काक्रोच या तिलचट्टा। दुनिया के आदिम जीवों में से एक। नाम भी कैसा है तिल-तिल कर हर चीज को चट कर जाने वाला। अपनी इसी लियाकत और हर हाल में "एडजस्ट' कर लेने के गुण के कारण ही यह बड़े-बड़े दिग्गजों के सफाए के बावजूद अपना अस्तित्व बचाए रखने में सफल रहा है। इसका एक ही मूल मंत्र है, कैसे भी हो जिंदा रहना है।
घरों में पाए जाने वाले काक्रोच सब कुछ हजम कर जाते हैं, चाहे वह खाद्य हो चाहे अखाद्य उनके लिये सब भगवान का प्रसाद है। जंगलों में रहने वालों के लिए तो और भी "वैराइटियां" उपलब्ध होती हैं।
इनकी बहुत सारी प्रजातियां पायी जाती हैं पर लाखों वर्षों के बाद भी इनकी आदतों या रूप-रंग में बदलाव नहीं आया है। इनकी त्वचा पर प्राकृतिक तेलों और मोम की परत लगी रहती है इसलिए पानी का इन पर कोई असर नहीं होता। प्रकृति ने इनके मुंह के सामने का भाग बहुत संवेदनशील बनाया है वहां एंटेना की तरह के दो बाल दिये हैं जिनकी सहायता से यह अपना वातावरण पहचानता है। इन्हीं से यहवायु के तापमान को पहचान कर अपने लिए सुरक्षित जगह ढूंढ लेता है। इसके साथ-साथ इसके पैरों में भी एक अनोखी शक्ति होती है जिससे यह सुक्ष्म से सुक्ष्म कंपन को महसूस कर लेता है। जरा सा खतरा भांपते ही यह अपनी ग्रंथियों से एक गंध फैलाता है, आवाज करता है जिससे इसके अन्य साथी चेतावनी पा सुरक्षित जगहों में चले जाते हैं।
इसने भले ही अपने आप को कितना भी सुरक्षित कर रखा हो पर यह मनुष्य जाति को असुरक्षित करने में कोई कसर नहीं छोड़ता। सब कुछ खाने और हर जगह रहने के कारण यह घरों के खाद्य पदार्थों में किटाणु फैलाने का अहम जरिया है। इसके कारण दुषित खाने या पानी को ग्रहण कार हर साल हजारों लोग कालकल्वित हो जाते हैं। तो भले ही यह अपने आप में अजूबा हो इससे बच कर रहने में ही भलाई है।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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2 टिप्पणियां:
आभार जानकारी का.
भगवान का शुक्र हमारे घर मै अभी तक नही दिखे, बहुत अच्छी जानकारी दी आप ने धन्यवाद
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