एक धर्मोपदेशक घूम-घूम कर लोगों को उपदेश दिया करते थे। ऐसे ही एक दिन वह एक गांव में जा पहुंचे। सारे गांव वाले अपने-अपने खेतों पर काम करने जा चुके थे। सिर्फ एक जना उनको मिला जो उन्हें गांव के पंचायत भवन में ले गया। उन्हें वहां ठहरा कर उस गांव वाले ने उनका परिचय और आने का कारण जाना। संत महोदय कुछ उलझन में थे, वह वहां ज्यादा रुक भी नहीं सकते थे और बिना उपदेश दिये आगे जाना भी उन्हें गवारा नहीं था। उन्हें सोच में पड़ा देख गांव वाले ने उनकी परेशानी का कारण जानना चाहा तो संतजी ने बताया कि मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि आप यहां अकेले हो तो मुझे प्रवचन देना चाहिये या नहीं। यह सुन गांव वाला बोला, महाराज मैं तो निपट गंवार आदमी हूं फिर भी इतना जानता हूं कि यदि मैं अपने तबेले में जा कर देखूं कि वहां सिर्फ एक जानवर के सिवा सारे पशु भाग गये हैं तो भी मैं उस जानवर को चारा जरूर दूंगा? संतजी की दुविधा दूर हो गयी और वे पूरे तीन घंटे तक अपना उपदेश देते रहे। फिर अपनी बात खत्म कर उन्होंने अपने एक मात्र श्रोता से पूछा, हां भाई कैसा रहा आज का प्रवचन?
गांव वाले ने तुरंत जवाब दिया, महाराज मैने तो पहले ही आप से कहा था कि मैं तो निपट गंवार इंसान हूं इतनी ज्ञान की बातें मुझे कहां पता। फिर भी इतना तो मुझे पता है कि अपने तबेले में जा कर देखूं कि वहां एक को छोड़ सारे जानवर भाग गये हैं तो उसे मैं उसी का चारा दूंगा, सारे जानवरों की घास उसी अकेले को ही नहीं खिला दूंगा।
गांव वाले ने तुरंत जवाब दिया, महाराज मैने तो पहले ही आप से कहा था कि मैं तो निपट गंवार इंसान हूं इतनी ज्ञान की बातें मुझे कहां पता। फिर भी इतना तो मुझे पता है कि अपने तबेले में जा कर देखूं कि वहां एक को छोड़ सारे जानवर भाग गये हैं तो उसे मैं उसी का चारा दूंगा, सारे जानवरों की घास उसी अकेले को ही नहीं खिला दूंगा।
14 टिप्पणियां:
sahi gyan ki baat tho gaonwala kar gaya.badhiya kahani,sirf gyan hone se kuch nahi hota,uska sahi istemal bhi aana chahiye.
सहमत हूँ महक जी से ।
घास और ज्ञान में फर्क तो होता है।
बोले गए वचन, एक सुने या ज्यादा , वचन तो उतने ही रहेंगे।
सैद्धांतिक ज्ञान से व्यावहारिक ज्ञान अधिक उपयोगी है !!
हा हा हा हा हा हा... सही कहा उसने..... बहुत अच्छा लगा पढ़ कर...
पढकर सचमुच आनन्द आया जी :)
गंवार तो बाबा जी से भी बडा ज्ञानी निकला :)
यह निपट गवारं सच मै उस संत से ज्यादा महान निकला, बहुत सुंदर विचार.
धन्यवाद
manoranjak kahai thi...par gyaan bhi chhupa tha...kitaabi gyaan,kabhi bhi kisi vyaavhaarik gyaan ki jagah nahi le sakta
आनन्द आया जी
बी एस पाबला
आनन्दम आनन्दम
वीनस
स्वामी जी से पहुँचा सिद्ध तो वो गांव वाला है बेचारा!!
वाह ! यही तो है जीवन सिद्ध गाँव की मेधा ।
संत की संतई सहम गयी होगी वहाँ । प्रसंग का आभार ।
ha ha ha
mazaa aa gaya
सही कहा गांव वाले ताऊ ने.
रामराम.
एक टिप्पणी भेजें