शनिवार, 31 अक्तूबर 2009

बच्चों की मासूमियत छीनते ये विज्ञापन

भोजन की मेज पर पति-पत्नि बात कर रहे हैं किसी के बच्चे के विदेश जाने की। साथ ही बैठा तीन-चार साल का बच्चा उनकी बातें बुरा सा मुंह बना कर सुन रहा है। उनकी बात खत्म होते ही वह अपने पिता से पूछता है कि मेरे भविष्य के बारे में तुमने क्या सोचा है?
दूसरा दृष्य, बाप थका-हारा काम से लौट कर अभी खड़ा ही होता है कि बच्चा फिर सवाल दागता है, क्या सोचा? बाप पूछता है किस बारे में ? बच्चा कहता है मेरे भविष्य के बारे में। एक अदना सा बच्चा जिसके दूध के दांत भी पूरे नहीं टूटे होंगे, उसके मुंह से ऐसी बातें निकलवा कर यह विज्ञापन दाता क्या जताना चाहते हैं। क्या आज के मां-बापों को अपने बच्चों की फिक्र नहीं है। या कि आदमी की जेब से पैसा निकलवा कर उसके मरने के बाद के हसीन सपने दिखाने वाली ये कंपनियां बताना चाहती हैं कि तुम्हारे बच्चों की फिक्र तुमसे ज्यादा हम करते हैं। या फिर पश्चिम की तर्ज पर बच्चों को बचपन से ही मां-बाप के विरुद्ध खड़े करने की साजिश है। समय के फेर से संयुक्त परिवार तो खत्म होते ही जा रहे हैं, रही-सही कसर यह धन-लोलूप बाजार, जिसके लिये नाते, रिश्ते, ममता, स्नेह का कोई मोल नहीं है, पूरी करने पर उतारू है। यह विज्ञापन है "बजाज आलियांस" का। अभी इसकी दो किश्तें ही प्रसारित हुई हैं शायद। आगे क्या गुल खिलाता है वही जाने!!!!!!

19 टिप्‍पणियां:

निशाचर ने कहा…

मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूँ. दरअसल यह समस्या है "रचनात्मक दिवालियेपन" की. उन पर काम का दबाव है परन्तु रचनात्मक सोच का अभाव है तो जो कुछ अनाप-शनाप बन पड़े बना दो और दिखा दो.

आप ध्यान दीजिये, टेलीविजन धारावाहिकों या फिर न्यूज़ चैनलों की ओर. दर्शकों की परिष्कृत अभिरुचि तो आज भी जीवित है परन्तु जब चौबीस घंटे उसके सामने कूड़ा ही परोसा जाता है तो फिर उसके पास विकल्प ही क्या है. हम वोट डालते हैं परन्तु जानते हैं कि जिसे वोट दे रहे हैं वह भी हमारी पसंद नहीं है परन्तु विकल्प भी तो नहीं है. तो बाजार भले ही प्रतिस्पर्धी है परन्तु फिर भी क्वालिटी के मामले में विकल्पहीनता की स्थिति बनती जा रही है. यही विकल्पहीनता हमें यह सब देखने को बाध्य करती है.

दीपक 'मशाल' ने कहा…

Bahut achchhi chot ki aapne.. in logon ko apne maal ko bechne se matlab hai... bhale hi baad me beema ki rakam nikalwane ke liye customer ko nakon chane chabane paden...
inhen kya fark padta hai sanskar khatm hon ya desh barbad ho.

Vinashaay sharma ने कहा…

इनको अपना सामान बेचना है,बस इसके आगे यह कुछ भी नहीं सोचते ।

बेनामी ने कहा…

बाज़ारवाद जो न कराए कम है

बी एस पाबला

P.N. Subramanian ने कहा…

सुन्दर पोस्ट. आज ही हमें अपने लंद्लिने पर एयरटेल भारती से किसी अग्रवाल ने फ़ोन किया. उन्होंने पुछा हमें सुब्रमनियन जी से बात करनी है. हमने पुछा क्यों करना चाहते हैं. हमें तो नहीं करनी है. फिर उन्होंने बताया की यह आपके बेनेफिट के लिए है. हमने कह दिया आप हमारे बेनेफिट की चिंता छोडो. और केवल अपनी सोचो. लाइन कट गयी

P.N. Subramanian ने कहा…

हमने लैंड लाइन लिखने का प्रयास किया था जो . लंद्लिने बन गया. खेद है

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

आज का बच्चा अपनी उम्र से आगे चल रहा है,
सिर्फ़ इस टी वी-कार्टुन-विज्ञापन के कारण, इनके सवाल भी अचम्भित करने वाले होते हैं।
आपने सही मुद्दा उठाया-आभार

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

यह दोड़ बहुत कुछ छीन रही है ........लेकिन अब शायद ही कोई रुकेगा......अब समाजवाद की जगह बाजारवाद लेता जा रहा है।

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

आजकल गलाकाट स्पर्धा है इस बाजारवाद में.

रामराम.

राज भाटिय़ा ने कहा…

शर्मा जी इस मै गलती हम लोगो की भी इस , हम इस बीमारी को घर से दुर रखे, यानि टी वी कावेल घर तक लाये ही नही.... अगर घर पर है तो बहुत कम देखे, बहुत ही कम, फ़िर बच्चो कोभी मना कर सकते है.....
कोई दुसरा इलाज नही इस बीमारी का वायकाट के सिवा. आप ने अपने लेख मै बहुत सुंदर लिखा.
धन्यवाद

Aadarsh Rathore ने कहा…

मैं आज इसी विषय पर लिखने वाला था।

ये सीमाओं का उल्लंघन है। इस विज्ञापन में रचनात्मकता तो है लेकिन शायद कॉपी राइटर ने ये नहीं सोचा होगा कि जब उसकी खुद की औलाद उससे ये सवाल करेगी तो उसे कैसा लगेगा....


शर्मनाक,,,

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपके शब्द-चित्र बहुत कुछ कह गये।
बधाई!

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

यह विज्ञापन का ही तो असर है कि मेरी ६ वर्षीय पौत्री पूछती कि क्या आपकी लव मैरेज़ हुई!:)

M VERMA ने कहा…

बाजार है ये

आभा ने कहा…

बाजार को बच्चों से क्या लेना उन्हे तो मुनाफे से मतलब है.

समय चक्र ने कहा…

bahut sateek vicharaniy post. abhaar.

Anil Pusadkar ने कहा…

जवानी,बुढापा और अब बचपन,पता नही क्या-क्या बेचेंगे ये लोग्।सहमत हूं आपसे।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

चच्चा,
रिश्तेदारी बनाई है तो अनुमति कैसी? आपका हक है (:

बेनामी ने कहा…

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