मल हास्य का पुट लिए इस विज्ञापन श्रृंखला में भी दोनों पति-पत्नी अपने सहज, सरल, स्वाभाविक अभिनय से अपना पिछ्ला जादू जगाने में जरूर सफल होंगे !
अब फिर एक बार दोनों वोडाफोन की एक नयी विज्ञापन श्रृंखला ''The Future is exciting. Ready ?'' के साथ फिर एक बार परदे पर अवतरित हुए हैं। इस बार विदेश भ्रमण में रोमिंग की खासियतें, फोन पर डॉक्टर की सलाह या अपने खुद के किचन के व्यवसाय में वोड़ाफोन की सहूलियतों का उपयोग करते-बताते नजर आएंगे। फिलहाल अभी तो आशा जी की रसोई में सहयोगी बने बालाजी की अपनी पत्नी के साथ मासूमियत भरी प्यारी सी नोकझोंक देखते ही बनती है। इस बार भी यह बात तय है कि निर्मल हास्य का पुट लिए इस विज्ञापन श्रृंखला में भी दोनों पति-पत्नी अपने सहज, सरल, स्वाभाविक अभिनय से अपना पिछ्ला जादू जगाने में जरूर सफल होंगे !
नए अवतार में |
#वोडाफोन और उनकी पूरी टीम बधाई की पात्र है, जो उन्होंने फूहड़ता के इस युग में भी इतने साफ़-सुथरे, दिल को छूने वाले, सार्थक, पारिवारिक विज्ञापनों की रचना करने का हौसला दिखाया। इनसे उन विज्ञापन निर्माताओं और कंपनियों को सबक लेना चाहिए जो आए दिन बड़े नामों की लोकप्रियता, ओछे दृश्यों या अतिश्योक्ति भरे फिल्मांकन से दर्शकों को लुभाने की फूहड़ कोशिश में वक्त और पैसा दोनों बर्बाद करते रहते हैं ! पर होता अक्सर उनकी सोच का उल्टा है ! ज्यादातर ऐसे विज्ञापन दर्शकों को "बोर" करने लगते है। हजार की जगह लाखों फूँके हुए रुपये भी कोई जादू नहीं जगा पाते। काश, वे वोडाफोन से कुछ सबक ले पाते !
3 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (09-07-2019) को "जुमले और जमात" (चर्चा अंक- 3391) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शास्त्री जी, हार्दिक आभार !
जी, सही कहा। कई बार चीजों को बिना तड़क भड़क साधारण तरीके से दर्शाना ही गहरा असर डाल देता है। इस विज्ञापन ने मेरा ध्यान भी आकृष्ट किया था। आपने नई जानकारी दी। आभार।
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