बड़े-बड़े लेखकों की बड़ी-बड़ी सनकें। कोई सो कर लिखता था तो कोई खड़े हो कर। कोई सोने से पहले तो कोई जागने के बाद। कोई शराब पी कर तो कोई चाय। किसी को शोर-शराबा पसंद था तो किसी को संगीत, कोई अपने पालतू के बिना कुछ सोच भी नहीं सकता था तो किसी को किसी की भी उपस्थिति नागवार गुजरती थी। इसे सनक कहिए या उनका विश्वास कि यदि ऐसा नहीं होगा तो कुछ लिखा ही नहीं जाएगा और लिखा भी गया तो वह वैसा नहीं होगा। और फिर "मूड़", जिसके बिना लेखक अधुरा होता है। इसको बनाने के लिए भी लेखकों को कितनी कसरतें करनी पड़ती थीं। सो हरि कथा की भांति इनका संसार भी तरह-तरह के अजूबों से भरा पड़ा है। यही कहा जा सकता है कि, "लेखक अनन्त लेखक कथा अनन्ता।"
अब ताल्स्ताय की बात करें तो वे सुबह सबेरे ही लिखते थे। उनके अनुसार सुबह-सुबह उनका मन रूपी आलोचक हर लेख पर नजर रखता था जो कि रात को संभव नहीं हो पाता था।
एमिल जोला बिना थके लिखने की सोच भी नहीं सकते थे। इसके लिए वे घूमने निकल जाते थे और इसी दौरान रास्ते में पड़ने वाले लैम्प पोस्ट गिनते रहते थे, गिनती गलत होने पर दोबारा गिनना शुरु करते थे। इस काम में जब बेहद थक जाते थे तो लौट कर लिखना शुरु करते थे।
फ्रांसीसी उपन्यासकार बालजाक रात के सन्नाटे में अपना लेखन कार्य पूरा किया करते थे। लिखते समय उनके कमरे में सिर्फ उनके नौकर को जाने की ईजाजत थी जो थोड़ी-थोड़ी देर में उनके लिए काफी बना कर लाता रहता था।
अलेक्जेंड़र ड़यूमा का विश्वास था कि अच्छा उपन्यास नीले रंग के कागज पर, कविता पीले रंग के कागज पर तथा बाकी की रचनाएं गुलाबी रंग के कागज पर ही लिखी जानी चाहियें।
विक्टर ह्यूगो खड़े हो कर ही लिख पाते थे। इसके लिए उन्होंने अपने कंधे की ऊंचाई के बराबर मेज बनवा रखी थी। लिखते-लिखते वे लिखे हुए कागज जमीन पर बिखराते रहते थे।
मार्क ट्वेन पेट के बल लेट कर लिखते थे , बैठ कर लिखने पर उन्हें आलस्य घेर लेता था।
हमारे शरत बाबू आराम कुर्सी पर अधलेटी अवस्था में अपनी रचनाओं को मूर्त रूप दिया करते थे।
प्रेमचंद जैसे खुद सीधे साधे थे वैसे ही उनका लिखने को लेकर कोई खास सनक भी नहीं थी। वे किसी भी समय, किसी भी जगह, किसी भी हालत में लिख लेते थे। उनके अनुसार लिखने के लिए साफ अनलिखा कागज तथा बिना रुके चलने वाली कलम का होना ही जरूरी होता है।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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14 टिप्पणियां:
हम प्रेमचंद जी जैसे लेखक तो नहीं पर लिखने की सादगी वही है, इतने सनकी लेखकों के किस्से एक साथ, वाह !!
शर्मा जी हम तो निद्रावस्था में लिखते हैं।
और लोग जाग कर बांचते हैं।
फ़िर होती है वाह-वाह, वाह-वाह
:):):):)
वाह-वाह, वाह-वाह
बहुत सुन्दर पंडित जी ...
हम तो बिना किसी अवस्था के ही शुरु होजाते हैं जैसे गीदड को जब हुकहुकी छुटती है तब शुरु हो जाता है.:)
रामराम
अब अपने जावेद अख्तर साहब को ही लीजिए। वास्तुशास्त्र कहता है कि रात में केवल उल्लू जगते हैं मगर जावेद जी ने एक इंटरव्यू में कहा कि वे सारे गीत देर रात में ही लिखते हैं।
अब कोई स्टाइल अपनाते हैं...
टी.वी. पर प्रोग्राम चलता रहता है और हम रचते रहते हैं।
अजी हम तो मन मोजी है, जब जी चाहे लिख दिया, अब मुड बनाने लगे तो शायद कभी ना लिख पाये
शराब पीकर ब्लॉग लेखन...वाह पोस्ट में भी क्या सरूर आता होगा...
वैसे रात को सोने के बाद और सुबह उठने से पहले पोस्ट लिखने पर क्या विचार है...
जय हिंद...
कोई अलग सी मुद्रा खोजुंगा फ़िर बनुगा लेखक
मार्क ट्वेन अपन की बिरादरी के थे। उनकी आत्मा को शांति मिले।
हम भी सनकी ही हैं जब मन होता है बैट जाते हैं ।
आज हिंदी ब्लागिंग का काला दिन है। ज्ञानदत्त पांडे ने आज एक एक पोस्ट लगाई है जिसमे उन्होने राजा भोज और गंगू तेली की तुलना की है यानि लोगों को लडवाओ और नाम कमाओ.
लगता है ज्ञानदत्त पांडे स्वयम चुक गये हैं इस तरह की ओछी और आपसी वैमनस्य बढाने वाली पोस्ट लगाते हैं. इस चार की पोस्ट की क्या तुक है? क्या खुद का जनाधार खोता जानकर यह प्रसिद्ध होने की कोशीश नही है?
सभी जानते हैं कि ज्ञानदत्त पांडे के खुद के पास लिखने को कभी कुछ नही रहा. कभी गंगा जी की फ़ोटो तो कभी कुत्ते के पिल्लों की फ़ोटूये लगा कर ब्लागरी करते रहे. अब जब वो भी खत्म होगये तो इन हरकतों पर उतर आये.
आप स्वयं फ़ैसला करें. आपसे निवेदन है कि ब्लाग जगत मे ऐसी कुत्सित कोशीशो का पुरजोर विरोध करें.
जानदत्त पांडे की यह ओछी हरकत है. मैं इसका विरोध करता हूं आप भी करें.
वाह.. मज़ा आया पढ़कर..
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