बुधवार, 12 मई 2010

कभी न कभी आप के साथ भी ऐसा जरूर हुआ होगा

कभी-कभी कुछ अजीब सी स्थिति बन जाती है हमारी। उस समय तो कोफ्त ही होती है। पर ऐसा क्यों होता है कि :-

* जब आप घर में अकेले हों और नहा रहे हों तभी फ़ोन की घंटी बजती है।

* जब आपके दोनों हाथ तेल आदि से सने हों तभी आपके नाक में जोर की खुजली होती है।

* जब भी कोई छोटी चीज आपके हाथ से गिरती है तो वहाँ तक लुढ़क जाती है जहाँ से उसे उठाना कठिन होता है।

* जब भी आप गर्म चाय या काफ़ी पीने लगते हैं तो कोई ऐसा काम आ जाता है जिसे आप चाय के ठंडा होने केपहले पूरा नहीं कर पाते।

* जब आप देर से आने पर टायर पंचर का बहाना बनाते हैं तो दूसरे दिन सचमुच टायर पंचर हो जाता है।

* जब आप यह सोच कर कतार बदलते हैं कि यह कतार जल्दी आगे बढेगी तो जो कतार आपने छोडी होती हैवही जल्दी बढ़ने लगती है।

मर्फी के "ला" को छोडिये। यह बताईये ऐसा होता है क्या ? :-)

9 टिप्‍पणियां:

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

मै जब भी बाथरुम में जाता हुँ फ़ोन की घंटी जरुर बजती है, फ़िर आपकी याद आती है कि शर्मा जी ने सच कहा था।

लेकिन ऐसा होता क्यों है?

Archana Chaoji ने कहा…

हाँ होता है ना!!!यही क्यों इसके अलावा भी बहुत कुछ-----जब हस्ताक्षर करना हो तभी पेन नही चलता,मुँह पर साबुन लगाओ तभी नल का पानी खतम,जरा सी नजर चूकी नही कि दूध उफ़न कर बाहर,और भी ...............पर पता नही क्यों???

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…

मै सोचता था ऐसा मेरे ही साथ होता है

राज भाटिय़ा ने कहा…

* जब आप यह सोच कर कतार बदलते हैं कि यह कतार जल्दी आगे बढेगी तो जो कतार आपने छोडी होती हैवही जल्दी बढ़ने लगती है।
यह मेरे साथ हमेशा होता है, लेकिन अब आदत पड गई है इस लिये एक ही लाईन मै चुपचाप खडा रहता हुं.... कभी तो ना० आयेगा

Sanjeet Tripathi ने कहा…

han ji, aisa kai bar hua hamare sath

एक अपील ;)

हिंदी सेवा(राजनीति) करते रहें????????

;)

Udan Tashtari ने कहा…

होता तो है!!



एक विनम्र अपील:

कृपया किसी के प्रति कोई गलत धारणा न बनायें.

शायद लेखक की कुछ मजबूरियाँ होंगी, उन्हें क्षमा करते हुए अपने आसपास इस वजह से उठ रहे विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.

हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.

-समीर लाल ’समीर’

अन्तर सोहिल ने कहा…

मेरे साथ नहीं होता

राम-राम

ढपो्रशंख ने कहा…

ज्ञानदत्त और अनूप की साजिश को बेनकाब करती यह पोस्ट पढिये।
'संभाल अपनी औरत को नहीं तो कह चौके में रह'

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

हमारे साथ तो अक्सर यही होता है!

विशिष्ट पोस्ट

ठेका, चाय की दुकान का

यह शै ऐसी है कि इसकी दुकान का नाम दूसरी आम दुकानों की तरह तो रखा नहीं जा सकता, इसलिए बड़े-बड़े अक्षरों में  ठेका देसी या अंग्रेजी शराब लिख उसक...