यह कोई कविता नहीं है, क्योंकि मुझे कविता लिखनी आती ही नहीं, नाही उसकी समझ है। जब दिलो-दिमाग आक्रोशित हों, बेकाबू होती परिस्थितियों से, कुछ ना कर पाने की कशमकश हो, जो कुछ कर पा सकते हैं वे भी आग में आहूती देते दिखें तो ऐसे में उपजे उद्वेग से निकला यह शब्द समुह है। जो सवाल कर रहा है उन सभी से जो इस रोज होते नर संहार के घिनौने प्रकरण को खत्म ना कर अपनी-अपनी पुरियां तले जा रहे हैं। एक शांत प्रदेश को ज्वालामुखी बना कर धर दिया है।
उनका खून, खून है, इनकी जिंदगी बे-मानी है?
इनकी जान की कोई कीमत नहीं, उनकी मौत कुर्बानी है?
कृत्य है उनका दानव सा, कहते तुम उनको मानव हो?
किसके किस अधिकार की बातें तुम करते हो?
ममता, स्वामी, दिग, यश, अरुन्धती,
आंखें खोलो ना बनो गांधारी,
निष्पक्ष हो बात करो छोड़ो फैलाना बिमारी।
पूछो अपने जमीर से हो रहा क्या सब ठीक है?
उजड़ रहे हैं घर, साया छिन रहा बच्चों का, बेसहारा हो गये मां-बाप, क्या कसूर था इन बेवाओं का?
त्यागो अपनी हठधर्मिता, जाओ जाकर उनसे पूछो, कहां से आए, क्या चाहते हैं? बहाते क्यों खून निर्दोषों का? बात करते किस न्याय की, वैर निभाते किस बैरी का?
आग है इतनी सीने में, धधक रही है ऐसी ज्वाला,
तो जा रक्षा करें सरहद की उस मिट्टी की जिसने है इनको पाला।
पर देश की रक्षा करना है इतना आसान नहीं। यह काम है वीर जवानों का।
वहां दाल ना गलती बुजदिलों की। ना बचाने खड़े होते हैं मौका परस्त।
वहां खेल होता है फर्रुखाबादी, धरे रह जाते हैं सारे बंदोबस्त।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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6 टिप्पणियां:
उम्दा विचारोत्तेजक प्रस्तुती /
uteejitkar diya aapne...
बहुत सटीक रचना शर्मा जी.
धन्यवाद
एक सच्चे, ईमानदार कवि के मनोभावों का वर्णन। बधाई।
यही मानवाधिकारवादियों और धर्मनिरपेक्षियों की असलियत है..
विचारोत्तेजक प्रस्तुती1
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