कभी-कभी कुछ अजीब सी स्थिति बन जाती है हमारी। उस समय तो कोफ्त ही होती है। पर ऐसा क्यों होता है कि :-
* जब आप घर में अकेले हों और नहा रहे हों तभी फ़ोन की घंटी बजती है।
* जब आपके दोनों हाथ तेल आदि से सने हों तभी आपके नाक में जोर की खुजली होती है।
* जब भी कोई छोटी चीज आपके हाथ से गिरती है तो वहाँ तक लुढ़क जाती है जहाँ से उसे उठाना कठिन होता है।
* जब भी आप गर्म चाय या काफ़ी पीने लगते हैं तो कोई ऐसा काम आ जाता है जिसे आप चाय के ठंडा होने केपहले पूरा नहीं कर पाते।
* जब आप देर से आने पर टायर पंचर का बहाना बनाते हैं तो दूसरे दिन सचमुच टायर पंचर हो जाता है।
* जब आप यह सोच कर कतार बदलते हैं कि यह कतार जल्दी आगे बढेगी तो जो कतार आपने छोडी होती हैवही जल्दी बढ़ने लगती है।
मर्फी के "ला" को छोडिये। यह बताईये ऐसा होता है क्या ? :-)
* जब आप घर में अकेले हों और नहा रहे हों तभी फ़ोन की घंटी बजती है।
* जब आपके दोनों हाथ तेल आदि से सने हों तभी आपके नाक में जोर की खुजली होती है।
* जब भी कोई छोटी चीज आपके हाथ से गिरती है तो वहाँ तक लुढ़क जाती है जहाँ से उसे उठाना कठिन होता है।
* जब भी आप गर्म चाय या काफ़ी पीने लगते हैं तो कोई ऐसा काम आ जाता है जिसे आप चाय के ठंडा होने केपहले पूरा नहीं कर पाते।
* जब आप देर से आने पर टायर पंचर का बहाना बनाते हैं तो दूसरे दिन सचमुच टायर पंचर हो जाता है।
* जब आप यह सोच कर कतार बदलते हैं कि यह कतार जल्दी आगे बढेगी तो जो कतार आपने छोडी होती हैवही जल्दी बढ़ने लगती है।
मर्फी के "ला" को छोडिये। यह बताईये ऐसा होता है क्या ? :-)
9 टिप्पणियां:
मै जब भी बाथरुम में जाता हुँ फ़ोन की घंटी जरुर बजती है, फ़िर आपकी याद आती है कि शर्मा जी ने सच कहा था।
लेकिन ऐसा होता क्यों है?
हाँ होता है ना!!!यही क्यों इसके अलावा भी बहुत कुछ-----जब हस्ताक्षर करना हो तभी पेन नही चलता,मुँह पर साबुन लगाओ तभी नल का पानी खतम,जरा सी नजर चूकी नही कि दूध उफ़न कर बाहर,और भी ...............पर पता नही क्यों???
मै सोचता था ऐसा मेरे ही साथ होता है
* जब आप यह सोच कर कतार बदलते हैं कि यह कतार जल्दी आगे बढेगी तो जो कतार आपने छोडी होती हैवही जल्दी बढ़ने लगती है।
यह मेरे साथ हमेशा होता है, लेकिन अब आदत पड गई है इस लिये एक ही लाईन मै चुपचाप खडा रहता हुं.... कभी तो ना० आयेगा
han ji, aisa kai bar hua hamare sath
एक अपील ;)
हिंदी सेवा(राजनीति) करते रहें????????
;)
होता तो है!!
एक विनम्र अपील:
कृपया किसी के प्रति कोई गलत धारणा न बनायें.
शायद लेखक की कुछ मजबूरियाँ होंगी, उन्हें क्षमा करते हुए अपने आसपास इस वजह से उठ रहे विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.
हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.
-समीर लाल ’समीर’
मेरे साथ नहीं होता
राम-राम
ज्ञानदत्त और अनूप की साजिश को बेनकाब करती यह पोस्ट पढिये।
'संभाल अपनी औरत को नहीं तो कह चौके में रह'
हमारे साथ तो अक्सर यही होता है!
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