अब तो लगता है कि उल्टे-सीधे विज्ञापनों में बेतुके, अतिश्योक्तिपरक व अभद्रता लांघने वाले विषयों की आदत पड़ गयी है सबको। क्योंकि कहीं से भी विरोध का स्वर उठता या सुनाई नहीं देता। इसी से शह पा कर विज्ञापन देने और बनाने वालों में होड़ सी लग गयी है अश्लीलता परोसने की। और यह भी तब जब इस क्षेत्र को संभालने वाली सत्ता की बागडोर एक महिला के हाथ में है।
एक बानगी पेश है :-
1, क्रिकेट का मैदान, एक खिलाड़ी के कैच लेने की भंगिमा के अंतिम क्षणों में अजीबो गरीब कपड़े पहने महिलाओं का झुंड उसे घेर कर गिरा देता है। फिर………………।
ऐसा क्यूँ ? क्योंकि उसने एक खास किस्म की खुशबू लगा रखी थी।
2, फिर एक क्रिकेट का मैदान, बल्लेबाज, क्षेत्र-रक्षक, अंपायर सब तैयार। बालर बाल फेंकने के लिए दौड़ना शुरू करता है और दौड़ता ही चला जाता है मैदान की दूसरी ओर। क्योंकि उसके पीछे महिलाओं का हुजुम पड़ा हुआ था आधे-अधूरे वस्त्रों में। ।
कारण उसने भी एक खास कंपनी की सुगंध लगा रखी थी।
3, एक घर, शादी का माहौल है। मेहमान आए हुए हैं। उन्हीं में एक युवक एक खास परफ्यूम लगा एक शादी-शुदा महिला के पास से गुजरता है और वह “भद्र” महिला अपना “आपा” खो बैठती है।
4, एक युवक ऐसी ही कोई जादुई सुगंध लगा अपने कमरे की खिड़की खोलता है। उसकी सुगंध से सामने के घर में आई नवविवाहिता अपनी शर्म-लाज खो बैठती है।
ये तो कुछ ही उदाहरण हैं जो अपरिपक्व मष्तिष्कों को भटकाने की पुरजोर कोशिश में लगै हैं। क्या जताते हैं ये कि महिलाओं और उन कीड़े मकोड़ों में कोई फर्क नहीं है जो एक खास समय अपने साथी को आकर्षित करने के लिए एक खास गंध छोड़ते हैं।
अरे वे तो फिर भी संयमी होते हैं। उनका दिन-काल सब निश्चित होता है। पर यह विज्ञापनी महिलाएं क्या उनसे भी गयी बीती हैं? क्यों नहीं इस तरह की अश्लीलता पर अंकुश लगता। उन सब संस्थाओं के आँख कान क्यों बंद रहते हैं इन सब बेहूदा विषयों पर, जो महिला हितों की बातें करते दूसरों की नाक में दम किए रहते हैं, उनका ध्यान किस मजबूरी में इस ओर नहीं जाता ?
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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15 टिप्पणियां:
कीड़े-मकौड़े से भी नीचे की चीज बना दिया है इन्होंने....
ये कीड़े मकौड़े नहीं
तितलियाँ हैं जनाब !
सुगन्ध लगाओगे तो आएँगी ही.............
inhe kide makode kis base par kah sakte he aap
!@@@@@@@@@@@@@@
mujhe samjha me nahi aaya
अजी इन के मां बाप से पूछो उन्हे तो कमाई करने की मशीन मिल गई है....लेकिन सच मै शर्म हम जेसो को आती है, जो अपने घर मै बेठ कर अपने बच्चो के संग इन को देखते है तब. क्या यही आधुनिकता है???? लाज शर्म ओर हाय अब हमे आती है
अब क्या कर सकते हैं....?
Kumaawat ji,
pooraa lekh padhiyegaa to baat saaf ho jaaegi.
सर काश कि कभी ये भी सुन पाता कि किसी ने इन विज्ञापनों में काम करने से मना कर दिया या कि उस सुगंध का असर उस पर नहीं हुआ और उसने झन्नाटे दार झापड रसीद दिया उसे । ओह ऐसा होता नहीं दिखा कहीं :) :)
लगता है मेरी नजर ही कमजोर हो गई है ॥
भाई जी मैं भी परेशान हूँ ऐसे विज्ञापनों से ...कभी कभी .....जब सब के साथ टीवी देखता हूँ तो इनकी वजह से ....मुझे अजीब सा महसूस होता है .....और भी कई ऐसे विज्ञापन है ....जो सारी सीमाएं लांघ चुके
एक भौंडा अंगप्रदर्शन है!
गगन जी,
उस कम्पनी का नाम भी लिखना चाहिये।
शायद AXE थी। मुझे भी नफरत है ऐसे विज्ञापनों से।
Great
पूछो मत
सब पैसे का चक्कर हैं जी
भई ये तो विज्ञापन वालों की क्रिएटीविटी है
आप उसका अपमान न करो
इन लोगों की क्रिएटीविटी सेक्स से शुरू होती है और सेक्स पर ही समाप्त
महिलायें अपने वजूद को जिन्दा क्यों नहीं रख पाती उनका सोच इतना विक्रत क्योहोता जारहा है पड़ताल की जानी चाहिए मुझे खुद इन चीजों से बहुत तकलीफ होती है|
हर पहलु को ध्यान रखे तो पता पड़ेगा की कौन महिला है और कौन पुरुष और कौन कीड़ा मकोड़ा|
यदि किसी की भावना आहत हुयी हो तो माफ़ करिये
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