एक रपट :-
कुछ सालों पहले सड़क पर तंबू लगा ताकत की दवाईयां बेचने वाले अपने साथ बहुत सारी फोटुएं लिये रहते थे। जिनमें वे खुद किसी,उस समय के लोकप्रिय मर्दानी छवि वाले फिल्मी हीरो जैसे धर्मेंद्र या दारा सिंह के कंधे पर हाथ रखे मुस्कुराते खड़े नजर आते थे। गोया उन लोगों की मर्दानगी इन सड़क छाप व्यापारियों की देन हो। उस समय तकनिकी इतनी सक्षम नहीं थी फिर ऐसी फोटुएं कैसे खींची जाती थीं इसका पता एक खुलासे से हुआ। होता क्या था कि यह चंट लोग येन-केन-प्रकारेण अपने-आप को नायक का बहुत बड़ा पंखा या उसके शहर-गांव का बता किसी तरह स्पाट ब्वाय वगैरह को पटा कर हीरो को एक फोटो खिंचवाने के लिये राजी करवा लेते थे, कैमरा मैन इन्हीं का आदमी होता था, जैसे ही बटन दबने को होता था ये झट से अपना हाथ नायक के कंधे पर मुस्कुराते हुए धर देते थे, फिर यदि कोई नाराज होता भी था तो हाथ-पैर जोड़ क्षमा मांग नौ-दो-ग्यारह हो जाते थे।
एक जानकारी :-
दैनिक भास्कर की एक सहयोगी पत्रिका है 'अहा!जिंदगी'। जिसके अक्टूबर के अंक में किन्हीं मुनीर खान का जिक्र है। जो काफी बढा-चढा कर, विभिन्न बड़ी हस्तियों की तस्वीरों के साथ पेश किया गया है। जिनमें शीला दीक्षित और केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा। रामदौस भी शामिल हैं। जानते हैं पत्रिका ने किस खिताब से नवाजा है उन अपने आप को वैज्ञानिक कहने वाले महाशय को, 'सहस्त्राब्दि का मसीहा'। यह दावा किया गया है कि उनकी जादुई दवा से हर रोग का ईलाज हो सकता है बिना किसी साइड़ इफेक्ट के। यह भी लिखा गया है कि दुनिया के नब्बे से ज्यादा देशों में पेटेंट के लिये आवेदन किया जा चुका है।
एक ख़बर :-
दो दिन पहले के भास्कर में ही किसी खबर के बीच छुपी खबर - "कैंसर और ब्रेन ट्यूमर जैसी बिमारियों के इलाज का दावा करने वाले स्वयंभू वैज्ञानिक मुनीर खान भूमिगत। पुलिस अब तक गिरफ्तार करने में नाकाम।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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8 टिप्पणियां:
हा....हा...हा..दोनों खबरें ही अपने आप में सारी कहानी कह गयी..हद तो ये है कि आज भी ये सब बदस्तूर चल रहा है बल्कि कहूं कि बढता ही जा रहा है....
सही कहा आपने कि समय जरूर बदल गया है लेकिन लूटने के हथकंडे अब भी वही के वही हैं ।
शर्माजी सवाल यह है कि इन दोनो ही खबरों के लिखने वाले कौन हैं? सब मेनेज होता है.:)
रामराम.
ये तो होना ही था:)
दोनो खबर मजेदार, पुलिस अब तक गिरफ्तार करने में नाकाम। अजी पुलिस कामयाब कब हुयी है, जो अब नाकाम हो:)
एक ऐसे इलाज करने वाले नीम हकीम एन अली वारसी का धन्धा बन्द कराया गया था पुलिस ने जब उसे पकडा तो उसकी जेब से उसके बच्चे के इलाज की एलोपेथी डॉकटर की पर्ची निकली यह पूछने पर कि तुम अपने बेटे का इलाज सरकारी डॉक्टर से क्यो करवाते हो तो उसने कहा ..जनता मूर्ख है मै थोडे ही हूँ ।
जी सही कह रहे हैं महाराज,हम भी उसी अखबार मे सालों रहे हैं और गंदा ही सही यही अपना धंधा है।बहुत सटीक उदाहरण सहित आपने अपनी बात रखी जो आज की सबसे कड़ुवी सच्चाई है,जिनका काम है समाज मे जागृति लाना वो अंधविश्वास और नीम हकीम्प के समाचार और विज्ञापन छाप रहे हैं।
मजेदार !! :)
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